Saturday 30 December 2017

फर्जी विज्ञापन में फंसते हम सभी

राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सदस्य नरेश अग्रवाल ने शुक्रवार(28.12.17) को भ्रामक विज्ञापन का मुद्दा उठाया था. इसके जवाब में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी अपना अनुभव साझा किया.
अपना अनुभव बताते हुए नायडू ने कहा '28 दिन में वजन कम करने के एक विज्ञापन को अखबार में देखकर उन्होंने ऐसी दवाओं की हकीकत जानने का प्रयास किया. इसमें पता चला कि दवाओं के नाम पर फर्जी उत्पाद बेचने के लिए भ्रामक विज्ञापनों का कारोबार अमेरिका से संचालित हो रहा है. नायडू ने सरकार से इसकी तह में जाकर इस स्थिति से उपभोक्ताओं को बचाने के उपाय करने को कहा.' आगे बोलते हुए नायडू ने कहा 'मैंने भी 28 दिन में वेट लॉस करने का ऐड देखा और प्रोडक्ट ऑर्डर किया था. इसकी कीमत 1230 रुपए थी. जब पैकेट खोला तो उसमें असली दवा मंगाने के लिए 1 हजार रुपए और पेमेंट के लिए कहा गया.'
राज्यसभा में शुक्रवार को एसपी सदस्य नरेश अग्रवाल द्वारा यह मुद्दा उठाने पर मंत्री श्री राम विलास पासवान ने कहा कि सरकार समस्या की गंभीरता से अवगत है. इससे निपटने के लिए नया कानून संसद में विचाराधीन है. उन्होंने स्वीकार किया कि समस्या के समाधान में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 कारगर साबित नहीं हो पा रहा है. इसलिए नए स्वरूप में विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया था, लेकिन कुछ सुझावों के साथ इसे स्थाई समिति के पास भेज दिया गया. आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि समिति द्वारा पेश सुझावों को संशोधित विधेयक में शामिल करने के बाद इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल गई है. जल्द ही इसे दोनों सदनों में फिर से पेश किया जाएगा. पासवान ने समस्या की गंभीरता को देखते हुए सदस्यों से इसे यथाशीघ्र पारित कराने में सकारात्मक सहयोग की अपील की.
यह तो एक उदाहरण है. यह हाई प्रोफाइल का मामला है जो तत्काल प्रकाश में आया और संभवत: इस पर त्वरित कार्रवाई संभव है. पर यह सर्वविदित है कि अनगिनत भ्रामक  विज्ञापन आये दिन समाचार पत्रों और चैनलों पर आते रहते हैं. जाने अनजाने प्रतिदिन करोड़ों लोग इसकी चपेट में भी आते ही रहते हैं. अभी प्रतिदिन सुबह सुबह अधिकांश चैनलों पर कार्यक्रम चलते हैं - मधुमेह यानी डायबिटीज कण्ट्रोल करनेवाली दवा का विज्ञापन का. इससे फायदा प्राप्त लोग भी अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं, पता नहीं कितना सत्य है? वैसे आजकल आरामप्रद जिन्दगी हो जाने के कारण अनगिनत लोग मधुमेह के शिकार हो गए हैं और पथ्य-परहेज के साथ व्यायाम के बजाय सभी चाहते हैं कि दवा से ही इस बीमारी से छुटकारा मिल जाय. उसी प्रकार उच्च रक्तचाप और हाई कोलेस्टेरॉल की समस्या भी आम हो गयी है. इनसे छुटकारे के अनेक विज्ञापन नित्य प्रतिदिन हम सभी देखते हैं और कहीं न कहीं ठगी के शिकार भी बनते हैं.
बाबा रामदेव ने वर्षों पहले योग सिखाना प्रारम्भ किया. बहुतों ने सीखा अभ्यास भी किया पर नियमित न कर सके, फलस्वरूप बीमारी से ग्रस्त हुए और तभी बाबा रामदेव ने भी दवाओं के साथ विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री और घरेलू उपयोग की सामग्री का निर्माण करने लगे. लोग उनके उत्पाद भी खरीद रहे हैं और बाबा अपना व्यापार बढ़ाते चले जा रहे हैं. उनका भी बिज्ञापन हर चैनल अखबार में आता ही रहता है. किसी को उनके उत्पाद से फायदा है तो कहीं-कहीं उनके उत्पाद की गुणवत्ता पर भी उंगली उठी है.
दवाओं से हटकर अब आते हैं आम आवश्यकता के विज्ञापन पर. आज करोड़ों युवा बेरोजगार हैं और वे चाहते हैं रोजगार. ऐसे लोगों को भी नौकरी दिलाने के नाम पर अनेकों फर्जी कंपनियां और संस्थाएं फर्जी विज्ञापन निकालती है और युवाओं को झांसे में लेकर अवैद्य ढंग से वसूली भी करती है. बहुत सारे रियल स्टेट का धंधा करनेवाले भी अनेकों लोगों को घर और जमीन दिलाने के नाम पर करोड़ों रुपये डकार जा रहे हैं. केस मुक़दमे चलते रहते हैं पर पर्याप्त सबूत के अभाव में वे छूट भी जाते हैं.
इधर फर्जी बाबाओं का धंधा भी जोर-शोर से चल रहा है. इनके जाल में भी अच्छे-अच्छे लोग यहाँ तक कि नेता भी फंसते हैं. नेता इनका समर्थन भी करते नजर आते हैं बाद में जब अति हो जाती है. सैंकड़ों हजारों मासूम महिलाएं और बच्चियां जब इनके शिकार में फंसती हैं; कुछ तो जुल्म सहने को मजबूर होती रहती हैं, पर उन्ही में से एकाध कोई हिम्मत कर सामने आता है तो सारा पोल खुल जाता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
हमारी सरकारें क्या नहीं चला रही है फर्जी विज्ञापन? गरीबी हटाओ से लेकर गरीबी उन्मूलन, अच्छे दिन का सपना! स्मार्ट सिटीज, डिजिटल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, नमामि गंगे, कौशल विकास, विकास और विकास ....फिर उसके अन्दर आ जाता है, धर्म, सम्प्रदाय और जाति ... प्रदर्शन, रैलियां, झूठे भाषण और वादे .... और प्रभावित होते आम नागरिक ....
कहावत है जो दिखता है वही बिकता है ...आज यह युक्ति पूरी तरह से यथार्थ साबित हो रही है. चाहे फिल्म का विज्ञापन हो या राजनीतिक सामाजिक संस्था का, सभी बढ़-चढ़ कर अपनी सेवा और उत्पाद के बारे में प्रचार करते हैं. दूसरों की जमकर बुराई भी करते हैं .... शिकार होता है आम आदमी.... गरीब जनता.    
इन सबकी जड़ में जायेंगे तो पाएंगे कि कहीं न कहीं हम भी दोषी हैं. हम मिहनत नहीं करना चाहते है, जल्द से जल्द धनवान, बलवान और बुद्धिमान बन जाना चाहते हैं. हम चाहते हैं बिमारियों से छुटकारा पर न तो स्वच्छता अपनाएंगे न ही मिहनत कर खेतों से सही उत्पादन करेंगे. हम पढेंगे नहीं, पर आरामदायक नौकरी चाहिए. नौकरी मिल भी गयी तो अपना काम नहीं करेंगे, तनख्वाह बढ़नी चाहिए. बैठे-बैठे हमारे खाते में १५ लाख आ जाने चाहिए. अच्छे दिन का जाप करने मात्र से ही अच्छे दिन आ जायेंगे! अब २०२२ तक तो सबको अपना घर मिल ही जायेगा, फिर हमें क्या करना है. अपने कर्म पर भरोसा न कर बाबाजी के प्रवचन और मन्त्र पर भरोसा कर उनके चंगुल में फंसेंगे.
हम भूल जाते हैं कि - कर्म प्रधान बिश्व करि राखा, जो जस करहिं सु तस फल चाखा.
और सकल पदारथ यहि जग माही, करमहीन नर पावत नाहीं.  जिन्होंने भी सफलता के  मुकाम को हासिल किया है उन्होंने काफी मिहनत की है समर्पित भावना से काम किया है तभी वे लोग सफल हो पाए है है फिर भी स्पर्धा के इस दौड़ में चुनौतियाँ बनी रहती है. लगातार मिहनत करनी होगी. विघ्न-बाधाओं से निपटाना ही होगा. अपने शरीर आर घर बहार की सफाई स्वयं करनी होगी. किसी से सहायता की आकांक्षा रखने से पहले किसी को सहायता पहुंचानी होगी.
तुम बेसहारा हो तो, किसी का सहारा बनो. तुमको अपने आप ही, सहारा मिल जायेगा.
अपने को काबिल बनाओ मिहनत करो फिर देखो सफलता कैसे तुम्हारा कदम चूमती है. लोग तो कहेंगे ही क्योंकि लोगों का कम ही है कहना ... करना तो हमें है ...नहीं? २०१७ अब जा चुका है. नए वर्ष २०१८ का हम सब स्वागत को तैयार हैं पर कुछ तो नया संकल्प लेना होगा अपने आपको सक्षम बनाने का संकल्प. खुद के पैरों पर खड़े होने का संकल्प! दूसरों/जरूरतमंदों का सहारा बनने का संकल्प. किसी का बुरा न चाहने या न करने का संकल्प! और इसी संकल्प के साथ आप सभी को नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं !

जयहिंद ! जय भारत! 
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.   

Sunday 24 December 2017

बाबा रे बाबा

पहले आशाराम, फिर रामपाल, उसके बाद रामवृक्ष, और राम रहीम ये सभी धर्मगुरु से अपना साम्राज्य विकसित कर चुके, अब अपराधी करार हो चुके हैं. इनमे रामवृक्ष तो मुठभेड़ में मारा गया बाकी अपराधी सजा भुगत रहे हैं. पर फिलहाल चर्चा में थे गुरमीत सिंह राम रहीम इंशा. निस्संदेह यह प्रतिभासंपन्न व्यक्ति है और कई प्रतिभाओं में यह ख्याति भी बटोर चुका है. पर कहते हैं न- प्रभुता पाई काह मद नाही और अंतत: यही मद ने इस राम रहीम को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.
इन सबके बाद प्रकट हुए दिल्ली का बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित... वे आश्रम में लड़कियों को धार्मिक शिक्षा देने के बहाने न केवल एक बड़ा सुनियोजितसेक्स रैकेट चला रहा था बल्कि आश्रम में रखकर लड़कियों को नशे का आदी बनाकर उन्हें बहुत से रसूखदारलोगों के हरम में भेजता रहा है। पुलिस और अदालत तक पहुंची जानकारी में हैरतअंगेज खुलासे हुए हैं।
बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रम से छनकर निकल रहीं चौंकाने वाली जानकारियों पर हाईकोर्ट भी हैरान है। शुक्रवार(22.12. 2017) को उसने टिप्पणी की और कहा कि बाबा का ऐसा आश्रम बगैर फंड  और नेताओं के संरक्षण के नहीं चल सकता। इतने सालों से यहां ऐसा हो रहा था और इस संबंध दिल्ली पुलिस को एनजीओ सहित परिजन शिकायत दे रहे थे, उसके बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इनसब कारणों को तलाशें जांच एजेंसी। कोर्ट ने सख्त लहजों में कहा कि आश्रम के संबंध में जितनी भी बातें सामने आई हैं उससे ये साफ हो गया कि आश्रम की आड़ में सेक्स व्यापार और काले कारनामे ही होते थे। हाईकोर्ट ने राजधानी में मौजूद 8 आश्रम की लिस्ट मांगी है। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से चल रहे बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रम की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, कई हैरान करने वाली बातें सामने आ रही हैं। दीक्षित की काली करतूतों का अड्डा सिर्फ रोहिणी के विजय विहार में ही नहीं, दिल्ली के पालम इलाके में भी है। ये खुलासा कोर्ट में हुआ। जब वहां पालम आश्रम से एक युवती को पेश किया गया। इसके साथ ही यह आशंका है कि पालम में भी आश्रम के नाम पर बड़ा खेल हो रहा है।
शुक्रवार को मामले की सुनवाई करते समय दिल्ली हाई कोर्ट के जज भी आश्रम में चल रही गतिविधियों से दंग नजर आए। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा, हम किस युग में जी रहे हैं। कोर्ट ने 8 आश्रमों की जानकारी जल्द से जल्द मांगी और दीक्षित को कोर्ट में पेश करने का आदेश भी दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर आश्रम के बारे में जानकारी नहीं दी जाएगी, तो दीक्षित के खिलाफ वॉरंट जारी किया जाएगा। कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि आश्रम में जांच टीम को रोका गया, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस मामले में अब अगली सुनवाई चार जनवरी को होगी।

हाईकोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट में है कि बाबा 12 से 16 साल की लड़कियों को ज्यादा पंसद करता था और उन्हें अपने साथ रखता था। इनमें से 4 लड़कियों के बयान कोर्ट में लगे हैं जिसमें बताया कि बाबा उनके परिजनों को आध्यात्मिक ज्ञान का हवाला देता था और उनके शरीर के साथ खेलता था। जिन लड़कियों के बयान दर्ज है उनमें 12 साल की और एक 16 साल की है, जबकि 22 लड़कियों के हलफनामें और भी दिए हैं, जिसमें कहा गया है कि अगर कोर्ट उन्हें बुलाती है तो वे उन्हें पेश कर सकते हैं। ऐसे में साफ है कि ये बाबा अक्सर नाबिलग बच्चियों को अपने ईदगिर्द रखता था।
शुक्रवार को 12 डाक्टरों की टीम रोहिणी स्थित आश्रम में पहुंची, जब वे सेंकड फ्लोर पर पहुंचे तो मौजूद 22 लड़कियों की हालत को देख कर दंग रह गए। इस डॉक्टरों की टीम में एनजीओ की दो सदस्या महिला भी शामिल थी। उनके मुताबिक इन लड़कियों के हाथों में जंजीर के निशान पाए गए है और इनकी मानसिक हालत भी ठीक नहीं है। इनमें से 5 लड़कियों को एक निजी अस्पताल में भेजा गया है इसके अलावा 6 लड़कियों को अंबेडकर अस्पताल में लाया गया है। प्रारंभिक जांच के मुताबिक इन लड़कियों को काफी समय से नशा दिया जा रहा था जिसके कारण ये अभी होश में नहीं है। इन लड़कियों की जांच के लिए इहबास से भी एक टीम को भेजा गया है। बताया जाता है कि बाबा और उसके कुछ गुर्गे इन लड़कियों से गंदे काम करते थे और कराते थे। जिन लड़कियों को जंजीरों में बांधा गया था वे पुरी तरह से मरणासन्नवस्था में है।
श्री त्रिभुवन सिंह ने बताया कि सिकत्तरबाग आश्रम में मिली नाबालिग संवासिनी को मजिस्ट्रेट के सामने पेशकर उसके बयान कराए जाएंगे. पुलिस के मुताबिक कम्पिल आश्रम पर क्षेत्राधिकारी कायमगंज और एसडीएम ने पुलिस बल के साथ छापा मारा, जहां 40 संवासिनें मौजूद थीं.
उधर, शनिवार को दिल्ली के रोहिणी इलाके में धर्म के नाम पर यौन शोषण करने वाले तथाकथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रम से शनिवार (23 दिसंबर) को भी पुलिस ने कई लड़कियों को रिहा करवाया. इससे पहले इस आश्रम से करीब 41 लड़कियों को छुड़ाया गया है. रोहिणी के विजय विहार में खुद को बाबा बताने वाला वीरेंद्र देव दीक्षित आध्यात्मिक विश्वविद्यालय नाम से एक आश्रम चला रहा था. कई लोगों ने आरोप लगाया था कि बाबा यहां बंधक बना कर रखी गईं कम उम्र लड़कियों को दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न का शिकार बनाता रहा है. गुरुवार को हाईकोर्ट की ओर से नियुक्त टीम ने 9 घंटे रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया था जिसके इस दौरान 41 लड़कियों को वहां से मुक्त कराया गया.
पुलिस ने शनिवार सुबह वीरेंद्र देव दीक्षित के सिकत्तरबाग व कंपिल स्थित आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविद्यालयों में करीब दो घंटे तक सर्च अभियान चलाया। आश्रमों में घुसने को लेकर पुलिस की संवासिनियों से नोकझोंक भी हुई। सिकत्तरबाग आश्रम में तो पुलिस पीछे का गेट तोड़कर अंदर पहुंच सकी। यहां आठ संवासिनियां मिलीं। इनमें तीन को पूछताछ के लिए महिला थाना ले जाया गया। यहां कोई पुरुष नहीं मिला। कंपिल में 33 संवासिनियां व 14 पुरुष मिले। इनमें 28 संवासिनियों को मेडिकल के लिए भेजा गया है। यहां की संवासिनियों में पांच स्थानीय व अन्य गैर प्रांतों की हैं। पुलिस ने दोनों आश्रमों में सभी के बयान दर्ज किए हैं, पर इनके बयानों का खुलासा नहीं किया है।
एएसपी त्रिभुवन सिंह ने बताया कि आश्रम में नाबालिग लड़कियों को बंधक बनाने की सूचना मिली थी। इस कारण छापेमारी की गई। पूरी जांच पड़ताल के बाद मामला साफ होगा। मेडिकल जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। शहर में एएसपी व कंपिल में सीओ कायमगंज नरेश कुमार के नेतृत्व में सर्च आपरेशन चला। पुलिस ने आश्रम में चप्पे-चप्पे की तलाशी ली। तीन मंजिला आश्रम में कई तहखाने मिले। छत पर 15-20 एक्स-रे फिल्म पड़ीं थीं। मौके पर आठ संवासिनियां मिलीं। इसमें कुशीनगर पूना निवासी संवासिनी व दो अन्य संवासिनियों को पुलिस महिला थाने ले गई।
अब जब कोर्ट का दखल हो गया है तो कार्रवाई तो होनी है और जांच के बाद जो भी तथ्य सामने आयेंगे उसके अनुसार सजा भी मुक़र्रर की जायेगी. पर सवाल फिर यही उठता है कि इस प्रकार के आश्रमों को पहले विकसित किया जाता है, फिर फलित फूलित होते भी सभी देखते हैं. राजनीतिक व्यक्ति में श्रीमती स्मृति इरानी का चित्र भी सामने आया है जो बाबा वीरेन्द्र दीक्षित से आशीर्वाद लेते हुई नजर आ रही हैं. उनके साथ अन्य महिला भी दिख रही है. अब सवाल तो उठेगा कि जानी मानी  हस्ती जब उनसे मिल रही हैं, तो वरदहस्त अवश्य ही प्राप्त होगा. हमलोग इतने अन्धविश्वासी क्यों हो गए हैं कि इस तरह के बाबाओं के पास अपनी नाबालिग लड़कियां भेजने लगे हैं? आखिर क्या चाहते हैं हमलोग? अपना सारा काम छोड़कर इन तथाकथित बाबाओं के पैर पकड़ेंगे तो हमारा कल्याण हो जायेगा? जब “कर्म प्रधान विश्व करी राखा” है और “कर्मण्ये वा अधिकारास्ते” का उपदेश गीता में भी दिया गया है तो फिर क्यों नहीं समझते हैं हम सब लोग. इन तथाकथित बाबाओं को अपना अड्डा बनने और विकसित करने में हम सभी लोगों का या कहें कि अधिकांश लोगों का योगदान होता ही है चाहे जिस कारण से हो. क्षणिक लाभ या कुछ धनार्जन ही मूल उद्देश्य रहता है.
सरकारी प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं को चाहिए की धर्म और आध्यात्म के नाम पर जितने भी आश्रम आदि चलाये जा रहे हैं, सबकी एक बार निष्पक्ष जांच करायी जानी चाहिए और इनलोगों को भी सरकारी लाइसेंस मुहैया कराई जानी चाहिए. बीच बीच में अचानक छापामारी कर जांचा परखा जाना चाहिए ताकि पारदर्शिता बनी रहे. मीडिया के लोगों को भी चाहिए कि ऐसे लोगों का पर्दाफाश समय रहते करे ताकि काफी लोगों का, खासकर लड़कियों और महिलाओं का जीवन ख़राब होने से बच जाए. नही तो हम सभी जानते हैं – “का बर्षा जब कृषि सुखाने, समय चूकि फिर का पछताने.” इस तरह के छद्म आश्रमों से हम सबके आस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा और धर्म नाम की चीज से विश्वास उठ जायेगा. जो सही माने में संत या बाबा हैं उन्हें भी लोग शक की दृष्टि से देखेंगे. उम्मीद है, हमारी वर्तमान धर्म सम्मत सरकार इस प्रकार की संस्थाओं पर समय रहते अंकुश लगाएगी.
जय श्री राम! – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Saturday 16 December 2017

