Sunday 29 December 2013

नए लोकतंत्र की शुरुआत (ऐतिहासिक दिन २८ दिसंबर २०१३)

३२ विधायकों के साथ उभरी भाजपा को बैकफुट पर धकेलती, २८ विधायकों वाली ‘आम आदमी पार्टी’ दिल्ली के उपराज्यपाल से निमंत्रण पाती है. तत्काल कांग्रेस के ८ विधायकों का बिना शर्त समर्थन की चिट्ठी उप राज्यपाल तक पहुँच जाती है, तब भी ‘आप’ के संयोजक और विधायक दल के नेता को सरकार बनाने की कोई जल्दी नहीं. जनता की आम राय से फैसला… आखिर जनता ने ही उन्हें चुनकर भेजा है. बिना कोई सुरक्षा के बिना लाल, पीली बत्ती वाली गाड़ी के, मेट्रो द्वारा रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के लिए जाना … लाखों जनता के बीच शपथ ग्रहण और संबोधन ….सब कुछ अजूबा सा लगता है. सरकार बनाने की शपथ लेने से पहले जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्या सुनना. कुछ नया करने की तमन्ना … रामलीला मैदान में आम आदमी, महिला, बुजुर्ग, नवयुवकों का उत्साह के साथ उपस्थिति दर्ज कराना…. स्वानुशासित भीड़!
काफी विवादों से गुजरने के बाद सभी पार्टियाँ और दूसरी पार्टियों के नेता भी शुभकामनायें देने लगे. अपने कार्यकर्ताओं को आम आदमी से सीख लेने को कहने लगे हैं. इसी बीच सी. एन. जी, और पी. एन. जी. के दामों में वृद्धि कर एक और महंगाई की मार करने वाली केंद्र सरकार पर उंगली उठाई … ऑटो चालकों से अरविन्द केजरीवाल का मिलना…. ‘दो दिन तो रुक जाते! दामों में वृद्धि करने से पहले मशवरा तो कर लेते!’
लोगों की आशाएं, बिजली, पानी, भ्रष्टाचार से मुक्ति, भ्रष्ट अफसरों में हरकंप, अनिल कपूर के नायक की तरह … देखना है, अरविन्द नए सूरज की रोशनी में और अधिक खिलते हैं या … जोश भी है, उत्साह भी है, साथ भी है, वर्तमान के साथ स्वर्णिम भविष्य भी है.
“कौन कहता है कि आसमां में सूराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों.” – मशहूर शेर.
अरविन्द की अभी तक की जिन्दगी की दास्तान यही कहती है कि उनके हिम्मत और जोश ने उनके कंटीले रास्ते को भी आसान किया है.
पहले संबोधन में ही समर्थन करने वाली कांग्रेस पार्टी के साथ दूसरी(भाजपा) को भी ललकार कर कहना – विश्वास में पास या फेल की चिंता उन्हें नहीं है, वे तो फिर से चुनाव में जाने के लिए तैयार बैठे हैं, क्योंकि उन्हें सत्ता सुख का मोह नहीं. उन्हें ‘आम आदमी’ के लिए काम करना है. चिंता दूसरी पार्टियों को करना है क्योंकि दूसरी पार्टियों से लोग ‘आप’ की तरफ खींचे चले आ रहे हैं. ऐसे में भाजपा पूरी तरह से रक्षात्मक खेल खेल रही है. ‘आप’ को बदनाम करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती. ऐसे में नितिन गडकरी का सनसनी खेज खुलासा कि किसी उद्योगपति ने कराई ‘आप’ ओर कांग्रेस की ‘डील’. अब यह सब कहने का कोई फायदा नहीं … आपने मौका गंवाया है. आप भी ‘आप’ को बिना समर्थन दे सकते थे, जैसा कि कांग्रेस ने किया अब कांग्रेस और आप में ‘डील’ कहने से क्या फायदा. आपने मैदान छोड़ा … ४ विधायक का जुगाड़ नहीं कर सके या डर गए!
ऐसा शायद पहली बार ही देखने सुनने में आया है कि शपथ दिलानेवाले उप राज्यपाल ने पूरा शपथ पढ़ा हो और शपथ लेने वाले उसे दुहराते हैं. इस बार सभी सातो शपथ लेने वाले मंत्रियों के साथ यह सिलसिला जारी रहा.
लोगों के मन में आशंकाएं है ‘आप’ को भी है. पर विजय रथ पर सवार भला हार जीत की कब परवाह करता है. रिश्वत लेनेवाले को रंगे हाथ पकड़ने का ऐलान. सत्ता सम्हालते ही कुछ अफसरों का तबादला(सभी अफसर भ्रष्ट नहीं हैं), और अस्पताल का औचक निरीक्षण!… कुछ दिन तो दीजिये इस नयी युवा की टीम को!
और एक पैगाम – “इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा ….”
वन्दे मातरम!
शुभकामनायें इस नयी टीम को! अन्ना के अर्जुन को!
अभी अभी कल ही ABP न्यूज़ पर टाटा स्टील, जमशेदपुर के एक अधिकारी का साक्षात्कार देखा जो अरविंद केजरीवाल के साथ टाटा स्टील के ही जी. टी. होस्टल में रहते थे. उन अधिकारी के अनुसार शनिवार,रविवार या अन्य छुट्टी के दिनों में जब वे लोग पिकनिक या सैर सपाटे को निकल पड़ते थे – अरविंद पास की बस्ती में बच्चों, नौजवानों को पढ़ाने के लिए निकल पड़ते थे.ऐसे जुनूनी आदमी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है. ईश्वर में अटूट बिश्वास के साथ अपनी आत्मा की आवाज़ पर आगे बढ़ते जाने का नाम ही अरविंद केजरीवाल है…. रोको मत, उसे जाने दो! नया इतिहास बनाने दो!
-जवाहर लाल सिंह. जमशेदपुर.

Sunday 1 December 2013

नारी सशक्तीकरण- जागृति ही बचाव है!

दामिनी, निर्भया, गुड़िया, सोनाली, गीतिका, मधुमिता,  भंवरी देवी, रूपम पाठक,  अनुराधा बाली उर्फ़ फिजा, अपने माँ बाप द्वारा जघन्य मौत की शिकार आरुषी और अब उस पर फिल्म बनाने की बेशर्मी..... आदि के साथ जघन्य और क्रूरतम दरिन्दगी, कानून में बदलाव,  सजा का ऐलान, त्वरित अदालतें, ज्यादातर मामलों में अपराधी किश्म के विक्षिप्त नौजवान, कुछ रसूखदार राजनीतिक, गैर राजनीतिक, संत आशाराम जैसे लोग... पहले बचते, फिर फंसते, .... नारायण साईं जैसा, पहले अपने पिता का बचाव करते ... फिर स्वयम फंसने के बाद भूमिगत होना और कोर्ट द्वारा भगोड़ा  घोषित.....    
पुलिस अधिकारी के. पी. एस. गिल, नारायण दत्त तिवारी जैसे सम्मानित बुजुर्ग, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कांग्रेस नेता और अब सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत न्यायाधीश ए. के, गांगुली,.. और ....तहलका के पत्रकार ५० वर्षीय तरुण तेजपाल, और ना जाने कितने... कितने लोग, कोई बच जाता, छिप जाता, सामने आता, दांत निपोरता, .... बेदाग़! आखिर तरुण तेजपाल स्टिंग ऑपरेशन के महारथी, पत्रकार से बने बड़े ब्यावसायी काफी दाँव-पेंच के बाद कानून के गिरफ्त में!
क्या हो गया है, इस देश को? ... नारियों की सम्मान की रक्षा में लंका दहन, रावण मरण से लेकर महाभारत की गाथा लिखने वाले आर्यावर्त के भारतवर्ष की क्या यही नियति बाकी रह गयी है. बहुत सारे लोग, बहुत सारे विद्वान और बहुत सारे तर्क! ....कुतर्क! ... प्राकृतिक और स्वाभाविक प्रक्रिया, नारी को भोग्या और उपभोग की वस्तु समझना, हमारे धर्मग्रंथों में भी उचित सम्मान नहीं, फिर नारी मुक्ति आन्दोलन, महिला आयोग! और कितनी संस्थाएं, अब ‘लिव इन रिलेशन’ को सही ठहराता सुप्रीम कोर्ट भी ... विवाह आदि सामाजिक संस्था को नकारना. धर्म और समाज से अलग नए समाज और उत्थान की कामना! और कितनी उच्छ्रिन्खलता, स्वच्छंदता के नए आयाम सृजित किये जायेंगे. विवाहेतर संबंधों की भी अतिशयता ...कोई दिशा निर्धारित नहीं...पल पल बदलते हालात...
मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता और यौन संबंधों के परत दर परत उघाड़ती, अबोधों को नि:शब्द करती, बी ए पास कराती फ़िल्में, टी. वी. सीरियल भी पीछे नही, टी. वी. का दिन प्रति दिन स्लिम होता स्क्रीन.... समाचारों के माध्यम से भी अश्लीलता को पड़ोसन की सोची-समझी साजिश ... भोंड़े विज्ञापन...  ‘अंकल’ शब्द को परिभाषित करने की नयी कोशिश ....उत्पाद को बेचने की नयी नयी विकसित कलाएं .... द्विअर्थी लोकप्रिय होते, फ़िल्मी गैर फ़िल्मी गाने .... कहाँ जा रहे है हमलोग!     
महिलाएं अब हर पेशे में अपनी महानता सिद्ध कर चुकी हैं, फिर भी वह प्राकृतिक रूप से कमजोर होने के कारण अपने ही सहयोगियों, वरिष्ठ अधिकारियों, सम्बन्धियों द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकार होती बेटियां, माताएं, बहनें ...जाय तो जाय कहाँ?. स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक एक बिना दूसरे की कल्पना करना ही असंभव ... दोनों को एक दूसरे की जरूरत, पर रजामंदी जरूरी ..क्यों एक तरफ़ा हमला,... ऐसा एकदम नहीं, कि हमेशा पुरुष ही हमलावर होता है, कभी कभी महिलाएं भी जुर्म करती या बदला लेतीं, कही चंद पैसों या अपनी महत्वाकांक्षा के आवेश में पड़कर, षड्यंत्र में शामिल होती.
इतना सब कुछ देखने, सुनने के बाद क्या जरूरत नहीं है, एक बड़े बहस की, सर्वमान्य और सर्वप्रिय मान्यता की? हम दूसरे के क्रिया कलाप देख... झेंपने, सकुचाने, शर्माने या मुंह छिपाने का असफल प्रयास करते दीख जाते हैं. जब तक यह दूसरों पर हो रहा होता है, हम मजा ले-ले कर सुनते सुनाते, देखते दिखाते ...पर अगर किसी अपने सगे संबंधी को भुक्त भोगी या लिप्त पाकर अपना होश नहीं खो बैठते हैं? डॉ. तलवार दंपत्ति ने भी होश खोया था... अब समाज के सामने खुद को बेदाग साबित करने की कोशिश ? रसूखदार लोग? बेटी से ज्यादा इज्जत की चिंता ....
घटनाएँ पहले भी घटती थी, पर ‘लोकलाज’ के डर से अधिकांशत: मामले दबा दिए जाते थे. पर अब महिलाएं, लड़कियां जागृत हो, मुखर होने लगी है, मीडिया या सहयोगियों का समर्थन पा अब अदालतों तक जाने लगी हैं. पर हमारी अदालतों का अत्यंत धीमा रफ़्तार, हजारों लाखों लंबित मुकदमे ... दिन प्रतिदिन होते सैंकड़ों अपराध जो थाने तक भी नहीं जाते..... थाने में भी दुर्व्यवहार! कई बार दूसरी महिलाएं भी इस तरह के वारदात में सहभागी, पत्नी, बेटी, सहकर्मी या अन्य के रूप में!
नहीं, नहीं... ऐसा नहीं होना चाहिए, नैतिक शिक्षा, यौन शिक्षा, संयम, योग, आदि को बुनियादी शिक्षा में शामिल करना होगा, समाज को दुरुस्त करना होगा. हम हमेशा दूसरों में दोष देखते हैं. अपने अन्दर झांकने की कोशिश कभी नहीं करते. एक फिल्म में दिखलाया गया था - समाज द्वारा घोषित बदचलन महिला को पत्थरों से मारे जाने की सजा, ...वहीं नायक सामने आता है और कहता है कि “पहला पत्थर वही मारे जिसने कभी पाप न किया हो” ...और सबके हाथ के पत्थर, हाथ से छूट नीचे गिर जाते हैं.
तात्पर्य यह कि हर व्यक्ति(अपवाद हो सकते हैं) कभी न कभी किसी न किसी अपराध में शामिल रहा है ... जो छिपा है, छिपा है ...पर कबतक? हम अपने को सुधारने का प्रयास नही करते और चाहते हैं पूरी दुनिया सुधर जाय, जबकि शुरुआत अपने आप से होनी चाहिए, अपने घर से होनी चाहिए.  सुख, संतोष आत्मसंतुष्टि की परिभाषा बदलनी होगी, तलाशने होंगे नए रास्ते जो नैतिकता के साथ बौद्धिकता को बढ़ाये और शिखर तक ले जाय .... सूर्य की भाँति, खुद जलकर दुनिया को रोशनी देने वाला.... कोई शंकराचार्य, विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस .... हरि ॐ .....हरि ॐ हरि ......जय माँ काली, जय माँ दुर्गे, जय माँ शारदे! 

प्रस्तुति – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 

Monday 25 November 2013

हजारीबाग में झारखण्ड का पहला ओपेन जेल

हजारीबाग में झारखण्ड का पहला ओपेन जेल
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव सुधार प्रक्रिया के अंतर्गत जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. पर हमारे माननीयों ने इस फैसले के खिलाफ तुरंत नया कानून बनाकर संसद से पास करा दिया कि जबतक जेल में बंद व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में है, चुनाव लड़ने का अधिकारी है. अब सुप्रीम कोर्ट क्या करती आखिर वे कानून के आधार पर ही तो अपना फैसला सुनाती है.
इधर झारखण्ड सरकार ने अपने राज्य में नयी शुरुआत की है, हजारीबाग में नया ओपेन जेल  का उद्घाटन कर के. इस ओपेन जेल में कैदियों को सुधरने का मौका दिया जायेगा और उनपर कम से कम प्रतिबन्ध होंगे. ये कैदी अगर भटक कर किसी अपराध से जुड़ गए और बाद में उन्होंने अपने आप में सुधार कर लिया है, तो उन्हें और भी सुधरने का मौका दिया जायेगा. उन्हें अपने पैर पर खड़ा होने के लिए आवश्यक सुविधायें मुहैया कराई जाएगी.
इनमे वैसे नक्सली भी हैं, जो बाद में अपने को मुख्य धारा में शामिल होना चाहते हैं. इस तरह के कैदी इन ओपेन जेल में अपने परिवार के साथ भी रह सकते हैं, उनपर सुरक्षा या पाबंदी कम से कम होगी.
वैसे जेल का दूसरा नाम सुधार गृह भी है, पर जेल की यातना. खतरनाक अपराधियों का साथ कभी-कभी उन्हें और भी अपराधी बना देता है. तिहाड़ जेल इसका बड़ा उदाहरण है, १९९३ से १९९५ तक तिहाड़ जेल की आई.जी. रह चुकी किरण बेदी ने भी कैदियों के सुधार के लिए कई कार्य किये और सुर्ख़ियों में रहीं. 
ओपन जेल की अवधारणा के पीछे असली भावना यही है कि कैदियों/अपराधियों को सुधरने का मौका दिया जाय और परम्परागत  कारागार में भीड़ को कम किया जाय.
पहल ओपन जेल १८९१ में स्वीटजरलैंड में स्थापित किया गया, उसके बाद १९१६ में अमेरिका में, १९३० में ब्रिटेन और १९५० में नीदरलैंड में स्थापित किया गया. उसके बाद श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग,  चीन, जापान, पाकिस्तान और भारत में भी ऐसे ओपन जेल बनाये गए.
भारत में पहला ओपन जेल १९०५ में बम्बई प्रेसिडेंसी में स्थापित किया गया, हालाँकि इसे १९१० में बंद कर दिया गया. उसके बाद १९५३ में बनारस के चन्द्रप्रभा नदी के डैम के निर्माण के समय ओपन कैम्प के रूप में रक्खा गया.
फ़िलहाल भारत में कुल ४४ ओपन जेल हैं, जिनमे लगभग पौने चार हजार कैदी रह रहे हैं.
झारखण्ड के हजारीबाग में इसे एक नयी शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है, जिनमे अभी २५ कैदियों को रखा गया है.
अगर वास्तव में यह प्रयोग सफल होता है तो निश्चित ही अपराधियों में सुधार और भविष्य में अपराध न करने की प्रेरणा मिलेगी. झारखण्ड सरकार के इस प्रयास को बहुत सारे पत्रकारों ने सराहा है.
दुर्भाग्य अपने देश का है, जहाँ दिन प्रतिदिन हर प्रकार के अपराध में वृद्धि होती जा रही है. न्याय प्रक्रिया की जटिलता और देरी से भी अपराधों में इजाफा हो रहा है. अपराध करने वालों में शातिर अपराधी के साथ साथ भले और सभ्य लोग भी लिप्त पाए जा रहे हैं. जरूरत है पूरी नैतिकता और शुचिता के अंतर्मनन की. समाज के उच्पदस्थ, शिक्षित, समाजसेवी, और सच्चे संतों को आगे बढ़कर शुचिता के मानदंड को स्थापित कर उसे अधिक से अधिक विकसित करने के लिए आगे आना चाहिए, तभी सही मायने में स्वस्थ और परिमार्जित समाज की कल्पना की जा सकती है.  

-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Tuesday 19 November 2013

गजब का धैर्य है बिहारियों में …

नरेंद्र मोदी अहमदाबाद (१७.११.१३)में कह रहे थे – गजब का धैर्य है बिहारियों में …
२ नवंबर को पटना में बिहारियों के धैर्य की प्रशंशा कर चुके थे. उन्हें लगा होगा कि बिहारियों में समझदारी की भी कमी है. .. वे कह रहे थे – आप लोग यहाँ मेरा भाषण सुन रहे हो… कोई जोर से चिल्ला दिया सांप!… सांप ! तो क्या आपलोग भागोगे नहीं? लेकिन देखो बिहारी लोग कितने धैर्यवान होते हैं. … उधर बम फट रहा है, फिर भी मेरा भाषण एकाग्रचित्त होकर सुने जा रहे हैं …उसके बाद भी आज तक उनमे कोई हरकत नहीं हुई? इन्डियन मुजाहिद्दीन और मुस्लिन आतंकवादी के नाम पर भी कोई हरकत नहीं?……गजब का धैर्य ….
ऐसे भी वे कुछ गलत नहीं कह रहे थे. … राजेंद्र बाबू, और श्री कृष्ण सिंह की जन्म भूमि आज बेहद शांत है. जयप्रकाश नारायण ने एक ज्योति (मशाल) जलाई थी. कई नेता उनमे लालू, नितीश, रामविलास पासवान, सुशील मोदी, …आदि आदि ..सभी उस मशाल को टुकड़े टुकड़े कर बुझा दिए….
१५ सालों तक लालू को झेला, अब नीतीश को झेल रहे हैं. ..कोई सुगबुगाहट ही नहीं होती? उनका किसानो का नेता बरह्मदेव सिंह अपने घर के बाहर मारा जाता है, पटना में थोडा सा तोड़ फोड़ कर शांत हो जाते हैं.लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के सभी आरोपी बाइज्जत बड़ी हो जाते हैं, फिर भी कोई हरकत नहीं…
मुम्बई में मार खाते हैं,… ठाकरे परिवार से गलियां सुनते हैं…कुछ फर्क नहीं पड़ता ..दिल्ली से भी जलील होते हैं, दक्षिण से भगाए जाते हैं, फिर भी हर जगह रिक्शा चलाने, कुलीगिरी आदि छोटे छोटे काम करने में ये लोग ही आगे रहते हैं.
गजब का धैर्य!…. मारीसस में मिट्टी खोदने के लिए गिरमिटिया बन कर जाते हैं … वहाँ के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री बन जाते हैं, फिर भी अपने पुराने टूटे खडंहर घर को देखने के लिए आ जाते हैं…
ऐसा धैर्य बिहारियों में ही हो सकता है …..

Wednesday 13 November 2013

रोक नहीं सकते तो मजा लीजिये, एन्जॉय करिए !

सी बी आई डिरेक्टर श्री रणजीत सिन्हा का बयान आया अगर सट्टेबाजी और बलात्कार रोक अही सकते तो एन्जॉय करिए. हालाँकि बाद में उन्होंने संदर्भ समझाया और माफी भी मांग ली.  इब बयान को मीडिया और महिला संगठनों ने जोर शोर से उठाया, उसके बाद ही उन्हें माफी मांगनी पडी.
यह कोई नया मसला/मामला नहीं था, जब उच्च पदों पर बैठे लोग कुछ भी बोलकर बाद में माफी मांग लेते हैं.
१६ दिसम्बर २०१२ के बाद इस तरह के बयानों की बाढ़ सी आ गयी थी. किसी ने कहा- लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करने से सीता का हरण होगा ही, किसी ने कहा – बलात्कार इण्डिया में होते है भारत में नहीं. किसी ने कपड़ों पर उंगली उठाई तो किसी ने सख्त सजा की भी मांग की. बड़े बड़े आन्दोलन हुए, त्वरित अदालत गठित की गयी, महीनो मुक़दमे की सुनवाई चली, सजा भी सुनाई गयी, पर फर्क कुछ नहीं पड़ा. सजा सुनाना भर कोर्ट का काम था, उसे आगे अपील और सजा का पालन आदि कुछ नहीं हुआ. नए नए जघन्य केस आते गए, सुर्खियाँ बनती रही, पर कुछ फर्क नहीं पड़ा ... ऐसे में अगर उच्च पदासीन लोगों की जुबान फिसलती है, तो क्या फर्क पड़ती है. जुबान फिसलने की कोई सजा तो नहीं निर्धारित है. माफी मांग लेंगे.
‘पुरानी बीबी उतनी मजा नहीं देती’ कहकर श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी माफी मांग ली थी. ‘पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड’ कहने वाले प्रधान मंत्री पद के दावेदार हैं. उन्हें माफी मांगने के लिए कौन कहेगा? वे तो कुछ भी कह सकते हैं, अपनी सुविधा के अनुसार इतिहास भूगोल भी बना सकते हैं. आंकड़ों में भी उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता. एक वंश पर चाहे जितने हमले करें – कौन रोकेगा उन्हें? अपने को हमले से बचाने के लिए भीड़ को हमले का शिकार बना सकते हैं. अपनी पार्टी के अलावा सबका सफाया करने को भी कह सकते हैं. खूनी पंजा से कमल को बचाना है ..इतना सब कुछ तो सहन पड़ेगा ही. नहीं रोक सकते, तो एन्जॉय करिए.
राहुल जी के पास आई बी के ऑफिसर आते हैं और कुछ मुस्लिम युवकों के आई एस आई से संपर्क की बात बताते है और राहुल जी इस पर नियंत्रण करने के बजाय पब्लिक को सुनाते हैं. कौन रोकेगा उन्हें? चुनाव आयोग? चेतावनी तो दे दी है ... आगे से ऐसी बातें न बोलें! राहुल जी भी एन्जॉय कर रहे हैं.
हम सब एन्जॉय ही तो कर रहे हैं. गरीबी, भुखमरी, बेकारी, भ्रष्टाचार आदि को भी हम एन्जॉय ही कर रहे हैं. प्याज, आलू, टमाटर के साथ हरी सब्जियों के दाम सुनकर एन्जॉय ही तो कर रहे हैं.
और अभी पांच दिन बचे हैं एन्जॉय करने के लिए ... टिकट पाने के लिए चाहे कई दिन लाइन में लगनी पड़े या पंचगुने से भी ज्यादा कीमत देकर टिकट खरीदनी पड़े, क्रिकेट के भगवान को देखने का मजा ही कुछ और है. अगर ऐसे लोकप्रिय, जनप्रिय महानुभाव को देश का ताज पहना कर प्रधान मंत्री बना दिया जाय तो सारी समस्यायों का हल तत्काल निकल आयेगा.
१४ नवम्बर ‘बाल दिवस’ का दिन आज कितनों को याद है – पर फूल से बच्चे सचिन को आगे भी खेलमंत्री या क्रिकेट के कोच के रूप में देखना चाहते हैं.
अब लता दीदी को भी दुःख हो रहा है कि सचिन रिटायर हो रहे हैं. दीदी ने अभी तक अपना रिटायरमेंट का ऐलान नहीं किया!!! क्रिकेट में सचिन जैसा कोई नहीं और संगीत में लता दीदी जैसा भी कोई नहीं.

तो आइये टी वी के सामने बैठ जाइए, एन्जॉय करिए !!!       

Monday 4 November 2013

जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा...

चन्द्रगुप्त और चाणक्य
चन्द्रगुप्त मौर्य पर अन्यान्य आलेख मौजूद है. इतिहास में भी बहुत बातें विवादित हैं, पर जो सच्चाई सबको मालूम है – वह यह कि महानंद बहुत धनी और घमंडी राजा था. चाणक्य उसकी दान-संघ का अध्यक्ष था. चाणक्य महानंद के मंत्री शकटार का ही चयन था. शकटार तीक्ष्ण बुद्धि का था, पर घमंडी नन्द ने उसके किसी चतुर बात(राज्य हित की बात) से ही रुष्ट होकर, परिवार सहित उसे कैद में डाल दिया था. कैद में भी उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रेरित होकर महानंद पुन: उसे मत्रीपद पर नियुक्त कर दिया.
शकटार के मन में नन्द के प्रति घृणा थी और नन्द को काले कलूटे लोगों से चिढ़ थी. शकटार ने कूटिनीति के तहत चाणक्य (जो कि काले ब्रह्मण थे) को नन्द की सभा में उच्चासन पर बैठा दिया, जिसे देखते ही नन्द चिढ़ गया और उसे गद्दी से उतार दिया. चाणक्य ने उसी समय अपनी चोटी (शिखा) को खोलते हुए कहा था. “जबतक वह नन्द वंश का नाश नहीं कर लेता, अपनी शिखा नही बांधेगा.”
चाणक्य अन्यमनस्क से चले जा रहे थे… तभी देखा कि एक लड़का जो पशुओं की चरवाही करते हुए राजा बनने का अभिनय कर रहा था. दूसरे चरवाहे उसकी प्रजा बने हुए थे. चाणक्य को कौतूहल हुआ. वे राजा बने हुए चन्द्रगुप्त के पास जाकर बोलते हैं – “राजन हमें दूध पीने के लिए गऊ चाहिए.” राजा बने हुए बालक चन्द्रगुप्त ने कहा- “वो देखिये, सामने गौएँ चर रही हैं. आप उनमे से जितनी चाहे अपनी पसंद से ले लें.”
चाणक्य ने इस बालक में राजा की छवि देखी और उसे राजा बनाने के विचार से अपने साथ में ले लिया. उसे युद्ध कौशल सीखने के लिए सिकंदर की सेना में भर्ती भी करवा दिया. बाद में यही चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त किया और मगध का राजा बना और पाटलिपुत्र उसकी राजधानी. उसने अपने राज्य का विस्तार भी किया और चाणक्य को अपना मंत्री/मुख्य सलाहकार बनाकर रक्खा.
चीनी यात्री फाहियान के अनुसार चन्द्रगुप्त के राज में सभी सुखी थे और अपना वाजिब कर राजा को अवश्य चुकाते थे. राजा भी प्रजा के सब सुख सुविधा का ख्याल रखते थे. एक दिन फाहियान चाणक्य से मिलने आया. वह चन्द्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था.
चाणक्य के मेज पर दो मोमबत्तियां थी जिसमे एक जल रही थी. वह मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे. फाहियान के आने पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली. फाहियान ने पूछा – “महाराज, आपने ऐसा क्यों किया?”
चाणक्य ने जवाब दिया – “पहली मोमबत्ती राजा के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था. अब मैं आपसे व्यक्तिगत बात कर रहा हूँ, इसलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली.”
फाहियान ने कहा – मुझे जवाब मिल गया. जहाँ आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी?
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इस कथा का मूल भाव हमारे पाठक समझ रहे होंगे. एक और कहानी चन्द्रगुप्त के बारे में मशहूर है. वह यह कि रोटी को उसके किनारे से ही खाना चाहिए और तभी पूरी रोटी अपने अन्दर होगी.
गोधरा वाला गुजरात…. गुजरात भारत के एक किनारे पर है, आंध्रा दूसरे किनारे पर. बिहार, महाराष्ट, पंजाब, राजस्थान, कर्नाटका, चेन्नई, उत्तरांचल, ये सभी किनारे के राज्य हैं. पाटन(गुजरात) से पटना का सफ़र, पुणे(महराष्ट्र) से पटना…. मकसद जीतना है हमें.
भाजपा के तरफ से २०१४ के लिए प्रधान मंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जा रहा है. पर जो हवा के रुख को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता हो. उसके बढ़ते पराक्रम को रोक पाना शायद अब किसी के लिए संभव नहीं है. भले ही हवा ब्लोअर से फेंकी जा रही हो (बकौल नितीश कुमार), पर अब कारवां निकल चुका है, लोग मिलते जा रहे हैं, विरोधी अन्दर के या बाहर के सभी एक एक कर धराशायी होते जा रहे हैं. साम, दाम, दंड, भेद… हर कला को अपनाते हुए, आडवाणी, सुषमा स्वराज, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण जेटली आदि सभी एक एक कर घुटने टेकते हुए नजर आए.
१५ अगस्त को लालन से लालकिला को जवाब, छत्तीशगढ़ में लालकिले की स्थापना, मध्यप्रदेश में संसद, और झांसी में लक्ष्मीबाई का किला फतह….. विरोधी उनके भाषण में व्याकरणीय(इतिहास. भूगोल की) त्रुटि ढूंढ रहे है और यह मुकद्दर का सिकंदर, अपनी विजय पताका फहराता हुआ ‘अजेय’ बनता जा रहा है.
पहले कांग्रेस मुक्त भारत! फिर सबका (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के साथ कांग्रेस) सफाया और अब नीतीश का दुर्ग भेदने की तरफ, यह ‘पिछड़े वर्ग का नेता’, ‘चाय बेचने वाला’ ‘दिल्ली का चौकीदार’ बनना चाहता है. आपको कोई आपत्ति? ….यह है आज का चन्द्रगुप्त. इसके पीछे काली दाढ़ी वाला चाणक्य कौन है या कौन कौन है? … देखते जाइए!
लोगों का दिल जीतने के लिए उसकी भाषा में बोलना, उसके बगल में जाकर बैठना, उसके बीच का आदमी बताना, बहुत बड़ा हथियार होता है. लालू ने यह शैली अपनाई थी. इंदिरा जी ने भी हर प्रदेशों/इलाकों में जाकर वहां का भेष भूषा बनाई थी. कुछ साल पहले सोनिया ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया था. … राहुल कर रहे हैं, ….पर राहुल में वो दमखम नहीं दीखता. उनकी सरकार से लोग परेशान हैं, तंग आ चुके हैं. महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अनाचार मुंह फैलाये हुए है. आज जरूरत है परिवर्तन की और लोग एक बड़े परिवर्तन के रूप में मोदी को आजमाना चाहते हैं.
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आम आदमी पार्टी दिल्ली तक सीमित है, चंद लोगों की पार्टी है अभी. अभी समय लगेगा उसे अपनी पहचान सुनिश्चित करने में. आखिर प्रचार-प्रसार के लिए धन (दाम) की भी जरूरत होती है. केवल ईमानदारी से राजनीति के दुर्ग को भेदना मुश्किल है. रणनीति तो बनानी पड़ती है.
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दिल्ली का रास्ता बिहार से होकर जाता है, चाहे वह महात्मा गाँधी हो, जयप्रकाश नारायण हो, महारथी नरेंद्र मोदी हो. पटना के गांधी मैदान में उन्होंने शुरुआत की, भोजपुरी से, मथिली से और मगही से. मगध के सम्राटों की राजधानी पाटलिपुत्र(आज का पटना).
चंद बम धमाको को फटाखे बता भीड़ को नियंत्रित रखने का जज्बा, भले ही कई गिलास पानी पीकर और पसीने पोंछकर करनी पड़े….और अब उन धमाकों में शहीद हुए लोगों के परिजन से मिलकर, चप्पल उतार जमीन पर शोकाकुल मुद्रा में बैठ, उनके आंसू पोंछते हुए, हिम्मत बढ़ाने की कोशिश. यह मोदी जैसे बड़े दिल वाले का ही काम है. इसी क्रम में उन्होंने पटना के पास के गावों की बदहाली भी तो देख ली. (नितीश बाबु का सुशासन).
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नितीश बाबू, बकौल गिरिराज सिंह, गाँव की ईर्ष्यालु/झगड़ालू औरतों जैसा गुस्सा ठीक नहीं है. प्रोटोकॉल का तो पालन कीजिये. रातभर आपके सरकारी आवास के सामने ठहरकर, देश का भावी प्रधान मंत्री अब आपके बिहार के गावों में घूमते हुए आपके जन्मस्थान तक भी पहुँच गया.
ब्लोअर की हवा का अहसास कुछ हो रहा है. सभी राष्ट्रीय चैनेल लाइव कवरेज दिखा रहे हैं. और आप हैं कि धनतेरस की झाड़ू से ही खुश दिखने का प्रयास कर रहे हैं.
सरदार पटेल की १८२ मीटर ऊंची ‘एकता की मूर्ति’ के रूप में दुनिया के मानचित्र पर स्थापित करने का सपना, जिसमे भारत के हर ग्रमीणों का योगदान होगा.
जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा!
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पटना से वापस रवाना होने से पहले नरेंद्र मोदी ने बिहार वासियों के उसके शांतिपूर्ण माहौल बनाये रखने के लिए उनके धैर्य को नमन किया और आने वाले पर्व दीपावली और छठ के लिए शुभकामना व्यक्त की. पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने ‘दीवाली’ नहीं मनाई…. पहले ही इतने विष्फोट हो चुके हैं, अब तो शांतिपूर्ण बयान जारी करने का माहौल है. इस बीच सुशील मोदी नरेंद्र मोदी के साथ रहे तो श्री गिरिराज सिंह ने बयान जारी करने और बहस करने में प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने श्री कृष्ण बाबू का उदाहरण देते हुए नितीश बाबू को बहुत अच्छे परामर्श भी दे डाले. नितीश बाबु को ऐसे शुभचिंतक निंदकों के परामर्श पर अवश्य ध्यान देना चाहिए आखिर सत्रह वर्षों का गठबन्धन इस तरह एक ही धक्के में नहीं टूटना चाहिए था.
अभी भी समय है सम्हलने का, आखिर गिर के सम्हलने का नाम ही तो राजनीति की जिन्दगी है.
प्रस्तुति- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Thursday 31 October 2013

चन्द्रगुप्त और चाणक्य

चन्द्रगुप्त मौर्य पर अन्यान्य आलेख मौजूद है. इतिहास में भी बहुत बातें विवादित हैं, पर जो सच्चाई सबको मालूम है - वह यह कि महानंद बहुत धनी और घमंडी राजा था. चाणक्य उसकी दान-संघ का अध्यक्ष था. चाणक्य महानंद के मंत्री शकटार का ही चयन था. शकटार तीक्ष्ण बुद्धि का था, पर घमंडी नन्द ने उसके किसी चतुर बात(राज्य हित की बात) से ही रुष्ट होकर, परिवार सहित उसे कैद में डाल दिया था. कैद में भी उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रेरित होकर महानंद पुन: उसे मत्रीपद पर नियुक्त कर दिया.
शकटार के मन में नन्द के प्रति घृणा थी और नन्द को काले कलूटे लोगों से चिढ़ थी. शकटार ने कूटिनीति के तहत चाणक्य (जो कि काले ब्रह्मण थे) को नन्द की सभा में उच्चासन पर बैठा दिया, जिसे देखते ही नन्द चिढ़ गया और उसे गद्दी से उतार दिया. चाणक्य ने उसी समय अपनी चोटी (शिखा) को खोलते हुए कहा था. “जबतक वह नन्द वंश का नाश नहीं कर लेता, अपनी शिखा नही बांधेगा.”
चाणक्य अन्यमनस्क से चले जा रहे थे... तभी देखा कि एक लड़का जो पशुओं की चरवाही करते हुए राजा बनने का अभिनय कर रहा था. दूसरे चरवाहे उसकी प्रजा बने हुए थे. चाणक्य को कौतूहल हुआ. वे राजा बने हुए चन्द्रगुप्त के पास जाकर बोलते हैं – “राजन हमें दूध पीने के लिए गऊ चाहिए.” राजा बने हुए बालक चन्द्रगुप्त ने कहा- “वो देखिये, सामने गौएँ चर रही हैं. आप उनमे से जितनी चाहे अपनी पसंद से ले लें.”
चाणक्य ने इस बालक में राजा की छवि देखी और उसे राजा बनाने के विचार से अपने साथ में ले लिया. उसे युद्ध कौशल सीखने के लिए सिकंदर की सेना में भर्ती भी करवा दिया. बाद में यही चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त किया और मगध का राजा बना और पाटलिपुत्र उसकी राजधानी. उसने अपने राज्य का विस्तार भी किया और चाणक्य को अपना मंत्री/मुख्य सलाहकार बनाकर रक्खा.
चीनी यात्री फाहियान के अनुसार चन्द्रगुप्त के राज में सभी सुखी थे और अपना वाजिब कर राजा को अवश्य चुकाते थे. राजा भी प्रजा के सब सुख सुविधा का ख्याल रखते थे. एक दिन फाहियान चाणक्य से मिलने आया. वह चन्द्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था.
चाणक्य के मेज पर दो मोमबत्तियां थी जिसमे एक जल रही थी. वह मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे. फाहियान के आने पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली. फाहियान ने पूछा – “महाराज, आपने ऐसा क्यों किया?”
चाणक्य ने जवाब दिया – “पहली मोमबत्ती राजा के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था. अब मैं आपसे व्यक्तिगत बात कर रहा हूँ, इसलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली.”
फाहियान ने कहा – मुझे जवाब मिल गया. जहाँ आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी?
पाठक इस दंतकथा में इतिहास का मीन-मेख न निकालें. मूल भाव को समझने का प्रयास करें!  

-    -  जवाहर लाल सिंह 

Monday 14 October 2013

मलाला का मलाल

तालिबान से ल़डने वाली मलाला को शांति का नोबल पुरस्कार नहीं मिला है. केमिकल हथियारों के खिलाफ लड़ने वाली OPCW नाम की संस्था को इस साल का शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया है.
इससे पहले मलाला यूसुफजई ने कहा था कि वह अपनी आदर्श बेनजीर भुट्टो के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए प्रधानमंत्री बनना चाहती है और इस पद का इस्तेमाल अपने देश की सेवा करने के लिए करना चाहती हैं.
मलाला पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर को अपने आदर्शों में से एक मानती है और उसका कहना है कि वह उन्हें सबसे ज्यादा पसंद करती हैं. वह भविष्य में अपने देश का नेतृत्व करना चाहती है. राजनीति उसे अपने देश की सेवा करने का मंच मुहैया कराएगी.
उसने कहा कि वह पहले चिकित्सक बनने का सपना देखा करती थी, लेकिन अब वह राजनीति में आना चाहती है.
तालिबान के हमले का शिकार बनने और मौत का सामना करने के बावजूद उसने सपने देखना बंद नहीं किया है और वह शिक्षा के लिए काम करना चाहती है.
मलाला ने कहा,”तालिबान मेरे शरीर को गोली मार सकता है लेकिन वे मेरे सपनों को नहीं मार सकते.” उसने कहा कि तालिबान ने उसे मारने और चुप कराने की कोशिश करके अपनी ‘सबसे बड़ी’ गलती की है.
मलाला का जन्म 1998,में पाकिस्तान के खैबर पख़्तूनख़्वाह प्रान्त के स्वात जिले में हुआ वह मिंगोरा शहर में एक आठवीं कक्षा की छात्रा है। 13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में एक छद्म नाम के तहत बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गयी। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में शामिल किया , वह पहली पाकिस्तानी लड़की थी जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। दक्षिण अफ्रीका के नोबेल पुरस्कार विजेता देस्मुंड टूटू एम्स्टर्डम ने हॉलैंड में एक समारोह के दौरान २०११ के इस नामांकन की घोषणा की, लेकिन युसुफजई यह पुरस्कार नहीं जीत सकी और यह पुरस्कार दक्षिण अफ़रीक़ा की 17 वर्षीय लड़की ने जीत लिया यह पुरस्कार बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था हर साल एक लड़की को देती है। मलाला ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे। ९ अक्टूबर २०१२ में, मंगलवार को दिन में करीब सवा 12 बजे स्वात घाटी के कस्बे मिंगोरा में स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया था। इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली।
मलाला युसुफ़ज़ई मिंगोरा, जो स्वात का मुख्य शहर है, में रहती है। मिंगोरा पर तालिबान ने मार्च २००९ से मई २००९ तक कब्जा कर रखा था, जब तक की पाकिस्तानी सेना ने क्षेत्र का नियंत्रण हासिल करने के लिए अभियान शुरू किया। संघर्ष के दौरान वह छद्म नाम “गुल मकई” के तहत बीबीसी के लिए एक डायरी लिखी, जिसमें उसने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का वर्णन किया था.११ साल की उम्र में ही मलाला ने डायरी लिखनी शुरू कर दी थी। वर्ष २००९ में बीबीसी ऊर्द के लिए डायरी लिख मलाला पहली बार दुनिया की नजर में आई थी। गुल मकई नाम से मलाला ने अपने दर्द को डायरी में बयां किया। डायरी लिखने की शौकीन मलाला ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’ जब स्वात में तालिबान का आतंक कम हुआ तो मलाला की पहचान दुनिया के सामने आई और उसे बहादुरी के लिए अवार्ड से नवाजा गया। इसी के साथ वह इंटरनेशनल चिल्डेन पीस अवार्ड के लिए भी नामित हुई। मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार धमकियां मिलीं। मलाला ने तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज ११ साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया था। मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं। तीन साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी। लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी। स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी। मलाला भी इसकी शिकार हुई। लेकिन अपनी डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरुक किया बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया। तालिबान ने वर्ष २००७ में स्वात को अपने कब्जे में ले लिया था। और लगातार कब्जे में रखा। तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे। कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी। उस दौर के अपने अनुभवों के आधार पर इस लड़की ने बीबीसी उर्दू सेवा के लिए जनवरी, २००९ में एक डायरी लिखी थी। इसमें उसने जिक्र किया था कि टीवी देखने पर रोक के चलते वह अपना पसंदीदा भारतीय सीरियल राजा की आएगी बारात नहीं देख पाती थी।
अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में शांति को बढ़ावा देने के लिए उसे साहसी और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए, उसे पहली बार 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला था। मीडिया के सामने बाद में बोलते हुए,उसने शिक्षा पर केन्द्रित एक राजनितिक दल बनाने का इरादा रखा। सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल, मिशन रोड, को तुरंत उसके सम्मान में मलाला युसुफजई सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल नाम दिया गया। वर्ष 2009 में न्यूयार्क टाइम्स ने मलाला पर एक फिल्म भी बनाई थी। स्वात में तालिबान का आतंक और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध विषय पर बनी इस फिल्म के दौरान मलाला खुद को रोक नहीं पाई और कैमरे के सामने ही रोने लगी। मलाला डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी और तालिबानियों ने उसे अपना निशाना बना दिया। उस दौरान दो सौ लड़कियों के स्कूल को तालिबान से ढहा दिया था। वर्ष 2009 में तालिबान ने साफ कहा था कि 15 जनवरी के बाद एक भी लड़की स्कूल नहीं जाएगी। यदि कोई इस फतवे को मानने से इंकार करता है तो अपनी मौत के लिए वह खुद जिम्मेदार होगी।
नोबेल पुरस्कारों के एलान से एक दिन पहले ही मलाला युसुफजई को यूरोपीय संघ के प्रतिष्ठित सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान किया गया. यूरोपीय संसद के सदस्य इस पुरस्कार का विजेता वोटिंग से तय करते हैं.
हालांकि इस पुरस्कार के मिलने के बाद मलाला को नोबेल मिलने की संभावना के और कमजोर पड़ने की बात कही जा रही थी. नोबेल पुरस्कारों के लिए इस साल रिकॉर्ड 259 नामांकन हुए हैं, जिनमें बताया जाता है कि पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई का नाम भी शामिल है, जिसे तालिबान ने पिछले साल गोली मार दी थी. हालांकि बाद में पाकिस्तान के सैनिक अस्पताल और ब्रिटेन में इलाज के बाद वह चंगी है.
शांति पुरस्कारों और दूसरे नोबेल पुरस्कारों के लिए नामांकन का काम जनवरी में ही पूरा हो जाता है, लिहाजा इसके बाद के नामों पर चर्चा नहीं की जाती. ओस्लो को पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख क्रिस्टियान बर्ग हार्पविकेन ने हालांकि अपनी अलग सूची बनाई है, जिसमें पहले नाम पर मलाला का नाम है. यह सूची उनकी वेबसाइट पर भी है. हार्पविकेन का कहना है, “वह सिर्फ लड़कियों और महिला शिक्षा और सुरक्षा की पहचान नहीं बनी है, बल्कि आतंकवाद और दबाव के खिलाफ लड़ने की प्रतीक भी बन चुकी है.”
तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने चेतावनी दी है कि किशोरी मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई की किताब ‘‘आई एम मलाला’’ बिक्री करते पाये गए लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
मौका मिलने पर मलाला पर हमले की शपथ लेने वाले तालिबान ने दावा किया है कि उसने वीरता का कोई काम नहीं किया है बल्कि अपने धर्म इस्लाम को धर्मनिरपेक्षता से बदल लिया है और इसके लिए उसे पुरस्कृत किया जा रहा है.
मलाला यूसुफजई ने अब तक जो हासिल किया है, वह सिर्फ वही कर सकती थी। और आने वाले दिनों में वह जो कुछ पाना चाहती हैं, उन्हें भी दोहराया न जा सकेगा। क्योंकि यह वाकई एक अजूबा है। मलाला के लफ्ज में वह जादुई तासीर है, जो सीधे लोगों के भीतर उतर जाती है। और यह नैतिक बल पाने के लिए इस बच्ची ने बहुत दर्द सहा है। १२.जुलाई २०१३ शुक्रवार को मलाला ने अपना सोलहवां जन्मदिन संयुक्त राष्ट्र में मनाया। इस वैश्विक संस्था में दुनिया भर के नुमाइंदों से रूबरू मलाला ने बुलंदी के साथ अपनी बात रखी और संसार के तमाम बच्चों को मुफ्त तालीम देने की पुरजोर अपील की। मलाला को संयुक्त राष्ट्र के मुख्य चैंबर में उस कुरसी पर बिठाया गया, जो आम तौर पर किसी मुल्क के सदर या वजीर-ए-आजम को दी जाती है। जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून मलाला को ‘आवर चैंपियन, आवर हीरो’ जैसे अल्फाज से नवाज रहे थे, वह खामोशी से उन्हें सुन रही थी। पर जब उनके बोलने की बारी आई, तो मलाला ने कहा, ‘दहशतगर्दो ने सोचा कि वे हमारे इरादे को बदल देंगे, हमारी मंजिल हमसे छीन लेंगे, लेकिन मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला बजाय इसके कि मेरे भीतर की कमजोरियों, खौफ व हताशा का खात्मा हो गया और उनकी जगह ताकत, मजबूती और दिलेरी ने जन्म लिया है।’
मलाला एक बहादुर लडकी है और वह किसी तालिबान की चेतावनी क्या गोलियों की भी परवाह नहीं करती! ऐसी लडकी को हर जगह अपेक्षित सम्मान मिलना ही चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र ने उसका सोलहवां जन्म दिन मनाया और इस दिन यानी १२ जुलाई को मलाला दिवस के रूप में घोषित किया! यह पाकिस्तान में जन्मी किसी भी लड़की के लिए गर्व की बात है. यह सही है कि इस्लामिक देशों में महिलाओं को दबाकर रक्खा जाता है. बेनजीर भुट्टो और वर्तमान में हिना खर उन सबमे अलग है पर भरता में तो नारियों की पूजा की जाती है ऐसा हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं और अभी नवरात्रि में दुर्गा नौ रूपों की पूजा भी की जाती है अंतीं दिन नौ कन्याओं को पूजा जाता है पर उसके बाद क्या हम हर बालिका, कन्या, किशोरी, महिला को उसी दृष्टि से देखते हैं. हमारे देश में भी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गाँधी, मेधा पाटेकर, कल्पना चावला, ममता बनर्जी आदि वीर महिलाएं है, हम सबको उनका और उन जैसी महिलाओं को सम्मान करना ही चाहिए बल्कि बलात्कार के खिलाफ लड़नेवाली का भी यथोचित सम्मान किया जाना चाहिए! मलाला को भी इस बात का मलाल नहीं होना चैये कि उसे शांति का नोबल पुरस्कार नहीं मिला …अभी बहुत समय है उसे बहुत सारे पुरस्कार का हकदार बनाने के लिए!

Friday 11 October 2013

पूजा मार्केट और बोनस!

पूजा मार्केट और बोनस
सडकों पर, बाजारों में काफी भीड़ है …. कही तिल रखने की जगह नहीं … दूकानदार अपनी दुकान से आगे बढाकर सड़कों का अतिक्रमण किये हुए है, वही फेरी वाले, फूटपाथ दूकानदार भी सड़क पर कब्ज़ा किये हैं…. आखिर बात क्या है … पूजा बाजार है भाई!… हर साल दुर्गा पूजा के मौके पर बाजारों में, सडकों पर ऐसी ही भीड़ रहती है, रिक्शा से जाने से अच्छा है पैदल जाना, चौपहिया वाहन अगर फंस गया तो निकलना मुश्किल … बाइकर्स तो किसी तरह रास्ता निकाल ही लेंगे.
हर तरह के लोग, हर आय वर्ग के लोग खरीदारी में मशगूल है … दूकानदार भी विभिन्न प्रकार के ऑफर स्कीम लेकर आए हैं, आपको आकर्षित करने के लिए. २०% छूट, तीन के साथ एक फ्री, सोने के गहने पर पर १० % छूट, खादी पर २०% छूट.. छूट ही छूट… इसमें कही नहीं है लूट!
गाड़ी चेकिंग हो रहा है, सब पेपर सही हैं. इन्सुरेंस ..हाँ भाई है …. पोलुसन सर्टिफिकेट …. नहीं है …पकडाए २००० रुपये स्पॉट फाइन! हेलमेट जरूर पहनकर जाइएगा… बिना हेलमेट पकडाए तो ५०० रूपया फाइन!… ट्रैफिक एस पी खुद चेक कर रहे हैं…. बचकर निकलना मुश्किल है.
“अजी सुनते! हो शर्मा जी के यहाँ एल ई डी वाला टी वी आगया, वर्माजी नया सोफासेट खरीदे हैं, ऊ मिश्राइन नया झुमका दिखा रही थी हमको. हमरे किस्मत फूटल है … अभीतक बोनस का मार्केटिंग नहीं किये हैं. इनको तो ई एम आई का ही चिंता लगा हुआ है. पूरा कोलोनी कुछ न कुछ खरीद रहा है …हे भगवान! कब इनको सुबुद्धि आयेगी. हमको तो घर से बाहर निकलना मुश्किल है…. कल ही मिसेज चौबे ताना मार रही थी … आपके यहाँ पुराना डब्बा वाला टी वी अभीतक चल रहा है? … ऊ तो नया मोबाइल भी बार बार चमका रही थी.
आखिर गजोधर भाई भी बाजार गए … क्या करते … गाडी पार्किंग का कहीं जगह नहीं है …मिश्रा जी ठीके कह रहा था. … ऑटो से ही आना चाहिए था.
पार्किंग के चक्कर में एक किलोमीटर और ज्यादा चक्कर लगाना पड़ा … एगो कोना में जगह खाली था. वहीं लगा दिए क्या करते. अब वहां से पैदल आने में तो पहले ही थक गए … अब दुकान में खड़ा होने का भी जगह नहीं है. दुकान का लड़का बाहरे आकर बोलता है – क्या चाहिए सर! आप पसंद कर लीजिये शाम तक आपके घर में पहुंच जायेगा. हाँ पता ओर मोबाइल न. लिखवा दीजियेगा.
अरे बाप रे! जूता दुकान में इतना भीड़ … छोड़ो … बाद में खरीद लेंगे. “बाद में तो आप ऐसे मटियाते रहेंगे. लेट से घर आएंगे कहेंगे…. आज बहुत थके हैं… छोटका कब से पुराने जूता पहन के जा रहा है … आपको कुछो बुझाता है … सब लड़िकन इसको चिढ़ाता है… कंजूस बाप का बेटा! स्कूल से आकर रोज बोलता है! आपको तो ई सब सुनना नहीं पड़ता है …लगे रहेंगे मोदी और आडवाणी के पीछे.”
“अच्छा एक काम करते हैं, पहले हमलोग कुछ नाश्ता कर लेते हैं, क्या बाबु? क्या खायेगा बोल… चलो तुमको डोसा खिलाते हैं” …डोसा के दुकान में भी लाइन लगा है… अभी टेबुल खाली भी नहीं हुआ कि आदमी पहले से ही बैठने को खड़ा है. एक छोकड़ा आकर कहता है बाबूजी! आपलोग ऊपर चल जाइए…. फेमिली वाले के लिए ऊपर ही ब्यवस्था है …
डोसा बनाने में भी तो टाइम लगता है … जो पहले से आर्डर दिया है, उसका पहले आयेगा…
“खैर, अब नाश्ता पानी हो गया! अब चलते हैं किसी कपडे की दुकान में …. सुनते हैं बाजार कोलकाता में नया नया डिजाइन आया है … अरे बाप रे!… यहाँ भी ठेलम ठेल है …ई महंगाई में भी आदमी के पास इतना पैसा है?” … तो डबल पगार ‘बोनस’ काहे को देती है कंपनी …. इसीलिये न कि आपलोग कुछ स्पेसल खरीददारी कर सकें …
कपड़े का डिजाईन तो ठीके है, अब पसंद करना है… बच्चों का तो हो गया … अब मैडम के लिए साड़ी देखनी है….. साड़ी भी नाक भौं सिकोड़ते हुए ले ही लिया गया …. श्रीमती जी भुनभुनाती है – “इसीलिये इतना दिन पहले से बोल रहे थे. इस भीड़ में ठीक से देखने/पसंद करने का मौका मिलता है? अब अपने लिए भी देख लीजिये.” “छोड़ो न… मेरा तो सब पैंट- शर्ट ठीके है” … “ठीके है का मतलब? पूजा में नया कपड़ा नहीं पहनियेगा? नहीं लीजियेगा तो हम तो नहीं जानेवाले आपके साथ… घूमने के लिए” … “अच्छा भाई, ले लो! मेरे लिए भी तुम ही लोग पसंद करो जो ठीक लगता है …. ले लो.”
“आज का बाजार तो हो गया…. बाकी बाद में देखा जायेगा. अरे! मेरा गाडी कहाँ गया?” छोटका बोला – “यही तो है पापा, लगता है पीछे से कोई ठोक दिया है, नंबर प्लेट भी गायब है… “ऐसे में अगर पुलिसवाला देख लेगा तो वह भी अपना हिस्सा मांगने लगेगा. चलो अब जल्दी घर चलो … अब गाडियों ठीक ठाक कराना पड़ेगा … लग गया ५-६ हजार का गच्चा!!!
ये रहा गजोधर भाई का हाल… बाकी सब लोगों की कमोबेश वैसी ही स्थिति है. बोनस मिला है तो कुछ अतरिक्त खर्च भी करने ही होंगे. सब्जियों के दाम अचानक दुगुने हो गए. फल भी डेढ़ गुने तो हो ही गए हैं. कपड़े गहने आदि पर बोलता तो है कि छूट दे रहे हैं पर वे लोग हैं बड़े चालक! दाम पहले से ही बढ़ा देते हैं और छूट का लालच देकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं. घर के सामानों में भी विशेष ओफ्फर या छूट देने का दावा करके नौकरी पेशा वाले को लूट ले जाते हैं.
पर एक बात और ख़ास है, आपको सस्ते सामान भी मिल जायेंगे… १५० रु. का शर्ट और २०० रु की साड़ी भी मिल जायेगी!… इस महंगाई के ज़माने में … वो क्या है, कि हर वर्ग के लोग तो नए कपड़े बनवाना चाहते हैं … अब प्रतिदिन १०० -१५० रु. कमाने वाला आदमी तो अपनी जेब देखेगा न! दूसरी तरफ आपके बोनस की राशि में सबका हिस्सा बनता है … आखिर टाटानगर शहर, आप नौकरी पेशा वाले पर ही तो डिपेंडेंट (निर्भर) है!
नए कपड़े पहनकर त्यौहार मनाना हमारे संस्कार में है. दैनिक क्रियाकलाप तो जिन्दगी भर करनी होती है. त्यौहार के अवसर पर हम सभी इस आयोजन में शामिल होकर नयी उर्जा और उत्साह का वातावरण सृजित करते हैं. देखा देखी कर अपनी औकात से ज्यादा खर्च करना हमेशा ही हानिकारक होता है! कुछ तो लोग कहेंगे ही … अगर आप दिखावा के लिए अपनी औकात से ज्यादा खर्च करते हैं, तब भी लोग कहेंगे …और अति कृपणता में अपने परिवार को व्यथित करते हैं, तब भी अशांति का खतरा है! अत: सामंजस्य बैठाना आवश्यक है!
जय माँ दुर्गे!
या देवी सर्वभुतेशु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभुतेशु विद्या रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभुतेशु शांति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

Sunday 6 October 2013

माननीय की बेटी की शादी

रांची झारखण्ड की राजधानी है और जमशेदपुर झारखण्ड की आर्थिक राजधानी. जैसे दिल्ली और मुंबई. जमशेदपुर का एक बड़ा हिस्सा टाटा कंपनी को ‘लीज’ पर दिया हुआ है. इस इलाके में बिजली, पानी, सड़क, की ब्यवस्था टाटा की ही एक इकाई जुस्को के जिम्मे है. जुस्को टाटा के अधिकार क्षेत्र की जिम्मेवारी बखूबी निभाता है. इन्ही इलाके में सर्किट हाउस भी है, उपायुक्त का कार्यालय एवं निवास है, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ कुछ माननीय जन प्रतिनिधियों को भी यह सुविधा प्राप्त है. इन्ही में से एक माननीय हैं कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य श्री बालमुचु, कभी वे भी टाटा स्टील के कर्मचारी थे. बाद में उनकी राजनीति में दिलचस्पी बढ़ी और विधायक से अब सांसद तक की स्थिति में हैं. बहुत बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. मुख्यमंत्री नहीं बन पाए ... सोनिया गाँधी के बुलावे पर उन्होंने नया सूट बनवाया था उसे ही पहन कर गए थे सोनिया जी से मुलाकात करने पर सोनिया जी मिलीं नहीं. अगर मिलतीं तो मुख्य मंत्री बन ही जाते. यह सुबोधकांत और राजेन्द्र सिंह ही कुछ कान भर दिए थे. हमेशा अपने लोग ही धोखा देते हैं. जाने दो मुझे नहीं बनने नहीं दिया तो खुद भी कहाँ बन पाय. गुरूजी के बेटे की जीहुजूरी कर रहे हैं. मैं भी तो राज्य सभा सांसद हूँ मेरा रुतवा क्या कम है?... रुतवा कम नहीं है.
इन्ही बालमुचू की बिटिया की शादी है ५ अक्टूबर को ... गणमान्य लोग आएंगे, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री भी आएंगे. रांची के सभी गणमान्य जमशेदपुर में होंगे. रांची से जमशेदपुर आने का सुगम मार्ग, सड़क मार्ग ही है समय ढाई से तीन घंटे लगते हैं, अगर सड़क ठीक हो और जाम न हो तो मात्र १३० किलोमीटर की दूरी ही तो है. ज्यादातर लोग सड़क मार्ग से ही आते-जाते है. कोलकता को मुबई से जोड़ने वाली एन एच – ३३, जिसे अब सिक्स लेन बनाने की योजना है, अभी काफी जर्जर अवस्था में चांडिल से लेकर बहरागोरा तक १२० किलो मीटर की दूरी तय करने में बाबा रामदेव के सारे आसन हो जाते हैं. कुछ गाड़ियाँ तो शीर्षासन भी कर लेती हैं, पूरी यात्रियों के साथ. पिछले साल में अबतक कम से कम ३०० लोगों की जान जा चुकी है, इस सड़क पर हुई दुर्घटनाओं में. गाड़ियाँ खराब होती हैं, होने दीजिये, कितने मेकानिक सड़क के किनारे दुकान सजा कर बैठे हैं, आखिर उनकी भी तो रोजी-रोटी चलनी चाहिए.  जमशेदपुरवासी आश लगाये बैठे थे कि माननीय लोग भी इस सड़क से आएंगे और सड़क की जर्जर अवस्था से परिचित होंगे, उन्हें जब दर्द होगा तो जनता के दर्द को समझेंगे ...
किन्तु यह क्या सभी माननीय उड़नखटोले से ही आए. जमशेदपुर के हवाई अड्डे पर उतरते ही पत्रकारों ने केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री ओस्कर फ़र्नान्डिस से पूछ डाला – “सर एन एच - ३३ काफी जर्जर अवस्था में है, आपको पता है?”
“कैसे पता होगा भाई! आपने कोई लिखित पत्र दिया है? उसकी फोटो मुझे दिखाई है? नहीं न. तो फिर कैसे मालूम होगा? हमें इतना पता है कि अगले महीने हमको झारखण्ड में ही एक सड़क का उद्घाटन करने आना है, सड़क का नाम और नंबर पता नहीं.  हम तो राज्य सरकार को धन मुहैया करते हैं, यह काम उसका है कि वह कैसे खर्च करती है. आपलोग मुख्यमंत्री से क्यों नहीं पूछते? अपने इलाके के संसद को क्यों नहीं बताते?”
आनन-फानन में एक पत्र ड्राफ्ट किया गया और जमशेदपुर के ही प्रखर सांसद डॉ. अजय कुमार ने वह चिट्ठी मुख्यमंत्री को सुपुर्द की. मुख्यमंत्री नौजवान हैं. दिशोम गुरु के लाडले हैं. अपने पूज्य पिता के सपनो को साकार करने को आतुर हैं .. लेकिन अभी तो अपने ही सहयोगी दल के सांसद की बिटिया को आशीर्वाद और उपहार देना है. पत्र को अपने सचिव को थमाते हुए कहा – “इस गंभीर मुद्दे पर पूजा बाद बैठक बुलाएँगे. सभी सहयोगे दलों को बुलाएँगे, विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करेंगे .. आखिर इस इलाके की ही सड़क हमेशा ख़राब क्यों हो जाती है? हो सकता है, इस पर जांच आयोग भी बैठानी पड़े. तबतक क्या पता हमारी सरकार रहती है या चली जाती है! यहाँ तो २८ महीने और १४ महीने का कार्यकाल होता है. हमारे पिताजी तो सिर्ग १५ दिन के लिए ही मुख्य मंत्री रहे थे, आपलोग किसी सरकार को स्थिर रहने नहीं देते... जबतक हम समस्या के जड़ में पहुचते हैं, आपलोग सरकार ही गिरा देते हैं. आपलोग जनता में जागरूकता पैदा करिए कि वह केवल हमें ही वोट करे. अबकी बार पूर्ण बहुमत में आएंगे तब पूरा विकास करेंगे अपना भी और जनता का भी. आखिर हमे भी तो अपने पिताजी की लाज रखनी है.”
“सर तब तक तो इस सड़क पर चलने वाली गाड़ियाँ ख़राब होती रहेगी और लोग मरते रहेंगे.”   
“आपलोग भी न अर्थनीति कुछ नहीं समझते. आपको तो पता है ऑटो उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है. आपका टाटा मोटर्स भी बार बार ब्लॉक क्लोजर के दौर से गुजर रहा है. अब आप बताइए कबतक लोग पुरानी गाडी को ढोते रहेंगे. पुरानी जर्जर गाड़ी को कबाड़ में डालिए और नयी गाड़ी  खरीदिये तभी ऑटो उद्योग अपनी पटरी पर आयेगा, कुछ नए इंजिनीयर, तक्नीसियन की बहाली भी हो जायेगी.”
महामहिम राज्यपाल महोदय भी आकर चले गए. उनके लिए विशेष ब्यवस्था की गयी थी. वैसे अब तो वे ‘पावर’ में भी नहीं हैं. जब यहाँ राष्ट्रपति शासन चल रहा था, तब वे खुद बन रही सड़क का मुआयना करने निकल पड़ते थे. वे तो अपने जूते से खुरच कर सड़क की गुणवत्ता की जांच करते थे.

बहरहाल सांसद महोदय की बेटी का विवाह संत जोर्ज चर्च में सादे समारोह में, धूमधाम से संपन्न हो गया. प्रधान मंत्री और सोनिया गांधी आ जाते तो हम निहाल हो जाते. कम से कम राहुल गाँधी ही  आ जाते तो आगे का रास्ता साफ़ हो जाता. कोई बात नहीं विडिओग्राफर को कहेंगे, कही से सोनिया और राहुल गाँधी को भी विडिओ में डाल दे.           

Wednesday 2 October 2013

रघुपति राघव राजाराम....

रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
सीताराम सीताराम,
भज प्यारे तू सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान
सबसे पहले इस गीत को १२ मार्च १९३० को दांडी मार्च करते हुए पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर द्वारा गाँधी जी और उनके सहयोगियों के साथ गाया गया! इसे बापू के प्रिय भजन में भी शामिल किया. इस गाने में हिन्दू मुस्लिम एकता के सन्देश में पूरे भारत को पिरोया गया…
उसके बाद ‘जय रघुनन्दन जय सियाराम, जानकी वल्लभ सीता राम के रूप में फिल्म ‘भरत मिलाप’ में १९४२ में गाया गया. उसके बाद १९५४ में फिल्म जागृति में ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, रघुपति राघव राजा राम’ के रूप में गाया गया. १९७० में पूरब और पच्छिम में यह धुन बजा, १९९८ में ‘कुछ कुछ होता है’ में, लगे रहो मुन्ना भाई में भी में भी इस गीत को जगह मिली और प्रकाश झा के ‘सत्याग्रह’ के बाद, अब लेटेस्ट कृष-३ में ह्रितिक रोशन और प्रियंका चोपड़ा के साथ थिरकते हुए इसके स्वरूप को बिलकुल ही बदल दिया गया जैसे ‘ओम शांति ओम’ में शाहरुख़ खान ने ‘ओम शांति’ ‘ओम’ का मजाक उड़ाया.
वन्दे मातरम को सर्वप्रथम १८८२ आनंदमठ में बंकिम चन्द्र चट्टोपद्ध्याय ने लिखा और रविन्द्र नाथ टैगोर १८९६ में कलकता के कांग्रेस अधिवेसन में गाया. इस गीत को सभी स्वतंत्रत सेनानियों ने अपनाया और आज भी हम वन्दे मातरम में देश भक्ति का भाव ही पाते हैं. बीच बीच में कुछ धार्मिक संगठनो द्वारा इसका विरोध अवश्य हुआ पर बॉलीवुड के प्रख्यात संगीतकार ए. आर. रहमान ने स्वतंत्रता दिवस के ५० वें वर्ष गाँठ पर १५ अगस्त १९९७ को इसे अपने सुर के साथ लता जी को भी मिला लिया. इस एल्बम के ऑडियो वीडियो को खूब पसंद किया गया और दूरदर्शन ने इसे खूब दिखाया/प्रचारित किया
आब आइये कुछ और भक्ति भाव के धरोहरों की चर्चा करें – हनुमान चालीसा सबको पता है और पूजा करते समय के अलावा हम सभी विपत्ति में घिरते वक्त इसे अवश्य गाते हैं/याद करते हैं.
हनुमान चालीसा के बाद और भी बहुत सारे धार्मिक चालीसा का अवतरण हुआ जैसे शिव चालीसा, दुर्गा चालीसा, शनि चालीसा, साईं चालीसा आदि आदि…
धार्मिक चालीसा के बाद राजनीतिक या प्रख्यात व्यक्तियों के ऊपर चालीसा भी बनाये गए जैसे लालू चालीसा, नितीश चालीसा, अमिताभ चालीसा आदि… आदि…
कुछ व्यंग्यकारों ने ‘पत्नी चालीसा’ और ‘मच्छर चालीसा’ आदि भी बनाये अभी तत्काल में ‘मोदी चालीसा’ का अवतरण हो गया है
समय की मांग के अनुसार हम सभी बदलते हैं और उगते हुए सूर्य की तरह ही उभरते हुए लोगों के सम्मान में हम सभी गुणग्राही लोग गुण ग्रहण करते ही हैं…. हो सकता है नेहरू चालीसा, इंदिरा चालीसा, राजीव चालीसा, सोनिया चालीसा और अब राहुल चालीसा भी बन जाय तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए!
“समय समय सुन्दर सबै रूप कुरूप न कोय! जित जेती रूचि रुचै तित तेती तित होय.” और “सब दिन होत न एक समाना” सभी को याद रखना चाहिए.
हे राम ! जय श्री राम! रघुपति राघव राजाराम!
जवाहर लाल सिंह

Monday 30 September 2013

चुनाव सुधार और राजनीति में शुचिता ….

१५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद हमारे देश में नए लोकतंत्र की स्थापना हुई. हमारा अपना संविधान बना और उसके तहत चुनावी प्रक्रिया क प्रावधान हुआ जिसमे आम जनता की भागीदारी तय की गयी. आम जनता/ वयस्क जनता अपना मत प्रकट कर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करे और और चुने हुए प्रतिनिधि जनता और देश के हित में काम करे, यही इस लोकतंत्र की मूल अवधारणा कही जायेगी.
एक समय ऐसा था जब हमारे जनप्रतिनिधि ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले होते थे और उनके अन्दर जनता के लिए, अपने देश के लिए कुछ अच्छा करने की तमन्ना थी. कुछ दशकों तक सबकुछ ठीक-ठाक चला. फिर उन जनप्रतिनिधियों के मन में अपनी जनता से ज्यादा अपनी चिंता होने लगी. उस समय यह चिंता अपनी कुर्सी बचाने तक सीमित थी, अपना वर्चस्व बनाये रखने तक सीमित थी....  कालांतर में यह प्रतिस्पर्धा का दौर और आगे बढ़ा और तब यह भावना; समाज के बटवारे, अपना-अपना संगठन बनाने, उसे मजबूत बनाने और धन-बल, बाहुबल बढ़ाने, उसे असीम हद तक पहुँचाने में काम करने लगी. फलस्वरूप राजनीति में अपराधी तत्वों का बोल-बाला बढ़ने लगा, अपराधी अपना अपराध छुपाने के लिए और राजनेता अपना आधार बढ़ाने के लिए एक दूसरे को सहयोग करने लगे.
जनता में नेताओं के प्रति अविश्वास बढ़ने लगा और यही जनता मतदान केंद्र तक जाने में भी कतराने लगी. उन्हें मतदान केंद्र तक लाने के लिए के विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों और हथकंडो का इस्तेमाल होने लगा, जनता भी इन्ही प्रलोभनों, हथकंडों का शिकार हो गलत प्रतिनिधि का चुनाव करने लगी और गलत प्रतिनिधि आखिर क्या करते? गलत-सलत फैसला और भ्रष्ट आचरण ही तो उनका धर्म था.
तभी १९९१ में एक चुनाव आयुक्त हुए श्री टी, एन. शेषण और उन्होंने मतदान में सुधार के लिए मतदाता पहचान पत्र (वोटर आई डी कार्ड) का प्रस्ताव रखा. प्रारंभ में भले इसका विरोध हुआ पर बाद में यह काफी लोकप्रिय हो गया, और यह हमारी पहचान का प्रमाण भी बन गया. टी. एन. शेषण से पूर्व बहुत कम लोग चुनाव आयुक्त के नाम से परिचित थे, पर शेषण का नाम हर जुबान पर था चाहे समर्थन में या विरोध में. यह चुनाव सुधारों में बहुत ही महत्वपूर्ण और कर्न्तिकारी कदम था. इसके चलते गलत या वोगस मतदान बहुत हद तक नियंत्रित हुआ.   शेषन का कहना था, "मैं वही कर रहा हूँ, जो कानून मुझसे करवाना चाहता है. उससे न कम न ज़्यादा. अगर आपको कानून नहीं पसंद तो उसे बदल दीजिए. लेकिन जब तक कानून है, मैं उसको टूटने नहीं दूँगा.'' 
आज हमारे देश का उच्चतम न्यायलय वही तो कर रहा है, पर उसे करने नहीं दिया जा रहा है. उसके राह में रोड़े अटकाने के लिए विधायिका और सरकार या तो कानून बदल दे रही है या अध्यादेश लाकर उसके इरादे को मटियामेट कर दे रही है. किन्तु आज मीडिया के माध्यम से और शिक्षा के माध्यम से जागरूकता का स्तर बढ़ा है. सभी लोग महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, ऊँच–नीच की बढ़ती खाई से परेशान है और इससे निजात पाना चाहते हैं. पिछले दिनों अन्ना के आन्दोलन में लोकपाल बिल की मांग ने पूरे देश को झकझोर दिया था. पर राजनीति के इन चतुर खिलाड़ियों उस आन्दोलन की हवा ही निकाल दी. ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति में निपुण सभी राजनेता इसमें कमोबेश एक ही रंग में दिखे.  मीडिया वालों ने भी जितनी कवरेज शुरू में की, उतनी बाद में नहीं की फलस्वरूप वह आन्दोलन अब अंतिम सांसें गिन रहा है.
इसके बाद राजनीतिक दलों को भी सूचना के अधिकार के अंतर्गत लाने की बात आयी, तो सभी राजनीती दलों ने एक मत से इसकी खिलाफत कर दी. फिर सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा ८(४) को रद्द करने का फैसला सुनाया तो वर्तमान सरकार ने अद्धयादेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने की कोशिश की. जबकि यह फैसला सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था.
अब आए कांग्रेस के वर्तमान उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी, जिन्होंने इस अध्यादेश को बकवास और फाड़ने की सार्वजनिक बयान दे डाली. यह उनका अपने ही सरकार के प्रति बगावत थी, पर शायद उन्होंने दूर की सोची और रातों रात नायक बन गए. सभी पार्टियों, राजनेताओं, पत्रकारों, विश्लेषकों ने उनका गुणगान करना शुरू कर दिया.
एक और फैसला सुप्रीम कोर्ट का उसी दिन आया कि मतदाता निगेटिव (नकारात्मक) मतदान भी कर सकता है. यानी ई वी एम में अंतिम बटन होगा ‘इनमे से कोई नहीं’  और कोई मतदाता उन सभी उम्मीदवारों के प्रति अपना विरोध दर्ज कर सकता है. अन्ना का आन्दोलन भी इस अधिकार की मांग करता रहा है.
३० सितम्बर को चारा घोटाले के मुख्य आरोपी लालू जी के साथ कुल ४५ आरोपियों को रांची के सी बी आई कोर्ट से दोषी करार देना एक और महत्वपूर्ण कदम है, इसे भी राजनीतिक दलों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए
अंतत: देखें, तो कुल मिलाकर चुनाव सुधार और राजनीति में स्वच्छ लोगों को लाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है. अगर राजनीतिक दल दागी या आरोपित व्यक्तियों को टिकट न देने पर मजबूर हो जायेगे तो अवश्य ही भले लोग राजनीति में आएंगे और देश तथा समाज का भला तभी हो सकेगा.

प्रस्तुति – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.       

हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है, या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?

हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ का आयोजन के औचित्य पर. पखवारा शायद इसलिए कि १४ सितम्बर को हम लोग ‘हिंदी दिवस’ मनाते हैं, इसकी शुरुआत अगर १ सितम्बर से मान ले तो पखवारा पूरा करने की रश्म अदायगी हो जायेगी. ऐसा ही लगभग हर क्षेत्रों में होता है. पर इस अवसर पर जागरण जंक्सन द्वारा आयोजित इस प्रतियोगिता के लिए ‘पूरा मास’ निर्धारित करना, पखवारे शब्द को द्विगुणित कर देता है. महीने भर चली इस प्रतियोगिता में महान विद्वानों, कद्रदानों, विचारकों, चिंतकों, विदुषियों, रचनाकारों, के असीम ज्ञान का पिटारा तो खुला ही, घर के चाहरदीवारी में सीमित, पर ज्ञान-विज्ञानं, विचार, अनुभव के स्रोत गृहणियों, माताओं, बहनों को भी इस मंच पर अपने विचार साझा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ; तो इस आयोजन से उत्साहित नव किशोर वर्ग भी अपनी लेखनी की धार को चमकाने से बाज नहीं आए.
वास्तव में ‘जागरण जंक्सन’ का यह आयोजन अपने आप में अनोखा है, जिसमे हर वर्ग के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया; अपने ज्ञान-विचार बांटे और ग्रहण भी किये. बहुत ही अच्छा आदान–प्रदान हुआ. जहाँ हमने ब्लोगिंग के श्रीगणेश और उसके प्रचार-प्रसार के बारे में जाना, वहीं हमने हिंदी के महत्व और उसके व्यापकता को भी भी पहचाना. यहीं हमें मालूम हुआ कि हिंदी में ब्लॉग लिखने वालों की संख्या २५,००० से ऊपर है. और हिंदी भाषा बोलने-समझने वाले लोगों की संख्या ८५ करोड़ से ऊपर है.
हिंदी की जननी संस्कृत जिसे देव वाणी या देव भाषा का दर्जा प्राप्त है, जिसमे चारो वेदों, ६ शास्त्रों, १८ पुराणों और ३०० से ऊपर उपनिषदों में हमारे ऋषि मुनियों के शोध में जीवन का रहस्य समाहित है तो वहीं समस्त ज्ञान को दो पंक्तियों में समाहित करने की भी क्षमता है – यथा
अष्टदशु पुराणेषु ब्यासस्य वचनम द्वयं,
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीड़नम.
जहाँ कर्मण्ये वा अधिकारस्ते, मा फलेषु न कदाचन और ‘जैसा कर्म वैसा फल’ जैसी पंक्तियों में समस्त गीता ज्ञान को व्यक्त करने की क्षमता हो, उस जननी की दुहिता हिंदी के बारे में जितना भी बखान किया जाय कम है.
जिस भाषा और संस्कृति में पृथ्वी, नदी, प्रकृति आदि को माता; तो सूर्य, पहाड़, जलागार को पिता सदृश मानने की परम्परा हो उस मातृभाषा को अगर कहा जाय कि हमने एक पखवारे में समेट लिया और हिंदी पखवारा मनाकर हमने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर दी तो घोर कृतघ्नता होगी.
हमारा तो एक ही सूत्र है ‘चरैवेति’ ‘चरैवेति’ बढ़ते चलो.
रुकने का नाम मौत है चलना है जिदगी…
पर्कृति के स्रोत झरने, नदियाँ, हवा, रोशनी, कालचक्र …ये क्या रुके रहते हैं? नहीं न … अरे, ये तो किसी का इंतज़ार भी नहीं करते… चलते जाते है. अगर हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में कहें तो – “भक्त तो आत्मसमर्पण करके वह विस्मृति ढूढता है, जो हर्ष और विषाद से परे है. बादल अपना अपनापन अगणित बूंदों में, बूंदे जलधारों में, जलधारा नदियों में और नदियाँ अपना अपनापन समुद्र में खोने को आतुर है. पृथ्वी अपना अपनापन अगणित वृक्ष-बेली-पौधों में, पौधे पुष्प और कलियों में, पुष्प सौरभ समीर में. पतंगा दीपक आगे, दीपक दिवस के आगे, दिवस रजनी के आगे रजनी शशि तारक आदि सूर्य के आगे अर्पण करने को आतुर-व्याकुल है. इसी तरह गायक, वादक, चित्रकार, शिल्पकार, कवि सभी अपना अपनापन ही व्यक्त करते हैं, जो किसी के ह्रदय को छू सके! “चरम अभिलाषा आत्मानंद नहीं, आत्म समर्पण है”.
हमारी मातृभाषा हिंदी में वही आत्मानंद है, जो किसी समय सीमा क इन्तजार नहीं करता. हमारी भाषा में रामायण, हनुमान चालीसा, जन गण मन, वन्दे मातरम आदि ऐसे धरोहर है; जिन्हें अनपढ़ भी कंठस्थ कर लेता है, उसे हृदयंगम कर लेता है. बालक नचिकेता अगर धर्मराज को हराने का सामर्थ्य रखता है तो सती सावित्री अपने पति को यमराज से वापस मांग लेने की हठ में विजयी हो जाती है. उस हिंदी-संस्कृति को हम किसी समय सीमा में आबद्ध कर ले यह संभव नही है.
मेरे मित्र, आप अंग्रेजी ही नहीं अन्य भाषाओँ के भी विद्वान बन जाओ, ये हमारे लिए गर्व की बात होगी, पर अपने मूल स्रोत हिंदी को अपने ह्रदय के मंदिर में संरक्षित, प्रज्वलित रहने दो.
जिस हिंदी संस्कृति में विश्व की रक्षा करने हेतु विषपान कर नीलकंठ बनने की सामर्थ्य रखने वाले देवों के देव महादिदेव हों, ऐसे हिंदी को हम किसी पखवारे में सीमित कर दें …यह असम्भव है. हिंदी तो वह ज्ञान की सरिता है जो आदिकाल से अनंतकाल तक निर्बाध गति से चलती रहेगी और हम सभी को अमृतपान कराती रहेगी. “फूलों से नित हँसना सीखो, भौरों से नित गाना”
जय हिंदी! जय हिन्द!