Monday 29 December 2014

रघुबर की गति न्यारी



टाटा स्टील के कर्मचारी से झाड़खंड के नए मुख्य मंत्री बने रघुबर दास का सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा है। साल 1995 में जब भाजपा ने जमशेदपुर (पूर्व) विधानसभा सीट से उन्हें टिकट दिया था तो कई लोगों ने पार्टी के फैसले पर सवाल उठाए। सियासी मैदान में उनके खिलाफ कांग्रेस के दिग्गज नेता के पी सिंह और भाजपा के बागी दीनानाथ पांडेय थे। फिर भी सभी को चौंकाते हुए रघुबर दास ने जीत का परचम लहराया। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास ने एक बार फिर के पी सिंह को 47,963 मतों से शिकस्त देकर अपनी राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
मूल रूप से रघुबर दास बोईरडीह, राजनंदगाँव, छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं, हालांकि उनका जन्म 3 मई, 1955 को जमशेदपुर में हुआ। चार बार विधायक रह चुके रघुबर दास 30 दिसंबर 2009 से 29 मई 2010 तक उपमुख्युमंत्री रह चुके हैं।
पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा सीट से विधायक रघुबर दास को अमित शाह की टीम का हिस्सा माना जाता है। बतौर भाजपा संगठन कार्यकर्ता वे कई प्रदेशों में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा चुके हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा था, ‘मेरा नाम रघुबर दास है और मैं हमेशा जनता का दास बनकर रहूंगा।’ मोदीजी के शब्दों में कहें तो आपका सेवक !
बतौर भाजपा संगठनकर्ता वे कई प्रदेशों में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा चुके हैं. रघुवर दास भाजपा के कद्दावर नेताओं में जरूर गिने जाते हैं, लेकिन उनका आरएसएस या अन्य सहयोगी संगठनों से कोई सीधा संबंध नहीं है. दास के मुख्यमंत्री बनाये जाने में इसे भी एक रोड़ा माना जा रहा था. रघुबर दास 1974 के छात्र आंदोलन के समय समाजवादी छात्र संगठनों के संपर्क में रहे. उसके बाद भाजपा का दामन थामने के बाद पार्टी ने उन्हें कई जिम्मेवारियां दी, जिसको उन्हों ने बखूबी निभाया. रघुबर दास का विवादों से भी नाता रहा है. झारखंड विधानसभा की एक समिति ने अपनी जांच में माना था कि दास ने अपने पद का इस्तेामाल करते हुए एक प्राइवेट फर्म को लाभ पहुंचाने की कोशिश की. उस वक्त अर्जुन मुंडा सरकार में दास शहरी विकास मंत्री थे.
झारखंड की राजनीति में एक धारणा को हमेशा बल मिला कि यहां का सीएम कोई आदिवासी ही होगा. इस मिथक को तोड़ते हुए दास के नाम पर मुहर लगाकर भाजपा ने दास को आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच एक सेतु का काम करने की जिम्मेावारी भी दी है.
टाटा स्टील के एक कर्मचारी का आज राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाना झारखंड के राजनीति के कई सवालों का जवाब है.
वैसे भी भाजपा पर इस बार गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का नैतिक दबाव था। सूबे में 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। ऐसे में ओबीसी (तेली) से आने वाले रघुबर दास आदिवासी और अन्य समुदायों के बीच सेतु का काम करेंगे।
गौरतलब है कि 81 सदस्यीीय विधानसभा में भाजपा ने 37 सीटें जीती, जबकि उसकी सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) पांच सीटें जीतने में कामयाब रही। इस तरह गठबंधन को सरकार बनाने लायक आंकड़े मिल गए। वहीं झामुमो को 19, झाविमो को 8, कांग्रेस को 6 और अन्ये को 6 सीटें मिली।
अब आइये कुछ और बातें जानते हैं श्री रघुबर दास के सम्बन्ध में- 1.रघुबर दास प्रदेश के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे. जमशेदपुर पूर्व सीट से उन्होंने लगातार पांचवी बार जीत हासिल की है. 2.59 साल के रघुबर दास ने जमशेदपुर कोऑपरेटिव कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की. 3. पढ़ाई खत्म कर उन्होंने जमशेदपुर स्थित भारत की महत्वपूर्ण टाटा स्टील कंपनी में साधारण कर्मचारी के रूप में कई साल काम किया. 4. इसके बाद जेपी आंदोलन से जुड़े और फिर जनसंघ में शामिल हुए. 5. 1986 में टाटा स्टील कंपनी के एक मामले ने उनके जीवन को नया मोड़ दिया. 6.टाटा कंपनी में 86 बस्तियों को मालिकाना हक दिलाने के मामले में ली गई पहल से वे चर्चा में आए. उनकी उपलब्धि ये रही कि जिन 86 बस्तियां पर पहले टाटा का नियंत्रण था, वे सरकार के अधीन आ गईं. 7. झारखंड विधानसभा की कई कमिटियों के सभापति रह चुके रघुबर दास विधायी कार्यों के अनुभव के मामले में भी धनी हैं. 8. पार्टी के भीतर मुखर नेता की छवि होने के कारण उन्हें काफी पसंद किया जाता है. 9.इसके अलावा झारखंड वैश्य समुदाय में भी रघुबर दास खासे लोकप्रिय हैं. 10. जहां तक उनके परिवार की बात है तो पत्नी का नाम रुक्मिणी देवी है. वे गृहिणी हैं. एक बेटा, ललित दास और एक बेटी रेणु हैं. पिता : स्व. चवन राम.
राजनीतिक गतिविधि : छात्र जीवन से ही सक्रिय राजनीति की सेवा का माध्यम बनाया। छात्र संघर्ष समिति के संयोजक की भूमिका निभाते हुए जमशेदपुर में विश्वविद्यालय स्थापना के आंदोलन में भाग लिया। -लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन का जमशेदपुर में नेतृत्व किया। फलत: गया जेल में रखे गये। वहां इनकी मुलाकात प्रदेश के कई शीर्ष नेताओं से हुई। श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाये गये आपातकाल में भी उन्होंने जेल की यात्रा की। -1977 में श्री दास जनता पार्टी के सदस्य बने। -1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के साथ ही इन्होंने सक्रिय राजनीति की शुरूआत की। मुंबई में हुए भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में 1980 में भाग लिया। -जमशेदपुर में सीतारामडेरा भाजपा मंडल के अध्यक्ष बनाये गये। फिर महानगर जमशेदपुर के महामंत्री व तत्पश्चात उपाध्यक्ष बनाये गये।
भाजपा का नेतृत्व : 2005 में विधानसभा क्षेत्र का चुनाव होने के पूर्व श्री दास को 2004-05 में झारखंड प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। इनके नेतृत्व में झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ा गया और भाजपा राज्य में 30 सीटों पर विजय हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। वर्ष 2009 के चुनाव के पूर्व इन्हें दोबारा भाजपा अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। 16 अगस्त 2014 को अमित शाह की अध्यक्षता में गठित भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इन्हें उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।
प्रशासनिक दायित्व : 2000 में बिहार का विभाजन कर झारखंड अलग राज्य बनाया गया। झारखंड सरकार में रघुवर दास श्रम नियोजन मंत्री बनाये गये। इसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनी सरकार में इन्हें भवन निर्माण विभाग का मंत्री बनाया गया। 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में जब भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी तो श्री दास को वित्त, नगर विकास व वाणिज्य कर विभाग का मंत्री बनाया गया। 2009 में झारखंड में जब झामुमो और एनडीए की सरकार शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनी तो इन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया तथा वित्त वाणिज्य कर, ऊर्जा, नगर विकास, आवास एवं संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों के दायित्व सौंपे गये।
१९९५ से लगातार विधायक रहे हैं…शुद्ध शाकाहारी धार्मिक प्रवृत्ति के स्वच्छ छवि वाले रघुबर दास, जमशेदपुर के लिए काफी लोकप्रिय हैं. वे एक अच्छे सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता के रूप में हमेशा लोगों के दुःख सुख में साथ रहते हैं. हर वर्गों के पर्व त्यौहार में भी अपनी सक्रियता दिखलाते हैं. चूंकि झाड़खंड बिहार का ही हिस्सा था, यहाँ रहने वाले और विभिन्न कारखानों में काम करने वाले अधिकांश मूलरूप से उत्तर बिहार या बिहार के हैं. वे होली दिवाली और छठ पूजा बड़े धूम धाम से मानते हैं. छठ पर्व में वे नदी के विभिन्न घाटों का दौरा करते हैं और शिविर लगाकर अपने कार्यकर्ताओं द्वारा और खुद भी आवश्यक मदद करतै हैं. सिद्धगोरा स्थित सूर्य मंदिर, उन्ही की पहल और प्राथमिक 10 हजार की अनुदान राशि का ही कमाल है कि आज वहां सूर्य भगवान का भव्य मंदिर सात घोड़ों के रथनुमा शैली में बना है. उसके सामने उद्यान, दो पक्के तालाब, जहाँ छठ व्रती छठ के अवसर पर भुवन-भास्कर को अर्घ्य देते हैं. अन्य दिनों में खासकर आजकल वहां वनभोज का आयोजन होता है, बच्चे विभिन्न खेल कूद प्रतियोगिता में भाग लेते हैं, नौकायन करते हैं और कभी कभी जन सभाएं भी होती है. पहले पूरा इलाका वीरान था, आज गुलजार है. पूर्वी जमशेदपुर क्षेत्र के ऐसे इलाके जहाँ टाटा कंपनी सीधे कोई सुविधा नहीं दे सकती उन इलाकों में बिजली, पानी, सड़क, एवं अन्य सुविधाएँ बहाल करने में रघुबर दास का बड़ा योगदान है, इसीलिये वे लगातार पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं. अब पूरा झाड़खंड भी गुलजार हो, यही उम्मीद की जानी चाहिए. टाटा स्टील को लौह अयस्क और कोयला आदि कच्चा माल अपने खदानों से मिले ताकि अर्थब्यवस्था ठीक-ठाक बनी रहे. अमन और शांति का वातावरण हो…नक्सली समस्या का स्थाई हल निकले, मजदूरों का दूसरे राज्य की तरफ पलायन रुके, शिक्षा की स्थिति में सुधार में हो, …और भ्र्ष्टाचार से लड़ने का वादा तो खुद ही कर चुके हैं… इसी उम्मीद के साथ रघुबर जी को और उनके साथ शपथ ग्रहण करने वाले माननीय मंत्रियों न श्री नीलकंठ मुंडा जी, श्रीमान सी पी सिंह जी, चन्द्र प्रकाश चौधरी, और डॉ लुइस मरांडी को अनेक-अनेक शुभकामनाएं और बधाई! जय झाड़खंड! साथ में जोहार झाड़खंड भी ! 
- जवाहर लाल सिंह. जमशेदपुर.