राहुल गाँधी की ताजपोशी

राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं और अब उनके सामने आनेवाले समय में कर्नाटक, मिज़ोरम और मेघालय में कांग्रेस को बचाने की ज़िम्मेदारी है. ऐसे में उनके सामने कई चुनौतियां हैं. उन्हें लगातार चुनाव में ख़राब प्रदर्शन कर रही पार्टी को जीतने वाली पार्टी में बदलना है साथ ही संगठन में अपनी छवि को भी एक नया रूप देना है. वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा का नज़रिया उन्हीं के शब्दों में : कठिनाइयां जब बहुत बढ़ जाती हैं तो जो इसे झेलने में जो सक्षम होता है वही अच्छा काम कर पाता है. मुश्किलों में कभी-कभी लीडरशिप उभरकर निकलती है. राहुल को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. अब उन्हें जनता की अदालत में जाकर अपना केस जीतना है. यह किसी भी लीडर के लिए टेस्ट होता है. उनकी अध्यक्षता पर जनता की वही मुहर मानी जाएगी. राहुल गांधी को अपनी पार्टी को चुनाव में जीतने का हुनर अब सिखाना पड़ेगा और पार्टी में वो शक्ति लानी पड़ेगी कि वो चुनाव जीत सके. बीजेपी की तुलना में कांग्रेस पार्टी संस्था के तौर पर बहुत कमजोर नज़र आती है. यह गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान भी प्रत्यक्ष रूप से दिखा. जहां कांग्रेस और राहुल अच्छे से चुनाव लड़े. 18 तारीख़ को ही पता चल सकेगा कि राहुल के लिए आने वाले दिनों में चुनौतियां आखिरकार कितनी बड़ी हैं. ऐसा लगता था कि कांग्रेस संस्था के तौर पर तैयार नहीं है. अगर गुजरात में कांग्रेस की हार भी होती है, लेकिन वो हारने के बावजूद अच्छे आंकड़ों से अपनी इज़्ज़त बचा लेती है तो यह राहुल की अच्छी शुरुआत होगी. राहुल के लिए पार्टी को नया स्वरूप देना, नई शक्ति देना और ज़मीन पर ऐसे कार्यकर्ता बनाना जो भाजपा के कार्यकर्ताओं को मुकाबला दे सकें सबसे बड़ी चुनौती है. अपने 132 सालों के कांग्रेस के इतिहास में और खासकर आज़ादी के बाद कांग्रेस इतनी कमज़ोर कभी नहीं थी.
सोनिया गांधी जब 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बन कर आई थीं तब भी कांग्रेस बिखर रही थी, लेकिन उस समय भी संसद में ऐसी स्थिति नहीं थी. लिहाज़ा सोनिया के सामने इतनी बड़ी चुनौती नहीं थी. उन्होंने खुद ही कहा कि जब वो अध्यक्ष बनी थीं तब केवल तीन प्रांतों में कांग्रेस की सरकार थी और केंद्र की सत्ता से भी वो बाहर थी. लेकिन 1998 से लेकर 2004 तक कांग्रेस पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई. दूसरी बार भी यूपीए ने सरकार बनाई और साथ ही 21 प्रांतों में भी अपनी सरकार बना ली. क्या ये जादू राहुल गांधी दिखा सकेंगे? ये बड़ा प्रश्न है.
विज्ञान की भाषा में व्यक्तित्व परिवर्तन तो संभव नहीं है, लेकिन राजनीतिक तौर पर किसी राजनेता का नज़रिया तब बदलता है जब जनता को देखने का उसका अंदाज़ बदल जाता है. गुजरात में वो इसमें सफल हुए हैं. लोग उन्हें तन्मयता से सुनते थे. वो ऐसे मुद्दे पर बोलते थे जो लोगों के दिलों से जुड़े हुए थे. अपने प्रचार में वो जनता से जुड़े मुद्दे लगातार उठाते रहे. इसकी वजह से लोगों ने उन्हें एक नए नज़रिये से देखना शुरू कर दिया जो उनकी लीडरशिप की स्वीकृति जैसा है. अगर यह वोट में तब्दील हो जाए तो कांग्रेस के लिए अच्छा रहेगा. लेकिन अगर ये वोट में नहीं बदलता, लेकिन सीटें बढ़ती हैं तो भी आगामी चुनावों में पार्टी के मनोबल को बढ़ाएगा.
राजनीति का सिद्धांत है कि किसी भी पार्टी या राजनेता को ख़ारिज नहीं करना चाहिए. अटल बिहारी वाजपेयी 1984 में माधव राव सिंधिया से चुनाव हार गए. वो बाद में देश के प्रधानमंत्री बने. 2004 में चंद्रबाबू हारे, लेकिन 2014 में वो दोबारा जीत कर आ गए. क्या कोई ये सोचता था कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे. वो आज की तारीख़ में कई तबकों में सक्षम प्रधानमंत्री माने जाते हैं. किसी भी नेता को यह मान लेना कि वो ख़त्म हो गया है, ग़लत होता है.
