Sunday 22 June 2014

महंगाई को काबू में रखना सबसे बड़ी चुनौती !

महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार आदि मुद्दों पर चुनाव जीतकर आयी भाजपा की मोदी सरकार के लिए महंगाई से लड़ना ही अभी सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है. कमजोर मॉनसून की भविष्यवाणी, सम्बंधित विभागों के मंत्रियों के साथ प्रधान मंत्री की बैठक, इराक संकट से उपजे कच्चे तेलों की कीमत में बृद्धि, ऊपर से श्री मुकेश अम्बानी की घोषणा कि तेल की कीमतों में बृद्धि अनिवार्य रूप से करनी होगी, जिसका असर महंगाई बढ़ानेवाला होगा.... और अब रेल के यात्री किराये में बजट से पहले १४.२ प्रतिशत और माल भाड़े में ६.५ % की बढ़ोत्तरी से क्या महंगाई काबू में आने वाली है? कड़े फैसले का पहला कड़वा घूँट
अब खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री श्री रामविलास पासवान कह रहे हैं कि आवश्यक खाद्य पदार्थों की देश कोई कमी नहीं है, उपलब्धता को यथानुसार आपूर्ति में बदलने की चुनौती तो है. हरेक राज्यों को कहा गया है कि जमाखोरों के खिलाफ कड़े कदम उठायें जाएँ... पर ऐसा हो रहा है क्या. वित्त मंत्री भी चिंतित हैं- आम उपभोक्ता क्या करे
प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री, खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के हवाले से दिए गए बयानों के बाद भी महंगाई बढ़ती जा रही है. फल एवं सब्जियों के कम पैदावार और जमाखोरी रोकने के उचित कार्रवाई किये बिना इनके दामों की बढ़ोत्तरी रोकना संभव भी नहीं है. राज्य सरकारें आजतक जमाखोरों पर नियंत्रण तो नहीं कर सकी है, क्योंकि चुनाव खर्च के लिए चन्दा भी तो वही लोग देते हैं. अब बहाना भी आसान है-इराक संकट. पिछली सरकारें भी तो अंतराष्ट्रीय संकट का हवाला देती रही हैं. वैसे अब मोदी सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले गृह  मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने ६ महीने का वक्त मांग लिया है. यानी ६ महीने तक महंगाई बढ़ेगी उसके बाद घटेगी(?) ...तब तक टी वी और सडकों पर नूरा-कुश्ती देखते रहें.
वैसे भी मॉनसून की शुरुआत में फल,सब्जियों के पैदावार और उसके संग्रहण, संरक्षण में भी खासी दिक्कत होती है, इसका फायदा ब्यापारी वर्ग उठाते ही हैं. यह कोई नई बात भी नहीं है. पर विपक्ष क्या बैठा रहेगा? इस मुद्दे पर वह कत्तई चुप नहीं बैठ सकता. ऊपर से प्रधान मंत्री द्वारा कड़े फैसले के संकेत, बजट में नए टैक्स बढ़ोत्तरी के संकेत, रेल भाड़े में बृद्धि की योजना ये सभी कदम महंगाई को बढ़ानेवाले ही साबित होंगे. अबतक रोजगार सृजन के लिए भी कोई मजबूत कदम नहीं उठाये गए हैं. लोगों की आमदनी नहीं बढ़ेगी तो खरीददारी कहाँ से करेगा और संकट बरकरार रहने की ही संभावना बनी हुई है. ऐसे में मोदी सरकार के उपयुक्त कदमों का सबको इन्तजार है.        
मुख्य मुद्रास्फीति साल दर साल आधार पर अप्रैल के 5.2 फीसदी के मुकाबले मई में 6 फीसदी हो गई। दिसंबर के बाद से यह इसका उच्चतम स्तर है।
इसके दोषी को खोज निकालना बहुत मुश्किल नहीं है। खाद्य मुद्रास्फीति पिछले कई सालों से वृहद आर्थिक प्रबंधन की धुरी रही है। जैसे-जैसे इसमें उछाल या गिरावट आती है वैसा ही हमें मुख्य मुद्रास्फीति में भी देखने को मिलता है। अप्रैल से मई के दौरान इसमें एक फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली। चावल की कीमतों की इसमें अहम भूमिका रही। पिछले कुछ माह के दौरान इसमें साल दर साल आधार पर 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि यह इससे पहले के कुछ महीनों के मुकाबले कम ही है। उस वक्त यह बढ़ोतरी 17 फीसदी की दर से हो रही थी। दूध, अंडे, मछली तथा मांस कुछ अन्य खाद्य पदार्थ हैं, जिन्होंने महंगाई पर असर डाला है।
यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जानी चाहिए कि बगैर खाद्य कीमतों को नियंत्रित किए महंगाई के विरुद्घ जंग नहीं जीती जा सकती है। सरकार ने इस प्राथमिकता को भली भांति समझा है। यह बात संसद के आरंभिक सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण से भी स्पष्ट हुई। अब जरूरी यह है कि सरकार जल्दी से नीति बनाकर इस दिशा में तत्काल कदम उठाए। विनिर्मित वस्तुओं के क्षेत्र में आ रही महंगाई को समझा पाना थोड़ा मुश्किल है। अगर मांग कमजोर बनी हुई है तो इसका अर्थ यही है कि उत्पादक अब कीमतों के मामले में एकदम निचले स्तर पर हैं और अब वे कच्चे माल के रूप में पडऩे वाली किसी भी लागत को उपभोक्ताओं पर डालने के लिए मजबूर हैं। यह कम कीमतों के बीच मांग बढ़ाने के लिए अच्छे संकेत तो कतई नहीं हैं।
खाद्य महंगाई को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया देने की जिम्मेदारी अब सरकार पर है। जैसा कि यह समाचार पत्र कहता रहा है, मध्यम अवधि में सरकार को चावल की खुले बाजार में बिक्री करनी चाहिए। इससे कम से कम एक महत्त्वपूर्ण जिंस में महंगाई से पार पाने में मदद मिलेगी। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने ऐसा करने में जो अनिच्छा दिखाई उससे कई लोग चकित हुए। मौजूदा सरकार की निष्क्रियता हालात को और खराब कर सकती है। लंबी अवधि में कृषि जिंसों को लेकर समूची प्रोत्साहन व्यवस्था को नए ढंग से तय करना होगा। उसे चावल और गेहूं तथा उन सभी उत्पादों से दूर करना होगा जो खाद्य महंगाई के मूल में हैं। यह लक्ष्य रातोरात हासिल नहीं होगा, लेकिन एक विश्वसनीय नीति बनाकर इस दबाव से निपटने की दिशा में काम करना चाहिए।
जनता को उम्मीद थी कि मोदी सरकार के गठन होने के बाद महंगाई की मार से वो बच सकेगी, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि अभी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। पूंजी की कमी, इराक में बढ़ता तनाव, काला धन और देश की अनिश्चित अर्थव्यवस्था जैसे कारण महंगाई को लगातार बढ़ा रहे हैं। अगर बात महंगाई को काबू करने की करें तो जमाखोरी पर तत्काल लगाम लगाने, देश के डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से भ्रष्टाचार को दूर करने और डीजल के दाम को कैटेगराइज करने से कुछ बात बन सकती है।
 क्यों नहीं कम हो रही महंगाई?
 1.भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ माइनस 2 फीसदी चल रही है। अब जब आरबीआई दीर्घकालिक उपाय के रूप में ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है तो इससे मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ और धीमी हो जा रही है। ऐसे में एक तरफ जहां पूंजी की कमी हो रही है, वहीं प्रोडक्शन भी नहीं बढ़ पा रहा है।
2.सरकार के दीर्घकालिक उपाय बैंक के माध्यम से बाजार में रोटेट होने वाली पूंजी को कम करते हैं, लेकिन देश में काला धन इतनी प्रचुर मात्रा में है कि आरबीआई की कोशिशों के बावजूद दीर्घकालिक उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। जिस व्यक्ति के पास काला धन है, वह कम प्रोडक्शन में भी अधिक पैसा देकर चीजों को खरीद रहा है।
3.भारतीय अर्थव्यवस्था में तेल का अहम योगदान है। इराक के संकट ने इसे और बढ़ा दिया है। पिछले कुछ दिनों में तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरेल से 110 डॉलर प्रति बैरेल तक पहुंच गई है। यह हमारे देश में माल उत्पादन से लेकर माल की ढुलाई तक को प्रभावित कर रहा है। इराकी संकट यदि लंबे समय तक बना रहा तो वस्तुओं के दाम और बढ़ जाएंगे।
4.देश में आर्थिक अनिश्चितता का माहौल खत्म नहीं हुआ है। इराक संकट और सरकार के भविष्य में कड़े कदम उठाने के बयान इसको और बढ़ा रहे हैं। रेल का माल भाड़ा बढऩे जैसी खबरें आग में घी का काम कर रही हैं। जमाखोर सोच रहे हैं कि भाड़ा बढ़े या तेल महंगा हो उससे पहले माल जमा कर लो।
 क्या उपाय करती है सरकार
सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के माध्यम से महंगाई को रोकने के लिए दीर्घकालिक उपाय करती है। आरबीआई देश में महंगाई को रोकने के लिए देशभर के कमर्शियल बैंकों के द्वारा रुपए का सर्कुलेशन इस तरह से बनाकर रखता है कि महंगाई पर लगाम लगाई जा सके। जब भी बाजार में पूंजी की तरलता व अवेलेबिलिटी बढऩे लगती है तो आरबीआई निम्न उपाय करती है।
 1.सीआरआर : महंगाई बढऩे पर आरबीआई को लगता है कि बाजार में पैसे की सप्लाई कम की जाए तो वह सीआरआर बढ़ा देता है।
2.एसएलआर : एसएलआर यानी स्टैच्युटरी लिक्विडिटी रेशो का मतलब होता है कि बैंक को अपने कुल डिपॉजिट का कुछ हिस्सा आरबीआई एवं सरकार द्वारा जारी सिक्युरिटीज में निवेश करना होता है। जब महंगाई चरम पर होती है तो आरबीआई इसे बढ़ा देती है। इससे बाजार में पूंजी की तरलता कम हो जाती है।
3.रेपो एंड रिवर्स रेपो रेट : रेपो रेट वह रेट है जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों को लोन देता है। महंगाई बढ़ती है तो रेपो रेट को बढ़ा दिया जाता है, जिससे बैंकों को अधिक ब्याज दर पर लोन मिलता है। इससे कमर्शियल बैंक भी लोन पर ग्राहकों से इंटरेस्ट रेट अधिक लेते हैं और आम आदमी लोन लेना कम कर देता है। इससे पूंजी की सप्लाई रुक जाती है।
उपर्युक्त सभी सैधांतिक बाते हैं जिन्हें पिछली सरकारें भी करती रही हैं, नतीजा???  वैसे श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये जा रहे उपायों से इनकार नहीं किया जा सकता है, बशर्ते कि इसका परिणाम आम जनता तक पहुंचे और कृषि और पशुधन उत्पादकों को भी समुचित सुविधा-लाभ मिले. पिछले कई साल मॉनसून अच्छे रहे हैं, खाद्य उत्पादन भी अच्छा हुआ है साथ ही सरकारी आंकड़ों के अनुसार स्टॉक की भी कमी नहीं है. जरूरत है उन्हें समयानुसार अमल में लाने की, जिसमे राज्य सरकारों और ब्यापारियों का भी सहयोग अपेक्षित है. जब पूर्ण बहुमत प्राप्त सरकार है तो कड़े फैसले और उसके परिणाम का इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा.    

जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

Friday 20 June 2014

बरसाती बादल आ ही गए,

बरसाती बादल आ ही गए, ठंढक थोड़ी पहुंचा ही गए.
तपती धरती, झुलसाते पवन, ऊमस की थी घनघोर घुटन,
खाने पीने का होश नहीं, 'बिजली कट' और बढ़ाते चुभन
अब अम्बर को देख जरा, बिजली की चमक दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

सरकारें आती जाती है, बिजली भी आती जाती है,
वादों और सपनों की झोली,जनता को ही दिखलाती है
पर एक नियंता ऐसा भी, बस चमत्कार दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

अंकुरे अवनि से सस्य सुंड, खेतों में दिखते कृषक मुण्ड.
व्याकुल जो थे उस गर्मी में, पशुओं के देखो सजग झुण्ड,
चहुओर बजी अब शहनाई, कजरी के बोल सुना ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

Wednesday 18 June 2014

बारिश की झड़ी लगा दो आज...



नदियों को जोड़ भी सकते हैं,
धारा को मोड़ भी सकते हैं,
पर्वत को करते क्षत विक्षत,
सड़कों से जोड़ तो सकते हैं,
गर्मी में लाते शीत पवन,
सर्दी में जलती तप्त अगन,
बागों की हरियाली देखत,
पुलकित होता है तन औ मन.
सागर की छाती पर जहाज,
उसपर उतरे हैं यान आज,
बादल की लड़ी बनाकर के,
बारिश की झड़ी लगा दो आज!

Sunday 15 June 2014

अच्छे दिन की शुरुआत !

मॉनसून की कमी से निपटने के लिए किसानों को किस तरह की सहायता दी जाए? अनाज का वितरण कैसे मजबूत किया जाए ताकि महंगाई सिर न उठा सके? मार्केट में सप्लाई चेन कैसे मजबूत हो? पीएम नरेंद्र मोदी ने इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए शुक्रवार को अपने आवास पर कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, जल संसाधन मंत्री उमा भारती, रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार और खाद्य मंत्री राम विलास पासवान के साथ बैठक की। बैठक के सुझावों पर वित्त मंत्रालय के साथ फैसला लिया जाएगा। मोदी ने बैठक के बाद इस चर्चा को नतीजे देने वाली बताया। उन्होंने कहा नए आइडिया से खेती और किसानों को कैसे मजबूती दी जाए, इस पर बात हुई।
मंत्र-1: डीजल-बीज पर सब्सिडी
कृषि मंत्रालय ने स्थिति से निपटने के लिए के प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें 500 जिलों का ब्लूप्रिंट था। मंत्री बोले, डीजल और बीज खरीद पर सब्सिडी दी जाए, लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा जब सब्सिडी सीधे किसानों तक पहुंचे।
मंत्र-2: जमाखोरों की हर हफ्ते मॉनिटरिंग
बैठक में यह सुझाव भी आया कि मौजूदा कृषि उत्पादों को सही तरीके से भंडार में रखा जाए। सबकी यही राय थी कि राज्यों से कहा जाए कि वे जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें और इस बारे में अपनी रिपोर्ट हर सप्ताह भेजें।
मंत्र-3: थोक-खुदरा मूल्यों का अंतर घटे
मंत्रियों की आम राय थी कि मार्केट में डिमांड और सप्लाई के बीच एक चेक सिस्टम विकसित किया जाए। इससे खाद्य वस्तुओं की थोक और खुदरा कीमतों के बीच का अंतर को कम करने में सफलता मिलेगी।
मंत्र-4: एफसीआई का अनाज सस्ते दाम पर
अगर जरूरत पड़ी तो एफसीआई में चावल और गेहूं का जो भंडार है, उसको खुले बाजार में सस्ते दामों पर उतारा जाए। इससे जमाखोरी और कालाबाजारी पर अंकुश लगेगा।
खराब मॉनसून का यह होगा असर
कमजोर मॉनसून मक्का, धान, सोयाबीन और कपास जैसी खरीफ फसलों की उपज पर असर डालेगा। इससे खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ेगी। 2009 में ऐसे ही हालात होने पर दिसंबर की महंगाई दर 20 फीसदी तक पहुंच गई थी।
वेतन भोगी मध्यम वर्ग को टैक्स राहत 
मोदी सरकार के बजट में इनकम टैक्स छूट सीमा में बढ़ोतरी तय है। मगर यह कितनी होगी, यह केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की सिफारिशों पर निर्भर करता है। वित्त मंत्रालय ने सीबीटीसी से कहा है कि वह आकलन करके यह बताए कि इनकम टैक्स में कितनी छूट आम आदमी को दी जा सकती है। साथ ही कितनी छूट देने पर टैक्स कलेक्शन पर कितना असर होगा।
इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने हेल्थ प्रीमियम और होम लोन टैक्स छूट पर भी सीबीडीटी से सुझाव मांगे हैं। इसका मतलब साफ है कि वित्त मंत्रालय छूट देने के मूड में है, मगर इससे पहले नफा-नुकसान का आंकलन कर लेना चाहता है। फिलहाल इनकम छूट सीमा 2 लाख रुपये है।
कितना नुकसान : यूपीए सरकार के समय यशवंत सिन्हा वाली संसदीय समिति ने इस बात की सिफारिश की थी कि इनकम छूट सीमा 5 लाख रुपये तक कर दी जाए। सीबीडीटी के सूत्रों के अनुसार अगर इस वक्त इनकम टैक्स छूट 5 लाख रुपये कर दी जाए, तो सरकार को सीधे 60,000 से 70,000 करोड़ रुपये का घाटा होगा। इतना ज्यादा नुकसान फिलहाल मोदी उठाने के पक्ष में नहीं है।
बीच का रास्ता : वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस बारे में बीच का रास्ता निकालने पर विचार किया जा रहा है। इनकम टैक्स पर कुछ छूट देने पर सहमति बन रही है। साथ में हेल्थ प्रीमियम और होम लोन छूट को भी बढ़ाने की बात है। इससे आम आदमी को काफी राहत मिलेगी। पूर्व वित्त सचिव बी.डी. गुप्ता का कहना है कि जो परिस्थितियां हैं, उसमें किसी भी मद में ज्यादा राहत की गुंजाइश नहीं बनती है। सरकार को वित्तीय घाटे से लेकर व्यापार घाटे को ध्यान में रखते हुए फैसले लेने होंगे।
मोदी सरकार फिलहाल पूरा ध्यान बजट और महंगाई कंट्रोल करने पर लगाना चाहती है। लिहाजा एक जुलाई से नैचरल गैस के रेट बढ़ाने का फैसला टल सकता है। सूत्रों के अनुसार खुद मोदी चाहते हैं कि नैचरल गैस को 4.2 डॉलर प्रति यूनिट से बढाकर 8.4 डॉलर प्रति यूनिट करने की सिफारिशों का फिर आंकलन किया जाए और देखा जाए कि कितना बढ़ाना सही होगा।
ताकि ना हो विवाद
यदि नैचरल गैस की कीमत बढ़ी, तो इसका सीधा असर सीएनजी और पीएनजी पर ज्यादा पड़ेगा। साथ में कुछ असर एलपीजी पर भी पड़ सकता है। ऐसे में यदि सरकार को इनकी कीमतें बढ़ानी पड़ी तो महंगाई पर कंट्रोल करने का दावा और कोशिश बेकार साबित होगी।
दूसरा, बजट पेश होने से पहले यदि गैस की कीमतें बढ़ा दी गई तो विरोधियों को विवाद खड़ा करना आसान हो जाएगा। ऐसे में बजट में जितने राहत देने की प्लानिंग बनाई गई है, उस पर पानी फिर जाएगा। मोदी सरकार चाहती है कि बजट में जो राहत आम लोगों को दिया जाए, उसका पूरा क्रेडिट वह ले और लोगों को इस बात का अहसास हो कि यह सरकार कहती ही नहीं बल्कि करती भी है।
सहमति की कोशिश
गैस कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर आर्थिक मंत्रालयों में सहमति नहीं है। कॉमर्स, फूड एंड सप्लाई और पेट्रोलियम मिनिस्ट्री भी इसमें बढ़ोतरी नहीं चाहती है। यही कारण है कि पीएम ऑफिस चाहता है कि पहले इस पर मंत्रालयों के बीच सहमति बनाई जाए, ताकि बाद में इसके साइड अफेक्ट पर कोई राजनीति न हो। पीएमओ ने आर्थिक मंत्रालयों से कहा कि गैस कीमत बढ़ाने के मुद्दे पर मीटिंग कर सहमति बनाई जाए।
धीरे-धीरे बढ़े रेट
यूपीए सरकार ने गैस कीमत बढ़ाने के नाम पर रंगराजन कमिटी की इस सिफारिश को मान लिया था कि गैस की कीमत 4.2 डॉलर प्रति यूनिट से बढ़कर 8.4 डॉलर प्रति यूनिट कर दी जाए। यदि पीएमओ को एकदम गैस की कीमत को दोगुना कर देना तर्कसंगत नहीं लग रहा है। उसका यह भी मानना है कि गैस की कीमत क्यों न चरणबद्ध तरीके से बढ़ाई जाए। पहले इसे 6 डॉलर किया जाए, ताकि इससे महंगाई पर जो निगेटिव अफेक्ट होगा, उसको सहने और कम करने का वक्त भी मिल जाएगा।
सितंबर तक राहत
पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि गैस की कीमत में बढोतरी पर फैसला सितंबर तक लिए जाने पर सहमति बन रही है। तब तक सरकार महंगाई पर सही तरीके से कंट्रोल भी कर लेगी और बजट का अफेक्ट भी मार्केट और आम आदमी पर साफ हो जाएगा।
इसमे कोई दो राय नहीं कि श्री नरेंद्र मोदी सकारात्मक कदम उठाने की और बढ़ रहे हैं. कीमतें फ़िलहाल काबू में तो दीखती हैं. कुछेक चीजों के दाम उपलब्धता और मांग के अनुसार बढ़ते-घटते हैं. पर इसका मतलब यह नहीं कि सरकार की तरफ से यह बयान आए कि सोना न खरीदें, चीनी-प्याज खाना बंद कर दें. आदि आदि… जमाखोरों पर नजर रखना उचित है … देखना है कि ये सभी तर्क धरातल पर कितने सही उतरते हैं. आम जनता तो इंतज़ार कर ही रही है.
वैसे देश की आर्थिक सेहत को ठीक रखने के लिए कुछ कड़वे घूँट तो पीने ही पड़ेंगे. हमेशा मीठा खाने से मधुमेह होने की संभावना रहती है. सब्सिडी अच्छी चीज नहीं होती
दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन के साथ कूटनीतिक रिश्तों की पहल के साथ अपनी सेना को मजबूत बनाये रखने का संकल्प भी सराहनीय ही कहा जायेगा. – हम किसी को आँख नहीं दिखाएंगे पर आँख झुकाएँगे भी नहीं. बल्कि आँख में आँख डाल कर, आँख मिलाकर बात करेंगे, जय हिन्द!
-जवाहर लाल सिंह

रईशी भी कोई चीज होती है !

लखनवी नवाब के बारे में आपने सुना होगा – एक बार एक लखनवी नवाब पटना जंक्सन पर उतरे. लखनवी नवाब के लिबाश तो थे ही, मुंह में पान और हाथ में एक छड़ी…. उन्होंने एक कुली को बुलाया और अपना छड़ी पकड़ा कर बोले – “इसे लेकर चलो”. एक बिहारी को यह देख बर्दाश्त न हुआ. उसने भी एक कुली को बुलाया और अपना रेल का टिकट पकड़ा कर बोला – “इसे लेकर चलो. अमां उम्र हो गयी है, अब टिकट का भी भाड़ उठाया नही जाता हमसे” … लखनवी नवाब कुनमुनाये, पर क्या करते…
पहले गांव में जब अपने बेटे या बेटी का रिश्ता करने लोग निकलते थे तो बड़े ठाठ-बाठ के साथ… सुपर फाइन या ब्रासलेट धोती, सिल्क का कुरता चमड़े के जूते ..पर उनका भी इस्टाइल होता था.- कुर्ता पहनते न थे. कंधे पर रख लेते थे और जूते को भी दो-कन्नी वाली लकड़ी पर टांग कर चल देते थे. रिश्तेदारी वाले गांव में पहुँच कर किसी कुंए पर हाथ पैर धोते और कुर्ता-जूता पहन कर मेजबान के घर पहुँच गए.
बहुत सारे मेहमान खाना के एक हिस्से को छोड़ देते थे – इसका मतलब यह होता था कि उनका पेट पूरी तरह भर गया है मेजमान भी समझ जाते थे. पूरा खाने का मतलब यह होता था कि शायद वे और खा सकते थे. दरभंगा, मधुबनी में तो अब भी रिवाज है, किसी किसी समारोह में भर पेट खाना खिलाने के बाद रसगुल्ला खिलाने का कम्पटीसन होता है. रसगुल्ला तब तक खिलाया जाता है जब तक कि खानेवाला उल्टी न कर दे.या उसकी तबीयत बेहद ख़राब न हो जाय. यहाँ पर रसगुल्ला खाने के के लिए प्रतियोगिता नगद के रूप में रक्खी जाती है. जैसे २० रसगुल्ला खा लेने के बाद प्रति रसगुल्ला ५० रुपये फिर सौ रुपये पारितोषिक के रूप में मिलेंगे.
तब लोटा- गिलास में पानी दिया जाता था …लोटे से पानी को गिलास में ढालते थे और तब पीते थे. हाथ धोने के लिए लोटे के पानी का इस्तेमाल होता था और बाहर कहीं नाली पर हाथ धोने की परम्परा थी.
समय बदल गया है पर रईशी आज भी बरक़रार है.- आज भी लोग खाना छोड़ते हैं, चाय के कप को अपने टेबुल पर पीना और वहीं छोड़ देना यह सब हमारी आदत में है, फिर चाहे चाय का प्याला हमारे ही हाथ से लग कर गिर न जाय और टेबुल को गन्दा न कर दे.
कार्यस्थल पर भी बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो अपनी रईशी की छाप अवश्य छोड़ते हैं.. जैसे मान लीजिये, हमारे वर्मा जी आज नाश्ता के लिए बाजार से इडली खरीदकर लाये और नाश्ते के समय पैंट्री के चम्मच से इडली को खाया ..अब पैंट्री के चम्मच को धोने की बात तो दूर वह चम्मच उनके टेबुल पर ही पड़ा रहेगा …जिसको जरूरत हो ले जाय….अगर और भी रईशी दिखानी है तो इडली का कुछ हिस्सा और चटनी भी वही छोड़ देंगे, जिसे गन्दा लगेगा वही हटाएगा … घर में तो पत्नी ही साफ़ करती है, तो घर की आदत को बाहर में कैसे बदला जा सकता है.
एक बार जब प्याज 60 से 80 रुपये प्रति किलो हो गया था. सभी के मुंह पर प्याज के दाम की ही चर्चा थी.
वर्मा जी बड़े अनजाने से बनकर पूछने लगे – बाजार में क्या रेट चल रहा है, प्याज का ? ..क्या आप प्याज नहीं खरीदते ?
अरे भाई मैं तो एक बार में एक बोरा खरीद लेता हूँ, सस्ता भी पड़ता है और रोज रोज के भाव पूछने की जरूरत भी नहीं पड़ती.
एक साहब हैं कपडे के शौक़ीन – उनके कपडे को आप ध्यान से देखिये या प्रशंशा के कुछ शब्द कह दीजिये …बस वे कपडे के ब्रांड नेम से लेकर उसकी वास्तविक कीमत इस तरह बताएँगे जैसे वे खरीददारी की रशीद देखकर बोल रहे हैं.
आज कल तो हर सब्जी हर सीजन में उपलब्ध है. पर एक समय जब केवल सीजन के अनुसार ही सब्जियां बाजार में आती थी…. मेरे एक स्वर्गीय मामा जी सबसे महंगी durlabh सब्जी ही खरीदते थे. और अपने मित्रों के बीच चर्चा भी करते थे. .. अरे लखन – बाजार में कटहल आ गया है, खरीदा कि नहीं अभी तक?
हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र बाबू के बारे में कहा जाता है कि वे हर समय खाने के साथ आम अवश्य खाते थे.और लाल बहादुर शास्त्री सलाद के शौक़ीन थे. इन सब के साथ एक पंक्ति यही कही जा सकती है –रईशी भी कोई चीज है.
ऐसे ही बहुत सारे उदहारण होंगे आपलोगों के पास भी …मैंने कुछ रक्खे हैं आप भी इसमे अपना योगदान तो कर ही सकते हैं.

Thursday 12 June 2014

गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ऐ-जंग मे..

गिरते हैं शह सवार ही मैदान ऐ जंग मे, वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनो के बल चले, – अलामा इक़बाल का यह शेर आज भी प्रासंगिक है
26 नवंबर 2012 को जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ, तो लोगों को इस पार्टी से काफी आशाएं थीं. इंडिया अगेस्ट करप्शन के बैनर तले जब अरविंद केजरीवाल और उनके राजनीतिक गुरु माने जाने वाले अन्ना हजारे ने अपना आंदोलन शुरु किया था, तो ऐसा प्रतीत हुआ था कि अब तो बस भ्रष्टाचार भारत में कुछ ही दिनों की मेहमान है.
अन्ना के आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल के नायक जैसा चमकने और खलनायक की स्थिति का लेखा-जोखा आज जरूरी लगता है. अरविंद केजरीवाल ने यह फैसला किया कि वे एक राजनीतिक दल बनायेंगे और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने और उसे विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए चुनाव भी लड़ेंगे. अरविंद केजरीवाल को इस निर्णय पर काफी प्रशंसा भी मिली और उनके साथ समाज के विभिन्न वर्गों के लोग जुटते चले गये. जिनमें वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, ब्यूरोक्रेट्स ,कवि और सिनेस्टार भी शामिल थे.
उनकी पार्टी का गठन हुए मात्र एक वर्ष हुए थे लेकिन उनकी पार्टी ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की. भाजपा को 32 सीटें मिलीं थीं लेकिन वह बहुमत के लिए पर्याप्त नहीं था. अंतत: आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से जिसके पास आठ विधायक थे सरकार बनायी. सरकार बनाने से पहले अरविंद केजरीवाल ने जनता से पूछा कि क्या उन्हें कांग्रेस से समर्थन लेना चाहिए. उस वक्त उन्हें जनता ने सरकार बनाने की इजाजत दे दी थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जनता को राहत पहुंचाने के लिए काम शुरू किया.
जनता को पानी-बिजली जैसी सुविधाएं मुहैया कराना शुरू किया. लेकिन सत्ता पर पहुंचते ही, ऐसा लगा मानों आम आदमी पार्टी शासन चलाना नहीं जानती. जिन उद्देश्यों को लेकर आम आदमी चली थी, उनकी पूर्ति के लिए जब उन्हें सत्ता मिली, तो ऐसा प्रतीत होने लगा कि वे सरकार को कुर्बान कर देना चाहते हैं. भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए जिस लोकपाल कानून को बनाने के लिए आम आदमी पार्टी ने आंदोलन छेड़ा था, उसी लोकपाल कानून को अपने मनमुताबिक सीमित अवधि में बनाने की जिद को लेकर अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. आम आदमी पार्टी के लिए यह संभवत: टर्निग प्वाइंट था.
दिल्ली की सरकार को कुर्बान करने से जनता में यह संदेश चला गया कि आम आदमी पार्टी को काम करने का मौका मिला, लेकिन उसने काम करने की बजाय सरकार को कुर्बान कर दिया. उनके विरोधियों ने भी इस बात का खूब फायदा उठाया. भाजपा-कांग्रेस दोनों ने ही आम आदमी पार्टी पर यह आरोप लगाया कि वह केवल बातें बनातीं है उसे जनता के हित से कुछ लेना-देना नहीं है. संभवत: यही बात जनता के मन में घर कर गयी, जिसका असर लोकसभा चुनाव में साफ दिखा. नरेंद्र मोदी की लहर में आम आदमी पार्टी कुछ ऐसी उड़ी कि शीला को पटखनी देने वाले अरविंद केजरवील बनारस में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.
उम्मीदों से सराबोर आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा प्रत्याशी खड़े किये लेकिन उनके मात्र चार उम्मीदवार चुनाव जीत पाये. अमेठी में राहुल को पटखनी देने के लिए कुमार विश्वास ने मेहनत तो बहुत की, लेकिन वह काम नहीं आया. लोकसभा चुनाव के बाद तो आम आदमी पार्टी की हालत और भी खराब हो गयी. उनकी समर्पित कार्यकर्ता शाजिया इल्मी ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि यहां कुछ चुनिंदा लोग निर्णय करते हैं और अरविंद को उन्होंने जकड़ कर रखा है. पार्टी अब लोकतांत्रिक नहीं रही. पार्टी में अंतरविरोध शुरू हो गया है.
सभी एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. केजरीवाल को भी अपनी जिद के कारण जेल जाना पड़ा. पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसौदिया ने भी पार्टी प्रवक्ता योगेंद्र यादव की भूमिका पर सवाल उठाये हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि यादव पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं. पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता विनोद कुमार बिन्नी भी पार्टी को छोड़ चुके हैं और अब तक पार्टी के घोर विरोधी हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी दिशाविहीन सी प्रतीत होती है. समझ में नहीं आ रहा है कि जिन उद्देश्यों को लेकर पार्टी चली थी वह कहां गुम हो गये हैं. आज कार्यकारिणी की बैठक है, लेकिन ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता कि आम आदमी पार्टी(आप) अपनी लय में वापस आ पायेगी?
इधर योगेन्द्र यादव और मनीष सिसोदिया के चिट्ठियों ने आम आदमी पार्टी की बड़ी टूट की ओर इशारा किया तो विरोधियों ने पार्टी के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए . हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी से कई बड़े नेताओं की विदाई हुई है – शाजिया इल्मी, कैप्टन गोपीनाथ, अश्विनी उपाध्याय, विनोद कुमार बिन्नी जैसे नेता आप का साथ छोड़ चुके हैं. अब योगेंद्र यादव ने भी बगावत की सुगबुगाहट शुरू कर दी है. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के सामने किसी की नहीं चलती है . क्या आम आदमी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बात करना सिर्फ दिखावा है. और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या केजरीवाल की वजह से आम आदमी पार्टी खत्म होती जा रही है?
योगेंद्र यादव के अलावा आम आदमी पार्टी को एक और झटका दिया हरियाणा प्रदेश संयोजक नवीन जयहिंद ने. नवीन जयहिंद ने भी पीएसी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफ़ा दे दिया.
आम आदमी पार्टी का सोशल मीडिया और आई-टी सँभालने वाले अंकित लाल को लगता है कि सब कुछ निराशाजनक नहीं है. वो कहते हैं कि आम आदमी पार्टी का सफ़र तो बस शुरू ही हुआ है.
अंकित लाल कहते हैं, “भाजपा को ही ले लीजिए. कितने साल लग गए उन्हें पूर्ण बहुमत हासिल करने में. सब कुछ निराशाजनक नहीं है. हाँ, हमारे कुछ फ़ैसले ग़लत रहे. मगर सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है. हम ग़लतियों से ही तो सीखेंगे. हमारी तो अभी शुरुआत ही हुई है और सफ़र काफी लंबा है.”
अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के दूसरे नेताओं ने पिछले दिनों हुई ग़लतियों के लिए माफ़ी ज़रूर मांगी है. मगर सपनों और उम्मीदों को लेकर जुड़े उन हज़ारों स्वयंसेवकों को लगता है कि पार्टी को अब अपना आगे का सफ़र एक बार फिर से शुरू करना पड़ेगा. हालांकि पंजाब में लोकसभा चुनाव में मिली सफलता ने उनमें एक नई उम्मीद जगाई है.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में युवा इंजीनियर अनिल सिंह से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार सोनी सोरी के लिए प्रचार में लगे हुए थे. अनिल सिंह पेशे से सिविल इंजीनियर हैं और मध्य प्रदेश सरकार के लोक निर्माण विभाग में काम करते थे. आम आदमी पार्टी की हवा जब चली तो उन्होंने भी अपनी नौकरी छोड़ी और आम आदमी पार्टी के साथ हो लिए. आज उनका मन भी उदास है.
अनिल कहते हैं, “मुझे तकलीफ़ होती है कि हमारे फ़ैसले ग़लत रहे. मैं तो बहुत ही मायूस हूँ क्योंकि अपनी नौकरी, अपना भविष्य सब कुछ दांव पर लगाकर मैं आम आदमी पार्टी में शामिल हुआ. आज खुद को दिशाविहीन पाता हूँ. एक तो आंदोलन के वक़्त हमने हड़बड़ाहट की पार्टी बनाने की. चलिए, पार्टी बना भी ली तो लोकसभा चुनाव लड़ने में हड़बड़ाहट की. मैं तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि हम कहाँ पर हैं.”
आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रही शाज़िया इल्मी ने पार्टी छोड़ते समय कहा कि
“देश के लिए काम करने के लिए कुछ शानदार मौके मिले. ऐसे मौक़ों को हमने ग़लत फैसलों की वजह से गंवा दिया. और यह फैसले सिर्फ तीन-चार लोगों के हैं. किसी से कोई सलाह भी नहीं ली गई. ऐसे भी मौके आए जब मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद से बात तक नहीं हो पाती थी.
शाज़िया के मुताबिक़, “चाहे सरकार बनाने की बात हो या फिर छोड़ने की. चाहे वह लोकसभा की 430 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला हो या फिर अरविंद का बनारस से चुनाव लड़ने का फ़ैसला हो, हम लोगों से कोई चर्चा तक नहीं हुई, जबकि हम पहले दिन से साथ रहे. इन फ़ैसलों से सिर्फ दो-तीन लोगों का ही सरोकार रहा.”
“कंसीस्टेंसी इज द वर्चु ऑफ़ एन ऐस”, पटना विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी के अध्यापक आर के सिन्हा अकसर कहा करते थे. जीवन के किसी और क्षेत्र से ज़्यादा यह बात राजनीति पर लागू होती है.
अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर ‘इन्कांसिस्टेंसी’ के आरोप पिछले दिनों के फैसलों के चलते जब लगाए जा रहे हैं तो यह वाक्य याद कर लिया जाना चाहिए. ताज्जुब है कि किसी और दल पर यह आरोप नहीं लगता.
राजनीतिक चिंतन
कार्रवाई और चिंतन, राजनीति में दोनों ही चाहिए. कोई राजनीतिक दल, जो हरकत में न दिखाई दे, जनता के चित्त से उतर जाता है. वामपंथी दलों का हश्र इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है. कांग्रेस पार्टी की निष्क्रियता उसकी पराजय का एक बड़ा कारण है.
स्थिर पड़े हुए राजनीति के जल में आम आदमी पार्टी ने हलचल पैदा कर दी और जनता ने इसका स्वागत किया. उन्होंने राजनीति को पार्टी दफ्तरों के बन्द षड्यंत्रकारी कमरों से बाहर लाकर गली मोहल्ले की आम फ़हम कार्रवाई बना दिया.
फिलहाल योगेन्द्र यादव और नविन जयहिंद का इस्तीफ़ा नामंजूर हुआ है दोनों में सुलह हो गयी है शाजिया इल्मी को मनाने की कोशिशें जारी है. आगे और भी अच्छी खबर मिले इसकी प्रतीक्षा है.
अंत में यही कहना चाहूँगा कि राजनीति सरल चीज नहीं है. केवल इमानदारी का तमगा लगाने से कुछ दिनों तक जनता के दिल में जगह तो बनाया जा सकता है, पर धरातल पर अपनी मजबूत पकड़ बनाये रखने के लिए गहन चिंतन, मनन, और विचार विमर्श की जरूरत है. आर. एस. एस. की तरह आम आदमी के भी समर्पित कार्यकर्ता तैयार करने होंगे. आपसी मतभेद दूर करने होंगे. राजनीति और खेल में हार जीत तो होती रहती है. हार को स्वीकार कर उससे सीखने की जरूरत है और उसका सबसे बड़ा उदाहरण है भाजपा, आर एस एस और मोदी जैसा नेता. अपने अहम से बाहर निकलना होगा.
अभी भी समय है पार्टी के शीर्षस्थ नेता अपना अहम त्याग सबको साथ लेकर चलें औ आगे के चुनाव की तैयारी करें साथ ही आम जन से सरोकार रखने वाले मुद्दों को उचित मंच पर उठाते रहें. चार सांसद भी आगे अपने मजबूत आवाज उठाने में कामयाब होते हैं, अपने क्षेत्र और आम आदमी का भला कर सकते हैं. उत्तर प्रदेश, दिल्ली और दूसरे राज्यों मे कानून ब्यवस्था, बिजली और पानी की समस्या ज्वलंत मुद्दा है. फ़िलहाल मोदी सरकार से जनता को बहुत कुछ उम्मीदें है अगर जनता के हित में फैसले लिए जाते हैं, राजनीति साफ़ सुथरी होती है, तब भी आम आदमी पार्टी का उद्देश्य तो पूरा हो रहा है न? सकारात्मक मुद्दे पर सहयोग का रुख रखते हुए अपनी रणनीति बनाते रहें और सभी मिलकर साथ चलें, तभी उद्देश्य की प्राप्ति होगी अन्यथा भाजपा या कांग्रेस जेठानी या देवरानी की सरकार से ही जनता को संतोष करना पड़ेगा. जय हिन्द! जय भारत!

जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday 8 June 2014

मेरा ब्लड ग्रुप?... याद नहीं है! (लघुकथा)

एक अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग की आप बीती---उनके ही मुख से-
"मेरे दो लडके हैं, दोनों एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का कारोबार करते हैं.
दो लड़कियां विदेश में हैं, दामाद वहीं सेटल हो गए हैं.
मेरा एक भगीना बड़े अस्पताल में डॉक्टर है ...मुझे उसका टेलीफोन नंबर नहीं मिल रहा ..आप पताकर बताएँगे क्या?
आज मेरे घाव का ओपेरेसन होनेवाला है. मेरा लड़का आयेगा ...ओपेरेसन के कागजात पर हस्ताक्षर करने."
लड़का आया भी और हस्ताक्षर कर चुपचाप चला गया. मैंने महसूस किया दोनों में कोई विशेष बात चीत नहीं हुई .. सामान्य शिष्टाचार भी नहीं....
ये मेरा बड़ा लड़का था - एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी में चीफ कमर्शियल ऑफिसर है ...उन्होंने दुहराया, इसलिए कि शायद मैंने सुना नहीं.
बुजुर्ग व्यक्ति मेरे द्वारा खरीदे गए अखबार के हरेक पन्ने की, हरेक पंक्तियों को बड़े गौर से पढ़ते हैं. शुबह से रात ग्यारह बजे तक या तो मोबाइल पर बात करते रहते हैं, या पेपर में सिर घुंसाये रहते हैं. 
तीन चार दिनों के अन्दर कोई उनसे मिलने नहीं आया - वे कहते हैं - "मैं ही सबको मना कर रखता हूँ  -- क्या करेगा यहाँ आकर ...अपना वक्त खराब करेगा. सभी अपने अपने काम में ब्यस्त हैं!"
ओपेरेसन में ले जाने से पहले नर्स ने पूछा- "बाबा आपका ब्लड ग्रुप क्या है?"
"ब्लड ग्रुप ?... ठीक याद तो नहीं ... कितना चीज याद रक्खेगा ..."
- जवाहर लाल सिंह 

Monday 2 June 2014

बदायूं के आंसू....