लहर अभी बाकी है

लहर अभी बाकी है, ब्रेक न लगाइये.
देश अभी जागा है, उसे न सुलाइए.
झाड़खंड को जीता है, जम्मू तक पहुंचा है.
प्रेम सद्भाव की हवा को बहाइये.
सभी भारतीय हैं, प्रेम अभिलाषी हैं,
बीच मंझधार में, नाव न डूबाइए
साथ सबको चलना है, आगे ही बढ़ना है,
धर्म और जाती का भेद न बढाइये.
सबला बने अबला, बालक सुरक्षित हो,
सार्वजनिक हित में, कदम को बढाइये.
झंडा तिरंगा है, नदी सोन गंगा है,
राष्ट्रीय ध्वज को और फहराइये.
चाहे कोई जाती है, ईश्वर की थाती है,
छोटे बड़े सबको, गले से लगाइये.
नक्सल बनवासी हों, या कि आदिवासी हो,
भटके लोगों को, नया राह दिखलाइये .
- जवाहर

ललितनारायण मिश्र हत्याकांड: न्यायपालिका ने लिया चालीस साल



ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री थे। 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर बम-विस्फोट कांड में उनकी मृत्यु हो गयी थी।
वह पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक ‘लेटरल रोड’ की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।
याद आता है कि सत्तर के दशक में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने पटना से एक ट्रेन शुरू की थी,समस्तीपुर-नई दिल्ली जयंती जनता एक्सप्रेस। उसकी शायिकाएं (स्लीपर कोच) मधुबनी पेंटिंग की प्रतिकृति से सजाई गई थीं। उन दिनों यह ट्रेन दिल्ली जाने-आने के लिए सबसे कम समय लेती थी और सबसे ज्यादा शानदार मानी जाती थी। जयंती जनता एक्सप्रेस अब बंद हो चुकी है।
ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उसे साहित्य अकादमी में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।
पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या के मामले में दोषी करार दिये गये चारों आरोपियों को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनायी है. सभी चार अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी करार दिया गया था. अदालत ने चारों दोषियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है.
बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर दो जनवरी, 1975 को तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या कर दी गयी थी. जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 12 सितंबर को इस हत्याकांड में सीबीआइ और इस हत्याकांड के चारों अभियुक्तों के वकीलों की दलीलें सुनने की कार्यवाही पूरी की थी. अदालत ने कहा था कि इस मामले में 12 नवंबर को फैसला सुनाया जायेगा, लेकिन बाद में इसे आठ दिसंबर के लिए स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि निर्णय तैयार नहीं हो सका था. पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा बिहार के समस्तीपुर जिले में 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्राडगेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने गए थे, जहां वह एक बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। विस्फोट में जख्मी मिश्र की अगले दिन ही दानापुर के रेलवे अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी|
इस हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई के दौरान 200 से अधिक गवाहों से पूछताछ हुई. इसमें अभियोजन पक्ष के 161 और बचाव पक्ष के 40 से अधिक गवाह शामिल थे. हत्याकांड में आरोपी वकील रंजन द्विवेदी को 24 साल की उम्र में आनंद मार्ग समूह के चार सदस्यों के साथ आरोपी बनाया गया था. द्विवेदी के अलावा मामले में संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत व गोपालजी अभियुक्त हैं.
कडकडडूमा अदालत के जिला जज विनोद गोयल ने चारों अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया तथा प्रत्येक पर 10 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। इस हत्याकांड में 39 साल 11 महीने और 16 दिन बाद अपराधियों को सजा सुनाई गई है।
गोयल ने गत 15 दिसम्बर को इस मामले में सजा पर सुनवाई पूरी की थी और सजा के एलान के लिए गुरूवार 18 दिसम्बर की तारीख तय की थी। इससे पहले आठ दिसंबर को इस मामले में चारों आरोपियों आनंदमार्ग अनुयायी गोपाल जी, रंजन द्विवेदी, संतोषानंद अवधूत और सुदेवानंद अवधूत को भारतीय दंड संहित (आईपीएस) की धाराओं 302 हत्या और 120 बी आपराधिक षडयंत्र के तहत दोषी करार दिया गया था। इनपर विस्फोट करने तथा सबूत नष्ट करने का दोष सिद्ध हुआ है।
अदालत ने उन्हें विस्फोटक कानून के तहत भी दोषी ठहराया था। इस मामले के एक अन्य आरोपी की मृत्यु हो चुकी है। अदालत ने 15 दिसम्बर को सुनवाई में दोषियों की सजा की अवधिपर दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद सजा सुनाने के लिए गुरूवार की तारीख मुकर्रर की थी।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दोषियों को फांसी की सजा दी जाए या नहीं, इसका निर्णय अदालत पर छोड़ दिया था। बचाव पक्ष के वकीलों ने दोषियों की अधिक उम्र को देखते हुए नरमी बरतने की अपील की है।
इस हादसे में दो और लोगों सूर्य नारायण झा और रामकिशोर प्रसाद की भी मौत हो गई थी.
इसके अतिरिक्त ललित नारायण मिश्र के छोटे भाई व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य लोग घायल भी हुए थे. इस विस्फोट के पीछे आनंद मार्गियों का हाथ होने का आरोप लगा था.
स्थिति यही है कि ललित नारायण मिश्र के परिवार इस फैसले से खुश नहीं है. मामले को शांत करने के लिए उस समय ललित नारायण के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र को बिहार का मुख्य मंत्री बना दिया गया था. पर जगन्नाथ मिश्र में वो बात नहीं थी जो ललितनारायण मिश्र में थी. जगन्नाथ मिश्र का नाम रिश्वतखोरी के लिए ही ज्यादा बदनाम हुआ. आज भी वे चारा घोटाला में दोषी हैं और जमानत पर बाहर हैं. ललित नारायण की हत्या के पीछे राजनीतिक साजिश की भी खबरें उड़ी थी. वे एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्हें उनके प्रतिद्वंदी पसन्द नहीं करते थे.
न्यायपालिका पर सवाल इसलिए उठता है कि इतने चर्चित और वी आई पी के मुक़दमे के फैसले आने में अगर चालीस साल लग जाय, तो बाकी मुकदमों का क्या होगा. और भी बहुत सारे मुकदमे और फैसले न्यायपालिका के पास लंबित है. निर्भया कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं हुई. बड़े लोगों को अदालत से जमानत और सुविधायें भी जल्द मिल जाती है. संत आशाराम, संत रामपाल जैसे लोगों को गिरफ्तार करने में प्रशासन को क्या क्या पापड़ बेलने पड़े. पूरा देश गवाह है. इन सबकी कार्रवाई अभी चल रही है, पता नहीं फैसला कब आयेगा? और सजा कब मिलेगी? अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. अगर सजा का डर नहीं होगा तो इसी तरह अपराध होते रहेंगे. जनता त्राहि-त्राहि करती रहेगी.
अत: अगर अदालतों में संशाधन की कमी है तो उसे जल्द से जल्द दुरुस्त करनी होगी. साक्ष्य और पैरवी की नई तकनीक विकसित करनी होगी. तभी आम जनता का भरोसा इन अदालतों पर होगा. साथ ही खर्चीली प्रक्रिया और वकीलों की फीश आदि में भी त्वरित सुधार किये जाने चाहिए, ताकि न्याय आम आदमी तक पहुँच सके. इन सबके लिए उच्च पदाशीन और बुद्धिशील लोगों को पहल करनी होगी. आखिर इस लोकतान्त्रिक जनतांत्रिक प्रणाली का फायदा आम लोगों तक कैसे पहुंचेगा? अपराधों पर लगाम कैसे लगेगी? हम कब सुराज की तरफ बढ़ेंगे. जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

होते हैं बलात्कार इण्डिया में ...



(१६ दिसंबर २०१२ की निर्भया कांड की स्मृति में )
होते है बलात्कार इण्डिया में,
भारत में नहीं !
कहा जिस महोदय ने,
वे देखते नहीं
गांव के खेतों में,
खलिहानों में, गलियों में,
मचानों पर, दुकानों पर,
घरों में, कोह्बरों में
किस तरह तार-तार होती है
महिलाओं की अस्मत!
किस तरह बच्चियां
मसल दी जाती हैं
मासूम कली की तरह
फूल बनने से पहले ही.
कैसे जला दी जाती हैं
नवबधुयें,
दहेज़ के अंगारों में
ये झगड़ा अब
होना चाहिए ख़त्म
भारत और इण्डिया का
एक देश है मेरा
लोक गीत और दांडिया का
लड़नी हैं लड़ाइयां अभी कई कई
बहने बेटियां सुरक्षित रहें सभी
ओ राम सिंह ओ शिव यादव
नालायकों, कायरों,
आशाराम, रामपाल
असंत हो सभी
नाम बदल लेते
कुकर्म से पहले
कापुरुष हैं मुंडिया
भारत हो या इण्डिया
-जवाहर लाल सिंह