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के पूर्व सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी ने शनिवार को नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत को उनके जैसे नेता की जरुरत है और वह देश के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे। गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने पर उनको बधाई देते हुए कुलकर्णी ने ट्वीट किया। गौरतलब है कि कुलकर्णी बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के काफी करीब रहे हैं। सुधींद्र कुलकर्णी बीजेपी से करीब 13 सालों तक जुड़े रहे थे। उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी के साथ काम किया था। उन्होंने ट्वीट किया, 'आज मैं अधिक आश्वस्त हूं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे और उन्हें बनना भी चाहिए। एक नए नेता का उदय हुआ है। भारत को ऐसे नेता की जरुरत है।' उन्होंने राहुल गांधी की सराहना करते हुए उन्हें वास्तव में गांधीवादी राजनीतिक विचार रखने वाला व्यक्ति बताया। कुलकर्णी ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी की भी प्रशंसा की और उन्हें साहसी महिला बताया। शनिवार को अध्यक्ष पद संभालने के बाद अपने पहले ही भाषण में राहुल गांधी ने बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला था। सुधींद्र कुलकर्णी ने 19 सालों तक कांग्रेस अध्यक्ष रही सोनिया गांधी की तारीफ करते हुए कहा, 'सोनिया गांधी साहसिक महिला हैं। उन्होंने 19 साल पहले भंवर में फंसी कांग्रेस को उबारने में कामयाबी हासिल की। आज का उनका भाषण भी लाखों दिलों को छूने वाला था।'
गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने आखिरी संबोधन में शनिवार को कहा था, '1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। मुझे महसूस हुआ, जैसे मेरी मां मुझसे छीन ली गई। इस हादसे ने मेरे जीवन को हमेशा के लिए बदल डाला। उन दिनों मैं राजनीति को एक अलग नजरिए से देखती थी। मैं अपने पति और बच्चों को इससे दूर रखना चाहती थी।' पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, 'इंदिराजी की हत्या के सात वर्ष बाद ही मेरे पति की भी हत्या कर दी गई। मेरा सहारा मुझसे छीन लिया गया। इसके कई साल बाद जब मुझे लगा कि कांग्रेस कमजोर हो रही है और सांप्रदायिक ताकतें उभर रही हैं तब मुझे पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की पुकार सुनाई दी। मुझे महसूस हुआ कि इस जिम्मेदारी को नकारने से इंदिरा और राजीवजी की आत्मा को ठेस पहुंचेगी। इसलिए देश के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए मैं राजनीति में आई।'
जहाँ तक मेरा नजरिया है- राहुल गाँधी चाहते तो कब का कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी सम्हाल सकते थे. परदे के पीछे से राजनीती भी कर सकते थे. पर उन्होंने पहले खुद को तैयार किया, विकसित किया, तभी उन्होंने अध्यक्ष पद को सम्हालने की ईच्छा व्यक्त की और सोनिया गाँधी ने अपना उत्तराधिकारी उन्हें बना दिया, यह कहते हुए कि अब मै रिटायर हो रही हूँ. गुजरात चुनाव के दौरान उनका भाषण पहले की अपेक्षा काफी बेहतर रहा. वे सभ्यता और मर्यादा में रहते हुए प्रधान मंत्री पर एक से एक प्रहार किए. उन्होंने प्रधान मंत्री के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, जिसका जवाब देना भी प्रधान मंत्री ने उचित नहीं समझा. वे व्यक्तिगत हमले करते रहे और अपने ऊपर किये गए हमलों को अपनी ही शैली में भुनाते रहे. राहुल गाँधी ने अपने पहले अध्यक्षीय भाषण में भी भाजपा पर हमले किये- उन्होंने कहा – वे नफ़रत फैलाते हैं, हम प्यार का वातावरण बनायेंगे. वे तोड़ते हैं, हम जोड़ते हैं. उनके व्यवहार में अभी जो शालीनता है वही आगे भी बनी रहनी चाहिए. संगठन को और मजबूत बनाना होगा. युवा नेतृत्त्व को बढ़ावा देना होगा और कार्यकर्ताओं की फ़ौज जमीनी स्तर तक तैयार करनी होगी जो जनता की समस्याओं को सुने और उन्हें दूर करने का हर संभव प्रयास करे. बिना फल और छाया की संभावना के कोई भी वृक्ष नहीं लगाता. वृक्ष वही जो हर आंधी-तूफ़ान का सामना करते हुए तन कर खड़ा रहे, पंछी को शरण दे और पंथी को छाया...
राहुल गाँधी को वंशवाद की बेल को हर मौसम की मार से बचाना है और एक नया नेतृत्व देना है. शासन में चाहे जो रहे पर एक मजबूत विपक्ष की भी अहम् भूमिका होती है, एक सफल लोकतन्त्र में. मोदी जी को जनता ने अभूतपूर्व बहुमत दिया है और वे बहुमत के आधार पर निर्णय भी ले रहे हैं. कोई कोई निर्णय एक बड़े वर्ग की जनता को पसंद नहीं आया. साथ ही देश में बेरोजगारी की समस्या नौजवान जूझ रहे हैं, किसानो की उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा. इसके अलावा आर्थिक पक्ष से भी देश की स्थिति अभी बहुत अच्छी नहीं है. इन सब पर मोदी सरकार को सोचना होगा और इन सब के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है.  जय लोकतंत्र! जय हिन्द!    

