Thursday 31 October 2013

चन्द्रगुप्त और चाणक्य

चन्द्रगुप्त मौर्य पर अन्यान्य आलेख मौजूद है. इतिहास में भी बहुत बातें विवादित हैं, पर जो सच्चाई सबको मालूम है - वह यह कि महानंद बहुत धनी और घमंडी राजा था. चाणक्य उसकी दान-संघ का अध्यक्ष था. चाणक्य महानंद के मंत्री शकटार का ही चयन था. शकटार तीक्ष्ण बुद्धि का था, पर घमंडी नन्द ने उसके किसी चतुर बात(राज्य हित की बात) से ही रुष्ट होकर, परिवार सहित उसे कैद में डाल दिया था. कैद में भी उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रेरित होकर महानंद पुन: उसे मत्रीपद पर नियुक्त कर दिया.
शकटार के मन में नन्द के प्रति घृणा थी और नन्द को काले कलूटे लोगों से चिढ़ थी. शकटार ने कूटिनीति के तहत चाणक्य (जो कि काले ब्रह्मण थे) को नन्द की सभा में उच्चासन पर बैठा दिया, जिसे देखते ही नन्द चिढ़ गया और उसे गद्दी से उतार दिया. चाणक्य ने उसी समय अपनी चोटी (शिखा) को खोलते हुए कहा था. “जबतक वह नन्द वंश का नाश नहीं कर लेता, अपनी शिखा नही बांधेगा.”
चाणक्य अन्यमनस्क से चले जा रहे थे... तभी देखा कि एक लड़का जो पशुओं की चरवाही करते हुए राजा बनने का अभिनय कर रहा था. दूसरे चरवाहे उसकी प्रजा बने हुए थे. चाणक्य को कौतूहल हुआ. वे राजा बने हुए चन्द्रगुप्त के पास जाकर बोलते हैं – “राजन हमें दूध पीने के लिए गऊ चाहिए.” राजा बने हुए बालक चन्द्रगुप्त ने कहा- “वो देखिये, सामने गौएँ चर रही हैं. आप उनमे से जितनी चाहे अपनी पसंद से ले लें.”
चाणक्य ने इस बालक में राजा की छवि देखी और उसे राजा बनाने के विचार से अपने साथ में ले लिया. उसे युद्ध कौशल सीखने के लिए सिकंदर की सेना में भर्ती भी करवा दिया. बाद में यही चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त किया और मगध का राजा बना और पाटलिपुत्र उसकी राजधानी. उसने अपने राज्य का विस्तार भी किया और चाणक्य को अपना मंत्री/मुख्य सलाहकार बनाकर रक्खा.
चीनी यात्री फाहियान के अनुसार चन्द्रगुप्त के राज में सभी सुखी थे और अपना वाजिब कर राजा को अवश्य चुकाते थे. राजा भी प्रजा के सब सुख सुविधा का ख्याल रखते थे. एक दिन फाहियान चाणक्य से मिलने आया. वह चन्द्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था.
चाणक्य के मेज पर दो मोमबत्तियां थी जिसमे एक जल रही थी. वह मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे. फाहियान के आने पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली. फाहियान ने पूछा – “महाराज, आपने ऐसा क्यों किया?”
चाणक्य ने जवाब दिया – “पहली मोमबत्ती राजा के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था. अब मैं आपसे व्यक्तिगत बात कर रहा हूँ, इसलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली.”
फाहियान ने कहा – मुझे जवाब मिल गया. जहाँ आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी?
पाठक इस दंतकथा में इतिहास का मीन-मेख न निकालें. मूल भाव को समझने का प्रयास करें!  

-    -  जवाहर लाल सिंह 

Monday 14 October 2013

मलाला का मलाल

तालिबान से ल़डने वाली मलाला को शांति का नोबल पुरस्कार नहीं मिला है. केमिकल हथियारों के खिलाफ लड़ने वाली OPCW नाम की संस्था को इस साल का शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया है.
इससे पहले मलाला यूसुफजई ने कहा था कि वह अपनी आदर्श बेनजीर भुट्टो के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए प्रधानमंत्री बनना चाहती है और इस पद का इस्तेमाल अपने देश की सेवा करने के लिए करना चाहती हैं.
मलाला पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर को अपने आदर्शों में से एक मानती है और उसका कहना है कि वह उन्हें सबसे ज्यादा पसंद करती हैं. वह भविष्य में अपने देश का नेतृत्व करना चाहती है. राजनीति उसे अपने देश की सेवा करने का मंच मुहैया कराएगी.
उसने कहा कि वह पहले चिकित्सक बनने का सपना देखा करती थी, लेकिन अब वह राजनीति में आना चाहती है.
तालिबान के हमले का शिकार बनने और मौत का सामना करने के बावजूद उसने सपने देखना बंद नहीं किया है और वह शिक्षा के लिए काम करना चाहती है.
मलाला ने कहा,”तालिबान मेरे शरीर को गोली मार सकता है लेकिन वे मेरे सपनों को नहीं मार सकते.” उसने कहा कि तालिबान ने उसे मारने और चुप कराने की कोशिश करके अपनी ‘सबसे बड़ी’ गलती की है.
मलाला का जन्म 1998,में पाकिस्तान के खैबर पख़्तूनख़्वाह प्रान्त के स्वात जिले में हुआ वह मिंगोरा शहर में एक आठवीं कक्षा की छात्रा है। 13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में एक छद्म नाम के तहत बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गयी। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में शामिल किया , वह पहली पाकिस्तानी लड़की थी जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। दक्षिण अफ्रीका के नोबेल पुरस्कार विजेता देस्मुंड टूटू एम्स्टर्डम ने हॉलैंड में एक समारोह के दौरान २०११ के इस नामांकन की घोषणा की, लेकिन युसुफजई यह पुरस्कार नहीं जीत सकी और यह पुरस्कार दक्षिण अफ़रीक़ा की 17 वर्षीय लड़की ने जीत लिया यह पुरस्कार बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था हर साल एक लड़की को देती है। मलाला ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे। ९ अक्टूबर २०१२ में, मंगलवार को दिन में करीब सवा 12 बजे स्वात घाटी के कस्बे मिंगोरा में स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया था। इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली।
मलाला युसुफ़ज़ई मिंगोरा, जो स्वात का मुख्य शहर है, में रहती है। मिंगोरा पर तालिबान ने मार्च २००९ से मई २००९ तक कब्जा कर रखा था, जब तक की पाकिस्तानी सेना ने क्षेत्र का नियंत्रण हासिल करने के लिए अभियान शुरू किया। संघर्ष के दौरान वह छद्म नाम “गुल मकई” के तहत बीबीसी के लिए एक डायरी लिखी, जिसमें उसने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का वर्णन किया था.११ साल की उम्र में ही मलाला ने डायरी लिखनी शुरू कर दी थी। वर्ष २००९ में बीबीसी ऊर्द के लिए डायरी लिख मलाला पहली बार दुनिया की नजर में आई थी। गुल मकई नाम से मलाला ने अपने दर्द को डायरी में बयां किया। डायरी लिखने की शौकीन मलाला ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’ जब स्वात में तालिबान का आतंक कम हुआ तो मलाला की पहचान दुनिया के सामने आई और उसे बहादुरी के लिए अवार्ड से नवाजा गया। इसी के साथ वह इंटरनेशनल चिल्डेन पीस अवार्ड के लिए भी नामित हुई। मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार धमकियां मिलीं। मलाला ने तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज ११ साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया था। मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं। तीन साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी। लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी। स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी। मलाला भी इसकी शिकार हुई। लेकिन अपनी डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरुक किया बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया। तालिबान ने वर्ष २००७ में स्वात को अपने कब्जे में ले लिया था। और लगातार कब्जे में रखा। तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे। कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी। उस दौर के अपने अनुभवों के आधार पर इस लड़की ने बीबीसी उर्दू सेवा के लिए जनवरी, २००९ में एक डायरी लिखी थी। इसमें उसने जिक्र किया था कि टीवी देखने पर रोक के चलते वह अपना पसंदीदा भारतीय सीरियल राजा की आएगी बारात नहीं देख पाती थी।
अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में शांति को बढ़ावा देने के लिए उसे साहसी और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए, उसे पहली बार 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला था। मीडिया के सामने बाद में बोलते हुए,उसने शिक्षा पर केन्द्रित एक राजनितिक दल बनाने का इरादा रखा। सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल, मिशन रोड, को तुरंत उसके सम्मान में मलाला युसुफजई सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल नाम दिया गया। वर्ष 2009 में न्यूयार्क टाइम्स ने मलाला पर एक फिल्म भी बनाई थी। स्वात में तालिबान का आतंक और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध विषय पर बनी इस फिल्म के दौरान मलाला खुद को रोक नहीं पाई और कैमरे के सामने ही रोने लगी। मलाला डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी और तालिबानियों ने उसे अपना निशाना बना दिया। उस दौरान दो सौ लड़कियों के स्कूल को तालिबान से ढहा दिया था। वर्ष 2009 में तालिबान ने साफ कहा था कि 15 जनवरी के बाद एक भी लड़की स्कूल नहीं जाएगी। यदि कोई इस फतवे को मानने से इंकार करता है तो अपनी मौत के लिए वह खुद जिम्मेदार होगी।
नोबेल पुरस्कारों के एलान से एक दिन पहले ही मलाला युसुफजई को यूरोपीय संघ के प्रतिष्ठित सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान किया गया. यूरोपीय संसद के सदस्य इस पुरस्कार का विजेता वोटिंग से तय करते हैं.
हालांकि इस पुरस्कार के मिलने के बाद मलाला को नोबेल मिलने की संभावना के और कमजोर पड़ने की बात कही जा रही थी. नोबेल पुरस्कारों के लिए इस साल रिकॉर्ड 259 नामांकन हुए हैं, जिनमें बताया जाता है कि पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई का नाम भी शामिल है, जिसे तालिबान ने पिछले साल गोली मार दी थी. हालांकि बाद में पाकिस्तान के सैनिक अस्पताल और ब्रिटेन में इलाज के बाद वह चंगी है.
शांति पुरस्कारों और दूसरे नोबेल पुरस्कारों के लिए नामांकन का काम जनवरी में ही पूरा हो जाता है, लिहाजा इसके बाद के नामों पर चर्चा नहीं की जाती. ओस्लो को पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख क्रिस्टियान बर्ग हार्पविकेन ने हालांकि अपनी अलग सूची बनाई है, जिसमें पहले नाम पर मलाला का नाम है. यह सूची उनकी वेबसाइट पर भी है. हार्पविकेन का कहना है, “वह सिर्फ लड़कियों और महिला शिक्षा और सुरक्षा की पहचान नहीं बनी है, बल्कि आतंकवाद और दबाव के खिलाफ लड़ने की प्रतीक भी बन चुकी है.”
तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने चेतावनी दी है कि किशोरी मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई की किताब ‘‘आई एम मलाला’’ बिक्री करते पाये गए लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
मौका मिलने पर मलाला पर हमले की शपथ लेने वाले तालिबान ने दावा किया है कि उसने वीरता का कोई काम नहीं किया है बल्कि अपने धर्म इस्लाम को धर्मनिरपेक्षता से बदल लिया है और इसके लिए उसे पुरस्कृत किया जा रहा है.
मलाला यूसुफजई ने अब तक जो हासिल किया है, वह सिर्फ वही कर सकती थी। और आने वाले दिनों में वह जो कुछ पाना चाहती हैं, उन्हें भी दोहराया न जा सकेगा। क्योंकि यह वाकई एक अजूबा है। मलाला के लफ्ज में वह जादुई तासीर है, जो सीधे लोगों के भीतर उतर जाती है। और यह नैतिक बल पाने के लिए इस बच्ची ने बहुत दर्द सहा है। १२.जुलाई २०१३ शुक्रवार को मलाला ने अपना सोलहवां जन्मदिन संयुक्त राष्ट्र में मनाया। इस वैश्विक संस्था में दुनिया भर के नुमाइंदों से रूबरू मलाला ने बुलंदी के साथ अपनी बात रखी और संसार के तमाम बच्चों को मुफ्त तालीम देने की पुरजोर अपील की। मलाला को संयुक्त राष्ट्र के मुख्य चैंबर में उस कुरसी पर बिठाया गया, जो आम तौर पर किसी मुल्क के सदर या वजीर-ए-आजम को दी जाती है। जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून मलाला को ‘आवर चैंपियन, आवर हीरो’ जैसे अल्फाज से नवाज रहे थे, वह खामोशी से उन्हें सुन रही थी। पर जब उनके बोलने की बारी आई, तो मलाला ने कहा, ‘दहशतगर्दो ने सोचा कि वे हमारे इरादे को बदल देंगे, हमारी मंजिल हमसे छीन लेंगे, लेकिन मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला बजाय इसके कि मेरे भीतर की कमजोरियों, खौफ व हताशा का खात्मा हो गया और उनकी जगह ताकत, मजबूती और दिलेरी ने जन्म लिया है।’
मलाला एक बहादुर लडकी है और वह किसी तालिबान की चेतावनी क्या गोलियों की भी परवाह नहीं करती! ऐसी लडकी को हर जगह अपेक्षित सम्मान मिलना ही चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र ने उसका सोलहवां जन्म दिन मनाया और इस दिन यानी १२ जुलाई को मलाला दिवस के रूप में घोषित किया! यह पाकिस्तान में जन्मी किसी भी लड़की के लिए गर्व की बात है. यह सही है कि इस्लामिक देशों में महिलाओं को दबाकर रक्खा जाता है. बेनजीर भुट्टो और वर्तमान में हिना खर उन सबमे अलग है पर भरता में तो नारियों की पूजा की जाती है ऐसा हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं और अभी नवरात्रि में दुर्गा नौ रूपों की पूजा भी की जाती है अंतीं दिन नौ कन्याओं को पूजा जाता है पर उसके बाद क्या हम हर बालिका, कन्या, किशोरी, महिला को उसी दृष्टि से देखते हैं. हमारे देश में भी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गाँधी, मेधा पाटेकर, कल्पना चावला, ममता बनर्जी आदि वीर महिलाएं है, हम सबको उनका और उन जैसी महिलाओं को सम्मान करना ही चाहिए बल्कि बलात्कार के खिलाफ लड़नेवाली का भी यथोचित सम्मान किया जाना चाहिए! मलाला को भी इस बात का मलाल नहीं होना चैये कि उसे शांति का नोबल पुरस्कार नहीं मिला …अभी बहुत समय है उसे बहुत सारे पुरस्कार का हकदार बनाने के लिए!

Friday 11 October 2013

पूजा मार्केट और बोनस!

पूजा मार्केट और बोनस
सडकों पर, बाजारों में काफी भीड़ है …. कही तिल रखने की जगह नहीं … दूकानदार अपनी दुकान से आगे बढाकर सड़कों का अतिक्रमण किये हुए है, वही फेरी वाले, फूटपाथ दूकानदार भी सड़क पर कब्ज़ा किये हैं…. आखिर बात क्या है … पूजा बाजार है भाई!… हर साल दुर्गा पूजा के मौके पर बाजारों में, सडकों पर ऐसी ही भीड़ रहती है, रिक्शा से जाने से अच्छा है पैदल जाना, चौपहिया वाहन अगर फंस गया तो निकलना मुश्किल … बाइकर्स तो किसी तरह रास्ता निकाल ही लेंगे.
हर तरह के लोग, हर आय वर्ग के लोग खरीदारी में मशगूल है … दूकानदार भी विभिन्न प्रकार के ऑफर स्कीम लेकर आए हैं, आपको आकर्षित करने के लिए. २०% छूट, तीन के साथ एक फ्री, सोने के गहने पर पर १० % छूट, खादी पर २०% छूट.. छूट ही छूट… इसमें कही नहीं है लूट!
गाड़ी चेकिंग हो रहा है, सब पेपर सही हैं. इन्सुरेंस ..हाँ भाई है …. पोलुसन सर्टिफिकेट …. नहीं है …पकडाए २००० रुपये स्पॉट फाइन! हेलमेट जरूर पहनकर जाइएगा… बिना हेलमेट पकडाए तो ५०० रूपया फाइन!… ट्रैफिक एस पी खुद चेक कर रहे हैं…. बचकर निकलना मुश्किल है.
“अजी सुनते! हो शर्मा जी के यहाँ एल ई डी वाला टी वी आगया, वर्माजी नया सोफासेट खरीदे हैं, ऊ मिश्राइन नया झुमका दिखा रही थी हमको. हमरे किस्मत फूटल है … अभीतक बोनस का मार्केटिंग नहीं किये हैं. इनको तो ई एम आई का ही चिंता लगा हुआ है. पूरा कोलोनी कुछ न कुछ खरीद रहा है …हे भगवान! कब इनको सुबुद्धि आयेगी. हमको तो घर से बाहर निकलना मुश्किल है…. कल ही मिसेज चौबे ताना मार रही थी … आपके यहाँ पुराना डब्बा वाला टी वी अभीतक चल रहा है? … ऊ तो नया मोबाइल भी बार बार चमका रही थी.
आखिर गजोधर भाई भी बाजार गए … क्या करते … गाडी पार्किंग का कहीं जगह नहीं है …मिश्रा जी ठीके कह रहा था. … ऑटो से ही आना चाहिए था.
पार्किंग के चक्कर में एक किलोमीटर और ज्यादा चक्कर लगाना पड़ा … एगो कोना में जगह खाली था. वहीं लगा दिए क्या करते. अब वहां से पैदल आने में तो पहले ही थक गए … अब दुकान में खड़ा होने का भी जगह नहीं है. दुकान का लड़का बाहरे आकर बोलता है – क्या चाहिए सर! आप पसंद कर लीजिये शाम तक आपके घर में पहुंच जायेगा. हाँ पता ओर मोबाइल न. लिखवा दीजियेगा.
अरे बाप रे! जूता दुकान में इतना भीड़ … छोड़ो … बाद में खरीद लेंगे. “बाद में तो आप ऐसे मटियाते रहेंगे. लेट से घर आएंगे कहेंगे…. आज बहुत थके हैं… छोटका कब से पुराने जूता पहन के जा रहा है … आपको कुछो बुझाता है … सब लड़िकन इसको चिढ़ाता है… कंजूस बाप का बेटा! स्कूल से आकर रोज बोलता है! आपको तो ई सब सुनना नहीं पड़ता है …लगे रहेंगे मोदी और आडवाणी के पीछे.”
“अच्छा एक काम करते हैं, पहले हमलोग कुछ नाश्ता कर लेते हैं, क्या बाबु? क्या खायेगा बोल… चलो तुमको डोसा खिलाते हैं” …डोसा के दुकान में भी लाइन लगा है… अभी टेबुल खाली भी नहीं हुआ कि आदमी पहले से ही बैठने को खड़ा है. एक छोकड़ा आकर कहता है बाबूजी! आपलोग ऊपर चल जाइए…. फेमिली वाले के लिए ऊपर ही ब्यवस्था है …
डोसा बनाने में भी तो टाइम लगता है … जो पहले से आर्डर दिया है, उसका पहले आयेगा…
“खैर, अब नाश्ता पानी हो गया! अब चलते हैं किसी कपडे की दुकान में …. सुनते हैं बाजार कोलकाता में नया नया डिजाइन आया है … अरे बाप रे!… यहाँ भी ठेलम ठेल है …ई महंगाई में भी आदमी के पास इतना पैसा है?” … तो डबल पगार ‘बोनस’ काहे को देती है कंपनी …. इसीलिये न कि आपलोग कुछ स्पेसल खरीददारी कर सकें …
कपड़े का डिजाईन तो ठीके है, अब पसंद करना है… बच्चों का तो हो गया … अब मैडम के लिए साड़ी देखनी है….. साड़ी भी नाक भौं सिकोड़ते हुए ले ही लिया गया …. श्रीमती जी भुनभुनाती है – “इसीलिये इतना दिन पहले से बोल रहे थे. इस भीड़ में ठीक से देखने/पसंद करने का मौका मिलता है? अब अपने लिए भी देख लीजिये.” “छोड़ो न… मेरा तो सब पैंट- शर्ट ठीके है” … “ठीके है का मतलब? पूजा में नया कपड़ा नहीं पहनियेगा? नहीं लीजियेगा तो हम तो नहीं जानेवाले आपके साथ… घूमने के लिए” … “अच्छा भाई, ले लो! मेरे लिए भी तुम ही लोग पसंद करो जो ठीक लगता है …. ले लो.”
“आज का बाजार तो हो गया…. बाकी बाद में देखा जायेगा. अरे! मेरा गाडी कहाँ गया?” छोटका बोला – “यही तो है पापा, लगता है पीछे से कोई ठोक दिया है, नंबर प्लेट भी गायब है… “ऐसे में अगर पुलिसवाला देख लेगा तो वह भी अपना हिस्सा मांगने लगेगा. चलो अब जल्दी घर चलो … अब गाडियों ठीक ठाक कराना पड़ेगा … लग गया ५-६ हजार का गच्चा!!!
ये रहा गजोधर भाई का हाल… बाकी सब लोगों की कमोबेश वैसी ही स्थिति है. बोनस मिला है तो कुछ अतरिक्त खर्च भी करने ही होंगे. सब्जियों के दाम अचानक दुगुने हो गए. फल भी डेढ़ गुने तो हो ही गए हैं. कपड़े गहने आदि पर बोलता तो है कि छूट दे रहे हैं पर वे लोग हैं बड़े चालक! दाम पहले से ही बढ़ा देते हैं और छूट का लालच देकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं. घर के सामानों में भी विशेष ओफ्फर या छूट देने का दावा करके नौकरी पेशा वाले को लूट ले जाते हैं.
पर एक बात और ख़ास है, आपको सस्ते सामान भी मिल जायेंगे… १५० रु. का शर्ट और २०० रु की साड़ी भी मिल जायेगी!… इस महंगाई के ज़माने में … वो क्या है, कि हर वर्ग के लोग तो नए कपड़े बनवाना चाहते हैं … अब प्रतिदिन १०० -१५० रु. कमाने वाला आदमी तो अपनी जेब देखेगा न! दूसरी तरफ आपके बोनस की राशि में सबका हिस्सा बनता है … आखिर टाटानगर शहर, आप नौकरी पेशा वाले पर ही तो डिपेंडेंट (निर्भर) है!
नए कपड़े पहनकर त्यौहार मनाना हमारे संस्कार में है. दैनिक क्रियाकलाप तो जिन्दगी भर करनी होती है. त्यौहार के अवसर पर हम सभी इस आयोजन में शामिल होकर नयी उर्जा और उत्साह का वातावरण सृजित करते हैं. देखा देखी कर अपनी औकात से ज्यादा खर्च करना हमेशा ही हानिकारक होता है! कुछ तो लोग कहेंगे ही … अगर आप दिखावा के लिए अपनी औकात से ज्यादा खर्च करते हैं, तब भी लोग कहेंगे …और अति कृपणता में अपने परिवार को व्यथित करते हैं, तब भी अशांति का खतरा है! अत: सामंजस्य बैठाना आवश्यक है!
जय माँ दुर्गे!
या देवी सर्वभुतेशु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभुतेशु विद्या रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभुतेशु शांति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

Sunday 6 October 2013

माननीय की बेटी की शादी

रांची झारखण्ड की राजधानी है और जमशेदपुर झारखण्ड की आर्थिक राजधानी. जैसे दिल्ली और मुंबई. जमशेदपुर का एक बड़ा हिस्सा टाटा कंपनी को ‘लीज’ पर दिया हुआ है. इस इलाके में बिजली, पानी, सड़क, की ब्यवस्था टाटा की ही एक इकाई जुस्को के जिम्मे है. जुस्को टाटा के अधिकार क्षेत्र की जिम्मेवारी बखूबी निभाता है. इन्ही इलाके में सर्किट हाउस भी है, उपायुक्त का कार्यालय एवं निवास है, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ कुछ माननीय जन प्रतिनिधियों को भी यह सुविधा प्राप्त है. इन्ही में से एक माननीय हैं कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य श्री बालमुचु, कभी वे भी टाटा स्टील के कर्मचारी थे. बाद में उनकी राजनीति में दिलचस्पी बढ़ी और विधायक से अब सांसद तक की स्थिति में हैं. बहुत बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. मुख्यमंत्री नहीं बन पाए ... सोनिया गाँधी के बुलावे पर उन्होंने नया सूट बनवाया था उसे ही पहन कर गए थे सोनिया जी से मुलाकात करने पर सोनिया जी मिलीं नहीं. अगर मिलतीं तो मुख्य मंत्री बन ही जाते. यह सुबोधकांत और राजेन्द्र सिंह ही कुछ कान भर दिए थे. हमेशा अपने लोग ही धोखा देते हैं. जाने दो मुझे नहीं बनने नहीं दिया तो खुद भी कहाँ बन पाय. गुरूजी के बेटे की जीहुजूरी कर रहे हैं. मैं भी तो राज्य सभा सांसद हूँ मेरा रुतवा क्या कम है?... रुतवा कम नहीं है.
इन्ही बालमुचू की बिटिया की शादी है ५ अक्टूबर को ... गणमान्य लोग आएंगे, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री भी आएंगे. रांची के सभी गणमान्य जमशेदपुर में होंगे. रांची से जमशेदपुर आने का सुगम मार्ग, सड़क मार्ग ही है समय ढाई से तीन घंटे लगते हैं, अगर सड़क ठीक हो और जाम न हो तो मात्र १३० किलोमीटर की दूरी ही तो है. ज्यादातर लोग सड़क मार्ग से ही आते-जाते है. कोलकता को मुबई से जोड़ने वाली एन एच – ३३, जिसे अब सिक्स लेन बनाने की योजना है, अभी काफी जर्जर अवस्था में चांडिल से लेकर बहरागोरा तक १२० किलो मीटर की दूरी तय करने में बाबा रामदेव के सारे आसन हो जाते हैं. कुछ गाड़ियाँ तो शीर्षासन भी कर लेती हैं, पूरी यात्रियों के साथ. पिछले साल में अबतक कम से कम ३०० लोगों की जान जा चुकी है, इस सड़क पर हुई दुर्घटनाओं में. गाड़ियाँ खराब होती हैं, होने दीजिये, कितने मेकानिक सड़क के किनारे दुकान सजा कर बैठे हैं, आखिर उनकी भी तो रोजी-रोटी चलनी चाहिए.  जमशेदपुरवासी आश लगाये बैठे थे कि माननीय लोग भी इस सड़क से आएंगे और सड़क की जर्जर अवस्था से परिचित होंगे, उन्हें जब दर्द होगा तो जनता के दर्द को समझेंगे ...
किन्तु यह क्या सभी माननीय उड़नखटोले से ही आए. जमशेदपुर के हवाई अड्डे पर उतरते ही पत्रकारों ने केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री ओस्कर फ़र्नान्डिस से पूछ डाला – “सर एन एच - ३३ काफी जर्जर अवस्था में है, आपको पता है?”
“कैसे पता होगा भाई! आपने कोई लिखित पत्र दिया है? उसकी फोटो मुझे दिखाई है? नहीं न. तो फिर कैसे मालूम होगा? हमें इतना पता है कि अगले महीने हमको झारखण्ड में ही एक सड़क का उद्घाटन करने आना है, सड़क का नाम और नंबर पता नहीं.  हम तो राज्य सरकार को धन मुहैया करते हैं, यह काम उसका है कि वह कैसे खर्च करती है. आपलोग मुख्यमंत्री से क्यों नहीं पूछते? अपने इलाके के संसद को क्यों नहीं बताते?”
आनन-फानन में एक पत्र ड्राफ्ट किया गया और जमशेदपुर के ही प्रखर सांसद डॉ. अजय कुमार ने वह चिट्ठी मुख्यमंत्री को सुपुर्द की. मुख्यमंत्री नौजवान हैं. दिशोम गुरु के लाडले हैं. अपने पूज्य पिता के सपनो को साकार करने को आतुर हैं .. लेकिन अभी तो अपने ही सहयोगी दल के सांसद की बिटिया को आशीर्वाद और उपहार देना है. पत्र को अपने सचिव को थमाते हुए कहा – “इस गंभीर मुद्दे पर पूजा बाद बैठक बुलाएँगे. सभी सहयोगे दलों को बुलाएँगे, विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करेंगे .. आखिर इस इलाके की ही सड़क हमेशा ख़राब क्यों हो जाती है? हो सकता है, इस पर जांच आयोग भी बैठानी पड़े. तबतक क्या पता हमारी सरकार रहती है या चली जाती है! यहाँ तो २८ महीने और १४ महीने का कार्यकाल होता है. हमारे पिताजी तो सिर्ग १५ दिन के लिए ही मुख्य मंत्री रहे थे, आपलोग किसी सरकार को स्थिर रहने नहीं देते... जबतक हम समस्या के जड़ में पहुचते हैं, आपलोग सरकार ही गिरा देते हैं. आपलोग जनता में जागरूकता पैदा करिए कि वह केवल हमें ही वोट करे. अबकी बार पूर्ण बहुमत में आएंगे तब पूरा विकास करेंगे अपना भी और जनता का भी. आखिर हमे भी तो अपने पिताजी की लाज रखनी है.”
“सर तब तक तो इस सड़क पर चलने वाली गाड़ियाँ ख़राब होती रहेगी और लोग मरते रहेंगे.”   
“आपलोग भी न अर्थनीति कुछ नहीं समझते. आपको तो पता है ऑटो उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है. आपका टाटा मोटर्स भी बार बार ब्लॉक क्लोजर के दौर से गुजर रहा है. अब आप बताइए कबतक लोग पुरानी गाडी को ढोते रहेंगे. पुरानी जर्जर गाड़ी को कबाड़ में डालिए और नयी गाड़ी  खरीदिये तभी ऑटो उद्योग अपनी पटरी पर आयेगा, कुछ नए इंजिनीयर, तक्नीसियन की बहाली भी हो जायेगी.”
महामहिम राज्यपाल महोदय भी आकर चले गए. उनके लिए विशेष ब्यवस्था की गयी थी. वैसे अब तो वे ‘पावर’ में भी नहीं हैं. जब यहाँ राष्ट्रपति शासन चल रहा था, तब वे खुद बन रही सड़क का मुआयना करने निकल पड़ते थे. वे तो अपने जूते से खुरच कर सड़क की गुणवत्ता की जांच करते थे.

बहरहाल सांसद महोदय की बेटी का विवाह संत जोर्ज चर्च में सादे समारोह में, धूमधाम से संपन्न हो गया. प्रधान मंत्री और सोनिया गांधी आ जाते तो हम निहाल हो जाते. कम से कम राहुल गाँधी ही  आ जाते तो आगे का रास्ता साफ़ हो जाता. कोई बात नहीं विडिओग्राफर को कहेंगे, कही से सोनिया और राहुल गाँधी को भी विडिओ में डाल दे.           

Wednesday 2 October 2013

रघुपति राघव राजाराम....

रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
सीताराम सीताराम,
भज प्यारे तू सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान
सबसे पहले इस गीत को १२ मार्च १९३० को दांडी मार्च करते हुए पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर द्वारा गाँधी जी और उनके सहयोगियों के साथ गाया गया! इसे बापू के प्रिय भजन में भी शामिल किया. इस गाने में हिन्दू मुस्लिम एकता के सन्देश में पूरे भारत को पिरोया गया…
उसके बाद ‘जय रघुनन्दन जय सियाराम, जानकी वल्लभ सीता राम के रूप में फिल्म ‘भरत मिलाप’ में १९४२ में गाया गया. उसके बाद १९५४ में फिल्म जागृति में ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, रघुपति राघव राजा राम’ के रूप में गाया गया. १९७० में पूरब और पच्छिम में यह धुन बजा, १९९८ में ‘कुछ कुछ होता है’ में, लगे रहो मुन्ना भाई में भी में भी इस गीत को जगह मिली और प्रकाश झा के ‘सत्याग्रह’ के बाद, अब लेटेस्ट कृष-३ में ह्रितिक रोशन और प्रियंका चोपड़ा के साथ थिरकते हुए इसके स्वरूप को बिलकुल ही बदल दिया गया जैसे ‘ओम शांति ओम’ में शाहरुख़ खान ने ‘ओम शांति’ ‘ओम’ का मजाक उड़ाया.
वन्दे मातरम को सर्वप्रथम १८८२ आनंदमठ में बंकिम चन्द्र चट्टोपद्ध्याय ने लिखा और रविन्द्र नाथ टैगोर १८९६ में कलकता के कांग्रेस अधिवेसन में गाया. इस गीत को सभी स्वतंत्रत सेनानियों ने अपनाया और आज भी हम वन्दे मातरम में देश भक्ति का भाव ही पाते हैं. बीच बीच में कुछ धार्मिक संगठनो द्वारा इसका विरोध अवश्य हुआ पर बॉलीवुड के प्रख्यात संगीतकार ए. आर. रहमान ने स्वतंत्रता दिवस के ५० वें वर्ष गाँठ पर १५ अगस्त १९९७ को इसे अपने सुर के साथ लता जी को भी मिला लिया. इस एल्बम के ऑडियो वीडियो को खूब पसंद किया गया और दूरदर्शन ने इसे खूब दिखाया/प्रचारित किया
आब आइये कुछ और भक्ति भाव के धरोहरों की चर्चा करें – हनुमान चालीसा सबको पता है और पूजा करते समय के अलावा हम सभी विपत्ति में घिरते वक्त इसे अवश्य गाते हैं/याद करते हैं.
हनुमान चालीसा के बाद और भी बहुत सारे धार्मिक चालीसा का अवतरण हुआ जैसे शिव चालीसा, दुर्गा चालीसा, शनि चालीसा, साईं चालीसा आदि आदि…
धार्मिक चालीसा के बाद राजनीतिक या प्रख्यात व्यक्तियों के ऊपर चालीसा भी बनाये गए जैसे लालू चालीसा, नितीश चालीसा, अमिताभ चालीसा आदि… आदि…
कुछ व्यंग्यकारों ने ‘पत्नी चालीसा’ और ‘मच्छर चालीसा’ आदि भी बनाये अभी तत्काल में ‘मोदी चालीसा’ का अवतरण हो गया है
समय की मांग के अनुसार हम सभी बदलते हैं और उगते हुए सूर्य की तरह ही उभरते हुए लोगों के सम्मान में हम सभी गुणग्राही लोग गुण ग्रहण करते ही हैं…. हो सकता है नेहरू चालीसा, इंदिरा चालीसा, राजीव चालीसा, सोनिया चालीसा और अब राहुल चालीसा भी बन जाय तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए!
“समय समय सुन्दर सबै रूप कुरूप न कोय! जित जेती रूचि रुचै तित तेती तित होय.” और “सब दिन होत न एक समाना” सभी को याद रखना चाहिए.
हे राम ! जय श्री राम! रघुपति राघव राजाराम!
जवाहर लाल सिंह