मन की बात



प्रधान मंत्री श्री मोदी आजकल रेडियो के द्वारा अपने मन की बात उनलोगों तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, जहाँ टेलीविजन की सुविधा नहीं है.पिछली बार उन्होंने काला धन कितना और कहाँ है, उससे अनभिग्यता जताई थी. इस बार नौजवानों को नशा से दूर रहने का सन्देश दिया. सन्देश अच्छा है. योग दिवश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली यह भी भारत के लिए गर्व करने की बात है. सांसदों द्वारा एक गाँव को गोद लेने वाली बात भी प्रभावी लगी. प्रधान मंत्री की स्वच्छता अभियान से बड़े बड़े लोग जुड़ रहे हैं. संकेत अच्छे हैं, पर क्या परिणाम सकारात्मक हो रहे हैं?
कम से कम मुझे ऐसा नहीं लगता कि अपने देश में कुछ चमत्कारी परिवर्तन हो रहे हैं. सरकारी संपत्ति की बंदरबाँट आज भी चल रही हैं. खुशामद-पैरवी का जमाना ज्यों का त्यों है. महिला सुरक्षा जब दिल्ली में नहीं है तो और दूसरी जगहों की क्या बात करें. लूटपाट हत्याएं ज्यों की त्यों चल रही हैं..आतंकवादी गतिविधियों और नक्सली आतंक में कोई कमी नहीं दीख रही. ट्रेनें दुर्घटना की शिकार हो रही हैं. मानवरहित रेल क्रॉसिंग पर हाल में हुई दर्दनाक घटनाएँ दिल दहला देने वाली हैं. सीमा पर आतंक का पहरा है.. हमारे जवान मारे जा रहे हैं. अर्थब्यवस्था में भी कोई खास सुधार होता नहीं दीखता. बेरोजगारी मुंह बाये खड़ी है.सार्वजनिक स्थानों पर भी गंदगी कम हुई है, ऐसा कहीं दीखता नहीं. कचरे के ढेर और गंदगी की तस्वीरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं.
प्रधान मंत्री के सिपहसलारों, सांसदों के बयान और फिर माफीनामा, चेतावनी के बाद भी बदस्तूर जारी है.
विदेशों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं. परिणाम आना अभी बाकी है. विदेशों से काला धन लाने की बात को छोड़ भी दें, तो क्या अपने देश में छिपे हुए काले धन को पता लगाने के लिए कोई शुरुआत की गयी है क्या? बाबा रामदेव बीच बीच में ताव में आते हैं, फिर चुप हो जाते हैं. टी वी पर परिचर्चाओं में समाधान के बजाय एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और राजनीति खूब चल रही है. मीडिया वालों के पौबारह हैं. ख़बरें मिल रही हैं, उन्हें नमक-मिर्च लगाकर चलाना उनकी जैसे मजबूरी बन गयी है.
सम्भवत: झाड़खंड और कश्मीर में भी भाजपा सरकार बना ले, पर जबतक परिवर्तन नहीं आएगा जनता का मोहभंग होना लाजिमी है. मूल बातें जो विकास में बाधक है – वह है प्रबल ईच्छा-शक्ति का अभाव. सरकारी तंत्र की शिथिलता. जनजागरण और जन सहयोग की कमी. क्या हम सचमुच अपनी आदतें बदलने लगे हैं. अपने आस पास को साफ़ रखने में मदद कर रहे हैं.या कम से कम गन्दा नहीं कर रहे हैं.? मुझे नहीं दीखता ..जहाँ तंत्र सही है, वहां पहले भी ठीक था आज भी ठीक है. वरना भीड़ भाड़ वाले ट्रेनों की स्थिति देखकर तो नहीं लगता कि हम कुछ सीख चुके हैं या अपनी आदतें बदलने लगे हैं.
नशामुक्ति कैसे होगी जबतक उसका उत्पादन और बिक्री धरल्ले से चलता रहेगा. अपराध कैसे थमेंगे जबतक कि उस पर कठोर कार्रवाई और सजा नहीं होगी? वी आई पी के मुकदमों का फैसला और सजा सुनाने में जब न्यायपालिका को ४० साल लग जाते हैं. वह भी संतोषजनक नहीं. फैसला के बाद भी सजा तुरंत नहीं मिलती… इंतज़ार होता रहता है,.. छूट मिलती रहती है. .तकनीक के विकास के साथ कुछ चीजें तो पारदर्शी हुई हैं, पर जटिलता में कोई कमी नहीं आयी. बंगलुरु का ISIS को मदद पहुँचानेवाले वाले मेहंदी मसरूर बिश्वास का केस सामने है. और भी कई ठिकानों पर आतंक के बादल मंडरा रहे हैं. ऊपर से धर्मांतरण और घर वापसी का मुद्दा भी गर्माता जा रहा है. अनिष्ट की आशंका बढ़ती जा रही है. दोनोंतरफ के कट्टरपंथियोंके बयान से वातावरण विषाक्त बनता जा रहा है.
प्रधान मंत्री जी, मेरी अपनी सोच है कि शिक्षा और नैतिकता हर घर से शुरू होकर स्कूलों, दफ्तरों, और जलसों, पार्टियों में भी दिखनी चाहिए. हम न तो खुद गलती करें न दूसरों को करने दें . सरकारी सहायता हर जगह उपलब्ध हो या अन्य समाज सेवी संगठन को ही मुस्तैद रहना चाहिए. हम एक दूसरे को मानवता के नाम पर ही मदद को तैयार रहना चाहिए. ऐसा नहीं कि किसी पर जुल्म, अत्याचार हो रहा हो और हम देखते रहें. धर्म और समाज को साथ लेकर चलने की जरूरत है न कि नफरत फैलाने की. हिन्दू धर्म के अपने अंदर की खामियों को दूर करना चाहिए ताकि खुद लोग खींचे चले आवें. लोगों को जैन,बौद्ध, सिक्ख, आर्यसमाज, साईं के पास जाने की जरूरत क्यों पडी? गीता, रामायण, महाभारत, वेद, शास्त्र, उपनिषद आदि ग्रंथों में ज्ञान के भंडार हैं, फिर हम अँधेरे में क्यों हैं, अन्धविश्वास के चंगुल में क्यों फंसते हैं. आशाराम, रामपाल, निर्मल बाबा आदि क्यों लोगों को बेवकूफ बनाते हैं? गहन चिंतन मनन और स्वस्थ परिचर्चा की जरूरत है न कि दोषारोपण और जबर्दश्ती करने की….सादर (मैंने भी अपने मन की बात कहने की कोशिश की है आप अपने विचार दे सकते हैं.- जवाहर)

Thursday 18 December 2014

अगर हो सके तो----

अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिसपर लिखी हो इंसानियत,
मासूमियत, आदमीयत, नेकनीयत,
अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिए पर लिखा हो दर्द,
चीख, पुकार, रुदन और क्रंदन!
अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिसपर लिखा हो शांति,
मर्यादा, अच्छा, बुरा, धर्म और जेहाद
अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिसपर लिखा हो आन,
बान, शान और तालिबान!  

-    जवाहर 

Sunday 14 December 2014

अब मलाला को मलाल नहीं, सत्यार्थी जैसा पिता जो मिला



हालाँकि पिछले साल ही मलाला युसुफजई को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन सूची में नाम भेजा गया था, पर किसी कारण वश वह पिछले साल यह पुरस्कार नही पा सकी थी. पिछले साल शांति का नोबल पुरस्कार रासायनिक हथियारों के खिलाफ लड़ने वाली OPCW नाम की संस्था को पुरस्कार दिया गया था.
पर इस साल मलाला ने नोबल पुरस्कार की जंग भी एक भारतीय श्री कैलाश सत्यार्थी (जिन्होने उसे सबके सामने बेटी कहा) धर्मपिता के साथ जीत ली है. जहाँ बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले, बंधुआ बाल मजदूरों को मुक्ति दिलाने वाले श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा – “जिन बच्चों को मैंने बचाया है उसकी मुस्कानों में ईश्वर के दर्शन हुए हैं. मैं उनकी खामोश जुबान का प्रतिनिधित्व करता हूँ. वैश्विक प्रगति में दुनिया का एक भी व्यक्ति पीछे नहीं छूटना चाहिए.” 
वहीं बच्चियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला युसुफजई ने कहा – हाथ में बन्दूक देना आसान है, लेकिन किताब देना मुश्किल है. मैं ६.६ करोड़ लड़कियों की आवाज हूँ. 
इस नोबल पुरस्कार में ११ लाख डॉलर यानी करीब ६ करोड़ ८३ लाख रुपये मिले हैं, जिन्हें दोनों में बराबर बराबर बाँट दिया जायेगा.
अपने एन. जी. ओ. बचपन बचाओ आन्दोलन के जरिये ६० वषीय श्री कैलाश सत्यार्थी ने अब तक अस्सी हजार बच्चों को आजाद कराकर नई जिन्दगी दी है.
मलाला ने अपने संबोधन में कहा कि जब शांति पुरस्कार दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) में साझा लिए जा सकते हैं, तो क्यों नहीं दोनों देश के प्रधान मंत्री एक दूसरे के साथ बात-चीत कर दोनों देशों के बीच शान्ति की स्थापना कर सकते हैं. वास्तव में या अन्तराष्ट्रीय स्तर का सबसे बड़ा पुरस्कार बहुत कुछ कहता है, अगर हम समझने को तैयार हों.
नोबल पुरस्कार पानेवालों की सूची में सबसे कम उम्र वाली युवा और पाकिस्तानी मुसलमान लड़की मलाला और दूसरे ६० वर्षीय बुजर्ग भारतीय हिन्दू … दोनों की सोच गजब की मिलती जुलती है. दोनों बच्चों की शिक्षा और उत्थान के लिए कृतसंकल्प हैं. वैसे इन दोनों को अनेक प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा गया है …पर मेरा मानना है कि ये दोनों पुरस्कार के लिए काम नहीं करते बल्कि इनके जीवन का मकसद एक चुनौती है, जिसके लिए ये दोनों संघर्षरत हैं.
एक लड़की मलाला जो लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रेरित करने वाली १५ साल की उम्र में तालिबानियों के गोली की शिकार हुई और उसने मौत की जंग जीत ली. वहीं कैलाश सत्यार्थी बचपन से ही गरीब बच्चों के प्रति सहानुभूति रखते थे. वर्ष १९९० में ही उन्होंने बचपन बचाओ आन्दोलन की शुरुआत की. वे लोहिया आन्दोलन से भी जुड़े थे और आर्य समाज की समस्याओं को केंद्र में रखकर ‘सत्यार्थी’ नामक किताब लिखी. किताब के शीर्षक से ही उनका नाम कैलाश शर्मा से कैलाश सत्यार्थी हो गया. विदिशा, मध्य प्रदेश में जन्मे कैलाश चर्चा में तब आए जब इन्होने १९९३ में कालीन उद्योग में लगे बाल मजदूरों की आजादी और शिक्षा के लिए बिहार से दिल्ली तक २००० किलोमीटर की पदयात्रा की. वर्ष १९९८ में ८० हजार किलोमीटर की पदयात्रा निकाली जो १०३ देशों में गयी. इया यात्रा से उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली.
सत्यार्थी के मुक्ति आश्रम और बाल श्रम आश्रम में जहाँ बच्चों को शिक्षा दी जा रही है, वही बाल मित्र ग्राम और मुक्ति कारवां जैसे उनके प्रयोग पूरी दुनिया में सराहे जा रहे हैं. वे अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं. बाबूलाल आर्य उनके गुरु थे.
मलाला की ईच्छा राजनीति में आने की है और वह बेनजीर भुट्टो की तरह पकिस्तान की प्रधान मंत्री बनकर देश की सेवा करना चाहती है. जबकि कैलाश सत्यार्थी अपने बचपन बचाओ आन्दोलन के तहत हर बच्चों को उसका बचपन वापस दिलाना चाहते हैं.
इन दोनों शांति दूतों को अमेरिकी सीनेट ने भी सम्मान का प्रस्ताव पेश किया है.
अपने देश और मध्य प्रदेश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि आज दुनिया भर में मशहूर कैलाश सत्यार्थी को उनके ही प्रदेश के विधायक और राजनीतिक नहीं जानते उनके अनुसार कैलाश नामका व्यक्ति सिर्फ कैलाश विजय वर्गीय (मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट स्तर के मंत्री और भाजपा नेता) हैं और नोबल पुरस्कार के हकदार भी …. हमारे माननीय जो जनता के प्रतिनिधि हैं, सामान्य ज्ञान और ताजा ख़बरों से कितने अनभिग्य हैं.
दूसरी खबर जो कि मोदी जी और बाबा रामदेव साथ साथ ही पूरे देश के लिए गौरवान्वित करनेवाली है, वह है अन्तर्राष्ट्रीय रूप से २१ जून को ‘योग दिवश’ के रूप में घोषणा करना है. प्रधान मंत्री ने यूनाइटेड स्टेट में ‘योग दिवश’ को अन्तर्राष्ट्रीय रूप में मनाने का प्रस्ताव पेश किया था. 
पर, अपने देश में ये क्या हो रहा है. जहाँ प्रधान मंत्री श्री मोदी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ न्यूक्लियर एनर्जी के साथ साथ सामरिक क्षेत्रों में भी आपसी समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे, वहीं उनके अनुयायी(साक्षी महाराज आदि) कभी कभी विवादास्पद बयान देकर उसे वापस भी लेते हैं और संसद के कीमती समय को अवांछित मुद्दे पर बर्बाद करते हैं. दूसरा मुद्दा धर्मान्तरण और घर वापसी का है. जहाँ भाजपा को सहयोग करनेवाली संस्थाएं इसे बृहद स्तर पर करने जा रही है. बंगला देश से आए नागरिकों को हिन्दू बनाया जाना – पता नहीं यह हिन्दू धर्म को शिखर पर ले जायेगा या….?
एक रहस्य पर से पर्दा श्री मुलायम सिंह यादव ने हटाया. उनके अनुसार जिस घर वापसी की चर्चा टी वी, अख़बारों में और इस संसद में हो रही है, उसकी भनक तक उनको नहीं है, जबकि वे उसी आगरा(उत्तर प्रदेश) के मुखिया के पिता और जमीन जुड़े हुए नेता कहे जाते हैं… अब क्या संसद इन अखबारों के आधार पर चलेगी? …. नहीं मुलायम सिंह जी, संसद मीडिया के आधार पर नहीं चलती, बल्कि संसद के आधार पर मीडिया चलती है…. और यही मीडिया सरकारें और सांसद बनाती और मिटाती भी है. अभी भी आपने मीडिया की आवाज को नहीं सुना? कुछ दिन और इंतज़ार कर लीजिये, आप भी भारत के भावी प्रधान मंत्री का सपना कई सालों से देखते चले आ रहे हैं….मीडिया की जरूरत तो पड़ेगी ही, आपको भी….
आपके राज्य में कानून ब्यवस्था भी ठीक ठाक है, वहां पुलिस कर्मी भी गुंडों द्वारा नहीं मारे जा रहे हैं. …. और उबर टैक्सी में दुष्कर्म के बाद इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर छेडछाड की जो घटना हुई वह भी कोई बड़ी बात नहीं है … हो जाती है गलती …अनजाने में या शराब के नशे में…. यही न कहेंगे आपलोग? …..और अब बंगलोर से गिरफ्तार ISIS को सूचनाएं पहुचने वाला मेहदी मसरूर बिस्वास …..???
सारा देश कुछ अच्छे की उम्मीद कर रहा है, पर देश अपनी रफ़्तार से ही चल रहा है अर्थ-ब्यवस्था से लेकर स्वच्छता और स्वास्थ्य तक. प्रधान मंत्री जी और सभी सम्मानित जन प्रतिनिधि अपने अन्दर झांकें और देश को नई दिशा दें …इसी उम्मीद के साथ जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday 30 November 2014