-     - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 

Sunday 3 December 2017

विश्व विकलांग(दिव्यांग) दिवस

हर साल 3 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकलांग व्यक्तियों का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी और 1992 से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय रीति-रिवीज़ के रुप में प्रचारित किया जा रहा है। विकलांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये उनके वास्तविक जीवन में बहुत सारी सहायता को लागू करने के द्वारा तथा उनको बढ़ावा देने के लिये साथ ही विकलांग लोगों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये इसे सालाना मनाने के लिये इस दिन को खास महत्व दिया जाता है। 1992 से, इसे पूरी दुनिया में ढ़ेर सारी सफलता के साथ इस वर्ष तक हर साल से लगातार मनाया जा रहा है।
वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्षके रुप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर विकलांगजनों के लिये पुनरुद्धार, रोकथाम, प्रचार और बराबरी के मौकों पर जोर देने के लिये योजना बनायी गयी थी। समाज में उनकी बराबरी के विकास के लिये विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये, सामान्य नागरिकों की तरह ही उनके सेहत पर भी ध्यान देने के लिये और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये पूर्ण सहभागिता और समानताका थीम विकलांग व्यक्तियों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के उत्सव के लिये निर्धारित किया गया था। सरकारी और दूसरे संगठनों के लिये निर्धारित समय-सीमा प्रस्ताव के लिये संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा विकलांग व्यक्तियों के संयुक्त राष्ट्र दशकके रुप में वर्ष 1983 से 1992 को घोषित किया गया था जिससे वो सभी अनुशंसित क्रियाकलापों को ठीक ढंग से लागू कर सकें।
विश्व विकलांग दिवस कैसे मनाया जाता है
उनकी सहायता और नैतिकता को बढ़ाने के लिये साथ ही साथ विकलांगजनों के लिये बराबरी के अधिकारों को सक्रियता से प्रसारित करने के लिये उत्सव के लिये पूरी दुनिया से लोग उत्साहपूर्वक योगदान देते हैं। कला प्रदर्शनी के आयोजन के द्वारा इस महान उत्सव को मनाया जाता है जो उनकी क्षमताओं को दिखाने के लिये विकलांग लोगों के द्वारा बनायी गयी कलाकृतियों को बढ़ावा देता है। समाज में विकलांगजनों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरुकता को बढ़ाने के साथ ही विकलांग लोगों की कठिनाईयों की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिये विरोध क्रियाओं में सामान्य लोग भी शामिल होते हैं।
विश्व विकलांग दिवस को मनाने का लक्ष्य
  • इस उत्सव को मनाने का महत्वपूर्ण लक्ष्य विकलांगजनों के अक्षमता के मुद्दे की ओर लोगों की जागरुकता और समझ को बढ़ाना है।
  • समाज में उनके आत्म-सम्मान, लोक-कल्याण और सुरक्षा की प्राप्ति के लिये विकलांगजनों की सहायता करना।
  • जीवन के सभी पहलुओं में विकलांगजनों के सभी मुद्दे को बताना।
  • इस बात का विश्लेषण करें कि सरकारी संगठन द्वारा सभी नियम और नियामकों का सही से पालन हो रहा है य नहीं।
  • समाज में उनकी भूमिका को बढ़ावा देना और गरीबी घटाना, बराबरी का मौका प्रदान कराना, उचित पुनर्सुधार के साथ उन्हें सहायता देना।
  • उनके स्वास्थ्य, सेहत, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केन्द्रित करना।
विश्व विकलांग दिवस को मनाना क्यों आवश्यक है
ज्यादातर लोग ये भी नहीं जानते कि उनके घर के आस-पास समाज में कितने लोग विकलांग हैं। समाज में उन्हें बराबर का अधिकार मिल रहा है कि नहीं। अच्छी सेहत और सम्मान पाने के लिये तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिये उन्हें सामान्य लोगों से कुछ सहायता की ज़रुरत है, । लेकिन, आमतौर पर समाज में लोग उनकी सभी ज़रुरतों को नहीं जानते हैं। आँकड़ों के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि, लगभग पूरी दुनिया के 15% लोग विकलांग हैं। इसलिये, विकलांगजनों की वास्तविक स्थिति के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये इस उत्सव को मनाना बहुत आवश्यक है। विकलांगजन विश्व की सबसे बड़ी अल्पसंख्यकोंके तहत आते हैं और उनके लिये उचित संसाधनों और अधिकारों की कमी के कारण जीवन के सभी पहलुओं में ढ़ेर सारी बाधाओं का सामना करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 दिसंबर 2015 को अपने रेडियो संबोधन मन की बातमें कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक दिव्य क्षमताहै और उनके लिए विकलांगशब्द की जगह दिव्यांगशब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और अब दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल हो रहा है हालाँकि इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ता. हमारे दिमाग के अन्दर की मानसिकता बदलनी चाहिए.
दिव्यांग कानून
इसमें नि:शक्तजनों से भेदभाव किए जाने पर दो साल तक की कैद और अधिकतम पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. दिव्यांगों की श्रेणी में तेजाब हमले के पीड़ितों को भी शामिल किया गया है. नि:शक्त व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि और उसके आनुषंगिक विषयों को प्रभावी बनाने वाला नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधयेक 2014 काफी व्यापक है और इसके तहत दिव्यांगों की श्रेणियों को सात से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है. इन 21 श्रेणी में तेजाब हमले के पीड़ितों और पार्किंसन के रोगियों को भी शामिल किया गया है. देश की आबादी के 2.2 प्रतिशत लोग दिव्यांग हैं. अभी तक कानून में इनके लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था जिसे बढ़ाकर 4 प्रतिशत किया गया है.
हमारे बीच कुछ जानी मानी हस्तियाँ हैं जो दिव्यांग के रूप में अपने अपने क्षेत्र में नाम कमा रहे हैं. प्रख्यात संगीतकार और गायक स्वर्गीय रविन्द्र जैन, नृत्यांगना सोनल मान सिंह, नृत्यांगना सुधाचंद्रन, एवेरेस्ट पर चादाह्नेवाली पहली दियंग महिला अरुणिमा सिन्हा का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है. इन्होने अपने आपको सिद्ध किया है. ऐसी अनेक जानी मानी हस्तियाँ हैं जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को सिद्ध किया है.   
अंत में हमारा कहना यही है कि किसी भी अशक्त दिव्यांग लोगों के साथ भेदभाव ना करें और यथसंभव उनकी मदद करें उन्हें काबिल बनायें ताकि वे अपने आपको समर्थ महसूस कर सकें. ईश्वर ने किसी को भी पूर्ण नहीं बनाया है. हर एक में कुछ कमियां अवश्य होती है इसलिए उन कमियों को कैसे दूर किया जाय और अगर उनमे कुछ विशेष क्षमता है तो कैसे उसे विकसित किया जाय यही प्रयास हर स्तर पर किया जाय. उनका मजाक उड़ाकर उन्हें हतोत्साहित तो कदापि न करें. फूल के साथ काँटों का मेल, सुख के साथ दुःख का मेल, दिन के साथ रात्रि का मेल, धुप के साथ छांव का मेल, सफ़ेद के साथ स्याह का मेल यही तो परमात्मा की यथार्थ रचना है. फिर हम अपने ही समाज के एक अशक्त व्यक्ति की शक्ति को कैसे नकार सकते हैं.
१९७२ में शक्ति सामंत ने अनुराग फिल्म बनांई थी, जिसमे मौसमी चटर्जी ने एक अंधी लड़की का किरदार निभाया था. बाद में उसे फिल्म के ही एक पात्र द्वारा नेत्रदान कर उसकी आँखों को रोशनी प्रदान के गयी थी. यह फिल्म काफी सराही गयी थी और उसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. फिल्म के निर्माता शक्ति समान्त का कहना था - अगर इस फिल्म को देखकर एक व्यक्ति भी किसी को अपना नेत्रदान करने की प्रेरणा पाता है तो उन्के फिल्म बनाने का मकसद पूरा हो जायेगा. आज अनेकों संस्थाएं नेत्रदान के लिए काम कर रही है और काफी लोग नेत्रदान कर भी रहे हैं. कई सरकारी और गैर सरकारी संगठन अशक्त लोगों के लिए काम कर रहे हैं. सरकारें उन्हें यथासंभव सहायता भी देती है. यह सहायता राशि का सही इस्तेमाल हो यह सुनिश्चित की जानी चाहिए.
जरूरत है, स्वस्थ मानसिकता की जो किसी भी मानव मात्र से भेदभाव न करे. जयहिंद! जय दिव्यांग

 - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday 18 November 2017

डॉ अजय कुमार- एक बहुआयामी व्यक्तित्व

कांग्रेस की झारखंड इकाई का नया अध्यक्ष डॉ अजय कुमार को बनाया गया है. अजय कुमार इससे पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता की भूमिका में थे. राजनीति में एक दशक भी नहीं पूरा करने वाले अजय कुमार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेवारी सौंपी है, जहां उन्हें पार्टी को राज्य में सक्रिय क्षेत्रीय दलों के सहयोगी दल की भूमिका से विपक्ष की राजनीति के केंद्र में लाने के लिए जूझना होगा.
अजय कुमार ने यूं तो अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से शुरू की थी और इसके टिकट पर जमशेदपुर से 2011 में सांसद चुने गये थे. बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गये. कांग्रेस में सक्रिय रहते हुए उन्होंने भाजपा में जाने की अटकलों पर अपने अंदाज में यह बयान देकर विराम लगाया था कि उसका डीएनए मेरे डीएनए से मिलता नहीं है, इसलिए ऐसा कभी हो नहीं सकता.
अजय कुमार 2010 से 2014 तक झाविमो में और फिर 2014 से कांग्रेस में सक्रिय हैं. 55 वर्षीय अजय कुमार का जन्म कर्नाटक के मंगलोर में अजय कुमार भंडारी के रूप में हुआ था और उन्होंने हैदराबाद से स्कूलिंग की और पुड्डूचेरी के जवाहर लाल इंस्टीट्यूट से 1985 में मेडिकल की पढाई पूरी की. अगले ही साल 1986 में वे आइपीएस के लिए चुने गये. अजय कुमार के एस भंडारी एवं श्रीमती वत्सला के पुत्र हैं.
एमबीबीएस डॉक्टर अजय कुमार भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी भी रह चुके हैं और आइपीएस अधिकारी के रूप में वह बिहार एवं झारखंड में काम कर चुके हैं. वह 1994 से 1996 तक जमशेदपुर के एसपी के पद पर भी कार्य कर चुके हैं.
कर्नाटक के मूलवासी अजय कुमार ने आइपीएस से इस्तीफा देने के बाद कुछ समय तक कॉरपोरेट जगत में काम किया और फिर राजनीति में शामिल हुए. वह बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झाविमो के टिकट पर 2011 में जमशेदपुर से लोस के लिए चुने गये थे.
एक आइपीएस के रूप में अजय कुमार ने शानदार कामकाज किया. एकीकृत बिहार के दो प्रमुख शहरों पटना एवं जमशेदपुर में प्रमुख रूप से वे तैनात रहे और अपराध को जबरदस्त ढंग से काबू में किया. जमशेदपुर में जब अपराध काफी बढ़ गया था तब टाटा स्टील के एमडी जेजे ईरानी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से इसे नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावशाली अधिकारी की तैनाती का आग्रह किया. लालू ने उनके आग्रह पर पटना के सिटी एसपी अजय कुमार को जमशेदपुर का एसपी बनाकर भेजा और कम ही समय में उन्होंने वहां अपराध को नियंत्रित कर लिया. 

एसपी के रूप में अजय कुमार के शानदार कामकाज का असर था कि 2011 के जमशेदपुर उपचुनाव में वे डेढ़ लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीत गये. जमशेदपुर उनके जीवन में खास जगह रखता है. हालांकि 2014 के आमचुनाव में मोदी लहर में वे कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जमशेदपुर से हार गये, लेकिन पार्टी हाईकमान को उनकी संभावनाओं का अहसास था. वे पार्टी के लिए शानदार व तार्किक ढंग से अपनी बात रखने वाले चेहरे के रूप में उभरे और सोनिया-राहुल का उन पर विश्वास बढ़ता गया. अब अजय कुमार को एक डॉक्टर के रूप में पार्टी संगठन की सर्जरी करनी होगी और आइपीएस के रूप में विरोधी दलों के खिलाफ आक्रामक तेवर अख्तियार करना होगा.
जमशेदपुर में एसपी रहे अजय कुमार ने यहां आने के बाद जैसे ही अपराधियों के एनकाउंटर करने शुरू किए, उनमें दहशत फैल गई. उस समय का बड़ा डॉन माना जाने वाला हिदायत खान शहर छोड़ कर भाग गया. गरम लाला गिरोह से उसकी खूनी अदावत चलती थी. दोनों गिरोह में अक्सर गैंगवार होते रहता था. अजय कुमार के दहशत के आगे गरम लाला गिरोह के भी कई सदस्य अंडरग्राउंड हो गए. कईयों को अजय कुमार ने एनकाउंटर में मार गिराया. जानकारों के मुताबिक एसपी अजय ने लगभग 15 से अधिक एनकाउंटर किए. उसके बाद उनके ऊपर भी राजनीतिक दबाव पड़ा और उन्होंने पुलिस की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया. बताया जाता है कि अपने सब ऑर्डिनेट्स की ड्यूटी और ईमानदारी को लेकर अजय कुमार का बिहार के तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद से विवाद हो गया था, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा देकर वे टाटा मोटर्स में सीनियर एक्जीक्यूटिव बने. फिर पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक में शामिल हो गए.
2011 में झाविमो प्रजातांत्रिक के टिकट पर ही जमशेदपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़े और भाजपा के दिनेशानंद गोस्वामी को डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हरा दिया. 23 अगस्त 2014 को कांग्रेस में शामिल हो गए. इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए.
हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में अजय कुमार को भाजपा के विद्युत वरण महतो ने मोदी लहर में लगभग एक लाख वोटों के अंतर से हरा दिया.

अजय कुमार पटना के सिटी एसपी रह चुके हैं. पटना में भी उनके नाम का बदमाशों में खौफ था. इसी कारण उन्हें जमशेदपुर भेजा गया. उन दिनों जमशेदपुर में अपराधियों के कई गैंग बन गए थे. सरेआम अपराधियों ने मर्डर, रंगदारी और अपहरण जैसी घटनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया था. आम लोग दहशत में थे. कारोबारियों का घर से निकलना मुश्किल हो गया था. इसी कारण तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद से टाटा स्टील के एमडी ने विशेष आग्रह किया. इसके बाद अजय कुमार ने दो वर्ष में बतौर जमशेदपुर एसपी वहां कानून का राज लाया. उनके डर से अधिकतर अपराधियों ने शहर छोड़ दिया. जो रह गए वे एनकाउंटर में मारे गए.
एसपी रहते घोड़े पर निकलते थे, कई बच्चों का नाम रखा गया अजय
अजय कुमार घोड़े पर भी निकला करते थे. देर रात तक वो सड़कों पर होते. उनका नाम सुनते ही अपराधियों की रूह कांपने लगती थी. कहा जाता है कि उस समय जितने बेटे पैदा हुए उनमें से अधिकतर के माता-पिता ने उनका नाम अजय रखा. जमशेदपुर के लोग आज भी अजय कुमार को बड़ी ही इज्जत के साथ याद करते हैं. कई लोगों के लिए आज भी वो हीरो हैं.
पुलिस मेडल पाने वाले यंगेस्ट आईपीएस आफिसर
अजय कुमार प्रेसिडेंट पुलिस मेडल पाने वाले यंगेस्ट आईपीएस आफिसर रहे हैं. उन्हें प्रोबेशन के दौरान ही गैलेंट्री के लिए यह अवार्ड मिला था. इसके अलावा अजय कुमार संतोष एंड डूरंड ट्रॉफी के नेशनल लेवल के प्लेयर रह चुके हैं. उनके पास पर्सनल पायलट लाइसेंस भी है.
अजय ने 1985 में पुडुचेरी के जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च से एमबीबीएस की डिग्री ली है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि डॉ. अजय कुमार बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं. सबसे बढ़कर उनकी छवि एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर की रही है. प्रखर व्यक्तित्व के कारण वे एक हीरो जैसे दीखते थे. उस समय हमलोग सुनते थे - वे प्रति दिन सुबह जे. आर. डी. स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में व्यायाम करने आते थे और बड़े बड़े गुंडों के हाथ में पिस्तौल थमाकर उसका एनकाउंटर कर देते थे. भीड़ भाड़ को नियंत्रण करने में भी उनका कुशल नेतृत्व कारगर होता था. कई सामाजिक गतिविधियों में भी वे मुख्य अतिथि की भूमिका निभाते थे और युवाओं के आदर्श बन जाते थे. वे बहुत कम और संक्षिप्त बोलते थे, पर कुशल वक्तव्य से लोगों को खुश कर लेते थे. वे आज भी जमशेदपुर वासियों के चहेते हैं. कांग्रेस में वे एक काबिल नेता के रूप में हैं. वैसे भी फिलहाल कांग्रेस में काबिल नेताओं की कमी है. इसीलिए उनसे जनता को भी उम्मीदें हैं. हम सब उनके सफल भविष्य की कामना करते हैं. सफल लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष की भी आवश्यकता होती है जिसकी आज बेहद ही कमी महसूस की जा रही है. जय भारत ! जय लोकतंत्र! जय हिन्द!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर