Sunday 8 May 2016

माँ की ममता!



मातृ दिवस के अवसर पर माँ के प्रति उदगार!
इस मंच पर और अन्य मंचों पर माँ की महानता का इतना जिक्र और चर्चा हुई कि सभी जीवित और स्वर्गवाशी माँ सामजिक मंचों पर जरूर आई होंगी अपने अपने लाल को देखने, माथा चूमने, गोद में खेलाने, बलैया लेने और क्या क्या कहूँ…...
बस मैं अपने अनुभव को ही साझा करने की कोशिश करता हूँ.
जब तक मैं पढ़ रहा था, माँ के साथ ही रह रहा था प्रतिदिन उनके हाथ का बनाया हुआ खाना से ही पेट भर रहा था ! मुझे तो कभी भी भोजन कम स्वादिष्ट न लगा. मुझे खिलाने के बाद माँ जब स्वयं खाती तो उसे अंदाजा हो जाता था कि आज किस व्यंजन में क्या कमी रह गयी है और उसे जबतक फिर से और अच्छे तरीके से बनाकर मुझे खिला नहीं लेती उसे चैन नहीं होता था .
मेरी माँ साग और सब्जी तो अच्छा बनाती ही थी. पेड़े, निमकी, लाई, लड्डू, हलवा, मुर्रब्बा, पूआ, ठेकुआ आदि भी बड़े चाव से बनाती थी और इन सब सामग्रियों को खिलाने में उसे बड़ा मजा आता था.
हाँ खाने वाले से तारीफ सुनना भी जरूर चाहती थी.
जब मैं नौकरी करने लगा तो माँ से दूर हो गया और कुछ महीनों के अन्तराल पर मिलने लगा !
हर पर्व त्यौहार पर मैं जा नहीं पता था, पर जब भी जाता बीते पर्व का खास ब्यंजन या तो बना बनाया मिल जाता या फिर से बनाकर अवश्य खिलाती थी . शायद इसीलिये मैं आज भी चटोर और पेटू हूँ!

सबसे महत्वपूर्ण बात जो अब मैं बताने जा रहा हूँ – मेरी माँ धीरे धीरे कमजोर होने लगी थी, इसलिए मै उसे अपने पास ही रखने लगा था. संयोग से मेरी पत्नी माँ के मन लायक मिली थी और वह भी भरपूर सेवा-भाव से उनका आदर करती और शिकायत का कोई मौका न छोड़ती! तब तो वह मुझसे ज्यादा अपनी बहू को ही मानने लगी थी. यहाँ तक कि दूसरों से यह भी कहने में न चूकती कि बेटा से भी अच्छी मेरी बहू है !
एक बार माँ को साथ लेकर गाँव जान पड़ा, उस समय मेरे गाँव तक जाने के लिए सड़कें नहीं थी किसी तरह पगडंडियों के रास्ते पैदल ही पांच – छ: किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी.
खैर किसी तरह हमलोग गाँव पहुँच गए. मैं तो थक कर चूर हो गया था. माँ भी थक गयी होगी, पर माँ की हिम्मत और ममता देखिए ! उसने खाना बनाया, मुझे खिलाया फिर खुद खाई और उसके बाद उसने सरसों का तेल लेकर मेरे पैरों की मालिश की मेरे पूरे शरीर की मालिश की, तबतक जबतक मैं सो नहीं गया ! मुझे याद नहीं है, मैंने उतनी तल्लीनता से माँ के पांव दबाये होंगे. हाँ यह काम मेरी पत्नी कर दिया करती थी. अंतिम समय में हम दोनो ने उनकी भरपूर सेवा की जिसका उन्होंने दिल खोलकर आशीर्वाद दिया!
तो ऐसी होती है माँ और माँ की ममता !
अंत में सिर्फ चार पंक्तियां.
शब्द सभी अब अल्प लगेंगे, देवी जैसी मेरी माँ.
पेड़े को रखती सम्हाल कर, दीवाली में मेरी माँ.
जब भी ज्यादा जिद करता था, थपकी दे देती थी माँ.
सत्यम शिवम सुंदरम है वो, सपनों में मिलती अब माँ.

माँ का बेटा जवाहर

No comments:

Post a Comment