Saturday 26 December 2015

२५ दिसंबर यानी बड़ा दिन!


२५  दिसंबर यानी बड़ा दिन! बड़ा दिन का काम भी बड़ा होना चाहिए. कहते हैं जाड़ों में दिन छोटे हो जाते हैं और भौगोलिक गणना के अनुसार २२ दिसंबर को सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात होती है. यानी कि २३ दिसंबर के बाद दिन फिर से बढ़ने लगता है. पर ठंढ में यह महसूस जल्द नहीं होता है. अचानक ही एक गड़ेरिये के घर में कुमारी मरियम के गोद में भगवान इशू मसीह का जन्म, एक नयी आशा और उमंग का संचार लेकर आता हैं. तभी से संभवत: इस दिन को ‘बड़ा दिन’ के रूप में मनाने लगे हैं. वैसे तो यह इसाई धर्म अवलम्बियों के लिए यह बहुत बड़ा त्योहार है, पर विश्व के हर कोने में यह त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है. स्कूलों, दफ्तरों में छुट्टियाँ होती है. काफी लोग इस दिन सैर सपाटे, पिकनिक आदि के लिए निकल पड़ते हैं. अब चूंकि यह बड़ा दिन है, इस दिन अनेक महान  हस्तियों का जन्म हुआ है. महामना मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी बाजपेयी के साथ पकिस्तान के पहले प्रधान मंत्री मोहम्मद अली जिन्ना और वर्तमान प्रधान मंत्री नवाज शरीफ का भी जन्म इसी दिन हुआ है.
अब बड़ा दिन है तो काम भी बड़े होने ही चाहिए जैसे कि हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी करते आये हैं. इसी २५ दिसंबर को श्री मोदी ने अफगानिस्तान के काबुल में नाश्ता करते हुए नवाज शरीफ को फोन पर उनके जन्म दिन की बधाई दी तो उन्होंने कहा – ‘प्लीज आइये न!’ और मोदी पहुँच भी गए उनके जन्म दिन की बधाई देने के साथ उनकी नातिन की सगाई में भी हिस्सा लिया, आशीर्वाद दिया और शाम को पहुँच गए श्री अटल बिहारी बाजपेयी के घर और उन्हें भी दी उनके जन्म दिन की बधाई! मोदी जी के इस ‘अनूठे पहल’ से पूरी दुनिया आश्चर्यचकित है तो अमेरिका ने इसे सकारात्मक करार दिया. भारत में भी पक्ष-विपक्ष के अपने-अपने तर्क हैं. पाकिस्तानी मीडिया और हाफिज सईद जैसे लोगों को भी यह मुलाकात रास नहीं आया. अब आइये जानते हैं एनडीटीवी के प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार क्या कहते हैं, इस मुलाकात पर...  
“कई बार किसी कदम की पहली प्रतिक्रिया भी देखी जानी चाहिए। जैसे ही खबर आई कि प्रधानमंत्री मोदी लाहौर जा रहे हैं, सुनकर ही अच्छा लगा। दुश्मनी हो या दोस्ती भारत-पाकिस्तान संबंधों में हम बहुत औपचारिक हो गए थे। पाकिस्तान को धमकाना चुनावी नौटंकी तो दो-चार नपे तुले वाक्यों में दोस्ती की बात उससे भी ज्यादा नकली लगने लगी थी। मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को बुलाकर ही संदेश दे दिया कि वे भारत-पाक संबंधों में एलान-वेलान का सहारा नहीं लेंगे। औपचारिक की जगह आकस्मिक नीति पर चलेंगे। फिर भी लोग औपचारिकता का ही रास्ता देखते रहे। संबंधों में कितना सुधार हुआ या हो रहा है यह तो अब नरेंद्र-नवाज़ ही जानें लेकिन दोनों ने मीडिया संस्थानों में भारत-पाकिस्तान बीट को मिट्टी में मिला दिया है!

लाहौर जाकर नरेंद्र मोदी ने दोस्ती की चाह रखने वाले दिलों को धड़का दिया है। जो लोग भारत-पाकिस्तान को भावुकता के उफान में देखते हैं उन्हें लाहौर जाकर प्रधानमंत्री ने करारा जवाब दिया है। प्रधानमंत्री ने खुद को भी करारा जवाब दिया है। उनके राजनैतिक व्यक्तित्व की धुरी में पाकिस्तान भी रहा है। लोकसभा चुनावों के दौरान इंडिया टीवी के मशहूर शो आपकी अदालत में कहा था कि पाकिस्तान के साथ यह लव लेटर लिखना बंद होना चाहिए। पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना होगा। सबको लगा था कि लव लेटर वाला नहीं बल्कि लेटर बम वाला नेता मिल गया है!
मुल्कों की कोई एक भाषा नहीं होती। समय-समय पर भाषा का संदर्भ बदल जाता है। प्रधानमंत्री का लाहौर जाना मेरे लिए तो लव लेटर लिखने जैसा ही है। हर लिहाज़ से अच्छा है। जैसे ही खबर सुनी कि प्रधानमंत्री लाहौर उतरने वाले हैं, पहली बार लगा कि काश मैं भी होता उनके साथ! पाकिस्तान की उनकी नीति को जो लोग हमेशा उनके चुनावी भाषणों के फ़्रेम में देखने के आदी रहे हैं वे गलती कर रहे हैं। उन्होंने तब भी गलती की जब वे इन धमकियों को गंभीरता से ले रहे थे! अब भी गलती कर रहे हैं जो लाहौर यात्रा को लेकर बातचीत का ड्राफ्ट मांग रहे हैं।
लाहौर जाकर प्रधानमंत्री ने उन न्यूज एंकरों को भी समझा दिया है जो शहीद परिवारों और जवानों के प्रवक्ता बनकर अपने आपको सीमा पर खड़े जवान का दिल्ली में प्रहरी समझ रहे थे। दर्शक भी देख रहे होंगे कि यह लोग पाकिस्तान को लेकर नकली राष्ट्रवादी उन्माद फैला रहे थे। जिसके प्रभाव में सुषमा ने एक सर के बदले दस सर का बयान दिया था। अब कोई शहीदों के गांव घर जाकर भावुकता का उन्माद नहीं फैलाएगा। टीआरपीवादी की शक्ल में राष्ट्रवादी बनकर हर शहादत पर अवार्ड वापसी की बात करने की बचकानी हरकत नहीं करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इन सबको अच्छा पाठ पढ़ाया है।
ठीक है कि सीमा पर होने वाली शहादत को लेकर राजनीतिक रूप से बीजेपी भी भाषाई उन्माद फैलाने में लगी थी लेकिन क्या यह बातचीत की बात करने वालों और उन्माद का विरोध करने वालों की जीत नहीं है। क्या बीजेपी आज पहले से बेहतर नहीं महसूस कर रही होगी? बिल्कुल उसे भी अच्छा लगा है कि उनके नेतृत्व में आगे बढ़ने की चाहत है। हम तो तब भी कहते थे कि सीमा पर गोलीबारी और आतंकवादी घटनाओं को उन्माद के प्रभाव में नहीं देखा जाना चाहिए। जो लोग चुनावी रैलियों में पाकिस्तान को सबक सिखाने वाला भाषण सुनकर लौटे थे उनके लिए यह कितना अच्छा मौका है। सीखने, समझने और सुधरने का मौका है कि चुनावी भाषणों पर ताली बजाने का सुख और राज चलाने की व्यावहारिकता का सुख-दुख अलग होता है। उन्हें कुछ वक्त के लिए अकेलापन लगेगा लेकिन वे भी समझ जाएंगे कि उनके नेता ने अच्छा कदम उठाया है।
प्रधानमंत्री मोदी की लाहौर यात्रा का स्वागत होना चाहिए। उन्होंने मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक समाज से पाकिस्तान को लेकर उन्माद फैलाने वालों को किनारे लगाने का सुनहरा मौका दिया है। मनमोहन सिंह में यह साहस नहीं था। वे बीजेपी के हमलों के आगे झुक गए। बिरयानी वाले संवाद से ऐसे डर गए जैसे पाकिस्तान में बिरयानी ही न बनती हो। जैसे पाकिस्तानी तभी बिरयानी खाते हैं जब हिंदुस्तानी खिलाते हैं ! प्रधानमंत्री मोदी साहसिक हैं। जोखिम लिया है तो कुछ भी हो सकता है। अच्छा भी हो सकता है।
पाकिस्तान और भारत के बीच कुछ तो चल रहा है। हो सकता है कोई पर्दे के पीछे से चला भी रहा हो। युद्ध विकल्प नहीं है वरना पश्चिमी ताकतें अफगानिस्तान, सीरिया और इराक जैसे हालात इधर भी पैदा कर देंगी। भारत-पाकिस्तान के बीच कुछ भी अचानक और आमूलचूल नहीं होगा। यही क्या कम है कि दोनों नेता जब चाहें एक दूसरे के यहां आने जाने लगें। बस जरा स्टील कारोबारी की मध्यस्थता या उपस्थिति की बात खटकती है। जिस मसले के लिए सीमा पर हमारे जवान रोज शहीद हो रहे हैं उसके लिए गुप्त रूप से किसी कारोबारी की जरूरत पड़े, थोड़ा ठीक नहीं लगता। अगर कारोबारी यह काम कर सकते हैं तो कूटनीति वाले विद्वानों को कुछ दिन के लिए आराम देने में कोई हर्ज नहीं !
बेशक चुनौतियां आएंगी तब हो सकता है कि भारत-पाकिस्तान को लेकर फिर से सवाल बदल जाएं। लेकिन इसी अंदेशे में नकारात्मक हुआ जाए यह ठीक नहीं। जब ऐसी कोई चुनौती आएगी तो प्रधानमंत्री जवाब देंगे कि उन्हें ऐसा क्या लगा था कि वे पाकिस्तान पर भरोसा करने लगे। लाहौर जाने लगे। अगर आप इस सवाल का जवाब चाहते ही हैं तो किसी बिजनेस बीट के पत्रकार से पूछ लीजिएगा। भारत-पाक और कश्मीर बीट के प्रोफेसर हो चुके पत्रकारों को तो यही समझ नहीं आ रहा कि पीएम जो भी कर रहे हैं उन्हें खबर क्यों नहीं लग पाती! – रवीश कुमार.
इसीलिए मैंने शुरू में ही लिखा था, बड़ा दिन में बड़ा काम. बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी बातें. हमलोगों को इन सबमे ज्यादा सर नहीं खपाना चाहिए. हमलोगों को अपने काम से काम रखना चाहिए. हमें ये उम्मीद करनी चाहिए कि भारत का औद्योगिक विकास बुलेट ट्रेन की स्पीड से होगा. नौजवानों को रोजगार मिलेगा. देश के किसान भी आधुनिक तरीके से खेती करेंगे. और आत्महत्या के बारे में तो कोई सोचेगा भी नहीं. उनके उत्तराधिकारी बच्चे भी चमकती दुनिया के सपन नहीं देखेंगे बल्कि खेती को पुस्तैनी कारोबार को ही आगे बढ़ाएंगे. दलहन तेलहन प्याज और खाद्यान्नों की कमी होगी ही नहीं. बुन्देलखंड के लोग घास और जंगली पौधों में पौष्टिकता ढूंढ ही लेंगे. आदिवासियों, बनवासियों, बेरोजगारों को कोई भड़काकर नक्सली या आतंकवादी नहीं बनाएगा. सभी मिलकर देश का विकास करेंगे यानी ‘सबका साथ सबका विकास’ यही तो मूल मन्त्र है ! बस इस मन्त्र का जाप करते रहें, और मन में राम माधव की तरह पाकिस्तान, भारत, बंगला देश एक होने का सपना देखते रहें! जेटली, कीर्ति, शत्रु आदि घर की बात है इसे मिल बैठकर सुलझा/समझा लेंगे. जयहिंद!
-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Saturday 19 December 2015

बचाव की मुद्रा में भाजपा

कहते हैं, गेंद कभी कभी लौटकर अपने ही खेमे में गोल कर देता है. इस बार ऐसा ही कुछ हुआ..अरविन्द केजरीवाल के मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर पर छापामारी करते हुए CBI मुख्य मंत्री के ऑफिस में भी फाइलें तलाशा करने लगी. बस फिर क्या था. केजरीवाल ने इसे मुद्दा बना लिया और गेंद को अरुण जेटली की तरफ उछाल दिया. DDCA में कथित घोटाले की फाइल अभी मुख्य मंत्री के दफ्तर में थी. केजरीवाल के अनुसार जेटली फंसते हुए नजर आ रहे थे कि उन्होंने CBI को मुख्या मंत्री दफ्तर में भेज दिया. केजरीवाल को जैसे ही मालूम हुआ ट्वीट पर ट्वीट करते हुए उन्होंने प्रधान मंत्री को कायर और मनोरोगी तक कह दिया. हालाँकि उनके इन शब्दों की चारो तरफ निंदा हुई है पर उन्हें अफ़सोस कम हुआ है, कहने लगे 'मेरे तो शब्द ख़राब हैं तुम्हारे तो कर्म ही ख़राब है. तुम अपने कर्मों की माफी मांग लो मई अपने शब्दों के लिए माफी मांग लूँगा'. प्रधान मंत्री पर निशाना साधने का बस मौका चाहिए था. वह मिल गया.
वे DDCA की वित्तीय अनियमितता को लेकर अरुण जेटली को घेरते रहे और अरुण जेटली पहले तो हलके में लिया और इसे बकवास बताया बाद में कई भाजपा नेता /नेत्रियों ने उनका बचाव किया. खुद ब्लॉग लिखकर सफाई दी. तब भी मन नहीं माना तो प्रेस कांफ्रेंस के जरिये अपने को पाक-साफ़ साबित करने की कोशिश की. पर काफी सालों से पीछे पड़े कीर्ति आजाद  को स्वर्णिम मौका मिल गया. कीर्ति आजाद ने तब भी जेटली पर हमला किया था, जब सुषमा स्वराज ललितगेट मामले में  फंसी थी.  अब तो वे कह रहे हैं की अरविन्द केजरीवाल को तो १५% मालूम है बाकी का ८५% का खुलासा वे करेंगे. यहाँ तक कि अमित शाह के हिदायत को भी नहीं माना और रविवार को प्रेस कांफ्रेंस करने की ठान ली है. पहले से ही बागी तेवर वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने भी कीर्ति आजाद का समर्थन कर दिया.
इधर आप ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से जेटली से पांच सवालों का जवाब पुछा है. 'आप' के 5 सवाल ये रहे -
१.      अरुण जेटली ने कहा, मेरे ऊपर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं है जबकि कीर्ति आजाद ने आपको ही 13 सितंबर को पत्र लिखकर आरोप लगाए।
२.      क्या ये सही नहीं कि आपने ओएनजीसी पर दबाव देकर 5 करोड़ रुपये हॉकी इंडिया को दिलवाए, क्या ये कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट नहीं है?
३.      'आप' ने कहा, 114 करोड़ स्टेडियम बनाने वाली कंपनी को दिए, लेकिन उस कंपनी को केवल 57 करोड़ ही मिले, किसको दिए बाकी 57 करोड़, उन कंपनियों से आपका क्या रिश्ता है?
४.       9 कंपनियां ऐसी हैं जिनका पता भी एक है, क्या ये फर्ज़ी नहीं? क्या आपने इन पर कोई कार्रवाई की अध्यक्ष होने के नाते?
५.      आपने माना कि डीडीसीए में अनियमितता थी, लेकिन वह कानून के हिसाब से दंडनीय है। आपने ये क्यों नहीं लिखा, क्यों आपने पूरा सच नहीं बताया?
गौरतलब है कि गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आम आदमी पार्टी ने इस घोटाले पर पूरा ब्यौरा दिया और जेटली पर कई गंभीर आरोप लगाए। हालांकि जेटली और बीजेपी दोनों ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया।
उधर नेशनल हेराल्ड केस में फंसे कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सोनिया और राहुल कोर्ट का सामना कर बेल पर छूट भी गए, वह भी केवल पचास हजार के निजी मुचलके पर...  स्वामी की मांग के अनुसार इनका पासपोर्ट भी जब्त नहीं हुआ. पर स्वामी खुश हैदोनों को कोर्ट के अपराधी वाले कटघरे में खड़ा करा दिया. इतनी बेइज्जती ही काफी है. सुब्रमण्यम स्वामी ने ऐसे समय में ललकारा कि संसद सत्र कई दिनों तक बाधित रहा. अब जेटली वाला मामला आ गया. विपक्ष को मौका चाहिए और संसद में अँटके हुए बिल न पास होने से प्रधान मंत्री की क्षमता पर सवाल उठना लाजिमी है. विकास के कदम थमे हैं, उन्हें कौन आगे बढ़ाएगा.
वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर ब्यास केजरीवाल के द्वारा प्रयुक्त अपशब्द के बारे में लिखते हैं- 
“बहुत खराब हो रहा है, कुछ भी हो जा रहा है! बानगी दिल्ली मुख्यमंत्री के दफ्तर में सीबीआई का छापा है और उस पर केजरीवाल का नरेंद्र मोदी को मनोरोगीबताना है। इंदिरा गांधी से ले कर आज तक कभी यह नहीं सुना कि सीबीआई मुख्यमंत्री दफ्तर में छापा मारने गई। न यह सुना कि किसी नेता ने, मुख्यमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री को मनोरोगीकहा! इन दोनों बातों का गहरा, दीर्घकालीन असर होना है। पता नहीं मोदी सरकार में किस रणनीतिकार ने केजरीवाल के सचिवालय में सीबीआई भेजने का आईडिया दिया पर जिसने भी दिया उसने मोदी सरकार के तमाम विरोधियों को एकजुट बनवाया। जब संसद चल रही है। जब सरकार को जीएसटी बिल पास कराने के संसद में लाले पड़े हुए हैं, ऐसे वक्त केजरीवाल को बकझक करने, विपक्ष को गोलबंद बनवाने का मौका देने की भला क्या तुक थी? इस पर जितना सोचेंगे, दिमाग चकरा जाएगा। यही निष्कर्ष बनेगा कि नरेंद्र मोदी का समय खराब है। एक के बाद एक गलतियों का, विनाशकाले विपरीत बुद्धि का फेर बना है।
वही नरेंद्र मोदी को मनोरोगीबताने वाली केजरीवाल की पंगेबाजी का जहां सवाल है वह केजरीवाल की धूर्तता, महत्वकांक्षा की हकीकत लिए हुए है। मतलब अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को कायर, मनोरोगी बता कर अपने को मनोरोगी बताया है।
अपने को याद नहीं पड़ता कि इमरजेंसी में भी किसी ने इंदिरा गांधी को मनोरोगी बताया हो। भारत के इतिहास में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को सायकोपैथ, मनोरोगी या पागल करार देने का काम सेकुलर जमात का ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ रहा है। 2002 के दंगों के बाद सेकुलर मीडिया व आशीष नंदी, एमजे अकबर आदि टीकाकारों ने जरूर नरेंद्र मोदी को ले कर ऐसे तल्ख शब्द लिखे थे। बाद के गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी की जुबां से मौत का सौदागर शब्द निकला था। मगर आज प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी हैं। ऐसे में नरेंद्र मोदी के लिए अरविंद केजरीवाल का मनोरोगी शब्द का उपयोग धूर्त राजनीति है। धूर्तता के साथ उनकी मोदी के आगे पोजिशनिंग है। अरविंद केजरीवाल ने भावावेश में नहीं बल्कि सोच समझ कर ट्वीट करके नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। केजरीवाल पहले दिन से मोदी के आगे अपनी पोजिशनिंग चाहते रहे हैं। वे मानते हैं कि 2012 के अन्ना आंदोलन से उन्होंने ही कांग्रेस विरोधी माहौल बनवाया। वे जनता के आगे विकल्प थे लेकिन नरेंद्र मोदी कूद पड़े। उस नाते 2012 के आंदोलन के वक्त से केजरीवाल मनोरोगी हैं। मनोरोगी का मतलब पागलपन की हद तक का महत्वकांक्षी भी होता है। अरविंद केजरीवाल 2012 में अन्ना हजारे से अलग होने, आप पार्टी बनाने के वक्त से सत्ता की महत्वकांक्षा के मनोरोगी हैं और शायद 2019 तक रहेंगे। उन्होंने अपनी महत्वकांक्षा में दस तरह के झूठ बोले। झूठे वादे किए। साथियों को धोखा दिया। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव आदि को पार्टी से बाहर निकाला। तमाम तरह के नाटक किए। मैं सच्चा, मैं ईमानदार, मैं काबिल, मैं गरीब पैरोकार, मैं जनप्रिय की अहमन्यता में केजरीवाल ने देश भर में अपनी पार्टी को लोकसभा चुनाव लड़वा डाला तो खुद भी नरेंद्र मोदी के आगे चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी पहुंचे। जुम्मे-जुम्मे चार दिन में केजरीवाल ने अपने को प्रधानमंत्री की दौड़ में तब उतारा था।
सो नरेंद्र मोदी को अब केजरीवाल को जवाब देना है। केजरीवाल ने हल्ला बोल अपने को मैदान में जैसे उतारा है उसकी कल्पना मोदी सरकार के रणनीतिकारों को शायद नहीं रही होगी। पर बात अब रणनीतिकारों की नहीं रही। सीधे नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल के मध्य का आगे मुकाबला है। इसमें आगे बहुत कुछ होगा।“ - हरिशंकर व्यास

सोनिया और मनमोहन सिंह को चाय पिलाने से भी कोई फायदा नजर नहीं आया और GST बिल के लटक जाने की पूरी पूरी संभावना दीख रही है. सबका साथ सबका विकास, से अलग अपने ही दगा देते नजर आये. बड़ी मुश्किल है! मोदी चाहे अपना जितना गुणगान कर लें, पर उनके ही समर्थकों या अंध भक्तों की करनी का फल है कि उनकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट जारी है. बिहार चुनाव के बाद, गुजरात के निकाय चुनाव में ग्रामीण इलाकों में भाजपा पिछड़ती नजर आयी और अब झारखण्ड के लोहरदगा में विधान सभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत. खलबली तो मची है. अभी भाजपा बचाव की मुद्रा में है और कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल आक्रामक... - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर     

Wednesday 16 December 2015

पहल

पहल किया था अन्ना ने, वे भ्रष्टाचार मिटायेंगे
भ्रष्टाचार मिटाने को. वे लोकपाल को लायेंगे.
पर, भ्रष्टाचार मिटा है क्या ?
पहल किया था संसद ने भी, लोक पाल बिल ले आया
ऐसा लोकपाल बिल जो, सब सांसद को मन भाया
पर, भ्रष्टाचार मिटा है क्या?
पहल किया था जनता ने भी, बदल दिया सरकार को
कठपुतली को हटा दिया, बैठाया चौकीदार को
पर, भ्रष्टाचार मिटा है क्या?
पहल किया 'जनसेवक'जी ने, झाड़ू स्वयम लगा देखी
देखा-देखी किया सभी ने, जनता ने फोटो देखी
सच में, साफ़ हुआ है क्या?
पहल किया जब ‘आप’ ने, जनता ने झट दिल्ली सौंपी
ऐसा बहुमत मिला उसे, बाकी सब की बज गयी पीपी
पर, दिल्ली कुछ बदली है क्या?
और कहाँ तक गिने, मिल गए भुजंग-चन्दन कुमार
जनता ने दी कुर्बानी, बन गयी मिली जुली सरकार
देखें, बिहार बदला है क्या?
पहल अभी भी जारी है, बहस अभी भी जारी है
संविधान गुण गाते गाते, हो हल्ला की बारी है
देखें, कुछ बदला है क्या? 

Sunday 13 December 2015

हाई स्पीड ट्रेन ही नहीं, हाई स्पीड ग्रोथ भी चाहते हैं : पीएम मोदी

तीन दिवसीय भारत दौरे पर आए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दौरे के दूसरे दिन की शुरुआत दिल्ली में बिजनेस लीडर फोरम से हुई। फोरम में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे हाई स्पीड ट्रेन ही नहीं, बल्कि हाई स्पीड ग्रोथ भी चाहते हैं। पीएम ने कहा कि ऐसा पहली बार होगा कि भारत से जापान कार आयात करेगा और जापानी कंपनियों की कारें भारत में बनेंगी। उन्होंने कहा कि भारत संभावनाओं का देश है और तकनीक इसकी ताक़त है. जापान में मेक इन इंडिया मिशन चल रहा है।
शिखर वार्ता में कई अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर हुई चर्चा
इन रणनीतिक समझौतों पर हस्ताक्षर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिन्जो आबे के बीच शिखर वार्ता के बाद हुए। इस शिखर वार्ता में दोनों नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विस्तार सहित परस्पर रूप से महत्वपूर्ण कई अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की।
रेल विकास के लिए 12 अरब डॉलर की मदद
आबे के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा ‘भारत के आर्थिक सपनों को सच करने में जापान से ज्यादा कोई मित्र मायने नहीं रखेगा।’ उन्होंने आबे को ‘एक निजी मित्र और भारत-जापान भागीदारी का बड़ा समर्थक बताया।’ हस्ताक्षरित समझौतों का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा ‘गति, विश्वसनीयता और सुरक्षा के लिए जानी जाने वाली शिनकानसेन के माध्यम से मुंबई-अहमदाबाद सेक्टर में हाई स्पीड रेल चलाने का फैसला ऐतिहासिक से कम नहीं है।’ उन्होंने कहा कि परियोजना के लिए करीब 12 अरब डॉलर का महत्वपूर्ण पैकेज और बहुत आसान शर्तों पर तकनीकी सहायता सराहनीय है। पीएम मोदी ने कहा कि हमने असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग पर हस्ताक्षर किए जो वाणिज्य एवं स्वच्छ ऊर्जा के लिए एक समझौते से कहीं ज्यादा है। यह एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित दुनिया के लक्ष्य में रणनीतिक भागीदारी और परस्पर विश्वास के नए स्तर का एक शानदार प्रतीक है।’
वहीं, जापानी पीएम ने साझा बयान में अपने संबोधन की शुरुआत नमस्कार अभिवादन से साथ की, एक दो पंक्तियाँ हिंदी में बोलने की कोशिश भी की।
हाई स्पीड ट्रेन ही नहीं, हाई स्पीड ग्रोथ भी चाहते हैं : पीएम मोदी
तीन दिवसीय भारत दौरे पर आए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दौरे के दूसरे दिन की शुरुआत आज दिल्ली में बिजनेस लीडर फोरम से हुई। फोरम में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे हाई स्पीड ट्रेन नहीं, बल्कि हाई स्पीड ग्रोथ भी चाहते हैं। पीएम ने कहा कि ऐसा पहली बार होगा कि भारत से जापान कार आयात करेगा और जापानी कंपनियों की कारें भारत में बनेंगी। उन्होंने कहा कि भारत संभावनाओं का देश है और तकनीक इसकी ताक़त है और जापान में मेक इन इंडिया मिशन चल रहा है।
पीएम मोदी की स्पीड बुलेट ट्रेन की तरह : शिंजो आबे
वहीं, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अपने संबोधन की शुरुआत पीएम मोदी की तारीफ़ से की। उन्होंने कहा कि नीतियों को अमल में लाने में पीएम मोदी की स्पीड बुलेट ट्रेन की तरह है। साथ ही उन्होंने कहा कि मज़बूत जापान भारत के लिए अच्छा है।
दोनों प्रधान मंत्रियों ने वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में हिस्सा लिया
सालाना शिखर वार्ता के बाद जापानी पीएम शिंज़ो आबे पीएम नरेंद्र मोदी के साथ उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी गए। दोनों देशों के प्रधानमंत्री यहां दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में हिस्सा लिया। पीएम मोदी और शिंज़ो आबे के आगमन को लेकर वाराणसी में ख़ास तैयारियां हुई। गंगा घाटों की सफ़ाई के लिए मुंबई से स्टीमर मंगाए गए। घाटों को ख़ूबसूरती से सजाया गया। आरती में पारंपरिक मंत्रोच्चार के साथ नमामि गंगे के भजन भी गाए गए. पूरा ही वातावरण धार्मिक और आध्यात्मिक हो गया… राधा रमण हरि गोविन्द बोलो! और हर हर महादेव के स्वर से पूरा समारोह गुंजायमान हो गया.
पिछले साल अगस्त में जब पीएम मोदी जापान गए थे तो दोनों देशों के बीच वाराणसी को जापान के शहर क्योतो के तर्ज पर बसाए जाने का समझौता हुआ था।
इस समझौते की कुछ और खास बातें
जापान 5 साल में 35 बिलियन डॉलर का निवेश भारत में करेगा
प्रधान मंत्री मोदी ने कहा – 1 मार्च 2016 से जापानियों को वीजा ऑन अराइवल मिलेगा
रेलवे विकास के लिए १२ अरब डॉलर देगा जापान
द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर जोर देते हुए जापान ने 1,500 अरब युआन (करीब 83,000 करोड़ रुपये) का ‘मेक इन इंडिया’ कोष स्थापित किया है, जबकि भारत ने ‘जापान औद्योगिक शहर’ में निवेश आकर्षित करने के लिए एक विशेष प्रोत्साहन पैकेज लाने का वादा किया है।

एक ख़ास बात मोदी जी के व्यक्तित्व में है कि वे जिस भी कार्य में हिस्सा लेते हैं उसे अविश्मरनीय और लुभावना बना देते हैं ताकि मीडिया के कैमरे उन पर ही रहें और इस भव्य आयोजन को पूरा देश देखे. चाहे वह जापान में ड्रम बजाने का कार्यक्रम हो या वाराणसी में गंगा आरती का आयोजन. एक बौद्ध धर्म अनुयायी देश का प्रधान मंत्री गंगा आरती भी उसी तन्मयता से करे जैसे वह हमारे धर्म के अनुष्ठान को बखूबी समझता भी हो. इसे एक सर्व-धर्म-समभाव, सर्वे भवन्तु सुखिन: के साथ धार्मिक सहिष्णुता का प्रदर्शन भी कहा जा सकता है.
नफा नुक्सान और क्रियान्वयन कितना और कब तक होगा वो सब बाद में देख जाएगा, तत्काल कम से कम वाराणसी का खास इलाका गंगा का दशाश्वमेध घाट साफ़ और सुसज्जित तो हो गया, भले कल के बाद यही मीडिया के कैमरे बनारस की गलियों की गंदगी और मैली गंगा की छवि न दिखाने लग जाय! अभी तो सपने देखो और उसी में खो जाओ. मुझे नहीं पता इन सब योजनाओं के लिए संसद में मंजूरी लेनी पड़ती है या नहीं या सिर्फ गरीबों के लिए बिलों पर ही संसद में चर्चा की जरूरत होती है. आम गरीब तो टी वी देखें, सपने बुने, निवेश आयेगा. निवेश आयेगा तो नए उद्योग धंधे विकसित होंगे. रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, रोजगार होगा तो आमदनी बढ़ेगी. फिर दोपहिया वाहन या मोटर गाड़ी भी खरीदेंगे और उसे चलाकर करेंगे वायु प्रदूषण जिससे आज दिल्ली जूझ रही है. गंगा कब साफ़ होगी? जरूरत के सामान कब सस्ते मिलेंगे? स्किल इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत का सपना कहाँ है? भारत संचार निगम के अवरोधों से तो मैं रोज ही जूझता हूँ. मच्छर और चूहे भी अब वातानुकूलित जगहों में ही अपने आप को सुरक्षित महसूस करने लगे हैं. स्वच्छ भारत के सपने दिखानेवाले एक विश्वस्तरीय अस्पताल की बात बता रहा हूँ, जहाँ चिल्ड्रन वार्ड में भी मच्छरों और चूहों का उत्पात कम नहीं है. किसानों के खेत में पानी कब पहुंचेगा उनके उत्पाद के सही दाम कब मिलेंगे. गरीब के घरों में भी गैस के चूल्हे जलेंगे और उस चूल्हे पर रोटियां सेंकी जायेगी. बुन्देलखंड के गरीबों को भरपेट भोजन कब मिलेगा, मीडिया दिखला रहा है कि वे घास-पात की रोटी और भाजी खाने को मजबूर हैं. हर घर में बिजली का सपना भी देख ही रहे हैं. गरमी के दिनों में बिजली की मांग और आपूर्ति में कितना अंतर रहता है, वह भी हम सब जानते हैं और डीजल से चलनेवाले जेनेरेटर कितना प्रदूषण बढ़ाते हैं वह भी पर्यावरणविद ही बताएँगे. बिहार के चुनाव का परिणाम और गुजरात के निकाय चुनाव कुछ तो सन्देश देते हैं. संविधान दिवस पर संसद में बाबा साहब के खूब गुण गाये गए सहिष्णुता पर भी खूब चर्चा हुई पर अब जो संसद में हो रहा है वह भी मीडिया के कैमरे में ही दीखता है.
भ्रष्टाचार की स्थिति कैसी है? सबको पेट भरने को अनाज मिल रहा है तो? कुछ नए गोदाम बने हैं क्या? ताकि अनाज को सड़ने से बचाया जा सके. सरकारी कर्मचारी और अधिकारी अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग कर रहे हैं क्या? संसद की स्थिति कब ठीक होगी या यूं ही हो हल्ला मचता रहेगा?
जलवायु परिवर्तन पर समझौते हो गए हैं, उन्हें लागू कैसे किया जायेगा? दिल्ली को प्रदूषण से छुटकारा कब मिलेगा? चेन्नई, कश्मीर, उत्तराखंड में उपजी प्राकृतिक आपदा की समस्या से कब निजात पाएंगे? अनावृष्टि और अतिवृष्टि, भूस्खलन आदि प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए हम कब पूर्णत: तैयार होंगे? भारत विविधताओं का देश है तो समस्याएं भी यहाँ अनगिनत है. शिक्षा, स्वास्थ्य, पेय जल, सबको अपना घर कब तक सुलभ हो सकेगा? हाई स्पीड ग्रोथ हो रहा है तो? फिलहाल तो भोले बाबा तेरा सहारा है. माँ गंगा को निर्मल गंगा बनाना है ताकि हम नमामि गंगे कहने बार बार आ सकें. गंगा तेरा पानी अमृत!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday 7 December 2015

जी एस टी बिल यानी वस्तु और सेवा कर अधिनियम

जी एस टी का पूरा नाम गुड्स (वस्तु) एंड सर्विस (सेवा) टैक्स है, जो केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए गए 20 से अधिक अप्रत्यक्ष करों के एवज में लगाया जा रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी (सीवीडी), स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम (एसएडी), वैट/सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन टैक्स, ऑक्ट्रॉय एंड एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लक्ज़री टैक्स खत्म हो जाएंगे। जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं एवं सेवाओं पर केवल तीन तरह के टैक्स वसूले जाएंगे। पहला सीजीएसटी, यानी सेंट्रल जीएसटी, जो केंद्र सरकार वसूलेगी। दूसरा एसजीएसटी, यानी स्टेट जीएसटी, जो राज्य सरकार अपने यहां होने वाले कारोबार पर वसूलेगी। कोई कारोबार अगर दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर आईजीएसटी, यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी वसूला जाएगा। इसे केंद्र सरकार वसूल करेगी और उसे दोनों राज्यों में समान अनुपात में बांट दिया जाएगा।
जीएसटी पर संसद में कानून – विश्व के लगभग 160 देशों में जीएसटी की कराधान व्यवस्था लागू है। भारत में इसका विचार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा सन् 2000 में लाया गया। यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदम्बरम द्वारा फरवरी, 2007 में ठोस शुरुआत करते हुए मई, 2007 में जीएसटी के लिए राज्यों के वित्तमंत्रियों की संयुक्त समिति का गठन कर वर्ष 2010 से इसके लागू करने की घोषणा की गई, क्योंकि जीएसटी से राज्यों के अर्थतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, इसलिए इस बिंदु पर 13वें वित्त आयोग द्वारा गठित कार्यदल ने दिसंबर, 2009 तथा 14वें वित्त आयोग ने फरवरी, 2015 में जीएसटी पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है।
राज्यों के बीच विरोधाभास होने पर अप्रैल, 2010 से कांग्रेस सरकार इसे लागू कराने में विफल रही। तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा मार्च, 2011 में 115वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो गठबंधन सरकार के युग में विपक्ष के विरोध की वजह से पारित नहीं हो सका। बीजेपी द्वारा जीएसटी को अपने आर्थिक सुधारों का केंद्रबिंदु बताया जा रहा है तथा मोदी सरकार ने 122वां संविधान संशोधन विधेयक (अनुछेद 246, 248 एवं 268 इत्यादि में संशोधन) दिसंबर, 2014 में संसद में पेश किया, जिसे लोकसभा द्वारा मई, 2015 में पारित कर दिया गया।
जीएसटी विधेयक राज्यसभा में लंबित है, सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट 9 दिसंबर को मिलने की संभावना है, तथा 10 को सरकार इस बिल को राज्यसभा में पारित करने के लिए पेश कर सकती है। वैसे, इसे पारित कराने के लिए मोदी सरकार के पास राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत नहीं है। कांग्रेस द्वारा प्रेरित टैक्स सुधार का पूरा क्रेडिट मोदी सरकार द्वारा लेने से जीएसटी के प्रति विपक्षी दलों में असहिष्णुता पनपी है, जो वर्तमान संसदीय गतिरोध एवं असहयोग का प्रमुख कारण है।
जीएसटी से प्रस्तावित लाभ – आइए जानते हैं, जीएसटी में ऐसा क्या है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 18 महीने में पहली बार कांग्रेस के नेताओं को ‘चाय पे चर्चा’ पर बुलाने के लिए मजबूर हो गए।
• सरकार के अनुसार जीएसटी आज़ादी के बाद टैक्स सुधार का सबसे बड़ा कदम है, जिससे जीडीपी में वृद्धि और रोज़गारों का सृजन होगा।
• केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अमेरिकी कॉरपोरेट क्षेत्र की चिंताओं को दूर करने के अपने प्रयासों के तहत पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स को दिए गए संबोधन में कहा कि जीएसटी व्यवस्था आने से भारत एक बड़े और एकीकृत बाज़ार के रूप में तब्दील होगा और जटिल करारोपण खत्म होने से विदेशी निवेशकों को आसानी होगी।
• एसोचैम के अनुसार छोटे या मध्यम उद्योग समूह (SMEs), जो असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, को इस टैक्स सुधार कानून से काफी फायदा होगा।
• 13वें केंद्रीय वित्त आयोग के अनुसार जीएसटी से कर संकलन में हो रहे कई तरह के व्यर्थ के खर्चों को रोकने में सहायता मिलेगी, जिससे राज्यों की आर्थिक हालात में सुधार होगा।
• 14वें वित्त आयोग के अनुसार जीएसटी से उन राज्यों को फायदा होगा, जहां कर रिसाव (टैक्स लीकेज) की वजह से कर संकलन प्रणाली में भ्रष्टाचार चरम पर है।
• जीएसटी लागू होने से हर सौदा इस कर व्यवस्था के तहत आ जाएगा, जिससे लोगों के लिए करों की चोरी कर पाना आसान नहीं होगा, इसीलिये जीएसटी को काले धन से निबटने के विरुद्ध मज़बूत हथियार के तौर पर देखा जा रहा है।
कांग्रेस की मांग – जब कांग्रेस इस बिल का सूत्रधार थी, तब बीजेपी-शासित गुजरात जैसे राज्य इसका विरोध करते थे। अब पासा पलट गया है। कांग्रेस अब जीएसटी बिल पर असहयोग कर रही है और बीजेपी जीएसटी की सबसे बड़ी लम्बरदार बनकर सामने आई है। जीएसटी पर बनी राज्यसभा सेलेक्ट कमेटी में कांग्रेस के तीन सदस्यों – मधुसूदन मिस्त्री, मणिशंकर अय्यर तथा भालचंद्र मुंगेकर – ने असहमति जताते हुए एक नोट दाखिल किया है। उनका दावा है कि संविधान संशोधन बिल में हालात से समझौता करते हुए इतने अपवाद छोड़ दिए गए हैं कि इसका समर्थन करना नामुमकिन हो गया है।
सरकार के अनुसार 32 में से 30 राजनीतिक दलों द्वारा इस बिल पर राज्यसभा में सहयोग का आश्वासन मिल गया है, परन्तु कांग्रेस के समर्थन के बगैर संसद में दो-तिहाई बहुमत और आधे राज्यों की सहमति मुश्किल है और इस पर कोई फैसला सोनिया गांधी की विदेश यात्रा के बाद ही संभव हो सकेगा। कांग्रेस इस कानून को पारित होने में विलंब कर राजनीतिक मोल-भाव के अलावा मोदी सरकार को झटका भी देना चाहती है।
विलंब होने से जीएसटी की कर व्यवस्था 2019 के आम चुनावों के पहले अप्रैल, 2017 से ही लागू हो पाएगी। मलेशिया और अन्य देशों की तर्ज़ पर जीएसटी लागू होने के शुरुआती तीन साल में भारत में भी महंगाई बढ़ने की आशंका है, जिससे वर्ष 2019 के आम चुनावों में बीजेपी की अलोकप्रियता बढ़ेगी, जिससे कांग्रेस को राजनीतिक फायदा हो सकता है। राज्यों के हित के नाम पर कांग्रेस द्वारा जीएसटी बिल में निम्न संशोधनों की मांग रखी गई है…
• कांग्रेस की पहली मांग है कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे उत्पादक राज्यों को मिलने वाले एक फीसदी अतिरिक्त टैक्स के लाभ को खत्म किया जाए, जबकि बीजेपी-शासित राज्य इस मांग को माने जाने के खिलाफ हैं।
• कांग्रेस की दूसरी मांग है कि बिल में टैक्स की ऊपरी सीमा 18 प्रतिशत तय कर इसका प्रावधान संविधान संशोधन में किया जाए, ताकि भविष्य में सरकार मनमाने तरीके से टैक्स में बढ़ोतरी न कर सके। सरकार ने कांग्रेस पार्टी की इस मांग पर विचार करने के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जिसकी रिपोर्ट बहुत जल्द आने की उम्मीद है।
• कांग्रेस की तीसरी मांग है कि केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स विवाद निपटाने के लिए पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में ट्रिब्यूनल पंचाट के गठन का प्रावधान हो, जिसमें जीएसटी काउंसिल का दखल न हो।
• कांग्रेस की चौथी मांग के अनुसार जीएसटी से राज्यों के स्थानीय निकायों यथा नगर पालिकाओं और पंचायतों की वित्तीय स्वायत्तता पर कुठाराघात होगा, जिसके मुआवजे की व्यवस्था हेतु इस बिल में प्रावधान होना चाहिए।
उपर्युक्त आलेख (श्री विराग गुप्ता जो सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं…) के ब्लॉग से लिया गया है. पाठकों की जानकारी के लिए इसे यहाँ उद्धृत किया गया है.
मेरी अपनी राय यही है कि इधर प्रधान मंत्री श्री मोदी काफी विनम्र हुए हैं, उसका कारण शायद बिहार के चुनावों में मिली जबर्दश्त पराजय और देश में हो रही असहिष्णुता के प्रति विरोध प्रदर्शन हो. जब अधिकांश पार्टियाँ चाहती है कि यह बिल पास हो जाय तो जनता के हित में कांग्रेस को इसका समर्थन करना चाहिए. सूत्रों के अनुसार सरकार भी कांग्रेस अधिकांश सुझावों पर विचार करने का मन बना लिया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि यह बिल राज्य सभा में पारित हो जाय और आर्थिक सुधारों पर सरकार आगे बढ़े ताकि देश आगे बढ़े. प्रधान मंत्री ने भी कहा है कि यह देश राज्यों के मजबूत खम्भों पर ही टिका है. अगर बहुमत की सरकार भी वांछित नियम न बना पाए तो प्रश्न तो उठेंगे. वैसे भी संसद के वर्तमान सत्र का पहला सप्ताह संविधान और असहिष्णुता पर चर्चा में ही बीत गया. इस चर्चा में सभी ने अपने अपने राजनीतिक नफा नुक्सान के अनुसार ही भड़ास निकले. कुछ सार्थक परिणाम निकल कर सामने आए हो, ऐसा दीखता नहीं. इसलिए प्रधान मंत्री के अनुसार ही सहमति से कुछ सुधार करें, जिसकी उम्मीद में आम जनता टकटकी लगाये हुए है. कुछ तो सकारात्मक होना चाहिए. नकारात्मकता अंततोगत्वा विनाशकारी ही होती है. इसलिए कहीं तो सकारात्मकता दिखलाइये. – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.