अच्छा नहीं होता गुस्सा

अच्छा नहीं होता गुस्सा
पर हो जाता है मन में गुस्सा
जब कभी
मन माफिक नहीं होता
कोई भी काम
नहीं मानते अपने ही कोई बात
फिर क्या करें ?
हो जाएँ मौन ?
फिर समझ पायेगा कौन?
आप सहमत हैं या असहमत
क्योंकि
लोग तो यही कहेंगे
मौनं स्वीकृति लक्षणं
मन में रखने से कोई बात
हो जाता नहीं तनाव ?
तनाव और गुस्सा
दोनों है हानिकारक
तनाव खुद का करता नुक्सान
गुस्सा खुद के साथ
दूसरों को भी
करता है परेशान
अत: छोड़ें गुस्सा
बढ़ने न दें तनाव
करें व्यायाम और प्राणायाम
लेकर प्रभु का नाम


-जवाहर लाल सिंह 

Tuesday 25 November 2014

एक और संत(असंत) रामपाल


हिसार, हरियाणा पुलिस ने स्वयंभू संत रामपाल को आखिर में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया|
फ़िलहाल वह पूछ ताछ के लिए पुलिस की निगरानी में है. उसकी गिरफ्तारी से पहले जो भी नाटक हुए उससे पूरा देश परिचित है. बीमारी का बहाना बनाकर कोर्ट और पुलिस से बचने का नाटक करनेवाले रामपाल पूर्णत: स्वस्थ पाए गए. पर इस प्रकरण और इसके पहले संत असहाराम के प्रकरण से कई सवाल आम आदमी के जेहन में उठाना लाजिमी है.
सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले सनातन अथवा हिदू धर्म क्या इतना कमजोर है या अब अप्रासंगिक हो गया है कि कोई भी अदना सा आदमी लोगों को आस्था के नाम पर बेवकूफ बनाता रहे और समाज एवं सरकार चुपचाप देखती रहे. एक नासूर को पूरा जख्म बनने का इंतज़ार करता रहे और एक भयंकर बिष्फोट को जन्म दे.
कहते हैं, महर्षि वेद्ब्यास ने दंडकारण्य में सभी ऋषियों- मनीषियों की सभा बुलाई थी और सबके ज्ञान को एकत्रित कर चार वेद, छ: शास्त्र और अठारह पुराण की रचना की थी. उन अठारहों पुराण  में एक बात सामान्य थी – परोपकार से पुन्य होता है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से पाप. (अष्टादशु पुरानेषु ब्यासस्य वचनम द्वयं परोपकाराय पुण्याय पापाये परपीडनम). हिन्दू धर्म और सनातन धर्म इसे ही मानते हैं. फिर क्यों नाना प्रकार के पंथ-प्रचारक बने, सबने धर्म की अलग अलग व्याख्या की और नए नए धाम बनते चले गए. जैन, बुद्ध, सिक्ख आदि धर्म के मूल में सनातन धर्म ही है. फिर आज अनेक प्रचारक/उपदेशक अपनी अपनी डफली बजाकर अप स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं. फलस्वरूप नए नए लोग जाल में फंसते जा रहे हैं और उनका भन्दा भी फूटता जाता है. प्रश्न फिर वही है कि यह सब एक दिन में तो नहीं हुआ न! काफी समय लगे, साल महीने दिन लगे ...पर चेतना तब जागती है जब बंटाधार हो चूका होता है. बाकी सभी समाचार सभी को मीडिया के द्वारा मालूम है. उनमे से कुछ सारांश इस प्रकार है. 
रामपाल की गिरफ्तारी के बाद उससे जुड़े सनसनीखेज खुलासे सामने आ रहे हैं। हिसार के बरवाला के सतलोक आश्रम में पुलिस सर्च ऑपरेशन चला रही है। एक अखबार में छपी खबर के अनुसार सतलोक आश्रम में तलाशी के दौरान पुलिस को कंडोम, महिला शौचालयों में खुफिया कैमरे, नशीली दवाएं, बेहोशी की हालत में पहुंचाने वाली गैस, अश्लील साहित्य समेत काफी आपत्तिजनक सामग्री मिली है।
छपी खबर के मुताबिक आश्रम में सत्संग के लिए आए एक अनुयायी ने बताया कि ध्यानमग्न रामपाल को दूध से नहलाया जाता था और बाद में उसी दूध की खीर बनाकर प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता था। अनुयायियों को कहा जाता है कि यही खीर उनकी जिंदगी में मिठास लाएगी।
रोहतक स्थिति करौंथा आश्रम में रामपाल ने सुरंग बनवा रखी है। वह अक्सर उसी सुरंग में लगी लिफ्ट के माध्यम से प्रकट होता था। यहां सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। आश्रम में छापामारी के दौरान यहां 30 किलो सोने के जेवरात मिले। इनमें ज्यादातर महिलाओं के मंगलसूत्र और हार हैं। यहां नोटों से भरी कई बोरियां और सिक्कों से भरी 17 बोरियां मिली हैं। इसके साथ ही विदेशी शराब की कई बोतलें और अय्याशी के कई और सामान भी बरामद हुए।
बाबा रामपाल की काली दुनिया का सच - रामपाल ने ये भीड़ कैसे जुटाई। ये कौन लोग हैं जो रामपाल के लिए मरने मारने पर उतारू हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि रामपाल नाम के जिस इंजीनियर ने जिंदगी में कभी सड़क का पुल नहीं बनाया वो आत्मा और भगवान के बीच का पुल का ठेकेदार कैसे बन बैठा?
आठ साल पहले लेकर चलते हैं आपको। उसके पास तहखाना भी था। यही वो भेद है, जिसमें घुसकर रामपाल को भगवान का चोला ओढ़ रखा था। रोहतक के सतलोक आश्रम का सच दहला देने वाला है। यह सतलोक नहीं है। रामपाल का मायालोक है। इस मायालोक में विज्ञान के अविष्कारों से उसने फरेब का एक ऐसा आभामंडल तैयार किया था, जिसने बर्खास्त जूनियर इंजीनियर रामपाल को बाबागीरी का उस्ताद बना दिया।
इस मायालोक में एक सिंहासन था। वहां से रामपाल अपने भक्तों को दर्शन दिया करता था। इसके चारों तरफ बुलेट प्रूफ शीशा लगा हुआ होता था। किसी को पता नहीं चलता था कि रामपाल इसके भीतर कैसे पहुंचता है। वो नीचे से कहीं से निकलता था। यही नहीं, जब यहां का प्रवचन खत्म हो जाता था तो बिना बाहर निकले वो दूसरी तरफ हाजिर हो जाता था।
यहां भी वो नीचे से ऊपर की ओर निकलता था। लोग ताज्जुब में कि बाबा एक ही जगह में दो जगह कैसे। इसका राज था ये तहखाना। इसी तहखाने से रामपाल दौड़कर दूसरी तरफ भागता था। और इसे एक चमत्कार में बदलने के लिए उसने अपनी सारी इंजीनियरिंग भिड़ा दी थी। ये सिंहासन दरअसल एक हाईड्रोलिक मशीन पर टंगा हुआ होता था।
इस सिंहासन के हत्थे में ही बटन लगे होते थे। बटन दबाते ही बाबा तहखाने से सीधे प्रवचन के डिब्बे में पहुंच जाता था। और प्रवचन खत्म तो बटन दबाया सिंहासन नीचे। अब नीचे ही नीजे बनी हुई थी एक सुरंग। इस सुरंग से रामपाल दूसरे हिस्से में भागता। ये सुरंग सिर्फ रामपाल के फरेब के काम में आती थी।
सुरंग के रास्ते रामपाल एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुंच जाता। वहां भी बिल्कुल उसी तरह का सिंहासन। हाइड्रोलिक मशीन पर टंगा हुआ। बटन दबाते ही सिंहासन ऊपर की ओर चल पड़ता। जहां रामपाल के भक्त उसका इंतजार कर रहे होते। रामपाल बिना दिखे या चले हुए ऐसे निकलता जैसे जमीन फाड़कर निकला हो। लोगों की आंखें फटी की फटी रह जातीं। उन्हें लगता कि ये तो सचमुच में चमत्कार है। और बाबा भगवान का अवतार है।
2000 से 2006 तक रामपाल करौंथा में रोज ये कलाकारी दिखाता रहा। दूर-दूर तक उसने अपने इस ढकोसले को चमत्कार की तरह बेचा। वो तो एक दिन आश्रम से गोली चली। एक नौजवान की मौत हुई और पुलिस आश्रम में घुस गई। तब जाकर पता चला रामपाल ने अपनी बाबागीरी का बढिय़ा बाज़ार सजा रखा है।
ये उस जमाने की बात है जब रामपाल गोलीकांड में अपने 37 गुर्गों के साथ गिरफ्तार हो गया था। तब रामपाल इतना बड़ा नहीं हुआ था। ये कितनी अजीब बात है कि जिस रामपाल की पोल पट्टी 8 साल पहले खुल चुकी थी वो रामपाल जब दो साल बाद जेल से निकला तो भक्ति की चादर ओढ़कर फिर से घी पीने लगा। अगर भक्तो की दुनिया ने उसके फरेब की तरफ से आंखें नहीं बंद की होती तो एक भयानक विश्वासघात से हम अपनी दुनिया को बचा लेते।
दो दिनों की मशक्कत के बाद गिरफ्त में आए स्वयंभू संत रामपाल को पुलिस ने अदालत की अवमानना के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में पेश कर दिया है। हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू करते हुए पुलिस से रामपाल के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन और उनकी ओर से किए गए प्रतिरोध पर रिपोर्ट मांगी। अदालत ने डेरों में गैर-कानूनी हथियारों की मौजूदगी पर गंभीर चिंता जताई। इस मामले में अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी। हाई कोर्ट हत्या के मामले में उनकी जमानत सुबह ही रद्द कर चुका है।
कानून का शासन लागू करने में हरियाणा के बरवाला में जिस प्रकार बाबा रामपाल के अनुयायियों और पुलिस के बीच खुला टकराव सामने आया है उसने एक पुरानी समस्या को नए सिरे से सतह पर ला दिया है। धर्म पर फिर सवाल खड़े हो रहे हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि उनका आचरण ही संदेह के घेरे में है जो खुद को संत अथवा धर्म का रक्षक घोषित करते हैं। जिन बाबा रामपाल ने हरियाणा पुलिस को नाको चने चबवा दिए उनके बारे में कुछ बातों को जान लेना जरूरी है। रामपाल इंजीनियर से कथित संत बने। उन्होंने कबीर पंथ को अपनाकर 1999 में करौंथा में सतलोक आश्रम की स्थापना की। आज यह आश्रम 16 एकड़ की भूमि में फैला है। आश्रम किसी किले से कम नहीं है। तीन पर्तो में बनी दीवारों को आसानी से पार नहीं किया जा सकता। इसमें एक लाख भक्तों के बैठने और 50 हजार से अधिक के रहने व खाने की पूरी व्यवस्था है। उन्होंने कई और आश्रम स्थापित किए, जिनमें बरवाला का आश्रम भी शामिल है। बाबा के पास इस समय सत्तर से अधिक महंगी गाड़ियां हैं। दिल्ली, राजस्थान व मध्य प्रदेश में भी रामपाल की करोड़ों की संपत्ति है। कुल मिलाकर पिछले एक दशक में बाबा ने सौ करोड़ से भी अधिक का अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया। वह हत्या के एक मामले में वांछित हैं और करीब चालीस नोटिसों का सामना कर रहे हैं। उन्हें गिरफ्तार करने गई पुलिस को अप्रत्याशित प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और इसकी परिणति एक बच्चे समेत पांच महिलाओं की मौत और तीन सौ लोगों के घायल होने के रूप में हुई। 1 बाबा रामपाल का सतलोक आश्रम जिस तरह हिंसा की रणभूमि बना उससे पुलिस के खुफिया तंत्र की नाकामी पर सवाल तो उठे ही हैं, साथ ही सरकार की उदारता भी साफ नजर आई है। आश्रम के अंदर से बंदूक, रायफल और अन्य कई लाइसेंसी व गैर लाइसेंसी हथियारों से हमला किया गया। साथ ही आश्रम में भारी मात्र में पेट्रोल बम व तेजाब के साथ में लाठी-डंडे होने के भी साक्ष्य मिले हैं। आश्रम केअनुयायियों ने बाहर आकर जिस प्रकार अपनी व्यथा बयान की है उससे साफ पता लगता है कि आश्रम के अंदर बहुत कुछ गलत हो रहा था। जहां तक स्वयंभू संत बाबा रामपाल का सवाल है तो वह अचानक ही सुर्खियों में नहीं आए। वह पहली बार 2006 में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पर विवादास्पद टिप्पणी कर चर्चा में आए थे। इसी के चलते आर्य समाजियों से विवाद बढ़ा और दोनों के समर्थकों की हिंसक झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई। बाबा रामपाल इसी मामले में वांछित हैं। रामपाल का मामला नया-अनोखा नहीं है। बीते साल एक कथावाचक आसाराम की गिरफ्तारी के समय भी ऐसा ही दृश्य सामने आया था। रामपाल खुद को धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु घोषित करते हैं, परंतु उनका या उनके अनुयायियों का जिस प्रकार का आचरण अराजकता के रूप में सामने आया है वह किसी भी हालत में धर्मानुकूल नहीं कहा जा सकता। हिसार में जिस प्रकार से धार्मिक आस्था से कानून का टकराव हुआ वह सीधे-सीधे विधि के शासन को खुली चुनौती है। धर्म कई बार आस्था के नाम पर भाव शून्यता और अंधभक्ति को बढ़ाता है। सच यह है कि धार्मिक नेता स्वयंभू बनकर लोगों की गहन आस्था और उनकी अंधभक्ति का लाभ उठाकर उनमें एक छद्म धार्मिक चेतना का संचार कर देते हैं। धर्म के नाम पर यह एक प्रकार का सम्मोहन है। इसके माध्यम से धर्म गुरु अपनी हर क्रिया को नैतिकता का लबादा ओढ़ाता है और भक्तों के सामने स्वयं की छवि को ईश्वर के नजदीक ले जाता है। स्वयंभू बाबाओं की यही वह स्थिति है जहां वे अपनी धार्मिक सत्ता को धनोन्मुख सत्ता में रूपांतरित करने में कामयाब हो जाते हैं। शायद इसी वजह से तमाम धार्मिक संस्थानों और धर्मगुरुओं के पास अकूत धन, संपत्ति, जमीन, निजी सेना व बाहुबल का विस्तार होता चला जाता है। इन सभी का इस्तेमाल ये लोग अपनी धार्मिक सत्ता को देश व विदेश में फैलाने में अधिक करते हैं। कड़वा सच यह है कि धर्म अब धीरे-धीरे नैतिकता के लिबास को छोड़ रहा है। सामुदायिक ढांचे के कमजोर होने से समाज में बढ़ती वैयक्तिक असुरक्षा और रातों-रात भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की लालसा लोगों को इन धर्मगुरुओं के नजदीक जाने को मजबूर कर रही है। केवल इतना ही नहीं, इस धर्म की सत्ता से अब राजनीति की वैतरणी पार करने के दावे भी सामने आने लगे हैं। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां अनेक राजनेता इन धर्मगुरुओं के समक्ष दंडवत करते नजर आते हैं। इसी से जुड़ा यहां यक्ष प्रश्न यह भी है कि आखिर बाबा रामपाल और उनके समर्थकों ने कानून के सारे नियम व कायदों को ताक पर रखकर हिंसा के सहारे न्यायपालिका की अवमानना करने की हिम्मत कैसे और क्यों दिखाई। वह इसलिए, क्योंकि वे अपने राजनीतिक और प्रशासनिक रसूख और उनकी गहराई व कमजोरियों को बखूबी जानते हैं। अब समय आ गया है कि देश की तमाम ऐसी धार्मिक संस्थाओं व ऐसे धर्म गुरुओं की धर्म और अंधविश्वास के नाम पर जुटाई धन-संपत्ति की जांच करते हुए उसे कानून के दायरे में लाया जाए। आज ये संस्थान काले धन को श्वेत करने के भी माध्यम बन गए हैं। आश्रमों अथवा डेरों का धर्म, नैतिकता और अध्यात्म से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी समाज में इनकी पैठ लगातार बढ़ रही है। कानून के दबाव में रामपाल और उनके समर्थकों की घेराबंदी तो हो चुकी है, परंतु भविष्य में जनता ऐसे बाबाओं के चंगुल में न फंसे, इसके लिए समाज को भी आस्था और अंधविश्वास में फर्क करना आना चाहिए। ऐसे बाबाओं से देश के संविधान को भविष्य में चुनौती न मिले, इसके लिए भी राजनेताओं को समय रहते आत्ममूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