बदायूं में दो नाबालिग लड़कियों से गैंगरेप कर उनका शव पेड़ पर टांगने की दिल दहला देने वाली वारदात के पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही राज्य सरकार ने मामले की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश कर दी है। पीड़ित परिवार ने राज्य सरकार से मुआवजा लेने से भी इनकार कर दिया है। वहीं, इस मामले पर सियासत भी जारी है। शनिवार को पीड़ित परिवार से मुलाकात करने पहुंचे राहुल गांधी ने कहा कि जांच से ज्यादा जरूरी है कि पीड़ित को न्याय मिले। उन्हें राज्य सरकार की ओर से की गई मुआवजे की घोषणा पर भी सवाल उठाया और कहा कि पैसों से इज्जत वापस नहीं मिल जाती है। 
इस वारदात के बाद किसी भी बड़े और राष्ट्रीय नेता का यह पहला दौरा कहा जा सकता है l
राहुल पीड़ित परिजन से करीब 25 मिनट तक बातचीत करने के बाद उस बाग के पेड़ के पास भी गए, जिस पर दोनों लड़कियों के शव फांसी पर लटकते पाए गए थे। राहुल के साथ प्रदेश कांग्रेस प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शोभा ओझा और पार्टी प्रांतीय अध्यक्ष निर्मल खत्री भी थे।
गौरतलब है कि उसहैत थाना क्षेत्र में मंगलवार की रात शौच के लिए गई 14 तथा 15 साल की चचेरी बहनों के शव अगले दिन सुबह एक बाग में पेड़ पर फांसी से लटकते पाए गए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके साथ सामूहिक बलात्कार के बाद फांसी पर चढ़ाकर हत्या किए जाने की पुष्टि हुई थी।
इस मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। राज्य सरकार ने शुक्रवार को कहा कि मामले की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई कराई जाएगी।
गिरफ्तार किए आरोपियों में से तीन एक ही परिवार के हैं। शुक्रवार को इस मामले में लापरवाही बरतने वाले दो पुलिसवालों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। दोनों पुलिसवालों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। राज्य सरकार ने इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में करने की बात कही थी। शुक्रवार को ही इस घटना के बाद आजमगढ़ में भी एक नाबालिग के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया।
इस बीच यह मामला संयुक्‍त राष्‍ट्र में भी उठा है और यूएन ने इसे भयानक अपराध करार दिया है।
संयुक्त राष्ट्र ने इस वारदात को भयानक अपराध करार दिया है। उसने जोर देकर कहा है कि कानून के तहत सभी नागरिकों की रक्षा होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के प्रवक्ता स्टीफन डुआरिक ने कहा कि दो लड़कियों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या एक भयानक अपराध है। इस तरह की घटनाओं पर कहने के लिए कुछ शब्द नहीं मिल रहा। निश्चित तौर पर यह एक भयानक घटना है। उन्होंने कहा कि हर पुरुष, हर महिला की कानून द्वारा रक्षा होनी चाहिए।
एक महिला पत्रकार दवरा पूछे गए सवाल पर अखिलेश यादव की असंयमित प्रतिक्रिया भी चर्चा  में रही. - आप तो सुरक्षित हैं ना, आपको कोई खतरा तो नहीं। एक महिला से ऐसा कहने वाले अखिलेश यादव मानसिक रोगी हैं, उनका इस्तीफा होना चाहिए। - सुरभि गंडोत्रा, न्यूयॉर्क से अपनी अपनी प्रतिक्रिया में कहा l
उप्र की सरकार से आप और क्या उम्मीदें कर सकते हैं, जहां दुष्कर्म पर नेताजीकहते हैं, ‘लड़कों से अक्सर गलतियां हो जाती हैं। - स्वप्निल सक्सेना, एनसीआर
प्रधानमंत्री मोदी ने प्रचार के दौरान कहा था, मंदिरों के निर्माण से पहले शौचालय बनाए जाने चाहिए। तो ठीक है, अब देश आपके किए वादे पूरा होने का इंतजार कर रहा है। - मौमिता चौधरी, गुडग़ांव l  
ज्ञातव्य है कि दोनों बच्चियां रात्रिकाल में शौच के लिए ही बाहर गयी थी.
राष्‍ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग ने भी मामले का संज्ञान लिया है। आयोग की सदस्‍य निर्मला सामंत ने कहा कि यह दिल दहला देने वाली घटना है। शुक्रवार को राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग का एक जांच दल मामले की जांच करने घटनास्थल पर जाएगा।
वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने गुरुवार को दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक जांच टीम बदायूं भेजने का निर्णय लिया है, जो जमीनी हकीकत का पता लगाएगी।
मृतक लड़कियों के पिता ने पुलिस की जांच पर सवाल खड़े करते हुए सीबीआई जांच की मांग की है। मृतक के पिता सोहन लाल का आरोप है कि पुलिस सही सही जांच करने के बजाय उन पर ही समझौता करने का दबाव डाल रही है और धमका रही है। इसके अलावा घर से बाहर भी निकलने नहीं दे रही है।  
पुलिस पर भी है आरोप - यह घटना बदायूं जिले के उसहैत के कटरा सआदतगंज गांव की है। जिन दो नाबालिगों से कथित तौर पर गैंगरेप कर उनकी हत्‍या की गई है, वे चचेरी बहनें हैं। बताया जा रहा है कि दोनों बहनें सोमवार से ही घर से लापता थीं। हत्‍या और कथित गैंगरेप की इस वारदात में सिपाही समेत चार लोग शामिल बताए जा रहे हैं। दोनों छात्राओं की हत्‍या के बाद अपराधियों ने शवों को गांव में ही एक पेड़ पर लटका दिया था। परिजनों का आरोप है कि दोनों बच्चियों की गैंगरेप के बाद हत्‍या की गई है। उनके मुताबिक, वे लड़कियों के गुम होने की शिकायत लेकर कटरा चौकी पहुंचे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें भगा दिया। काफी देर बाद सिपाही सर्वेश यादव ने बताया कि दोनों लड़कियां बाग में फांसी से लटकी हुई हैं।
 पुलिस अधीक्षक मानसिंह चौहान के मुताबिक, 14 और 15 साल की ये दो नाबालिग छात्राएं मंगलवार रात शौच के लिए गांव के बाहर गई थीं। दोनों बहनों के घर नहीं लौटने पर परिजनों ने रातभर उनकी तलाश की। बुधवार सुबह उनके शव गांव के एक बाग में एक पेड़ से लटके मिले। चौहान ने कहा कि गैंगरेप होने की पुष्टि पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही हो सकेगी।
पुलिस की लापरवाही और लड़कियों के प्रति हुई अमानवीय घटना को लेकर प्रदेश भर के सामाजिक संगठनों के विरोध के सुर तेज हो गए हैं। कई महिला संगठनों ने राज्य सरकार और पुलिस महकमे को गुरुवार तक का वक्‍त देते हुए कहा है कि इस मामले के सभी आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर उन्हें कठोर सजा दी जाए नहीं तो शुक्रवार से प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा।
उसके बाद मायावती, रामविलास पासवान आदि बड़े नेता घटना स्थल और पीड़ित परिवार जनों से से मिल रहे हैं, राज्य सरकार को दोषी बता रहे हैं ... पर आगे से ऐसी घटनाएँ न हों इसके लिए ठोस कदम उठाने की पहल तक नहीं करते. इसके बाद लगता है कि इस तरह की घटनाओं की बाढ़ सी आ गयी है. पता नहीं ये घटनाएँ नयी सरकार के पदारूढ़ होने का इंतजार कर रही थी, या मीडिया के कैमरों को तब फुर्सत नहीं थी. अब सभी कैमरे और नेताओं की नजरें बदायूं और उत्तर परदेश की तरफ मुडी हुई है.
सवाल फिर यही उठता है की ऐसी वारदातें होती हैं और होती ही रहेगी l न तो इन पर रोक लगाने वाला है न ही दोषियों को समय सीमा के अनदर सजा.. हाँ कुछ सामाजिक संगठन आगे आएंगे l  राजनीतिक दल के नेता आएंगे आंसूं पोछने का नाटक करेंगे... मीडिया में खबरें चलेंगी. फिर सब कुछ वही सब... दामिनी कांड को हुए डेढ़ साल हो गए अभी तक किसी को सजा नहीं हुई l घटनाएँ रोज घाट रही हैं l कोई कोई घटना मीडिया के जोर से जोर पकड़ लेती हैं और कुछ दिनों तक चरचा में रहती है. बस और क्या?  
अच्छे दिन आ गए है! क्या उम्मीद की जाय, केंद्र की नयी सरकार इस पर संज्ञान लेगी और तत्काल कुछ फैसले लेगी ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो साथ ही हम सब मिलकर एक बार क्या सोचेंगें कि इस तरह की घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है?
इस तरह की घटना में ज्यादातर निम्न या निम्न मध्यम वर्ग की महिलाएं/लड़कियां ही शिकार होती हैं, और ऐसी घटनाओं में निम्न मध्यम वर्ग के लोग ही लिप्त पाए गए हैं, जिनका या तो दबंगई है या उन्हें कानून का डर नहीं है l डर हो भी तो कैसे कानून तो अंधा है l अंधा है तो धीरे ही चलेगा और किसी के बताये गए रस्ते से ही चलेगा l जनता उबलती है, सडकों पर उतरती है, प्रदर्शन करती है l फिर उस प्रदर्शन को कई नेता हाइजैक कर अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते हैं l     
भयंकर बिजली कटौती की समस्या से जूझता पूरा उत्तर प्रदेश और इस तरह की शर्मशार करनेवाली घटनाओं से उ. प्र. की सरकार कुछ भी सबक लेगी, ऐसा तो लगता नहीं है, क्योंकि जनता ने उन्हें पांच साल के लिए चुना है l पांच साल तक तो वे सुरक्षित हैं ही l

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर