Monday 31 August 2015

नीतीश के इरादे

२०१४ के लोक सभा चुनाव से पहले मोदी जी ने जनता को बहुत सारे सपने दिखाए. जनता ने उन्हें पूर्ण समर्थन दिया. १५ महीनों में कोई खास परिवर्तन हुआ है, ऐसा नजर नहीं आ रहा. पर मोदी जी अपनी उपलब्धियां गिनाते नहीं थकते! फिर आया दिल्ली विधान सभा का चुनाव. इसके लिए भी केजरीवाल ने बहुत सारे हंसीन सपने दिखाए, दिल्ली की जनता ने उन्हें ७० में से ६७ सीटें देकर अभूतपूर्व बहुमत दिया. तब से वे केंद्र सरकार से हमेशा टकराव की मुद्रा में रहे हैं. केंद्र सरकार भी उनपर और उनके विधायकों पर हाथ धोकर पड़ी है. केजरीवाल का कहना है- ‘वे परेशान करते रहे, हम काम करते रहे’. वे भी अपनी उपलब्धियां गिनाते नहीं थकते. इधर पटना में आकर नीतीश कुमार के साथ मंच साझा किया और एक दूसरे का जमकर गुणगान किया.
कुछ लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार भी जनता की नब्ज को पहचानते हैं, इसीलिए केजरीवाल की तर्ज पर ढेरों वादे कर रहे हैं. वह भी अकेले. उन्हें लगता है, वे वर्तमान मुख्य मंत्री तो हैं ही, भावी मुख्यमंत्री भी वही रहेंगे. इसलिए उन्होंने अपना इरादा और वादा पेश कर दिया. पिछले दस सालों के शासन में उनका प्रदर्शन कुछ हद तक ठीक ही कहा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने बिहार को पटरी पर लाने का काम किया. विकास दर करीब १२% के आसपास रहा, यह उनका दावा है. उनकी सरकार भाजपा के साथ गठबंधन में अच्छा काम कर रही थी. पर मोदी जी का नाम जैसे ही भावी प्रधान मंत्री के रूप में लिया गया उन्होंने भाजपा से समर्थन वापस ले लिया. लोक-सभा में हार के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और दलित/महादलित वर्ग के जीतन राम मांझी को मुख्य मंत्री बना दिया. मांझी कुछ दिन तक तो नीतीश के इशारे पर काम करते रहे, पर भाजपा की शह पाकर उन्होंने अपना रंग दिखाना शुरू किया. फलस्वरूप उन्हें अपदस्त कर नीतीश कुमार पुन: मुख्य मंत्री की कुर्सी पर आसीन हो गए. इसमें साम्प्रदायिकता के खिलाफत के नाम पर राजद और कांग्रेस ने उनका साथ दिया.
अब अगली विधान सभा के लिए चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, नीतीश कुमार के महागठबंधन और भाजपा के साथ राजग में खलबली बढ़ती जा रही है. भाजपा और उसके सहयोगी दलों में मुख्य मंत्री पद के लिए अनेकों नाम और दावेदार हैं, जबकि इधर सर्वमान्य घोषित नेता नीतीश कुमार हैं. अब नीतीश कुमार अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं, तभी उन्होंने अपने इरादे को प्रेस के माध्यम से जाहिर कर दिया. इस घोषणा में उनके सहयोगी दल का कोई भी नेता नहीं था. 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को अगले पांच साल की योजनाओं का खुलासा किया। देश में सर्वाधिक युवाओं की आबादी वाले प्रदेश बिहार में नीतीश ने युवाओं के साथ महिलाओं पर अपना दांव खेला है। अगले पांच साल की योजनाओं में युवाओं और महिलाओं को सर्वाधिक तरजीह दी गई है।
राज्य सरकार की सभी नौकरियों में महिलाओं को 35 फीसद आरक्षण दिया जाएगा। शिक्षक नियोजन में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण का प्रावधान यथावत रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि सवा लाख करोड़ रुपये के पैकेज के जवाब में बिहार के विकास के लिए दो लाख 70 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
एक नजर में नीतीश का विजन रिपोर्ट- –
- युवा क्रेडिट कार्ड से युवाओं को मिलेगा चार लाख का ऋण
- ऋण पर राज्य सरकार देगी तीन फीसद सब्सिडी
- युवाओं को मिलेगा एक हजार रुपये का स्वयं सहायता भत्ता
- 500 करोड़ रुपये का होगा उद्यमिता विकास फंड
- विवि एवं कॉलेजों में निश्शुल्क वाई-फाई की सुविधा
नीतीश कुमार ने कहा, यह राज्य सरकार, जदयू या महागठबंधन नहीं; बल्कि पूरी तरह से हमारी व्यक्तिगत योजना है। जनता ने जब से काम करने का मौका दिया, तब से न्याय के साथ विकास की राह पर चल रहे हैं। अपने अनुभव के आधार पर हमने सोचा है कि जो कार्य हो रहा है, उससे अलग भी अगले पांच साल तक कार्य करेंगे; अगर बिहार के लोगों ने मौका दिया। प्रदेश की जनता का भरोसा टूटने नहीं देंगे।हमारी जो योजनाएं चल रही हैं, उनसे अलग अन्य योजनाएं शुरू की जाएंगी। पुरानी योजनाएं भी अपडेट होंगी। भाजपा के लोग हर बात पर रिएक्ट (प्रतिक्रिया) करते हैं, जबकि मैं एक्ट (काम) करता हूं। यह उनकी समस्या है। मैं तो काम करने में विश्वास करता हूं।
योजना की रूप-रेखा जारी करते हुए नीतीश ने कहा कि बिहार की 76 फीसद आबादी कृषि पर निर्भर है, इसलिए इस दिशा में कार्य चल रहा है। शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि अनेक बातों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। अगले पांच सालों में बिहार और तेजी से आगे बढ़ेगा। हमने बहुत कुछ हासिल किया है। बकौल नीतीश, बिहार में युवा आबादी सबसे अधिक है। हमें युवा बहुल राज्य के लिए शिक्षा, रोजगार के अवसर, कौशल विकास को सक्षम बनाने की ओर ध्यान देना होगा। नई पीढ़ी जब तक रोजगार न पाए और वह सक्षम न हो, तो हम लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना शुरू करेंगे। 12वीं पास विद्यार्थी चार लाख रुपये तक लोन का ले सकेंगे। सरकार इसके ब्याज में तीन फीसद की सब्सिडी देगी। हर प्रखंड में रोजगार के लिए युवाओं का पंजीकरण होगा, साथ ही कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा।
युवा बेरोजगार को स्वयं सहायता भत्ता दिया जाएगा। 20 से 25 साल की आयु के युवा-युवतियों को नौ माह तक एक हजार रुपये दिए जाएंगे। इसका लाभ दो बार उठाया जा सकता है। इससे युवाओं को रोजगार तलाशने में मदद मिलेगी। युवाओं में उद्योग के प्रति रुचि पैदा करने के लिए 500 करोड़ का उद्यमिता विकास के लिए फंड का प्रावधान किया गया है। उद्योग लगाने वाले युवाओं को फंड के माध्यम से राशि उपलब्ध कराई जाएगी। सभी विश्वविद्यालय और कॉलेजों में नि:शुल्क वाई-फाई सुविधा दी जाएगी। इन योजनाओं पर अगले पांच सालों में 49 हजार 800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। अगले पांच सालों में गांवों और शहरों के सभी घरों को पाइप जलापूर्ति से जोड़ दिया जाएगा। इससे गांव के 1.79 करोड़ और शहर के 16 लाख परिवार लाभान्वित होंगे। इस पर 47 हजार 700 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
नीतीश जी का मानना है कि हर घर में शौचालय होना जरूरी है। इसके लिए योजना शुरू करने की जरूरत है। अगले पांच साल में गांव के 1.64 करोड़ और शहर के 7 लाख 52 हजार परिवार को लाभ मिलेगा। इस पर 28 हजार 700 करोड़ रुपये खर्च होंगे। अगले पांच साल में हर घर में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है।
इसके तहत करीब 55 हजार 600 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। कहा कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से वंचित सभी गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ा जाएगा। गांवों में पक्की गली और नाला का निर्माण किया जाएगा। इस कार्य को पूरा करने के लिए 78 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नीतीश कुमार ने बेहतर विकास की बात कही है। स्वास्थ्य क्षेत्र में विकास के लिए पांच नए मेडिकल कॉलेज बनवाने की बात कही। उच्च व व्यावसायिक शिक्षा के लिए जिला व अनुमंडल में उच्च शिक्षा की कमेटी का गठन किया जाएगा। महिला आइटीआइ, इंजीनियरिंग कॉलेज, पारा मेडिकलसंस्थान पॉलीटेक्निक और नर्सिंग कॉलेज की स्थापना की जाएगी। इस मौके पर वित्त मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव, जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी, सांसद हरिवंश भी उपस्थित थे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) द्वारा उन्हें अहंकारी कहे जाने के मुद्दे पर मीडिया कर्मियों से कहा कि वे इस बात का फैसला खुद करें कि उनमें और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में से अहंकारी कौन है। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘अहंकारी मैं हूं या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस बात का फैसला मैं आप लोगों पर छोडता हूं।’
रही-सही कसर नीतीश कुमार ने रविवार को आयोजित पटना गाँधी मैदान की ‘स्वाभिमान रैली’ में पूरी कर दी. यहाँ भी नीतीश कुमार ने मोदी जी के डी. एन. ए. वाले बयान को बार-बार ललकारा. आंकड़ों के सहारे बताया कि बिहार अन्य राज्यों से बेहतर है और आगे बढ़ रहा है. उन्होंने फिर से एक बार नौजवानों और महिलाओं को लुभाने की कोशिश की. उन्होंने कहा – “वे कहते हैं, हम अहंकारी हैं, अहंकार हमारे खून में नहीं है पर स्वाभिमान हमारे रग-रग में व्याप्त है.”
इस महागठबंधन के सभी दल के प्रमुख नेताओं ने भाग लिया. पटना में पूरे बिहार के लोगों का जमघट से लगता है कि लोगों का जन समर्थन इस गठबंधन के साथ है. इस रैली में सोनिया गाँधी के साथ साथ शरद यादव, गुलाम नबी आजाद, प्रभुनाथ सिंह,रघुवंश प्रसाद यादव, लालू प्रसाद, शिवपाल यादव आदि ने संबोधित किया और बिहार के लोगों से महागठबंधन के लिए समर्थन माँगा है. रैली में उपस्थित भीड़ ने महागठबंधन के लोगों में उत्साह का संचार किया है. मोदी जी भी अपनी सभाओं में भीड़ को ही समर्थन का पैमाना मानते हैं.
अब बाकी फैसला तो जनता को करना है कि अगली बार किसकी सरकार? फिर से नीतीश कुमार या आयेगी मोदी जी की भाजपा सरकार!

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday 23 August 2015

रक्षा बंधन और दुष्कर्म के बढ़ते मामले

रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार नजदीक है. सभी बहनें अपने भाइयों को राखी भेज रही हैं या अपने-अपने भाइयों से मिलने के इन्तजार में हैं. बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी बाँधेंगी और भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेगा. काफी बहनें सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मी के लिए भी राखी भेज रही हैं ताकि वे देश की रक्षा कर सकें. कुछ बच्चियां मोदी जी के लिए राखियाँ तैयार कर रही हैं और उन्हें भेजने की तैयारी में हैं. मोदी जी भी हर साल बच्चियों से राखियाँ बंधवाते भी हैं. वाकई रक्षा-बंधन एक पवित्र त्यौहार है और हम सबको इसका बेसब्री से इंतज़ार भी रहता है. बचपन में हम सब अपने हाथों की राखियां गिना करते थे. आज भी हमारे बच्चे अपने हाथ की राखियां गिनते हैं. मिठाई खाना और बहन को उपहार देना इस त्यौहार को और भी मधुर बना देता है. इस पावन अवसर पर सभी पुरुषों का क्या कर्तव्य नहीं बनता है कि वे प्रण करें कि वे अपने सामने किसी भी महिला का अपमान, छेड़छाड़, यौन-उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं करेंगे और उस महिला की हर सम्भव मदद करेंगे. मोदी जी रक्षा-बंधन के अवसर पर बहनों को शौचालय व सुरक्षा बीमा आदि भेंट करने की बात कह रहे हैं. वाकई यह बहुत अच्छा सन्देश है साथ ही मोदी जी से यह उम्मीद करते हैं कि इस बार की ‘मन की बात’ में बहनों/महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की चर्चा करेंगे और उस विषय पर सकारात्मक सन्देश के साथ-साथ उनके द्वारा किए गए समुचित उपायों की चर्चा करेंगे.
इधर हो रहे दुष्कर्म के आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं.
मध्य प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां महिलाओं के साथ सबसे अधिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया गया है. यहां की महिलाएं शिवराज सिंह चौहान के राज में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. मध्य प्रदेश के बाद अगर बात करें केंद्र शासित प्रदेशों की तो दिल्ली में सबसे ज्यादा रेप की घटनाओं को अंजाम दिया गया है. यहाँ पर केंद्र के अधीन पुलिस प्रशासन है. केजरीवाल सरकार भी इन घटनाओं को रोकने में असफल रही है. बसों में मार्शल की नियुक्ति से हो सकता है बसों में छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी हुई हो. पर अकेली महिलाओं के अपहरण और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं में कमी के कोई खास संकेत नहीं दीख रहे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा रेप के मामले दर्ज कराए गए हैं. यह आंकड़े साल 2014 में दर्ज हुए कुल रेप के मामलों को दर्शाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक देश के टॉप 10 राज्यों में सबसे पहले मध्य प्रदेश (5076) का नंबर आता है इसके बाद राजस्थान (3759), उत्तर प्रदेश (3467), महाराष्ट्र (3438), आसाम (1980), उड़ीसा (1978), पश्चिम बंगाल (1466), छत्तीसगढ़ (1436), केरला (1347) और कर्नाटक (1324) का नंबर आता है.
इसके अलावा पश्चिम बंगाल ऐसा पहला राज्य है जहां सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ रेप करने की कोशिश की गई है. पश्चिम बंगाल में ऐसे कुल 1,656 मामले दर्ज हुए हैं. बिहार इसी मामले में 484 के साथ दूसरे और राजस्थान 373 मामलों के साथ तीसरे नंबर पर है.
अगर बात करें केंद्र शासित प्रदेशों की तो दिल्ली से सबसे ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। दिल्ली में 2,096 रेप के मामले दर्ज किए गए हैं जो दूसरे नंबर के राज्य चंडीगढ़ (59) से करीब पैंतीस गुना ज्यादा है. इसके अलावा दिल्ली में महिलाओं की अस्मत लूटने के सबसे ज्यादा प्रयास किए जाते हैं. समाचारों में भी शायद ही कोई दिन ऐसा हो जिस दिन दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की ख़बरें न हो.
दिल्ली में निर्भया कांड भी हुआ था जहां एक लड़की के साथ हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए रेप किया गया और उसे चलती बस से सड़क पर फेंक दिया गया था. इतना ही नहीं उसके एक पुरुष दोस्त के साथ भी मारपीट की गई थी. इस मामले के बाद एक जबर्दश्त आंदोलन हुआ और सरकार को मजबूरन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून में ठोस बदलाव करने पड़े. पर कानून से क्या होता है!
अब जब पिछले साल हुए सेक्स अपराधों के आंकड़े सामने आए हैं तो इससे एक बार फिर दिल्ली का असली चेहरा सामने आया है. दिल्ली के लिए ये आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. शायद इसलिए ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले चुनावों में महिलाओं की सुरक्षा को अपना अहम मुद्दा बनाया था. अब रोना यह है कि दिल्ली में पुलिस तो केंद्र सरकार के अधीन है जो केंद्र सरकार के इशारे पर आम आदमी के विधायकों/ मंत्रियों/कार्यकर्ताओं पर ज्यादा पैनी नजर रक्खे हुए है. आम आदमी पार्टी से सम्बंधित लोग अगर कुछ भी गलती करें तो उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है वहीं, अपराधियों, दुष्कर्मियों पर लगाम लगाने में उतनी तत्परता नहीं दिखाती है. तत्परता दिखा कर भी क्या होगा? न्यायपालिका से न्याय मिलने में काफी देर हो जाती है एक अपराध का फैसला नहीं होता तबतक सैंकड़ो, अपराध हो जाते हैं. निर्भयाकांड के अपराधियों का अपराध साबित होने पर भी आज तक फांसी नहीं हुई बल्कि उनमे से एक अपराधी जिसका अपराध जघन्यतम था, किशोर(नाबालिग) होने की वजह से केवल तीन साल की सजा हुई है. मुख्य आरोपी राम सिंह ने जेल में ही आत्म-हत्या कर ली तो एक अपराधी मुकेश सिंह का इंटरव्यू लेकर उसपर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाना यह भी चर्चा का विषय रहा. सवाल यह है कि जब इनको मौत की सजा सुना दी गयी है तो फांसी में देर क्यों? तबतक अपराध बढ़ते रहेंगे और थानों में केस दर्ज होते रहेंगे. अधिकांश मामलों में तो केस दर्ज ही नहीं कराये जाते या पुलिस दर्ज करने मे आनाकानी करती है. फिर अपराध पर लगाम लगे तो कैसे?
सामाजिक या राजनीतिक रूप से ऐसी कोई भी कोशिश कारगर नहीं हो रही है जिससे दुष्कर्म के वारदातों में कमी आये. ऊपर से बड़े नेताओं के बिगड़े बोल माहौल को और बिगाड़ने का काम करते हैं. मुलायम सिंह, विजय वर्गीय, मोहन भागवत, आदि कई ऐसे लोग है जो अशालीन बयान देकर किसी न किसी प्रकार से अपराधियों का हौसला-आफजाई ही करते दीखते हैं. हमारी फ़िल्में, टी वी, पोर्न साइट्स आदि भी इन तरह के अपराधों को बढ़ावा देने का ही काम करते हैं. कहीं से भी इसके प्रति दुर्भावना या सामाजिक बहिष्कार की ख़बरें नहीं आती. बल्कि अगर बड़े/सम्मानित घरों के युवकों से यह काम हो गया तो उसे बचने का हर सम्भव प्रयास किया जाएगा. खाप पंचायतों, ग्राम पंचायतों, दबंग लोगों का दबे-कुचले लोगों के प्रति और भी क्रूर और विद्रूप चेहरा नजर आता है. ऐसे में न्यायपालिका, कार्यपालिका, सामाजिक संस्थाएं, स्कूल- कॉलेजों, आदि का भी भरपूर दायित्व बनता है कि इस प्रकार की होनेवाले घटनाओं पर रोक लगाने का हर सम्भव प्रयास करे.
महिलाओं को भी अपनी रक्षा आप करने के गुर सीखने ही होंगे और मर्दों के प्रति अपनी तरफ से कोई भी छूट या लापरवाही से बचना होगा. कपड़े शालीन ही अच्छे लगते हैं. साथ ही भाव-भंगिमा भी ऐसी हो जिससे किसी भी पुरुष को, किसी भी प्रकार की अशालीन हरकत करने का बहाना न मिले. इसके अलावा समाज के सजग-वर्ग को भी सचेत रहने की जरूरत है कि इस तरह की कोई भी घटना देखें तो आवाज बुलंद करें और पीड़ित को मदद करने की हर सम्भव कोशिश करें.
उत्तेजक फिल्में, उत्तेजक विज्ञापन, अश्लील तस्वीरें, फैशन के नाम पर अश्लील प्रदर्शन, अश्लील डांस आदि सब पर रोक लगाने की जरूरत है, क्योंकि ये सारे दृश्य ऐसे हैं, जो कामुकता को बढ़ावा देते हैं और मौका पाकर पुरुष भेड़िया बन जाता है.
अभी हाल ही में दिल्ली में सबके सामने एक लड़की को चाकुओं से गोद कर मार डाला गया. सभी देखते रहे. जमशेदपुर में एक बस में स्कूली-छात्रा के साथ छेड़खानी होती रही और लोग देखते रहे, यहाँ तक कि बस के ड्राइवर ने भी बस को नहीं रोका और बस में बज रहे म्यूजिक सिस्टम के वॉल्यूम को और बढ़ा दिया. लड़की को चलती बस से कूदकर अपनी इज्जत बचानी पडी, फलस्वरूप वह घायल हो गयी और कई दिनों तक उसे अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. बाद में प्रशासन हरकत में आया…बसों और ऑटो से म्यूजिक सिस्टम को हटवाया. आजकल अश्लील और द्विअर्थी गानों की भी बाढ़-सी आ गयी है, जिसका सीधा असर किशोरों पर तो होता ही है. इन पर रोक लगाने के लिए सामूहिक प्रयास की गंभीर आवश्यकता है… – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday 8 August 2015

फीकी पड़ती चमक

सोने की चमक फीकी पड़ती जा रही है. शेयर मार्केट नीचे ऊपर हिचखोले खा रहा है. ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदान जो अडानी को आवंटित हुआ था वह रद्द होने के कगार पर है. प्रधान मंत्री मोदी जी का अभी कोई चर्चित विदेश दौरा नहीं हो रहा. उनका कोई जोरदार भाषण या वक्तब्य भी मीडिया में नहीं आ रहा. ललित मोदी, सुषमा प्रकरण, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के ब्यापम पर उनकी लगातार चुप्पी, छत्तीसगढ़ का राशन घोटाला, संसद में जोरदार हंगामा, कांग्रेस के २५ सांसदों क निलंबन, कांग्रेस के साथ कुछ विपक्षी पार्टियों द्वारा संसद का बहिष्कार, भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार का कथित यु टर्न, संसद की सर्वदलीय बैठक से प्रधान मंत्री की दूरी —कितना कुछ है जो नरेंद्र मोदी की विफलता के कहानी कह रहा है. बिहार में दिए गए नीतीश के खिलाफ डी. एन. ए. वाला विवादित बयान उसपर नीतीश कुमार की खुली चिट्ठी. उद्योगपति राहुल बजाज का निराशाजनक बयान और भी काफी कुछ है जो प्रधान मंत्री के चमकते हुए शहंशाह की छवि पर बट्टा तो लगाता ही है. जनता कुछ चमत्कार की उम्मीद में थी पर आशा के अनुरूप परिणाम न देखने पर जनता का भी मोह भंग होना स्वाभाविक है. प्याज टमाटर के लगातार बढ़ते दाम, पूरे देश में कानून ब्यवस्था का बुरा हाल, दिल्ली में सबसे अधिक आपराधिक घटनाओं का होना, महिलाओं के साथ हो रहे लगातार जुर्म और दुष्कर्म…. दिल्ली की केजरी सरकार के साथ राज्यपाल का लगतार टकराव ……और कितने दिन चलेंगे मोदी की नाम … भाजपा नेताओं की विवादास्पद बयानबाजी, शत्रुघ्न सिन्हा का विपक्ष के साथ गलबहियां करना, पार्टी के अंदर की सुगबुगाहट …..कुछ तो बात है, जो अभी परदे के अंदर चल रहा है. हर बात में मुखर रहने वाले प्रधान मंत्री आखिर इन सारे ज्वलंत मुद्दों पर खामोश क्यों हैं? सोसल मीडिया को महत्व देनेवाले प्रधान मंत्री पर आज व्यंग्यात्मक टिप्पणियां की जा रही है, जो कभी मनमोहन सिंह पर की जाती थी, अब कोई उनसे डिग्री दिखाने को कह रहा है …यह भी अच्छी बात तो नहीं कही जा सकती. …..आने वाले दिनों में बिहार में चुनाव का आगाज….. चमक अभी बाकी है, या फीकी पड़ रही है?
ऐसे समय में देश के शीर्ष उद्योगपतियों में से एक और राज्यसभा के सांसद राहुल बजाज ने NDTV से की गई एक खास बातचीत में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए तल्ख शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा है कि पिछले साल ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में आने वाली एनडीए सरकार अपनी चमक खोती जा रही है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मिली ऐतिहासिक जीत का ज़िक्र करते हुए बजाज ग्रुप के चेयरमैन ने कहा, “मई, 2014 में हमें एक ‘शहंशाह’ मिला था, और पिछले 20-30 सालों में दुनिया के किसी भी देश में, किसी को भी ऐसी सफलता नहीं मिली थी… मैं इस सरकार के विरोध में आज भी नहीं हूं, लेकिन सच्चाई यही है कि अब इस सरकार की चमक फीकी पड़ती जा रही है…”
राहुल बजाज ने अपनी बात को आगे ले जाते हुए कहा कि वह “वही कह रहे हैं, जो बाकी लोग कह रहे हैं…” उन्होंने कहा, सरकार की गिरती साख पिछले साल से अब तक कई चुनाव नतीजों में साफ नज़र आई है. “दिल्ली में यह दिखा, पश्चिम बंगाल के निगम चुनावों में भी दिखा… मैं दोनों पार्टियों के साथ हूं, मैं भारत की भलाई चाहता हूं… मैं सरकार से बाहर का आदमी हूं, मैं कुछ नहीं जानता हूं, लेकिन अगर बीजेपी बिहार में अच्छी सरकार बना पाती है तो कम से कम इस स्थिति से कुछ छुटकारा मिल सकता है… बीजेपी की थोड़ी उम्मीद आने वाले बंगाल, केरल, असम और पॉन्डिचरी चुनाव से है…”
सरकार द्वारा प्रस्तावित ब्लैक मनी बिल के संदर्भ में अपनी बात रखते हुए राहुल बजाज ने कहा, जिन लोगों के पास काला धन जमा है, यह बिल उन्हें उसे सार्वजनिक करने के लिए तीन महीने का समय देता है. इसमें जो लोग तीन महीने की समयावधि का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इसके लिए 60 प्रतिशत चार्ज देना पड़ेगा, लेकिन उन पर किसी तरह का केस नहीं चलेगा. जो लोग इस तीन महीने की विंडो का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं, दोषी पाए जाने पर उन पर 120 प्रतिशत जुर्माना और 10 साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है.
राहुल बजाज ने यह भी कहा कि उद्योग जगत से जुड़े लोग इस बात से चिंतित हैं कि इस तरह की घोषणाओं के बावजूद उन्हें इस बात की गारंटी नहीं मिलती है कि भविष्य में उन पर केस नहीं चलाया जाएगा. “हम सार्वजनिक जानकारी दे देते हैं और फिर आप कहते हैं कि यह गैरकानूनी है… अगर ऐसा होता है तो मैं कुछ भी सार्वजनिक नहीं करूंगा, मैं रिस्क लूंगा और सुप्रीम कोर्ट जाकर जीवन भर अपनी लड़ाई लड़ूंगा… मुझे कुछ भी नहीं होगा…”
हालांकि सरकार ने इन घोषणाओं पर बारीक नज़र रखने की बात कही है, ताकि उन्हें टैक्स अधिकारी परेशान न कर सकें, लेकिन राहुल बजाज इस तर्क से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है, “हर कोई कह रहा है… चाहे वह आईटीओ हो या प्रवर्तन निदेशालय, उन जगहों पर मौजूद तकरीबन लोग वैसे ही हैं, जैसे पहले थे… आप हर हाल में परेशान किए जाएंगे…”
राहुल बजाज ने यह भी कहा कि उन्हें उन उद्योगपतियों से कोई सहानुभूति नहीं, जो कानून तोड़ते हैं, लेकिन यह कानून पारदर्शी नहीं है. “मेरे ख़्याल से इस कानून का प्रारूप ही किसी परिकल्पना के तहत किया गया है… मैं यह बात पूरे समूह के लिए नहीं कह सकता हूं, लेकिन जिन्होंने ऐसा किया है, मेरी सहानुभूति उनके साथ नहीं है. यह सब बदले की कार्रवाई के तहत किया गया है… यह नरेंद्र मोदी की सरकार नहीं है…”
राहुल बजाज ने ऐसा बयान सार्वजनिक रूप से दिया है, पर ऐसे बहुत सारे उद्योगपति, राजनीतिक और आर्थिक विश्लेषक कह रहे हैं. संसद का लगातार ठप्प होना और किसी बिल पर बहस न होना, निराशा का भाव पैदा करता है. संसद का वक्त बर्बाद होना मतलब करोड़ों की क्षति अलग से हो रही है. सरकार और विपक्षी दल दोनों का दायित्व है कि संसद को चलायें और जनता का काम करें. प्रस्तावित विधेयक पर बहस हो और उसे दोनों सदनों से पास कराया जाय, पर ऐसा होता दीख नहीं रहा क्योंकि सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने रास्ते पर अड़े और खड़े हैं.
सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, सुषमा स्वराज, स्मृति इरानी आदि अपनी अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकल रहे हैं, जो किसी भी तरह से या कहें कि भारतीय लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है. मोदी जी कहीं से बीच-बचाव करते नजर नहीं आ रहे हैं … उनका मौन उनके लिए भी आत्मघाती न बन जाय. अभी बिहार में चुनाव होना है, वहां भी मोदी जी और नीतीश जी अपनी-अपनी व्यक्तिगत खुन्नस का जिक्र सार्वजनिक रूप से कर रहे हैं. जनता सब कुछ देख रही है, मीडिया हवा बनाने में माहिर है. संयोग से लोक सभा में मोदी जी के लिए प्रचार सामग्री तैयार करने का काम सम्हालने वाला प्रशांत किशोर इस बार नीतीश जी के साथ है. अरविन्द केजरीवाल भी नीतीश कुमार का समर्थन करने को तैयार बैठे हैं, ऐसे में बिहार का चुनाव परिणाम ही बताएगा कि मोदी जी की चमक बरक़रार है या फीकी पड़ी है.
फिर भी पूरी निराशा नहीं व्यक्त की जा सकती है. अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सफलता के साथ कुछ राष्ट्रों में भारत का नाम हुआ है. संयुक्त-राष्ट्र-संघ में भारत की भागीदारी बढ़ी है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर कोयले की नीलामी से सरकारी खजाने में मुद्रा की बृद्धि हुई है, वहीं कोयले के उत्पादन में बृद्धि से बिजली उत्पादन में भी थोड़ा सुधार हुआ है. लेकिन इसके अलावा प्राकृतिक गैस, तेल, इस्पात, सीमेंट, फर्टिलाइजर्स आदि में गिरावट ही दर्ज की गयी है. जोर-शोर से चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान के परिणाम भी उत्साहजनक नहीं हैं. भ्रष्टाचार का उन्मूलन हो गया है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है …. और भी कई योजनाओं पर मोदी सरकार को गंभीरता से कदम उठाने होंगे. किसानों, मजदूरों, गरीबों, बेरोजगारों के हित में आवश्यक कदम शीघ्रातिशीघ्र उठाने होंगे, तभी उनकी साख आगे भी बनी रहेगी वरना जनता के पास विकल्प की अभी भी कमी है… किसके पास जाय?…यानी जाये तो जाये कहाँ? वाली बात है.
आशाजनक परिणाम की आकांक्षा के साथ – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Wednesday 5 August 2015

सरिता की धारा सम जीवन

नित्य करेला खाकर गुरु जी, मीठे बोल सुनाते हैं,
नीम पात को प्रात चबा बम, भोले का गुण गाते हैं.
उपरी छिलका फल अनार का, तीता जितना होता है
उस छिलके के अंदर दाने, मीठे रस को पाते हैं.
कोकिल गाती मुक्त कंठ से, आम्र मंजरी के ऊपर
काले काले भंवरे सारे, मस्ती में गुंजाते हैं.
कांटो मध्यहि कलियाँ पल कर, खिलती है मुस्काती है
पुष्प सुहाने मादक बनकर, भौंरों को ललचाते हैं.
भीषण गर्मी के आतप से, पानी कैसे भाप बने
भाप बने बादल जैसे ही, शीतल जल को लाते हैं.
यह संसार गजब है बंधू, जन्म मृत्यु से बंधा हुआ
जो आकर जीवन जीते हैं, वही मृत्यु को पाते हैं.
सुख दुःख का यह मधुर मिलन है, दो पाटों के बीच तरल
सरिता की धारा सम जीवन, भवसागर में आते हैं.

Saturday 1 August 2015

अंशु गुप्ता और संजीव चतुर्वेदी

रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता
अंशु गुप्ता और संजीव चतुर्वेदी
वैसे पिछला सप्ताह अपने भारत के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा. इस देश ने पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को खोया, तो गुरुदासपुर आतंकी हमले में एक जांबाज पुलिस अधीक्षक बलजीत सिंह शहीद हुए. एक आतंकी याकूब मेनन की फांसी पर बहस अब तक जारी है. पूरा उत्तर भारत अत्यधिक बारिश की वजह से तबाही झेल रहा है, वहीं कुछ अच्छी खबर भी पिछले सप्ताह ही आयी. 
रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड फाउंडेशन (आरएमएएफ) ने बुधवार(२९ जुलाई) को पिछले साल के पांच विजेताओं ने नाम घोषित कर दिए हैं, जिसमें भारत के संजीव चतुर्वेदी और अंशु गुप्ता शामिल हैं. संजीव चतुर्वेदी एम्स के मुख़्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) रह चुके हैं. वहीं अंशु गुप्ता दिल्ली स्थित एनजीओ गूंज के संस्थापक हैं.
एम्स के सीवीओ बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी ने उन डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जो अनाधिकृत रूप से विदेश यात्रा करते थे. आरएमएएफ की प्रेस रिलीज़ के अनुसार संजीव चतुर्वेदी को उनकी अप्रत्याशित नेतृत्व क्षमता के लिए चुना गया है. विज्ञप्ति के अनुसार, ''उन्होंने ईमानदारी, साहस और तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए भ्रष्टाचार की जांच की. साथ ही उन्होंने ऐसा तरीका भी विकसित किया जिससे सरकार भारतीय जनता के लिए बेहतर तरीके से काम कर सके.''
संजीव चतुर्वेदी देश के दूसरे सर्विंग ब्यूरोक्रेट हैं जिन्हें ये पुरस्कार दिया गया है। इससे पहले किरण बेदी को भी सेवा में रहते ये प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था। 2002 बैच के वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी एम्स में कई भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने के लिए जाने जाते हैं और पिछले साल जब उन्हें एम्स के सीवीओ पद से हटाया गया तो बड़ा विवाद हुआ था। चतुर्वेदी मूलत: हरियाणा कैडर के अफसर हैं। वहां भी उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया था।
कई घपलों का भंडाफोड़ करने वाले अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कामकाज पर निराशा जताई है। उन्होंने कहा कि वे केवल स्वतंत्र न्यायपालिका की वजह से बचसके। चतुर्वेदी ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति होनी चाहिए न कि ईमानदार अफसरों के खिलाफ। क्योंकि प्रधानमंत्री के कहे मुताबिक भ्रष्टाचार को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करने की नीति के अनुरूप काम किया। मैंने इस संदेश को दिल से लिया और एम्स में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए निजी तौर पर खतरा उठाया।
भारतीय वन सेवा के अधिकारी और फिलहाल एम्स में उप सचिव के पद पर काम कर रहे चतुर्वेदी (40) को उभरते नेतृत्वश्रेणी के तहत उनकी बेमिसाल सत्यनिष्ठा, साहस और सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार का खुलासा करने में किसी तरह का समझौता नहीं करने की दृढ़ता व पूरी लगन व मेहनत के साथ भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने को लेकर इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।
पिछले पांच साल में चतुर्वेदी का 12 बार तबादला हुआ है। उन्होंने हरियाणा सरकार में रहने के दौरान भू माफिया के खिलाफ कार्रवाई की थी। हालांकि उन्होंने एम्स में कथित अनियमितता के बारे में दस्तावेजी साक्ष्य पीएमओ को भेज कर दोषियों को दंडित करने के लिए एक निष्पक्ष जांच की मांग की थी, लेकिन कुछ नहीं किया गया और उन्हें प्रताड़ित करने पर जोर दिया गया।
उन्हें पिछले साल अगस्त में एम्स के मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद से हटा दिया गया था।
इस पुरस्कार से पहले ही नवाजे जा चुके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फरवरी में केंद्र को पत्र लिख कर चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में स्थानांतरित करने की मांग की थी। केंद्र ने अभी तक इस अनुरोध पर कोई फैसला नहीं किया है। यहीं पर यह बात गौर करने लायक है कि क्या श्री मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए वास्तव में गंभीर हैं?
वहीं अंशु गुप्ता ने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर 1999 में एनजीओ ‘गूंज’ की स्थापना की थी.
अंशु गुप्ता ने कहा, "मैं अवॉर्ड मिलने से ख़ुश हूँ, ख़ासकर इसलिए कि कपड़ों का मुद्दा विकास के मुद्दे से जुड़ सका. इस अवॉर्ड से ये भी साबित होता है कि बिना पोस्टर बैनर लगाए भी सामाजिक काम किया जा सकता है."
अंशु गुप्ता के लिए लिखा गया है, ''उनकी जो दूरदर्शी सोच है वो भारत में एक-दूसरे को आगे बढ़कर मदद करने की सोच को बदल रही है. उनके नेतृत्व में कपड़ों को इस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे कि वो ग़रीब वर्ग के लिए विकास का साधन साबित हो रहा है. साथ ही उन्होंने दुनिया को यह भी याद दिलाया है कि अगर असल मायने में कोई किसी को कुछ देता है तो इसमें मानवीय ग़रिमा की इज़्जत करना शामिल है.''
भारत से कई लोगों को यह अवॉर्ड मिल चुका है, उनमे से चंद चर्चित नाम: मदर टेरेसा, 1962. वर्गीस कूरियन, 1963. जयप्रकाश नारायण, 1965. सत्यजीत रे, 1967. किरण बेदी, 1994. महाश्वेता देवी, 1997. जेम्स माइकल लिंगदोह, 2003. वी. शांता, 2005. अरविंद केजरीवाल, 2006
रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड की स्थापना 1957 में फिलीपींस के तीसरे राष्ट्रपति रैमन मैग्सेसे की याद में की गई है. इसे एशिया का नोबल पुरस्कार भी कहा जाता है.
'गूंज' की गूंज इंडिया के साथ साथ दूसरे देशों में कैसे सुनाई देने लगी... एशिया का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले रैमन मैग्सेसे अवार्ड के लिए चुने गए और 'गूंज' नामक एनजीओ के जरिए गरीबों की सहायता करने वाले अंशु गुप्ता से जुड़ी कुछ खास बातें जो हम सबको जरुर जाननी चाहिए...
1-      देहरादून के मिडिल क्लास परिवार में जन्में अंशु गुप्ता चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं. जब अंशु 14 साल के थें तो उनके पिता को हॉर्ट अटैक आने के चलते घर का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर आ गया. 2- 12वीं की पढ़ाई के दौरान अंशु का एक एक्सीडेंट हो गया जो उनकी जिंदगी को बदल गया. 3- देहरादून से ग्रेजुएशन करने के बाद अंशु ने दिल्ली का रुख किया. अंशु ने इकोनॉमिक्स से मास्टर की डिग्री हासिल की और फिर पत्रकारिता और जनसंचार का कोर्स किया. 4- एक ग्रेजुएट स्टूडेंट के तौर पर अंशु ने 1991 में नॉर्थ इंडिया में उत्तरकाशी की यात्रा की और भूकंप प्रभावित क्षेत्र में पीड़ितों की सहायता भी की और यही ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अंशु की पहली पहल थी. 5- अंशु ने पढ़ाई खत्म करके बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू किया. कुछ समय बाद पावर गेट नाम की एक कंपनी में दो साल तक काम किया. 7- आपको बता दें कि कभी 67 कपड़ों से शुरु हुआ यह संगठन आज हर महीने करीब अस्सी से सौ टन कपड़े गरीबों को बांटता है. 8- 2012 में गूंज को नासा और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के द्वारा 'गेम चेंजिंग इनोवेशन' के रुप में चुना गया और इसी साल अंशु गुप्ता को इंडिया के मोस्ट पॉवरफुल ग्रामीण उद्यमी के तौर पर फोर्ब्स की लिस्ट में जगह मिला. 9- अपने इन्ही कार्यों की वजह से 'गूंज' को हाल ही में 'मोस्ट इनोवेटिव डेवलेपमेंट' प्रोजेक्ट के लिए जापानी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. 10- 1999 में चमोली में आए भूकंप में उन्होंने रेड क्रॉस की सहायता से जरूरतमंदों के लिए काफी सामान भेजा.

तात्पर्य यह है कि अभी भी हमारे देश में ऐसे अनेक हीरे हैं, जिन्हें केवल पुरस्कार भर से नवाजे जाने के अलावा उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी प्रतिभा का खुल कर इस्तेमाल कर, भारत भूमि की सेवा तन-मन-धन से कर सकें. दोनों महान विभूतियों को नमन और शुभकामनाएं – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.