Sunday 16 November 2014

बाल दिवस और चाचा नेहरू

(उनकी १२५ वीं जन्मोत्सव पर विशेष)
अपने देशवासियों से मुझे इतना प्यार और आदर मिला कि मैं इसका अंश मात्र भी लौटा नहीं सकता और वास्तव में इस अनमोल प्रेम के बदले कुछ लौटाया जा भी नहीं सकता… इससे मैं भाव-विभोर हो गया हूँ| – पंडित जवाहर लाल नेहरू की आखिरी वसीयत से 
पंडित जवाहर लाल नेहरू की यादें जमशेदपुर से भी गहरी जुड़ी हैं। चाचा नेहरू ने जुबली पार्क में बरगद का एक पौधा लगाया था। 56 वर्ष की लंबी अवधि में यह छोटा सा पौधा विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है। पार्क में आने वाले हजारों लोगों को हर दिन यह वृक्ष देश के पहले प्रधानमंत्री की याद दिलाता है। टाटा स्टील के 50 साल पूरे होने पर देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शहर आए पंडित नेहरू ने शहरवासियों को जुबली पार्क का तोहफा दिया था। एक मार्च 1958 को चाचा नेहरू ने टाटा स्टील के संस्थापक जे एन टाटा की मूर्ति का अनावरण किया था| मूर्ति के सामने गेट के पास लगा शिलापट आज भी अपनी चमक कायम रखे हुए है। सुनहरे अक्षरों में लिखा पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम दूर से ही दिखाई देता है। हर साल तीन मार्च को टाटा स्टील की ओर से मनाए जाने वाले संस्थापक दिवस समारोह की औपचारिक शुरुआत जुबली पार्क में उसी स्थान से होती है। जहां पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू के कदम पड़े थे। टाटा स्टील के सेंटर फार एक्सीलेंस में देश के पूर्व प्रधानमंत्री की यादों की पूरी शिद्दत से सजाकर रखा गया है। तथ्यों के अनुसार पंडित नेहरू सन 1925 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ पहली बार जमशेदपुर आए। इस शहर की आबोहवा ने उन्हें इतना आकर्षित किया कि वर्ष 1938 में वह फिर जमशेदपुर आए। अपनी दूसरी यात्रा में उन्होंने टाटा स्टील के कर्मचारियों से मुलाकात की। प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू की तीसरी और अंतिम यात्र 1958 में हुई। वर्षो बाद भी कंपनी ने इन ऐतिहासिक तथ्यों पर समय की धूल नहीं जमने दी है। 
पंडित जवाहर लाल नेहरु के ह्रदय में बच्चों के लिए असीम प्यार था| स्वतंत्रता के बाद उन्होंने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और उनके कल्याण के लिए बहुत सारी योजनाओं का शुभारम्भ किया| वे बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थे, तभी वे ‘चाचा नेहरु’ कहलाये| उन्ही के प्रयास से हर क्षेत्रों में अनेक प्राइमरी, मिडिल और उच्च स्तर के शिक्षण संस्थान खुलवाए गए| आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट की स्थापना उन्हीं की देन है| उन्होंने बच्चों के स्कूलों में मुफ्त में पौष्टिक आहार और दूध देने की योजना की भी शुरुआत की| इन्ही सब कारणों से उनके जन्म दिन को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है| यह बात अलग है कि आज भी हमारे देश के काफी बच्चे अभी भी सामान्य शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं से वंचित हैं| खेलने और पढ़ने की उम्र में वे अक्सर कूड़ों से पुनरुपयोगी वस्तुएं ढूँढते दिखलाई पड़ते हैं| ट्रेनों में हम अभी भी मूंगफली, केले, संतरे आदि के छिलके बैठने की जगह के पास ही गिराने में संकोच नहीं करते और छोटी उम्र के ही गरीब बच्चे उसे साफ़ करते दिख जाते हैं| उन्हें भी हम एक दो रुपये देने में खुदरा न होने का बहाना बनाने से बाज नहीं आते|
अभी भी सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन में अनियमितता और भ्रष्टाचार के शिकार ये ही बच्चे होते हैं| दूषित, जहरीले खाने खाकर अक्सर बीमार होने और अकाल मौत के शिकार ये नौनिहाल होते ही रहते हैं| इस प्रकार हम जितना भी ‘बाल दिवस’ और नेहरु जी की जन्म तिथि पर घोषणाएं या आयोजन कर लें, सही मायने में बाल कल्याण जब तक नहीं होगा, चाचा नेहरु आस-पास ही प्रश्न भरी निगाहों से मुस्कुराते नजर आएंगे|
हम सभी जानते हैं कि नेहरु जी का लालन पालन बड़े शाही अंदाज में हुआ और वे काफी शौकीन भी थे, पर महात्मा गाँधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े| अनेकों बार जेल गए, जेल में भी उनका अद्धययन और लेखन जारी रहा| जेल से उन्होंने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को अनेकों पत्र लिखे| इन पत्रों को ‘एक पिता का अपनी पुत्री को पत्र’ के रूप में कक्षाओं में पढ़ाया भी जाता है. इन्ही पत्रों से प्रेरणा लेकर श्रीमती इंदिरा गाँधी राजनीति में आयीं और एक दिन वह भी भारत की लोकप्रिय प्रधान मंत्री बनीं.

आधुनिक भारत के निर्माता कहे गए देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को आज सुनियोजित ढंग से अप्रासंगिक साबित करके हाशिए पर डालने की कोशिश की जा रही है। दूसरी ओर मरणासन्न हो चुकी कांग्रेस एक बार फिर नेहरू का नाम लेकर उठ खड़ी होने की जद्दोजहद में जुटी है। जाहिर है कि नेहरू ने कई गलतियां कीं। इसके बावजूद वे विश्व स्तरीय नेता थे इसमें कोई शक नहीं। कांग्रेस में आजादी के बाद जब नए प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए मतदान कराया गया तो नेहरू सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी के बाद तीसरे नंबर पर थे, लेकिन महात्मा गांधी ने वीटो करके नेहरू को प्रधानमंत्री निर्वाचित कराया। नेहरू गांधी जी के प्रिय जरूर थे, लेकिन जहां तक नीतियों के स्तर की बात है, नेहरू का रास्ता गांधीवाद से काफी जुदा था। फिर भी गांधी जी ने नेहरू को देश की बागडोर सौंपी। यह विपर्यास आजादी के बाद से लेकर अभी तक की देश की नियति को देखते हुए गांधी जी की सूझबूझ को साबित करता है। आज निष्पक्ष दृष्टिकोण से आजाद भारत के इतिहास का मूल्यांकन करने वाला हर शख्स इस नतीजे पर पहुंचता है कि अगर नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री न होते तो इस देश में भी भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों की तरह लोकतंत्र की अकाल मौत हो जाती और शायद पाकिस्तान की तरह यह देश भी और ज्यादा बंट जाता। नेहरू भारत के सबसे बड़े बेरिस्टरों में से एक मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे, जिसकी वजह से उनकी शिक्षा दीक्षा बहुत ही शाही अंदाज में हुई। आरंभिक शिक्षा उन्हें इलाहाबाद में ही उनके घर में दिलाई गई। इसके बाद वे इंग्लैंड भेज दिए गए जहां उन्होंने प्रसिद्ध हेरी स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद ग्रेजुएशन टे्रनिटी से किया। ‘ला ग्रेजुएट’ वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से बने। ऐसे में उनका मिजाज बेहद सुकुमार था। अंग्रेजियत का उन पर जबरदस्त प्रभाव था। बावजूद इसके वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े, तो उन्होंने अपनी जिंदगी का सारा तौर तरीका बदल दिया। उन्होंने अंग्रेजों के विरोध में हुए आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। पराकाष्ठा तो तब हुई जब 1929 में उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस का सम्मेलन लाहौर में हुआ जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से पूर्ण मुक्ति का प्रस्ताव पारित कर स्वतंत्र भारत का पहला ध्वज फहराया।
अंग्रेजियत के माहौल में पले बढ़े नेहरू का यह कारनामा उनके क्रांतिकारी किरदार को उजागर करता है। दूसरी ओर जब वे गांधी जी के संपर्क में आए तो फेशनेबिल नेहरू से खादी का कुर्ता पायजामा और सफेद टोपी लगाने वाले नेहरू बन गए। इसमें उन्होंने कुछ भी अटपटापन महसूस नहीं किया। आजादी की लड़ाई के लिए बार-बार जेल जाना उन्होंने अपना शगल बना लिया। इस व्यक्तित्व के आधार पर ही नेहरू करिश्माई नेता का विंब अपने लिए संजो सके जिससे राजशाही व अन्य चीजों को लेकर देश की जनता में जमी आस्था की गहरी पैठ को हिलाकर वे उसे लोकतांत्रिक चेतना में पिरोने का बड़ा काम कर सके।
ये ध्यान रखना होगा कि १४ नवम्बर को भले ही बाल दिवस के रूप में बच्चों को समर्पित हो या फिर विशुद्ध नेहरू जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता रहा हो, मनाया जा रहा हो, किन्तु बच्चों के प्रति सामाजिक जिम्मेवारी कदापि कम नहीं हो सकती| जिस दिन हम बच्चों के प्रति सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेंगे उसी दिन से सभी दिन बाल दिवस के रूप में स्वतः ही मनाये जाने लगेंगे|
सोनिया जी नेहरू जी की जन्म शताब्दी पर देश के प्रधानमंत्री को न्योता भेजने में शर्मा रहीं हैं… उनको शायद यह ज्ञात नहीं कि मोदी आज केवल बी जे पी के नेता ही नहीं हैं, मोदी आज पूरे देश के मुखिया हैं, प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस पार्टी यह भी देख रही है| मोदी जी को अपने देश क्या विदेशों में कितना सम्मान मिल रहा है आज श्री नरेंद्र भाई मोदी अगर देखा जाय तो श्री नेहरु जैसे ही अंतर-राष्ट्रिय नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहें हैं| अगर कांग्रेस पार्टी ऐसी ही गलतियां करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब मोदी जी का सपना पूरा होकर रहेगा “कांग्रेस मुक्त भारत का ” देश कांग्रेस मुक्त बन जायेगा| … कांग्रेसियों जरा सोंचो !
लेकिन नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए। पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुँचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए। नेहरू ने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढाया, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था और शायद उनकी मौत भी इसी कारण हुई। 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू को दिल का दौरा पडा जिसमें उनकी मृत्यु हो गई।
ऐसे महान और लोकप्रिय नेता को हार्दिक श्रद्धांजलि! उम्मीद है, मौजूदा सरकार भी बच्चों के प्रति वैसी ही विचारधारा का न केवल पालन करती रहेगी वरन दो कदम आगे बढ़कर काम करेगी!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday 9 November 2014

कहूंगा कम, काम ज्यादा करूंगा…

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद सबसे पहले उन्होंने लालपुर में बुनकरों के लिए ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर ऐंड क्राफ्ट्स म्यूजियम की आधारशिला रखी। इस मौके पर शहर के लोगों को विकास की गंगा बहाने का भरोसा दिलाते हुए मोदी ने कहा कि कहा जा रहा है कि मैं कई घोषणाएं करने वाला हूं, लेकिन मैं कहूंगा कम और काम ज्यादा करूंगा। उन्होंने कहा कि मैं आप लोगों से विचार लेकर काम करता जाऊंगा और उसके बाद उसके बारे में बताऊंगा।
इसके बाद उनका कार्यक्रम आदर्श ग्राम योजना के तहत जयापुर गांव को गोद लेने पहुंचे और वहां भी वाराणसी केजयापुर गांव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को प्रधान ‘सेवक’ के रूप में भी नजर आए। प्रधानमंत्री मोदी ने, माइक तक ठीक से नहीं पहुंच पा रहीं गांव की महिला प्रधान की मुश्किल को भांपते हुए, तुरंत सीट से उठकर खुद माइक को ठीक किया। वे किसी को भी इशारा मात्र कर सकते थे, पर नहीं उन्होंने खुद उठकर माइक को उनके मुख के पास कर दिया. इसे सब लोगों ने देखा और मीडिया ने उसे बार दिखाया और यह भी बताया कि यह हमारा प्रधान सेवक है | ग्राम प्रधान का माइक खुद ही ठीक कर यह जता दिया कि यहाँ भी उनका काम ही बोलेगा|
(इस कार्यक्रम के दौरान गांव की प्रधान दुर्गावती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करने के लिए स्टेज पर गईं, लेकिन माइक ऊंचा होने के कारण वह अपनी बात ठीक से नहीं पहुंचा पा रही थीं।)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जयापुर को औपचारिक रूप से सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद ले लिया है। इस मौके पर उन्होंने जयापुर को चुनने की वजह भी बताई। मोदी ने कहा कि मीडिया में पिछले कुछ दिनों से जयापुर को चुने जाने की वजह को लेकर कई काल्पनिक कथाएं चल रही हैं। उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि जब बीजेपी ने मुझे वाराणसी से लड़ने के लिए चुना था, तो इस गांव में संकट की खबर आई थी और इस संसदीय क्षेत्र से सबसे पहले इसी गांव का नाम मैंने सुना था।
गौरतलब है कि मोदी मीडिया में आईं उन रिपोर्टों का जिक्र कर रहे थे जिनमें कहा गया था कि जयापुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ है और यहां भूमिहारों और पटेल समुदाय के लोगों का बाहुल्य है। जयापुर वही गांव है जहां लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान हाइटेंशन तार से करंट उतर जाने की वजह से हड़कंप मच गया था। इसमें कुछ ग्रामीणों की जान भी चली गई थी और कुछ अन्य घायल हो गए थे। 13 अप्रैल 2014 को उन्होंने गांव के प्रधान को फोन करके हालचाल पूछा था।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैंने इस गांव को गोद नहीं लिया है, बल्कि इस गांव ने मुझे गोद लिया है। गांवों से जो सीखने को मिलता है वो कहीं और नहीं मिलता।’ मोदी ने कहा, ‘इतने पैसे खर्च हो रहे हैं, इतनी योजनाएं चल रही हैं, फिर भी गांवों का विकास नहीं हो पा रहा, आखिर क्यों? मैंने सचिवों से कहा है कि वे गांवों में जाकर वहां की हालत को पता लगाएं कि वहां विकास क्यों नहीं हो पा रहा।
प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कहा, ‘टीवी पर देख रहा हूं कि कई दिनों से जयापुर गांव चमक रहा है, सरकारी अधिकारी आ रहे हैं। गांववासी भी खुशी जता रहे हैं कि गांव साफ-सुथरा हो गया।’ इसके बाद उन्होंने गांव के लोगों से ही सवालिया अंदाज में पूछा कि क्या यह सफाई हम खुद नहीं कर सकते।
मोदी बोले, ‘मेरी कोशिश है कि हम जितने भी आगे चले जाएं, पर जिन्होंने हमें आगे भेजा है, उनको आगे बढ़ाने की भी तो कोई योजना हो।’ उन्होंने कहा कि मैंने पार्टी के लोगों और अधिकारियों से इस गांव की समस्या के बारे में पूछा है और जाहिर तौर पर इसका समाधान निकाला जाएगा, लेकिन उस बारे में मंच से नहीं कहा जा सकता है।
उन्होंने सुझाव दिया कि हमें गांव का जन्मदिन मनाना चाहिए और उसमें सबको भाग लेना चाहिए और उस मौके पर बुजुर्गों को सम्मानित करना चाहिए। इससे गांवों से जातिवाद खत्म होगा और विकास तेजी से होगा। उन्होंने बेटियों के जन्म को उत्सव की तरह मनाने को कहा। प्रधानमंत्री ने लोगों को बिना हाथ धोए कुछ नहीं खाने का संकल्प लेने को भी कहा।
बुनकरों के लिए केंद्र की आधारशिला रखते वक्त उन्होंने कहा, ‘आज में यहां अपनों के बीच आया हूं। मैं काशी के लोगों के सुख-दुख में उनके जनप्रतिनिधि के रूप में, एक सेवक के रूप में और साथी के रूप में हमेशा साथ हूं।’
बुनकरों की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारे देश में कृषि क्षेत्र के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाला कोई क्षेत्र है तो वो टेक्सटाइल है और कम पूंजी से ज्यादा लोग अपनी आजीविका चला सकते हैं। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें मजदूर और मालिक के बीच में खाई संभव ही नहीं है। खेती में भी किसान और मजदूर के बीच खाई नजर आती है। यह एक क्षेत्र ऐसा है, जहां पूरा माहौल एक परिवार की तरह होता है। न जाति होती है, न संप्रदाय, एक अपनेपन का माहौल होता है। जैसे कपड़े के तानेबाने बुने जाते हैं, वैसे ही ये बुनने वाले समाज का तानाबाना बुनते हैं।’
यह सेंटर बुनकरों और हस्तशिल्पियों की मदद के लिए बनाया जा रहा है। बुनकर के लिए बनाए जा रहा केंद्र हैंडलूम्स के लिए डिजाइन और प्रॉडक्शन के सेंटर के रूप में काम करेगा, लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि यह छोटे बुनकरों को यहां आकर बड़े खरीदारों को अपना माल बेचने में मदद करेगा। इससे बिचौलियों के खेल पर अंकुश लग सकता है और बुनकरों की जेब में ज्यादा पैसे पहुंचेंगे। यहां की बनारसी साड़ियां दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। इसे बनाने के काम में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जुड़े हैं। हालांकि कई ओबीसी भी बुनकरी के पेशे में हैं।
इस बात की औपचारिक घोषणा तो नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि पीएम 1,602 किमी़ लंबा इलाहाबाद-वाराणसी-हल्दिया जलमार्ग खोले जाने का ऐलान करेंगे। इस रूट पर कुछ नौकाएं परीक्षण के लिए चलाई जा चुकी हैं। अभी इस मार्ग का इस्तेमाल वाराणसी के पास सटे रामनगर तक ही होता है। यहां के लोग शहर के लिए एक आउटर रिंग रोड और मेट्रो की मांग भी कर रहे हैं, लेकिन मोदी के अब तक के भाषणों में इनका जिक्र नहीं आया है। हो सकता है कि वह वाराणसी-क्योटो करार पर बात करें, जिसके तहत जापान के शहर के साथ वाराणसी का विकास आधुनिक तकनीक के जरिये किया जाना है।
अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दो दिनों के दौरे के आखिरी दिन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगा के अस्सी घाट पहुंचे, जहां उन्होंने मां गंगा की पूजा-अर्चना की और कुदाल चलाकर और मिट्टी हटाकर घाट की सफाई की शुरुआत भी की। इसे सांकेतिक कहा जा सकता है, पर जिस ढंग और रफ़्तार से उन्होंने लगभग ७ मिनट तक फावड़े(कुदाल) चलाई, मिट्टी को कराही(तगाड़ी, टोकड़ी) में डाला, मानो उन्होंने इस काम को भी कभी किया है, मजदूरों के साथ मिलकर काम किया, थकान के बाद पसीने पोंछे, इसे क्या कहने की जरूरत है? बहुत सारे नेताओं, जानी मानी हस्तियों ने जिस प्रकार अपने स्वच्छता अभियान की शुरुआत करने के क्षणों के फोटो खिंचवाए, उन सबको श्री मोदी से सीखने की जरूरत है. इस मौके पर उन्होंने स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश से जुड़ी नौ हस्तियों को नॉमिनेट भी किया। अब यहाँ कहने और बताने की जरूरत है कि अगर देश का प्रधान मंत्री खुद कुदाल से मिट्टी हटाकर टोकड़ी में रख सकता है, तो बाकी क्यों नहीं?
मोदी ने सुबह-सुबह अस्सी घाट पर पंडितों की मौजूदगी में पूरे विधि विधान से गंगा पूजन किया और उसके बाद आरती की। इसके बाद कुदाल से उन्होंने मिट्टी हटाकर अपने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत वाराणसी में भी की। इस मौके पर उन्होंने कहा, ‘आज यह घाट की सफाई का काम शुरू किया है। मुझे यहां के सामाजिक संगठनों ने विश्वास दिलाया है कि एक महीने में पूरा घाट साफ कर दिया जाएगा। कई वर्षों में अपने आप में सफाई के माध्यम से यह अच्छी सौगात होगी।’
उत्तर प्रदेश में जिन नौ लोगों को प्रधानमंत्री ने नॉमिनेट किया है, उनमें राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, चित्रकूट विकलांग विश्वविद्यालय के वीसी स्वामी राम भद्राचार्य, भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता, गायक और अब दिल्ली से बीजेपी सांसद मनोज तिवारी, साहित्यकार मनु शर्मा, क्रिकेट खिलाड़ी और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके मोहम्मद कैफ, संस्कृत के विद्वान पद्मश्री प्रफेसर देवी प्रसाद द्विवेदी, हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव, क्रिकेटर सुरेश रैना और बॉलिवुड गायक कैलाश खेर शामिल हैं।
अब इसमें कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधान मंत्री श्री मोदी द्वारा नोमिनेट किए गए नामों में श्रीमान अखिलेश यादव सहित कोई भी इंकार तो नहीं ही कर सकेंगे.
सारांश यही है कि देश को संभवत: पहली बार ऐसा प्रधान मंत्री मिला है, जो खुद काम की शुरुआत कर दूसरों के लिए प्रेरणाश्रोत बना है. खुद अनुशासन बद्ध रहकर, समय का पाबंद होकर दूसरों के लिए प्रेरणा बनता है. अपनी बातों से जनता के दिल में जगह बनाता है. मंत्रिमंडल विस्तार में भी मोदी जी ने वही कुछ कर दिखाया जिसके बारे में पहले से कुछ नहीं कहा था..यानी कहूँगा कम काम ज्यादा करूंगा..ऐसा व्यक्तित्व जिसके गुण अब विरोधी भी गाने लगे हैं, चाहे वे कांग्रेस के नेता हों या आम आदमी पार्टी के केजरीवाल. ऐसे में सचमुच अब प्रधान मंत्री को ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी. पेट्रोल डीजल के लगतार गिरते हुए दामों का असर ट्रांसपोटरों ने अपने ट्रंकों का किराया कम कर सन्देश देने की कोशिश की है. बस और ऑटो के भी भाड़े कम होनेवाले हैं. नयी सब्जियों और फसलों के उत्पादन का असर भी उनके मूल्यों पर पड़ेगा ही. कानून ब्यवस्था राज्य के अन्दर का मामला है, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को तत्परता दिखानी होगी, अन्यथा विकल्प मोदी की भाजपा ही होगी, ऐसा संकेत मिलने लगा है. विकास और नए संयंत्रों की स्थापना से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बेरोजगारों को रोजगार मिलेंगे. . तब होगा सम्पूर्ण विकास, सबके साथ. कुछ दिन और करें इंतज़ार!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Monday 3 November 2014

एकता की दौड़ और फडणवीस की ताजपोशी

३१ अक्टूबर सरदार वल्लभ भाई पटेल की १३९ वीं जयंती पर प्रधान मंत्री द्वरा घोषित एकता की दौड़ (रन फॉर यूनिटी) की शुरुआत हुई. पूरा देश एकता के लिए दौड़ा. प्रतीकात्मक शुरुआत दिल्ली में विजय चौक से इंडिया गेट तक प्रधान मंत्री के साथ हुई जिसे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी झंडा दिखाकर औपचारिकता पूरी किया. पर इस दौड़ में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, संजय गाँधी शामिल नहीं हुए तो शक्ति स्थल पर इन्दिरा गाँधी को श्रद्धांजलि देने केवल सोनिया गाँधी सपरिवार पहुंची प्रधान मंत्री श्री मोदी वहां नहीं गए. (एकता की मिशाल अच्छी है?).
देश को एकता के सूत्र में बांधने वाले नायक सरदार वल्लभभाई पटेल को ऐसी श्रद्धांजलि कभी नहीं मिली थी, जो उन्हें 139वीं जयंती पर मिली। इस मौके को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था और देश के कई हिस्सों में ‘रन फॉर यूनिटी’ के नाम से दौड़ का आयोजन किया है। विजय चौक पर दौड़ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया और भीड़ के साथ वह भी करीब एक किलोमीटर तक चले। राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तो हैदराबाद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह इसी तरह के आयोजन में नजर आए।
इस मौके पर मोदी ने कहा, ‘इतिहास पुरुष आने वाली पीढ़ियों में नई उमंग भरते हैं। सरदार पटेल ने किसानों को आजादी के आंदोलन से जोड़कर अंग्रेजी सल्तनत को हिला दिया था। वह देश की एकता के लिए समर्पित थे। उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधा था।’ इसके बाद प्रधानमंत्री ने कहा, ‘सरदार और गांधी जोड़ी अद्भुत थी। जैसे स्वामी विवेकानंद के बिना रामकृष्ण परमहंस अधूरे थे वैसे ही सरदार पटेल के बिना महात्मा गांधी अधूरे थे।’
मोदी ने सरदार पटेल को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो राष्ट्र अपने इतिहास का सम्मान नहीं करता, वह इसका सृजन कभी नहीं कर सकता। आकांक्षाओं से भरे देश, एक देश जिसके युवा सपनों से भरे हैं, उसके लिए हमें अपने ऐतिहासिक हस्तियों को नहीं भूलना चाहिए। इतिहास, विरासत को विचारधारा के संकीर्ण दायरे में न बांटें। हमें एकता का मंत्र लेते हुए आगे बढ़ना है।’
कार्यक्रम की शुरुआत संसद भवन के नजदीक पटेल चौक पर सरदार पटेल की बड़ी तस्वीर पर प्रधानमंत्री के पुष्पांजलि अर्पित करने का साथ हुई। मोदी के साथ इस दौरान रक्षा और वित्त मंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू, दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग भी मौजूद थे। इसके बाद मोदी विजय चौक पर ‘रन फॉर यूनिटी’ को हरी झंडी दिखाने पहुंचे। करीब 10 हजार से ज्यादा लोगों को हरी झंडी दिखाकर रवाना करने के बाद मोदी भी भीड़ के साथ तेज कदमों से चल पड़े।
राजधानी दिल्ली के अलावा कई दूसरे शहरों में भी इसी तरह की दौड़ का आयोजन किया जा रहा है। दौड़ का उद्देश्य लोगों में एकता और भाईचारा बढ़ाना है। साथ ही सरकार की ओर से इसके जरिये पटेल के विचारों को भी लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में है। दौड़ के मद्देनज़र पूरे इलाके में सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
मोदी ने आज पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी 30वीं पुण्यतिथि पर स्मरण किया। मोदी ने ट्वीट किया, ‘मैं देशवासियों के साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर याद करता हूं।’ इंदिरा गांधी की आज के ही दिन 1984 में उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी।
उधर वानखेड़े स्टेडियम में देवेन्द्र फडणवीस ऐतिहासिक ताजपोशी जिसमे उनके सहयोगी दलों खासकर उद्धव ठाकरे की उपस्थिति भी अच्छी एकता को प्रदर्शित करती है(?). अब शिवसेना भाजपा के साथ सत्ता में भागीदार होगी या नहीं सस्पेंस बना हुआ है. अमित शाह लगातार कोशिश कर रहे हैं. अब समुद्र में भी कमल खिल गया है. इसके पहले शिवसेना ने खूब नाटक रचे, पर इस नाटक का सुखांत होना अच्छी बात है. उद्धव जी को भी अपनी ताकत का अहसास हो गया, आखिर बड़े भाई और छोटे भाई में झगड़ा तो होता ही रहता है, पर अंत में गले मिल जाएँ यही तो भारतीय जन-मानस चाहता है. उम्मीद की जानी चाहिए भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई एक बार फिर से ‘हैप्पी न्यू इयर’ मनायेगी.वानखेड़े स्टेडियम को सजाने में किये गए एक सौ करोड़ के खर्च की भरपाई जल्द ही पूरी कर लेगी आखिर विमान कंपनियों को भी पांचगुना किराया वसूल करने का मौका मिला है. भव्य समारोह की भव्यता में चार चाँद अवश्य लग गए जब एक सम्मानित नेता राजीव प्रताप रूढ़ी सभास्थल की सफाई में लग गए …प्लास्टिक के बोतल आदि समेट कर एक बड़े थैले में रखने लगे.
देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं। शुक्रवार को उन्होंने वानखेड़े स्टेडियम में पद और गोपनीयत की शपथ ली। फडणवीस के साथ 9 मंत्रियों ने भी शपथ ली। इसमें 7 कैबिनेट और 2 राज्य मंत्री हैं।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी मौजूद थे। उद्धव ठाकरे इस समारोह में शामिल नहीं होने वाले थे, लेकिन शुक्रवार सुबह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने उनसे बात की जिसके बाद वह समारोह में शामिल होने के लिए राजी हो गए। सूत्र बताते हैं कि शिवसेना का कोई पैंतरा काम नहीं कर रहा था लेकिन उसका एक हथियार काम कर गया और बीजेपी को झुकना पड़ा। बीजेपी ने शिवसेना की उस सबसे कम हिस्सेदारी की मांग का भी जवाब नहीं दिया था जिसमें उसने अपने बस दो मंत्रियों को शपथ दिलाने की मांग की थी। लेकिन गुरुवार रात को शिवसेना ने बीजेपी को बता दिया कि वह शपथ ग्रहण समारोह का बॉयकॉट नहीं करेगी। लेकिन इसके साथ ही एक शर्त भी जोड़ी गई थी। सेना ने कहा कि वह देवेंद्र फडणवीस के शपथ लेने के फौरन बाद सदन में विपक्ष के नेता के नाम का ऐलान कर देगी। शिवसेना के इस रुख से बीजेपी नेताओं के हाथ-पांव फूल गए। उन्हें अहसास हुआ कि ठाकरे न सिर्फ गंभीर हैं बल्कि उन्होंने तो रविंद्र वाइकर के रूप में नेता विपक्ष के लिए नाम भी तय कर लिया है। इसके बाद बीजेपी नेताओं ने आनन-फानन में मातोश्री फोन करने शुरू किए। बताया जाता है कि शुक्रवार को शपथ ग्रहण से पहले पांच घंटों में पांच बार फोन किया गया। तीन बार तो देवेंद्र फडणवीस ने खुद फोन किया। उन्होंने उद्धव को मनाने की कोशिश की और उन्हें बाला साहेब ठाकरे की इच्छा की दुहाई भी दी।
इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से बता की। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी अध्यक्ष ने यहां तक कहा कि नरेंद्र मोदी चाहते हैं, ठाकरे समारोह में शामिल हों। चलिए चाहे जो भी हो अंत भला तो सब भला.
शपथ लेने वाले मंत्रियों में दिवंगत बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे के अलावा विनोद तावड़े, चंद्रकांत पाटील, विष्णु सावरा, एकनाथ खड़से, दिलीप कांबले और सुधीर मुनगंटीवार शामिल हैं।
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी भी इस ऐतिहासिक मौके पर मौजूद थे। यह पहली बार है जब बीजेपी ने अपने दम पर महाराष्ट्र में सरकार बनाई है। इससे पहले वह शिवसेना की जूनियर पार्टनर रही थी।
हालांकि बीजेपी के पास बहुमत नहीं है और यह अल्पमत की सरकार है, जिसमें शिवसेना अभी शामिल नहीं हुई है। लेकिन माना जा रहा है कि शिवसेना के कुछ नेताओं को भी मंत्री बनाया जाएगा, लिहाजा उसका शामिल होना लगभग तय है।
शपथ ग्रहण समारोह में उद्योग, फिल्म और राजनीतिक जगत की कई बड़ी हस्तियां भी शामिल हुईं। इनमें अनिल अंबानी, विवेक ओबेरॉय और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर शामिल हैं।
नागपुर के पूर्व मेयर और महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की पत्नी एक प्राइवेट बैंक एक्सिस बैंक, नागपुर में कार्यरत हैं. पत्रकारों के सवाल पर अभी तो अपना विचार व्यक्त कर चुकी हैं कि जहाँ भी उनकी जरूरत होगी वह वहां रहेंगी.
देवेन्द्र फडणवीस नए युवा चेहरा हैं. ये मोदी के खासमखास हैं और इनपर कोई दाग नहीं हैं. इनमे वे सारे गुण हैं जो नरेंद्र मोदी में हैं. आर एस एस, अमित शाह से करीबी होने का भी फायदा उन्हें मिलेगा.
उधर बीजेपी नेता सुब्रमण्यण स्वामी ने काले धन के मुद्दे पर सरकार की कमियां गिनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में स्वामी ने सरकार के मंत्रियों से विदेशी खाते पर हलफनामा देने की मांग की है। स्वामी उन लोगों में से हैं जो सभी विदेशी खाताधारकों के नाम सार्वजनिक करने की मांग कर रहे थे। स्वामी ने चिट्ठी में लिखा है, ‘जिस तरह सुप्रीम कोर्ट में काले धन को लेकर सरकार अपना पक्ष रख रही है उससे देश की जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं में निराशा है। सरकारा सुप्रीम कोर्ट में DTAT का हवाला दे रही है कि जो सरकार की पहली बड़ी गलती है। DTAT उन भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होता जो विदेशों में कमा रहे हैं और यहां टैक्स नहीं देते।’ स्वामी ने ये भी कहा की जर्मनी और फ्रांस की सरकार ने उन सभी खाताधारकों की लिस्ट दी थी जिन्होंने HSBC और LGT बैंक में अपने खाते खुलवाए थे।
उधर 2G घोटाले के विशेष कोर्ट में ए राजा. कनिमोझी सहित १९ लोग दोषी ठहराए गए हैं. करीब २०० करोड़ के घोटाले में इन बड़ी हस्तियों पर कार्रवाई कोर्ट का सराहनीय फैसला ऐसे समय में आया है. कुछ बड़ी मछलियाँ भी तो फंसे.
सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े 200 करोड़ रुपये की हेराफेरी के मामले में 19 लोगों पर आरोप तय कर दिए हैं। स्पेशल कोर्ड ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा आरोपित सभी 19 आरोपियों के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग के आरोप लगाए गए हैं। आरोपियों में 10 लोग और 9 कंपनियां हैं। स्पेशल जज ओ. पी. सैनी ने सभी के खिलाफ आईपीसी की धारा 120 (बी) और प्रिवेंशन ऑफ मनी लाउंड्रिंग ऐक्ट के तहत आरोप तय किए हैं। इस मामले में अधिकतम 7 और कम-से-कम तीन साल की सजा का प्रावधान है।
जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं उनमें डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्माल, पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा, डीएमके सांसद कनिमोड़ी, स्वान टेलिकॉम प्राइवेट लिमिटेड (एसटीपीएल) के प्रमोटर शाहिद उस्मान बलवा और विनोद गोयनका, कुसेगांव रीयल्टी प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर आसिफ बलवा और राजीव अग्रवाल, बॉलिवुड प्रड्यूसर करीम मोरानी और कलैगनार टीवी के एमडी शरद कुमार शामिल हैं।
कंपनियों में स्वान टेलिकॉम प्राइवेट लिमिटेड के अलावा कुसेगांव रीयल्टी प्राइवेट लिमिटेड, सिनेयुग मीडिया ऐंड एंटरटेनमेंट, कलैगनार टीवी प्राइवेट लिमिटेड, डायनामिक्स रीयल्टी, एवरस्माइल कंस्ट्रक्शन कंपनी, कॉनवुड कंस्ट्रक्शन ऐंड डेवलपर्स, डीबी रीयल्टी लिमिटेड और निहार कंस्ट्रक्शंस प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं।
बहुत सारे विचारकों का कहना है देश चल पड़ा है, या कहें कि दौड़ने लगा है. सेंसेक्स में उछाल, अर्थव्यवस्था की पटरी पर लौटना, मेक इन इण्डिया का नारा, स्वच्छ भारत अभियान, जनधन योजना सब कुछ सफल होता दीख रहा है. डीजल, पेट्रोल के दाम लगातार गिर रहे हैं, सोना चांदी भी सस्ता ही मिल रहा है और अभी खरीदने से कोई मना भी नहीं कर रहा है. खाद्य पदार्थ और अन्य जरूरत के सामानों के दाम गिरने चाहिए. आलू प्याज आदि सब्जियों के दाम पर अंकुश और जरूरत और आपूर्ति के बीच सामंजस्य बढ़ाना जरूरी है. महिलाओं और कमजोर वर्गों पर होनेवाले अत्यचार बंद होने चाहिए. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि सबको उपलब्ध हो यही तो मोदी जी भी चाहते हैं तो इसे पूरा करने में सभी को जी जान से लग जाना चाहिए. और अब तो मोदी जी विदेशों में जमा काला धन को भी वापस लाने की बात कहकर लोगों की उम्मीदें और बढ़ा दी है कब आएगा तीन लाख रुपये हर भारतीयों के खाते में. तब तक उधार में आलू-प्याज खरीदा जा सकता है चाहे जो मूल्य चुकाने पड़े. और अब तो सुना है केजरीवाल भी मोदी जी के वक्तृत्व-कला के फैन हो गए हैं. उन्हें याद होगा ए.के.-49 .
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर