Monday 5 May 2014

ये शीशे के घर वाले

वक्त’ फिल्म का मशहूर डायलाग – ‘जिनके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते’ ..पर आज वही हो रहा है …शुरुआत किससे करूँ? …अभी ताजा मामला दिग्विजय सिंह का है … अपने बयानों से चर्चा में रहनेवाले दिग्विजय सिंह का वयक्तिगत जीवन पारदर्शी हो गया तो भी उन्होंने अपना मुंह नहीं छुपाया, बल्कि शान से स्वीकारते हुए मोदी जी पर निशाना चला ही दिया – ‘मैं विधुर हूं और अगर मैं दोबारा शादी करता हूं, तो डियर फेंकू की तरह नहीं छिपाऊंगा।’
इधर दिग्विजय सिंह और अमृता राय का किस्सा वायरल हुआ उधर अमृता के वर्तमान पति जो IIMC के प्रोफ़ेसर जो एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, अमृता राय की जिन्दगी से कभी जुड़े थे, उसकी मान मर्यादा को कितनी ठेस पहुँच रही है, इसका अंदाजा शायद इस कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह और अमृता राय को भी नहीं है !!
आनंद प्रधान जो मीडिया जगत की एक जानी मानी हस्ती हैं, खुद उन्होंने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्ट लिखकर अपनी बात रखीं है कि……((((((मैं एक बड़ी मुश्किल और तकलीफ से गुजर रहा हूँ. यह मेरे लिए परीक्षा की घडी है. मैं और अमृता लम्बे समय से अलग रह रहे हैं और परस्पर सहमति से तलाक के लिए आवेदन किया हुआ है. एक कानूनी प्रक्रिया है, जो समय लेती है. लेकिन हमारे बीच सम्बन्ध बहुत पहले से ही खत्म हो चुके हैं. अलग होने के बाद से अमृता अपने भविष्य के जीवन के बारे में कोई भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं और मैं उनका सम्मान करता हूँ. उन्हें भविष्य के जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं !!!!
मैं जानता हूँ कि मेरे बहुतेरे मित्र, शुभचिंतक, विद्यार्थी और सहकर्मी मेरे लिए उदास और दुखी हैं, लेकिन मुझे यह भी मालूम है कि वे मेरे साथ खड़े हैं. मुझे विश्वास है कि मैं इस मुश्किल से निकल आऊंगा मुझे उम्मीद है कि आप सभी मेरी निजता (प्राइवेसी) का सम्मान करेंगे शायद ऐसे ही मौकों पर दोस्त की पहचान होती है. उन्हें आभार कहना ज्यादती होगी,
लेकिन जो लोग स्त्री-पुरुष के संबंधों की बारीकियों और स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व और व्यक्तित्व को सामंती और पित्रसत्तात्मक सोच से बाहर देखने के लिए तैयार नहीं हैं, उसे संपत्ति और बच्चा पैदा करने की मशीन से ज्यादा नहीं मानते हैं और उसकी गरिमा का सम्मान नहीं करते, उनके लिए यह चटखारे लेने, मजाक उड़ाने, कीचड़ उछालने और निजी हमले करने का मौका है लेकिन वे यही जानते हैं उनकी सोच और राजनीति की यही सीमा है. उनसे इससे ज्यादा की अपेक्षा भी नहीं)))))))))
मौका मिला तो उमा भारती भी कहाँ चूकनेवाली थी – पत्नी की चिता तो ठंढी होने देते दिग्विजय… बेचारी भूल गयीं कि उनका नाम भी कभी गोविंदाचार्य से जुड़ा था, तब वे कितनी उद्वेलित थीं.
दिग्विजय सिंह की छोटे भाई की दूसरी पत्नी रुबीना ने भी अपना गुस्सा निकाला- रूबीना कहती हैं, ‘मैं दिग्विजय सिंह से नाराज हूं क्योंकि उन्होंने उनके छोटे भाई से मेरी शादी का विरोध किया था। इसकी वजहें उन्होंने ये बताई थीं कि मैं लक्ष्मण सिंह से 13 साल छोटी हूं और राजपूत भी नहीं हूं।’ अपने ट्वीट्स में रूबीना ने दावा किया है कि वह लक्ष्मण सिंह की पत्नी हैं। जबकि इनकी भी लक्ष्मण सिंह शादी का किस्सा कम रोचक नहीं है. ख़बरों के अनुसार छोटे भाई की पत्नी से दिग्विजय सिंह के संबंध शुरू से ही तल्ख रहे हैं। रूबीना शर्मा सिंह मूल रूप से कश्मीर की रहने वाली हैं। लक्ष्मण सिंह की पहली पत्नी जागृति सिंह की कैंसर के इलाज के दौरान ही लक्षमण सिंह की रुबीना से हॉस्पिटल में ही भेंट हुई थी वह भी अपनी माँ का इलाज करा रही थी और लक्ष्मण सिंह अपनी पत्नी का.एक ही अस्पताल में. पत्नी जाग्रति सिंह की मौत के बाद रूबीना से उनका प्यार परवान चढ़ा था। बताया जाता है कि दिग्विजय सिंह ने इसका काफी विरोध किया था और इसके कुछ समय बाद लक्ष्मण सिंह बीजेपी में शामिल हो गए थे। बाद में वह बीजेपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी जीते थे।
दिग्विजय सिंह कांग्रेस के महासचिव हैं और अपने विवादस्पद बयानों के लिए चर्चित रहे हैं, चुनाव के माहौल में कांग्रेस पर तोहमत लगाने का एक और मौका मिला तो सोसल मीडिया पीछे कैसे रहता …सभी ने उनके अन्तरंग फोटो को खूब प्रचारित-प्रसारित किया जैसे कि इनपर चटखारे लेनेवाले, इल्जाम लगानेवाले सभी सावित्री और सत्यवान के अनुयायी हैं.
काफी पहले आचार्य रजनीश ने कहा था – कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष यह कहता है कि किसी एक पुरुष या स्त्री से प्यार करता है, तो वह झूठ बोल रहा है… यह कुदरती चीज है, जिसे किसी ने नहीं रोक पाया है. हाँ सामाजिक और धार्मिक मर्यादाएं हमें जरूर एकनिष्ठा के सूत्र में बांधे रखने का काम करती है. आज सामाजिक और धार्मिक मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं इसलिए भी इस तरह की घटनाएँ आम होने लगी हैं.
अब चर्चा चली है, तो बहुत सारे चेहरे बेनकाब हो चुके हैं. नारायण दत्त तिवारी का उज्ज्वला शर्मा के साथ अब ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के साथ रहेंगी. कानूनी डिग्री तो मिल ही चुकी है.
अभिषेक मनु सिंघवी का एक महिला वकील के साथ आपत्तिजनक स्थिति वाला किस्सा जो दो साल पहले ही वायरल हुआ था…. और भी बहुत सारे नेता हैं, जो अपने विवाहेतर संबंधों के लिए कुख्यात रहे. अभी हाल का ही मामला चंद्रमोहन उर्फ़ चाँद मुहम्मद और अनुराधा बाली उर्फ़ फिजा का किस्सा, गोपाल कांदा और और एयर होस्टेस गीतिका काण्ड …साथ ही साथ शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर का मामला है ही…और भी बहुत सारे मामले हैं जो या तो परदे के पीछे हैं या ज्यादा चर्चित नहीं हुए. सबका उल्लेख भी यहाँ जरूरी नहीं.
सब कुछ देखने-सुनने के बाद यही लगता है, सामाजिक और कानूनी मान्यता हमें विवाहेतर सम्बन्ध की इजाजत तो नहीं देता, फिर भी जब जाने माने लोग प्रतिष्ठित लोग इससे अछूते नहीं रह सकते तो या तो इसकी मान्यता दे दी जाय या ऐसे मामलों को व्यक्तिगत मानकर छोड़ दिया जाय.
पंडित जवाहर लाल नेहरू के अलावा अन्य जानी मानी हस्ती भी इसके लपेटे में हैं. कोई नेता अपनी पत्नी को छोड़े हुए हैं तो कोई एक के साथ रहते दूसरी की तरफ भी लालायित है. फ़िल्मी हस्तियों की तो बात ही निराली है. उनके यहाँ तो यह सब धरल्ले से होता है. एक का साथ छूटता है तो दूसरे के साथ जुड़ जाता है …
चुनाव के माहौल में हर कोई राजनीतिक फायदा उठाने के लिए एक दूसरे पर व्यक्तिगत कीचड उछाल रहे हैं. सुब्रमण्यम स्वामी प्रियंका गांधी के बारे में कहते हैं – “वो तो बहुत शराब पीती हैं. शाम के बाद होश में ही नहीं रहती”. अब इसका क्या अर्थ है ? क्या सुब्रमण्यम स्वामी उसके साथ बैठकर शराब पीते हैं या उसे पीते हुए देखा है …अगर उसका भी शराब पीने वाला कोई तस्वीर होती तो अब तक वह भी फेसबुक पर आ गयी होती. नोबल पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित प्रसिद्द अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने मोदी जी की आलोचना कर दी तो उनकी बेटी की अर्धनग्न तस्वीर फेसबुक पर आ गयी. किसी किसी ने तो उनसे भारतरत्न वापस लेने की भी मांग कर दी.
तात्पर्य यही है कि हर एक व्यक्तिगत और सामाजिक/सार्वजनिक जीवन होते हैं. नेहरू जी के व्यक्तिगत जीवन से महात्मा गाँधी को ऐतराज नहीं था. हम चाह कर भी इन व्यक्तिगत विकृतियों को नहीं रोक पा रहे हैं. पश्चिमी सभ्यता का अतिक्रमण भारत पर हावी हो रहा है और इससे छुटकारे का कोई भी उपाय फिलहाल नजर नहीं आ रहा. इन परिस्थितियों के लिए सिर्फ पुरुष को ही दोषी मानना उचित नहीं होगा. बहुत सारी महिलाएं भी अपनी कैरियर में आगे बढ़ाने के लिए प्रारंभिक अवस्था में विरोध नहीं करती … बाद में अगर स्वार्थ सिद्ध नहीं होता तो वे आगे बढ़कर हमले करने को तैयार हो जाती हैं… हालाँकि खामियाजा भी ज्यादातर महिलाओं को भुगतना पड़ता है जिसका कारण प्रकृति ने उन्हें शारीरिक रूप कमजोर बनाया है और स्थिति तब और बदतर हो जाती है, जब या तो उन्हें मार दिया जाता है या वे खुद आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती हैं.
क्या हम सभी इस समस्या से छुटकारे के लिए नयी शुरुआत कर सकते हैं? चिंतन-मनन और अनुकरण जरूरी है, अच्छाई के लिए…. इसी आशा के साथ.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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