Sunday 29 May 2016

मोदी जी क्या क्या करेंगे!

मेघालय के छोटे से गांव मावलिननॉन्ग में प्लास्टिक पूरी तरह से प्रतिबंधित है, यहां की सड़क के किनारों पर फूलों की कतारें दिखाई देती हैं। ऐसी ही कई और निराली बातें इस गांव से जुड़ी हुई हैं जो इसे एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव बनाती हैं। हालांकि इस जगह की यह प्रतिष्ठा अपने साथ और भी बहुत कुछ लेकर आ रही है। 2003 तक इस गांव में कोई पर्यटक नहीं नज़र आता था। एक ऐसा गांव जहां सड़कें नहीं थी और सिर्फ पैदल ही आया जा सकता था, वहां कोई नहीं आता था लेकिन 12 साल पहले डिस्कवरी इंडिया ट्रैवल मैगेज़ीन के एक पत्रकार की बदौलत यह गांव दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बन गया। यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में इस गांव का ज़िक्र किया था।
इसके बाद से तो यहां पर्यटकों का तांता और ज्यादा लगने लगा और अब आलम यह है कि इस शांत इलाके में भी प्रदूषण की शिकायतें होने लगी हैं। 51 साल के गेस्टहाउस मालिक रिशोट का कहना है कि उन्होंने गांव के परिषद से बात की है कि वह सरकार से और पार्किंग लॉट बनाने के लिए कहें। सीज़न के वक्त तो एक दिन में करीब 250 पर्यटक इस गांव में आते हैं।
मावलिननॉन्ग को खासी आदिवासियों का घर माना जाता है और बाकियों से अलग यहां पैतिृक नहीं मातृवंशीय समाज है जहां संपत्ति और दौलत मां अपनी बेटी के नाम करती है। साथ ही बच्चों के नाम के साथ भी उनकी मां का उपनाम जोड़े जाने की प्रथा है। इस गांव के हर कोने में आपको बांस के कूड़ेदान नज़र आ जाएंगे और समय-समय पर स्वयंसेवी सड़कों को साफ करते दिखाई देंगे। बनियार मावरोह अपने गांव और परिवार के बारे में बताती हैं, ‘हम रोज़ सफाई करते हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि गांव को साफ सुथरा रखने से शरीर स्वस्थ रहता है।’ मोदी जी ने भियही कहा है किसफाई से गरीबों को ही फायदा है.न सफाई के प्रति मावलिननॉन्ग की यह लगन दरअसल 130 साल पहले शुरू हुई जब इस गांव में हैजे की बीमारी का आतंक छा गया था। किसी भी तरह की मेडिकल सुविधा न होने की वजह से इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सफाई ही एकमात्र तरीका बच गया था। यहांके निवासी खोंगथोहरेम का कहना है ‘क्रिश्चियन मिशनरी ने हमारे पूर्वजों से कहा था कि तुम सफाई के जरिए ही हैजे से खुद को बचा सकते हो। फिर खाना हो, घर हो, ज़मीन हो, गांव हो या फिर आपका शरीर सफाई ज़रूरी है।’ यही वजह है कि घर घर में शौचालय के मामले में भी यह गांव सबसे आगे है और 100 में से लगभग 95 घरों में यहां शौचालय बना हुआ है।
शनिवार को प्रधान मंत्री महोदय सुबह सुबह मावलिननॉन्ग गांव पहुँच गए और वहां के आदिवासियों के साथ ऐसे घुल-मिल गए जैसे वे उनके पुराने साथी हों. उन्होंने वहां पारम्परिक ड्रम भी बजाया और थालनुमा घंटी भी बजाई. युवा कलाकारों के साथ घुल-मिलकर उनका उत्साह बढ़ाया. हमने उन्हें जापान में भी ड्रम बजाते देखा था. स्वच्छता अभियान में झाड़ू लगाने की शुरुआत उन्होंने की और उनके देखा-देखी कई हस्तियों ने झाड़ू के साथ फोटो अवश्य खिंचवाई. उन्होंने काशी के अस्सी घाट पर कुदाल भी चलाया और एक बार नहीं, कुल पंद्रह बार …वे पसीने-पसीने हो गए थे. पर सब काम वही करें यह तो हो नहीं सकता न! विदेशों में घूमकर भारत की छवि को सुदृढ़ कर रहे हैं, विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं, निवेश का आमंत्रण दे रहे हैं, यानी एक साथ विदेश, वित्त और वणिज्य मंत्रालय का काम भी सम्हाल रहे हैं. भाजपा में उनके जैसा करिश्माई नेता अभी दूसरा दीख नहीं रहा अत: प्रचार मंत्रालय और विज्ञापन मंत्रालय भी खुद सम्हाले हुए हैं. सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक का संतुलित वातावरण बनाने का खुद हरसम्भव प्रयास कर रहे हैं वो तो कुछ इनके छुटभैये नेता बीच बीच में माहौल खराब कर देते हैं जिसे उन्हें ही सम्हालना पड़ता है. परीक्षाओं और परीक्षा के परिणाम के समय वे विद्यार्थियों से संवाद करते हैं. किसानों से संवाद करते हैं यानी मानव संसाधन और कृषि मंत्रालय का भी जिम्मा खुद ले लेते हैं. और कितना गिनाएं वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, सामाजिक संस्थाओं सबको तो वही सम्हाले हुए हैं. हाँ रक्षा मंत्रालय को पर्रिकर साहब पर छोड़े हुए हैं और पर्रिकर साहब उसे भली भांति सम्हाले हुए हैं.
नेता रास्ता दिखलाता है और लोग उस रास्ते पर चलते हैं. चाहे महात्मा गांधी का दांडी मार्च हो या असहयोग आंदोलन. जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति का नारा हो या अन्ना का लोकपाल आंदोलन. इन सबने एक रास्ता दिखाया और लोग उसपर चल पड़े. जयप्रकाश आंदोलन से जुड़े नेता आज अपनी-अपनी जगह नाम कमा रहे हैं. अन्ना आंदोलन से जुड़े लोगों में से कोई मुख्य मंत्री बना, कोई केंद्र सरकार में मंत्री बना तो किसी ने उप राज्यपाल तक की कुर्सी सम्हाल ली. चाहे जो भी कारण रहे हों, कांग्रेस का पतन हुआ और भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आयी. अभी भाजपा की कई राज्यों में सरकारें हैं. उन राज्यों के मुखिया मोदी जी को अपना आदर्श मानते हैं, बातों में, भाषणों में, सपनों में भी शायद मोदी जी का गुणगान करते रहते हैं. पर काम कितना कर पाते हैं, यह तो उनके राज्य के हालात बतला रहे हैं. मैं यह नहीं कह रहा हूँ की हालात नहीं बदले. अब जैसे उमा भारती कह रही हैं कि दो साल में गंगा विश्व की साफ़ सुथरी नदियों में शुमार होगी. पर पिछले दो सालों में उन्होंने क्या किया, यह नहीं बतला पा रही हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि गंगा साफ करना है तो उनकी सहायक नदियों को पहले साफ़ करना होगा. गंगा में जा रहे प्रदूषित जल का सही निस्तारण करना होगा. वह हो रहा है क्या? मोदी जी ने तो अस्सी घाट पर कुदाल चलाकर ऐसा साफ़ करावा दिया कि अब वहां का नजारा देखते ही बनता है.
शौचालय बनाए जा रहे हैं, बने भी हैं. उनका उचित रख रखाव हो रहा है क्या? स्वायल (Soil) हेल्थ कार्ड, किसान फसल बीमा योजना, सिंचाई योजना, किसानों की उपज का सही दाम मिला रहा है क्या? अभी हाल ही में खबर आयी थी कि एक किसान ने ९४५ किलो प्याज नासिक की मंडी में बेंचा तो उसे एक रुपये का शुद्ध लाभ हुआ. क्या इसी तरह किसानों की आमदनी दुगनी हो पाएगी. सबसे बुरा हाल किसानों का है, वे अन्नदाता की उपाधि तो पा गए, पर खुद कितने बेहाल है? किसानों की आत्महत्या का दौर अभी भी जारी है. यह सभी काम मोदी जी नहीं करेंगे. हम सबको मिलजुलकर करना होगा. जैसे कि कैलाश खेर, अमिताभ बच्चन अपनी अपनी कलाओं के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे हैं. अरुण जेटली जी, नितिन गडकरी, सुरेश प्रभु, पीयूष गोयल आदि अन्य मंत्री भी अपना अपना काम काम कर रहे हैं. हाँ राम विलाश पासवान एक तो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं उल्टे बयान दे देते हैं कि हम भारतीय लोग दाल ज्यादा खाने लगे हैं. यह क्या कोई तर्क है? दाल ज्यादा खपत हो रही है तो आपको उसका प्रबंध तो करना होगा या तो आप दाल उपजाने में किसानों की मदद करें या विदेशों से दाल आयात करें. किसानों को जिस फसल में फायदा होगा वही तो वे उपजायेंगे. विकल्प तलाशने होंगे. मांग और आपूर्ति को दुरुश्त करना होगा नहीं तो फिर इतनी उपलब्ध सूचनाओं का क्या फायदा? आज माउस क्लिक, या उँगलियों के इस्तेमाल मात्र से सारी सूचनाएं उपलब्ध हो सकते है तो फिर उनका सही उपयोग तो होना ही चाहिए न!
आपका हमारा काम है कि अपना टैक्स सही वक्त पर जमा करें, सामान खरीदते समय रसीद की मांग करें. अपने जगह को साफ सुथरा रक्खें और साफ सुथरा रखने में मदद करें, प्रोत्साहित करें कूड़े को इधर-उधर न फेंक कर सही जगह पर जमा करें और उसे समयानुसार स्थानांनतरित करें. या तो प्लास्टिक/पॉलिथीन का प्रयोग कम से कम करें या उसे पुनरुपयोग करें .. टाटा स्थित जुस्को जो टाटा की ही सहायक कंपनी हे, रद्दी प्लास्टिक/ पॉलीथिन का पुनरुपयोग कर सड़कें बना रही है, इससे कोलतार की बचत हो रही है, साथ ही सड़कें ज्यादा मजबूत बन रही है और बरसात के दिनों में भी कम क्षतिग्रस्त हो रही है.
एक प्रतिष्ठित कंपनी की बात बताने जा रहे हैं, यहाँ कर्मचारियों आधिकारियों के लिए नाश्ते/खाने का कैंटीन में उचित प्रबंध है. अगर काम के दबाव के कारण कैंटीन नहीं जा सके तो पैक्ड फ़ूड भी मंगवा सकते है जो आपके कार्य स्थल तक पहुंचा देगा. इससे दूसरों को रोजगार भी मिल रहा है. पर इतना कर्तव्य तो हमारा बनता है कि या तो हम खाना को बर्बाद न करें या बचे हुए उच्छिष्ठ खाद्य सामग्री और पैकिंग में इस्तेमाल की गयी सामग्री को सही जगह पर रक्खें ऐसा नहीं कि अपने कार्य स्थल को ही गन्दा कर दें. बहुत सारे लोग चाय के कप को ही डस्ट बिन जैसा इस्तेमाल कर लेते हैं और अपनी टेबुल पर ही रखे रहते हैं. यह गन्दी आदत है और इसका खामियाजा आपके साथ आपके सहकर्मी को भी भुगतना पड़ेगा. क्या मावलिननॉन्ग गांव से हम इतना भी नहीं सीख सकते?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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