Monday 23 March 2020

कोरोना का कहर और बचाव


अयोध्या में भगवान राम को राजगद्दी देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी. भरत ननिहाल गए हुए थे. तभी कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी के कान भरने शुरू किए और कैकेयी न राजा दशरथ के वादे के अनुसार उनसे दो वर मांग लिए. एक – भरत को राजगद्दी और दूसरा – राम के लिए चौदह वर्ष वनवास. राजा दशरथ चूंकि वचनवद्ध थे इसलिए वे अपने वादे से पीछे नहीं हट सकते थे. पर वे श्री राम को चौदह वर्ष वनवास भेजने के संताप को सहन नहीं कर पाए और उसी संताप में उन्होंने अपना दम तोड़ दिया. तब तक राम वन जा चुके थे और भरत को अयोध्या बुलाया गया था. भरत के लिए दो-दो आघात एक साथ था. एक तो उनके बड़े भाई का वनवास और दूसरे उनके देवतुल्य पिता का अचानक देहावसान. इन सारी बातों को दशरथ के कुलगुरु मुनि वशिष्ट ने भरत को समझाते हुए बतलाया. अंत में वे भी दुखी होते हुए भरत को समझाने के लिए ही कहते हैं.
सुनहु भरत भावी प्रबल,  बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ॥
अर्थात मुनिनाथ(वशिष्ट) ने बिलखकर(दुःखी होकर) कहा - हे भरत! सुनो, भावी(होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के हाथ हैं.
आज भी विज्ञान चाहे जितनी प्रगति कर ले पर प्रकृति के आगे बेबस है. चीन, अमेरिका, फ्रांस, ईरान, इटली, स्पेन आदि सभी विकसित देश नोवल कोरोना(COVID -19) नामक वायरस से ग्रस्त हैं. उनके यहाँ से संक्रमित होकर भारत लौटने वाले लोगों में भी यह बीमारी फ़ैली और यहाँ भी लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है. सभी देशों के डॉक्टर और वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं, इसके इलाज और प्रसार के रोक हेतु. अभीतक आंशिक सफलता ही मिली है. भारत जैसे कम संशाधन वाले देश में इसे फैलने से रोक पाना और वायरस ग्रस्त लोगों का इलाज बहुत ही कठिन है. फिर भी WHO के अनुसार जो भी उपाय बताये गए हैं उन्हें हमारी सरकारें भी आम लोगों तक पहुंचा रही है. हम सभी सचेत भी हैं और सरकार के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन भी कर रहे हैं.
भावी प्रबल है इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम अपने कर्म से नाता तोड़ लें. तुलसीदास ने ही रामचरितमानस में कहा है –
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सु तस फल चाखा.
और सकल पदारथ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाही.
इसलिए कर्म तो हमें करना ही होगा, बाधाओं से लड़ना ही होगा. सरकारें अपने स्तर से काम कर रही हैं. हमें भी सहयोग करना ही होगा, जिसमे हमारी और आम जनता यानी देश की भलाई है. हमने हर राष्ट्रीय आपदा को मिलकर सामना किया है आगे भी करते रहेंगे. इसके पहले भी कई तरह की बीमारियाँ/महामारियां फ़ैली है, जिनका हम सबने मिलकर मुकाबला किया है और उसे हराया भी है, उसी तरह कोरोना को भी हराना है.
प्रधान मंत्री श्री मोदी जी के आह्वान पर 22 मार्च दिन रविवार को सुबह ७ बजे से रात नौ बजे तक जनता कर्फ्यू लगाया गया, जिसका देश के लोगों ने अक्षरशः पालन किया. इस कर्फ्यू का मतलब था लोग अपने घरों में रहे और कोरोना वायरस को फ़ैलने से रोकें. कोरोना वायरस कोरोना पीड़ित व्यक्ति के संपर्क से फैलता है. अगर हम एक दिन अपने आपको घरों में बंद रखें तो कोरोना वायरस को फ़ैलने से बहुत हद तक रोका जा सकता है.
इसके अलावा साफ़ सफाई पर पूरा ध्यान दें! पौष्टिक और सात्विक आहार लें, फल और हरी सब्जियों को प्रचुर मात्रा में लें. इम्युनिटी अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ानेवाले वाले आहारों का सेवन करें! सबसे ज्यादा जो जरूरी है, अभी लोगों से दूरी बनाये रक्खें. मास्क पहनें और हाथों को बार बार धोते रहें. कपडे वगैरह भी साफ़ पहनें.
यह तो हुई शारीरिक स्वच्छता की बात. अब अपने अंतर्मन की तरफ भी झांकें और उसकी क्षमता को भी बढ़ाएं. योग और ध्यान करें, सकारात्मक विचार को बढ़ावा दें. मन को मजबूत बनायें. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. प्रकृति को निहारें, उसकी खूबसूरती को देखें और सराहें. परमात्मा अर्थात प्रकृति ने बहुत सारे संसाधन हमें उपलब्ध कराये हैं. हमें उनका सार्थक उपयोग करना है, दुरूपयोग नहीं. पृथ्वी, जल, वायु और आकाश को प्रदूषित होने से बचाएं.
प्राकृतिक संशाधनों के अत्यधिक दोहन से भी विषम परिस्थिति उत्पन्न होती है और प्रकृति संतुलन बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है. हमने अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन, भूकंप आदि विषम परिस्थतियों से भी मुकाबला किया है. कोरोना पर भी विजय प्राप्त कर लेंगे. थोड़ा धैर्य और सावधानी की जरूरत है.
हमारी संस्कृति में बहुत कुछ पहले से विद्यमान है. जैसे सुबह उठाकर ईश्वर और गुरुजनों को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करना. सूर्य, पृथ्वी, जल और वनस्पतियों आदि की पूजा/आराधना कर उन्हें संरक्षित करने का वादा करना. बाहर से आकर हाथ पैर धोकर ही घर में घुंसना. नहा-धोकर पूजा पाठ कर के जलपान करना. धूप-दीप-अगरबत्ती आदि से वातावरण को शुद्ध करना. तुलसी, बेल, पीपल, दूब, पान पत्ता और सुगन्धित पुष्प से पूजा करना यह सब बहुत पुराने ज़माने से हम सब करते आ रहे हैं. आजकल आधुनिकता में हमलोग पुराने संस्कार भूल गए है जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक थे. खैर जो भी देर से ही सही हम लोगों को समझ में तो आ रही है कि सफाई सुथराई का कितना महत्व है. प्रधान मंत्री मोदी का स्वच्छता अभियान बहुत ही सार्थक कदम है. आज यह कितनी जरूरी है सभी को समझ में आ रहा है.
अहिंसा परमो धरम और सर्वे सुखिन: भवन्तु को एक बार फिर से पालन करें. मनोविकार को अन्दर से बाहर निकालें. हम अवश्य सफल होंगे. धार्मिक पुस्तकों का पाठ करें. अच्छी अच्छी प्रेरणात्मक कहानियां पढ़े. भजन सुनें और गुनगुनाएं भी. इन सबसे आतंरिक उर्जा में वृद्धि होगी और हम कठिन से कठिन परिस्थितियों का मुकाबला हंसते हंसते कर सकते हैं.
पुराणों के अनुसार शंकर भगवान ने जन-कल्याण के लिए खुद विषपान किया था. आज भी कोरोना के खिलाफ अमेरिका के वाशिंगटन में जो वैक्सीन तैयार की जा रही है उसके परीक्षण के लिए सिएटल की ४३ वर्षीय जेनिफर हेलर तैयार हुई हैं. परीक्षण से पहले जेनिफर कहती हैं - हम सभी असहाय महसूस कर रहे हैं, ऐसे समय में मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं मानव जीवन के लिए कुछ काम आ सकूं. हालाँकि उसकी पहल के बाद अन्य लोग भी सामने आये हैं. पर शिव के भांति पहल करना ही शिवत्व है. इसीलिए हम शिव को प्रणाम करते हैं –
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं!   
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाश वासं भजेहं!!
ॐ नम: शिवाय!
-        -- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday 4 January 2020

अस्पताल में गरीब बच्चों की मौत और सियासत


अगस्त २०१७ में गोरखपुर के बी आर डी हॉस्पिटल में ६७ बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी. तब जिम्मेदार मंत्री द्वारा कहा गया था – “अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं”. यह खबर भी सुर्ख़ियों में आया था और तब योगी सरकार के ऊपर उंगलियाँ उठी थी.
उसके बाद बाद बिहार के मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल हॉस्पिटल में १४५ बच्चों की मौत जब चमकी बुखार से हो गई तो कहा गया – “लीची खाने से बच्चों की मौत हुई है”. उस समय बिहार की नितीश सरकार पर भी उंगलियाँ उठी थी.
अब राजस्थान के कोटा में जे के लोन अस्पताल जब बच्चों की मौत हो रही है तो मुख्य मंत्री अशोक गहलोत द्वारा आंकड़े दिए रहे हैं – “इस साल पिछले सालों की तुलना में कम बच्चों की मौत हुई है”.
ये सारे बयान संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार करते हैं. दरअसल हमारे सरकारी अस्पतालों में उपकरणों, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफों का घोर अभाव है जिसके मूल में लापरवाही, अफसरशाही और फंड के सही इस्तेमाल न होना है. सरकारी अस्पताल गरीबों के लिए ही होते हैं. जो प्राइवेट अस्पतालों के महंगे खर्च नहीं उठा सकते, वही सरकारी अस्पताल में जाते हैं. प्रधान मंत्री के जन आरोग्य योजना इस पर कहाँ फेल हो रही है, इसपर भी गौर करने की जरूरत है.
राजस्थान के कोटा में जेके लोन अस्पताल में हुए नवजात शिशुओं के मौत को लेकर सीएम गहलोत की मुश्किलें और बढ़ती ही नजर आ रही हैं. अब तक विपक्ष के हमलों का जवाब दे रहे गहलोत पर अपनी ही सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सवाल उठाए हैं. राजस्थान के कोटा में बच्चों की लगातार हो रही मौत पर सचिन पायलट ने कहा है कि मुझे लगता है कि हमें इस मुद्दे पर और ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है. सचिन पायलट ने कहा कि सत्ता में आए हमें 13 महीनों का वक्त हो चुका है और मुझे नहीं लगता है कि अब पुरानी सरकार पर दोष डालने का कोई मतलब है. जवाबदेही तय होनी चाहिए.
सचिन पायलट का यह बयान अपनी ही सरकार के लिए मुसीबत बन गया है. चूंकि इस पूरे मामले पर सीएम गहलोत के बयान विवादित रहे हैं जिन्हें विपक्ष गैरजिम्मेदार करार देता रहा है. ऐसे में सचिन पायलट का यह बयान विपक्ष को और आक्रामक रुख अख्तियार करने का मौका देगा.
ऐसा लगता है कि राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार का फ़ोकस बीजेपी पर निशाना साधने में ही है. अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में कम है. कोटा के जे के लोन अस्पताल का मामला एक हफ़्ते से पब्लिक में है. इसके बाद भी एक्सप्रेस के रिपोर्टर दीप ने पाया है कि इंटेंसिव यूनिट में खुला डस्टबिन है. उसमें कचरा बाहर तक छलक रहा है. क़ायदे से तो दूसरे दिन वहां की सारी व्यवस्था ठीक हो जानी चाहिए थी. लेकिन मीडिया रिपोर्ट से पता चल रहा है कि वहां गंदगी से लेकर ख़राब उपकरणों की स्थिति जस की तस है. जबकि मुख्यमंत्री की बनाई कमिटी ही लौट कर ये सब बता रही है. सवाल है कि क्या एक सरकार एक हफ़्ते के भीतर इन चीजों को ठीक नहीं कर सकती थी?
गहलोत सरकार को अब तक राज्य के दूसरे अस्पतालों की समीक्षा भी करा लेनी चाहिए थी. वहां की साफ़ सफ़ाई से लेकर उपकरणों के हाल से तो पता चलता कि राज्य के पैसे से क़ौन मोटा हो रहा है. आख़िर दिल्ली से हर्षवर्धन को आने की चुनौती दे रहे हैं तो सिर्फ़ आंकड़ों के लिए क्यों? क्यों नहीं इसी बहाने चीजें ठीक की जा रही हैं?
हर्षवर्धन की राजनीतिक सुविधा के लिए जो आंकड़े दिए जा रहे हैं उससे कांग्रेस बनाम बीजेपी की राजनीति ही चमक सकती है, ग़रीब मां-बाप को क्या फ़ायदा. गरीबों के बच्चे जो असमय ही काल कवलित हो गए वे तो लौट कर आने से रहे.
इसलिए नागरिकों को कांग्रेस बनाम बीजेपी से ऊपर उठकर इन सवालों पर सोचना चाहिए. ऊपर उठने का यह मतलब नहीं कि अभी जो मुख्यमंत्री के पद पर हैं वो जवाबदेही से हट जाएगा बल्कि यह समझने के लिए आप कांग्रेस बीजेपी से ऊपर उठ कर देखिए कि स्वास्थ्य के मामले में दोनों का ट्रैक रिकार्ड कितना ख़राब है. काश दोनों के बीच इसे अच्छा बनाने की प्रतियोगिता होती लेकिन तमाम सक्रियता इस बात को लेकर दिखती है कि बयानबाज़ी का मसाला मिल गया है. बच्चे मरे हैं उससे किसी को कुछ लेना देना नहीं.
राजस्थान सरकार ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ इनक्यूबेटर ठीक से काम करने की स्थिति में नहीं थे. इस मामले पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि 'कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बारे में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस साल 963 बच्चों की मौत हुई है, जबकि साल 2015 में 1260 बच्चों ने जान गंवाई थी. वहीं, 2016 में यह आंकड़ा 1193 था, जब राज्य में बीजेपी का शासन था. वहीं, 2018 में 1005 बच्चों की जान गई है.
यह सब आंकड़ेबाजी और राजनीतक बयानबाजी बंद होनी चाहिए. बल्कि उसके बदले धरातल पर काम होना चाहिए, जो कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कर के दिखाया है. रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली पानी सड़क के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य भी हर नागरिक को मिले यह भी किसी भी सरकार का दायित्व होता है. दुर्भाग्य से हमारा देश विकासशील देश तो है ही, पर विकास के रास्ते में इन कमियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. कभी ऐसे भी आंकड़े आते हैं कि हमारा देश हंगर इंडेक्स में भी बहुत अच्छी पोजीशन में नहीं है. जाड़ों में भी गरीब ही ज्यादा मरते हैं. हम सबको और सरकारों को इनपर काम करने की जरूरत है. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों के साथ मूलभूत सुविधा पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है.
एक आम नागरिक की हैसियत से ही मैं यह सवाल उठा रहा हूँ. इन सब बातों को उजागर करनेवाला भी मीडिया ही होता है और सरकार इन पर एक्शन लेती रही है आगे भी लेने की जरूरत है. जन प्रतिनिधियों का भी बहुत बड़ा दायित्त्व होता है कि वे अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को देखें और सुनें साथ ही उनकी परेशानियों को दूर करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.
जयहिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम!  
-      -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday 28 December 2019

पूस की रात


पूस की रात प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में से एक है. प्रधान मंत्री मोदी ने पिछले दिनों अपने मन की बात में इस कहानी की चर्चा भी की थी. कम जोत वाले एक किसान की हालत क्या होती है, प्रेमचंद से बेहतर भला कौन जान सकता है. यह कहानी आजादी से पहले की है. तब से अब तक किसानों की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है, ऐसी बात नहीं है. आज भी छोटे या मध्यम दर्जे के किसान कर्ज में डूबे है तो मौसम के साथ महाजन और सरकार की मार भी अक्सर उन्ही पर पड़ती रहती है.
आज भी किसानों के खेतों में जब अच्छी पैदावार हो जाती है तो उनके दाम बाजार में काफी गिर जाते हैं. जब मौसम की मार के चलते पैदावार को नुक्सान हुआ तो उस वस्तु के दाम बाजार में काफी बढ़ जाती है. उसका लाभ भी साहूकार और बड़े व्यापारी ही उठा ले जाते हैं. इस साल प्याज की फसल बर्बाद हुई तो आयात के बाद भी प्याज अभी तक 100 रुपये प्रति किलो के भाव पर ही अंटका है. जब तक नई फसल आयेगी, जिसके पुनरुत्पादन में ज्यादा लागत लगी होगी, उस समय दाम फिर गिर जायेंगे और किसान अपनी पुरानी स्थिति में ही रहेगा. फिर आधे भारत में ठंढ बढ़ी हुई है जगह जगह बर्फवारी हो रही है... उसका नुकसान भी तो किसानो का ही होना है. फसलें फिर बर्बाद होंगी. दाम बढ़ेंगे ... मध्यम दर्जे के आदमी पर ही मार पड़ेगी. ठंढ में भी गरीब वर्ग के लोग ही ज्यादा मरते हैं.
अभी जमशेदपुर के बगल के गांवों में टमाटर की अच्छी पैदावार हुई है. गांवों में लोग टमाटर को सड़कों पर फेंक रहे हैं क्योंकि उनका सही दाम उनको खेत में नहीं मिल रहा. वही टमाटर बाजारों में २० रुपये प्रति किलो से कम नहीं मिल रहा है. फायदा कौन उठा रहा है? किसान या बिचौलिए?
प्रेमचंद की कहानी में हरखू एक गरीब किसान है जो कर्ज में डूबा होने के कारण पूस के महीने में भी बिना कम्बल के ही अपने खेत की रखवाली कर रहा है. उसके साथ उसका कुत्ता जबरा है. ठंढ से बचने के लिए उसने बगीचे की पत्तियां बटोरी और आग जला कर राहत की साँस ली है. उसके बाद .... प्रेमचंद के ही शब्दों में ...
पत्तियाँ जल चुकी थीं. बगीचे में फिर अँधेरा छाया था. राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जाग उठती थी, पर एक क्षण में फिर आँखें बंद कर लेती थी. हल्कू ने फिर चादर ओढ़ ली और गर्म राख के पास बैठा एक गीत गुनगुनाने लगा. उसके बदन में गर्मी आ गई थी. ज्यों-ज्यों शीत बढ़ती जाती थी, उसे आलस्य दबाए लेता था.
जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागा. हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुंड उसके खेत में आया है. शायद नीलगायों का झुंड था. उनके कूदने-दौड़ने की आवाजें साफ कान में आ रही थीं. फिर ऐसा मालूम हुआ कि वह खेत में चर रही हैं. उनके चरने की आवाज चर-चर सुनाई देने लगी. उसने दिल में कहा- नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता. नोच ही डाले. मुझे भ्रम हो रहा है. कहाँ? अब तो कुछ नहीं सुनाई देता. मुझे भी कैसा धोखा हुआ.
उसने जोर से आवाज लगाई-जबरा, जबरा! जबरा भौंकता रहा. उसके पास न आया. 
फिर खेत में चरे जाने की आहट मिली. अब वह अपने को धोखा न दे सका. उसे अपनी जगह से हिलना जहर लग रहा था. कैसा ठंढाया हुआ बैठा था. इस जाड़े-पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना, असूझ जान पड़ा. वह अपनी जगह से न हिला. 
उसने जोर में आवाज लगाई-होलि-होलि! होलि! जबरा फिर भौंक उठा. जानवर खेत चर रहे थे. फसल तैयार है. कैसी अच्छी खेती थी, पर ये दुष्ट जानवर उसका सर्वनाश किए डालते हैं. हल्कू पक्का इरादा करके उठा और दो-तीन कदम चला, एकाएक हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का सा झोंका लगा कि वह फिर बुझते हुए अलाव के पास आ बैठा और राख को कुरेदकर अपनी ठंडी देह को गर्माने लगा. वह उसी राख के पास गर्म जमीन पर चादर ओढ़कर सो गया. 
जबरा अपना गला फाड़े डालता था, नीलगायें खेत का सफाया किए डालती थीं और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था. अकर्मण्यता ने रस्सियों की भाँति उसे चारों तरफ से जकड़ रखा था. 
सवेरे जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ धूप फैल गई थी. और मुन्नी कह रही थी-क्या आज सोते ही रहोगे? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया. 
हल्कू ने उठकर कहा-क्या तू खेत से होकर आ रही है? मुन्नी बोली-हाँ, सारे खेत का सत्यानाश हो गया. भला ऐसा भी कोई सोता है. तुम्हारे यहाँ मड़ैया डालने से क्या हुआ
हल्कू ने बहाना किया-मैं मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है. पेट में ऐसा दर्द हुआ कि मैं ही जानता हूँ. 
दोनों फिर खेत की डाँड़ पर आए. देखा, सारा खेत रौंदा पड़ा हुआ है और जबरा मड़ैया के नीचे चित्त लेटा है, मानो प्राण ही न हों. दोनों खेत की दशा देख रहे थे. 
मुन्नी के मुख पर उदासी छाई थी. पर हल्कू प्रसन्न था.
मुन्नी ने चिंतित होकर कहा-अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी. 
हल्कू ने प्रसन्न मुख से कहा-रात की ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा.
आज स्थिति क्या है. देश की अर्थव्यवस्था चिंतनीय अवस्था में है. पढ़े लिखे नौजवानों को नौकरी नहीं है. सभी तंगहाल है तभी नागरिकता कानून... और उसे लागू करने की सरकार की जल्दी ने लोगों को इस ठंढ में भी जगा दिया है. लोग सड़कों पर आन्दोलन कर रहे हैं. पुलिस की लाठियां खा रहे हैं. कुछ महिलाएं दिनरात धरने पर बैठी हैं.... यह सब किसलिए अपने स्वत्व को बचाने के लिए. इसी बीच बलवाई रूपी नीलगायें उन्ही के खेत में चर रही हैं. खेत यानी देश को चौपट कर रही हैं. फिर भी आम आदमी हरखू की तरह घुटने में सर छुपाये बैठा है. क्या होगा... इससे बुरा क्या होगा?
देश के कर्णधार, नेतागण, बुद्धिजीवी, पत्रकार, मीडिया आमजन आदि सबको पता है ...क्या होनेवाला है ... और क्या नहीं होनेवाला है.... बस दिखना चाहिए कि कुछ हो रहा है... देश चल पड़ा है... आगे और आगे... पीछे लौटने का सवाल ही नहीं...
वन्दे मातरम! जय भारत! भारत माता की जय!
-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.


Sunday 22 December 2019

देश को बचाने की कवायद – हिंसा रोकें


पहले नोटबंदी लागू करो, फिर उसके फायदे गिनाओ. लोगों को लाइन में लगाओ, बेरोजगार बनाओ. छोटे-छोटे उद्योग धंधों को बंद करो. फिर उन्हें गलत साबित करो. उसी तरह पहले GST लागू करो. उसके फायदे बताओ. एक देश एक टैक्स! का प्रचार करो. उसमे सुधार पर सुधार करते जाओ. अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठता है तो बैठे, लोग बेरोजगार हों तो हों! ऊपर से महंगाई बढ़ाते जाओ. लोगों को प्याज, दाल, दूध, पेट्रोल, डीजल और अन्य महंगे सामानों के अवगुण बताते चलो. जब जनता के हित के सारे मुद्दे फेल हो जाएँ तो कोई न कोई राष्ट्रीय मुद्दा उछाल दो. जनता इस नए मुद्दे में उलझी रहेगी, और बस सरकार का काम हो गया!
CAA और NRC ऐसा ही कुछ है. इसके फलाफल क्या होनेवाला है, यह भविष्य के गर्भ में है, पर सड़कों पर बवाल जारी है. राष्ट्रीय और व्यक्तिगत सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है. कई जानें भी जा रही हैं. पर सरकार क्यों अपना कदम पीछे करेगी? उसे तो बहुमत प्राप्त है और बहुमत से ही इस बिल को संसद से पास कराया है, जो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन चुका है. यह बात अलग है कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. कोर्ट ही समुचित फैसला देगा.
उधर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष शरद पवार ने राजग सरकार पर हमला बोला और उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (Citizenship Amendment Act) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) देश को त्रस्त कर रहे गंभीर मुद्दों से ध्यान हटाने की चाल है. इससे न सिर्फ अल्पसंख्यक बल्कि जो लोग देश की एकता एवं प्रगति की चिंता करते हैं, वे सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे हैं. नया नागरिकता कानून देश की धार्मिक, सामाजिक एकता और सौहार्द को बिगाड़ेगा.पवार ने पूछा कि संशोधित कानून के तहत केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के शरणार्थियों को ही नागरिकता क्यों दी जाएगी और श्रीलंका के तमिलों को क्यों नहीं. पवार ने कहा कि बिहार समेत आठ राज्यों ने कानून को लागू करने से इनकार कर दिया है और महाराष्ट्र का भी रुख यही रहना चाहिए. उन्होंने पूछा, “सीएए भले ही केंद्रीय कानून हो लेकिन इसको लागू राज्यों को करना है. लेकिन क्या राज्यों के पास ऐसा करने के लिए संसाधन एवं तंत्र है?
दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल और राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव, दिल्ली के पूर्व राज्यपाल नजीब जंग आदि ने भी इसपर सवाल उठाये हैं.
अब जो पूरे देश में विरोध हो रहा है उनमे असामाजिक तत्व और राजनीतिक पार्टियाँ भी घुस गई है जो इन्हें अपने हक़ में भुनाने का प्रयास कर रही है. कई जगहों पर विरोध शांतिपूर्वक हो रहा है तो कहीं हिंसक वारदातें भी हो रही हैं.
बहुत सारे वीडियो आए हैं जिनमें पुलिस की बर्बरता दर्ज हुई है. वह एकतरफ़ा तरीक़े से लोगों के घरों में घुसकर मार रही है. कोई अकेला पुलिस से घिरा हुआ है और उस पर चारों तरफ़ से लाठियां बरसाई जा रही है. एक वीडियो में लोग एक दूसरे पर गिरे पड़े हैं और उन पर पुलिस बेरहमी से लाठियां बरसाती जा रही है. जब कोई पकड़े जाने की स्थिति में हैं तो उसे मारने का क्या मतलब? जब कोई घर में है और वहां हिंसा नहीं कर रहा है तो फिर घर में मारने का क्या मतलब? ज़ाहिर है पुलिस की दिलचस्पी आम गरीब लोगों को मारने में ज़्यादा है. उसके पास किसी को भी उपद्रवी बताकर पीटने का लाइसेंस है.
कई सारे वीडियो में पुलिस बदला लेती दिख रही है. वह आस पास की संपत्तियों को नुक़सान पहुंचा रही है. वहां खड़ी मोटरसाइकिल को तोड़ रही है. दुकानें तोड़ रही है. पत्थर चला रही है. इसका कोई आंकलन नहीं है कि पुलिस की हिंसा और तोड़फोड़ से कितने का नुक़सान हुआ है? यूनिवर्सिटी के भीतर तो शांति थी, लाइब्रेरी में तो हिंसा नहीं हो रही थी? यूपी में सात लोग गोली से मरे हैं. पुलिस आराम से कह देती है कि उसने गोली नहीं चलाई तो फिर वहां पर मौजूद वह क्या कर रही थी? उसके पास भी तो कैमरे होते हैं वही बता दें कि गोली कहां से और कैसे चल रही थी? जामिया मिल्लिया की हिंसा में तीन गोलियां चली हैं. फिर जब वीडियो आया जिसमें पुलिस ही गोली चलाते दिख रही है उसके बाद पुलिस और ज्यादातर मीडिया वाले चुप्पी मर गए.
जो भी है कुछ प्रदर्शनों में कुछ लोगों को बेलगाम होते देखा जा सकता है. उनके बीच से पत्थर चलाए जा रहे हैं. ऐसे लोग अपनी उत्तेजना से माहौल को तनावपूर्ण बना रहे हैं. वो अपनी गली में पत्थर चला कर दूसरे शहरों के प्रदर्शनों को कमजोर करते है. लोगों की उत्तेजना से पुलिस को कुछ भयंकर होने की आशंका में सतर्क और अतिसक्रिय होने का मौक़ा मिलता है. एक वीडियो अहमदाबाद का आया है. लोगों ने पुलिस को ही दबोच लिया है. मगर उसी भीड़ से सात नौजवान निकल कर आते हैं और पुलिस को बचाते भी हैं. इस वीडियो की खूब चर्चा हुई. वायरल जगत और मीडिया दोनों में लेकिन जिस वीडियो में कई सारे पुलिस वाले एक आदमी पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसा रहे हैं उस पर चर्चा नहीं. दरियागंज से दो वीडियो घूम रहे हैं. उसमें पुलिस के लोग छत पर ईंटें तोड़ते देखे जा सकते हैं. एक वीडियो रात का है जिसमें गली में किसी को घेर कर मार रहे हैं. वो चीख रहा है फिर भी मारे जा रहे हैं.
दरियागंज का एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पुलिस वाले डंडे से कार के शीशे तोड़ रहे हैं. यही दिल्ली पुलिस है जो चुपचाप तीस हज़ारी कोर्ट से चली आई. वकीलों ने तो कथित रूप से लॉकअप में आग लगा दी थी. पुलिस वालों को मारा था तब क्या आपने देखा था कि दिल्ली पुलिस उनके घरों और कमरों से खोज कर ला रही है? जो भी है पुलिस को हिंसा की छूट है. आत्मरक्षा के नाम पर उसकी हिंसा को सही मान लिया जाता है. कई वीडियो में पुलिस गालियां देती दिख रही है. लोगों को सांप्रदायिक बातें कह रही हैं. जामिया में लड़कियों को जिन्ना का पिल्ला कहा गया. बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि दवा डालने पर कीड़े मकोड़े बिलबिला कर बाहर आ रहे हैं. यह समझ लेना चाहिए कि जिन लोगों का सत्ता पर नियंत्रण है उनकी भाषा ऐसी है. नागरिकता रजिस्टर और क़ानून का विरोध प्रदर्शन नेता विहीन है इसलिए हिंसा से बचाना लोगों की ही ज़िम्मेदारी है. जान-माल का नुक़सान ठीक नहीं है. हिंसा होने पर किसी को कोई इंसाफ़ नहीं होता है. लोगों को समझना चाहिए क़ानून बन चुका है. NRC आएगी तो यह मामला एक दिन का नहीं है. जो लोग इसके विरोध में हैं उनके धीरज और हौसले का इम्तहान है. एक दिन के लिए दौड़ लगाकर आ जाना आसान होता है. सरकार भी इंतज़ार में है कि दो चार दिनों में थक जाएंगे या फिर इतने लोग पुलिस की गोली से मार दिए जाएंगे कि प्रदर्शन का मक़सद ही समाप्त हो जाएगा.
इतना सब होने के बाद प्रधान मंत्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान से देश वासियों को संबोधित करते हुए कहा कि विपक्ष द्वारा भ्रांतियां फैलाई जा रही है. NRC की कहीं कोई चर्चा नहीं है. यानी कि उन्होंने अमित शाह के बयान को झूठा कहा, जिसे संसद में अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि बहुत जल्द NRC बिल आया रहा है इसी संसद से उसे पास कराएँगे. धनी हैं हमारे प्रधान मंत्री और धनी है हमारे गृह मंत्री. जनता के समझती है और क्या फैसला लेती है यह तो वही जाने. पर पर प्रधान मंत्री NRC पर फ़िलहाल यु टर्न लेते हुए दिखलाई पड़ रहे हैं. चाहे जो हो फ़िलहाल जो मुद्दा गर्म है वह शांत हो तो अच्छा है. उन्होंने सभी देश वासियों से हिंसा न करने और शांति बनाये रखने की अपील की, इसे सराहा जाना चाहिए. यही बात प्रधान मंत्री को पहले दिन कहनी चाहिए थी. तब तो वे कपड़े देखकर पह्चाहनने की बात कर रहे थे. हर तरीके से वोट हासिल करने के तरीकों में माहिर हैं हमारे प्रधान मंत्री. जयहिंद!
-    -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday 1 December 2019

महिलाओं से होते दुष्कर्म और जघन्य हत्याएं


रांची के कांके में एक 25 वर्षीय लॉ कॉलेज की छात्रा अपने मित्र के साथ रिंग रोड किनारे बैठकर बातचीत कर रही थी। इसी दौरान आस-पास के कुछ अज्ञात युवकों ने जबरन उसके मित्र को रोककर छात्रा को बगल के ईंट भट्टे में ले जाकर सामूहिक दुष्कर्म किया। कल झारखंड पुलिस ने इस जघन्य अपराध के जिम्मेदार 12 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। नाम भी जान लीजिए,धर्म का अंदाजा लगा लीजिये। इस गैंग रेप मे सुनील मुंडा, कुलदीप उरांव, सुनील उरांव, संदीप तिर्की, अजय मुंडा, राजन उरांव, नवीन उरांव, अमन उरांव, बसंत कच्छप, रवि उरांव, रोहित उरांव और ऋषि उरांव शामिल थे। जांच जारी है.
उसी दिन तमिलनाडु के कांचीपुरम में एक लड़की का गैंग रेप करके हत्या कर दी गयी। अभी आरोपियों के नाम और धर्म का पता नही चला है।
चंडीगढ़ में भी एक नाबालिग से रेप का मामला सामने आया है। ऑटो रिक्शा ड्राइवर लड़की को फुसलाकर अपने घर ले गया और रेप कर डाला। दोनो हिन्दू हैं।
हैदराबाद पुलिस ने महिला वेटनरी डॉक्टर का गैंग रेप करने और जला कर हत्या करने के आरोप में मुहम्मद पाशा, नवीन ,केशवुल्लू और शिवा को गिरफ्तार किया है। यह मामला निर्भय कांड जैसे लोगों को झकझोर गया है ... हालाँकि इसमें भी कुछ लोग धर्म तलाश कर रहे हैं...
ये सब घटनाएं एक ही दिन की हैं। चलिए अपने अपने हिसाब से जाति धर्म देखकर निंदा कीजिये। शर्म आती है जो रेप और हत्याकांड जैसी दरिंदगी में भी हिन्दू मुस्लिम ढूंढकर अपनी दुकान सजाते हैं। ट्वीटर पर टॉप ट्रेंड करवाते हैं। ऐसे लोगों को पहचान लीजिये। इन्हें रेप पीड़िता से कोई सहानुभूति नही है बस किसी धर्म विशेष के खिलाफ जहर उगलने का बहाना चाहिए। इग्नोर कीजिये या फिर उनकी पोस्ट पर जाकर धिक्कार लिख आइए। 2014 के बाद बहुत लोग मानसिक बीमार हो चुके हैं। अफसोस !
नोट: माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार रेप विक्टिम की फोटो और नाम सार्वजनिक करना कानून के विरुद्ध है। फिर भी उस महिला डॉक्टर का नम और चेहरा सोशल मीडिया पर खूब दिखलाया जा रहा है. एक बार अपने दिल की आत्मा को झकझोर है और फिर सोचिए कि हम किस दौर में आ गए हैं।
दिल दहला देने वाली हैदराबाद की घटना पर ही विशेष ध्यान देते हैं.
हैदराबाद (Hyderabad) के सरकारी अस्‍पताल में वेटनरी महिला डॉक्‍टर के गैंगरेप और मर्डर केस (Hyderabad Gangrape And Murder) में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं.  रिमांड रिपोर्ट में कहा गया है कि गैंगरेप और मर्डर से पहले महिला डॉक्‍टर को आरोपियों ने जबरन शराब पिलाई थी. इसके बाद पीड़िता को पेट्रोल और डीजल, दोनों की मदद से जला दिया था. पुलिस की रिमांड रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रक चालक और क्‍लीनर का काम करने वाले चारों आरोपियों मोहम्मद आरिफ, नवीन, चिंताकुंता केशावुलु और शिवा ने ही महिला डॉक्‍टर के दोपहिया वाहन का एक टायर जानबूझकर पंचर किया था. जिसे डॉक्‍टर ने टोल प्‍लाजा पर खड़ा किया था. इसके बाद वह टैक्‍सी से गई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक जब तीन घंटे बाद वह वापस लौटीं तो उन्‍होंने देखा था कि उनकी स्‍कूटी पंचर है. इस दौरान चारों आरोपियों ने उनसे मदद करने की बात कही थी. चार में से तीन आरोपियों ने उन्‍हें झाड़ियों में धकेल दिया था और उनका मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया था. चारों आरोपियों के बयान के आधार पर तैयार हुई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला डॉक्‍टर से रेप के पहले आरोपियों ने उन्‍हें जबरन शराब पिलाई थी. इस दौरान पीड़िता बेसुध हो गई थी और उसके ब्‍लीडिंग होने लगी थी. रेप के बाद आरोपियों ने उसकी हत्‍या की. उसके शव को एक कंबल में लपेटा और ट्रक पर रख दिया. चारों आरोपी महिला डॉक्‍टर के शव को ट्रक से लेकर चटनपल्‍ली तक गए. इसके बाद वहां एक ब्रिज के नीचे पीड़िता के शव को पेट्रोल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया. रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा है कि आरोपियों ने शव को पेट्रोल और डीजल डालकर आग लगाई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक व्‍यक्ति ने पुलिस से इस बाबत संपर्क करके बताया था कि घटना के एक दिन पहले दो व्‍यक्ति उसके पास पेट्रोल खरीदने आए थे. लेकिन दोनों संदिग्‍ध लग रहे थे तो उसने पेट्रोल देने से मना कर दिया था. इसके बाद उन्‍होंने दूसरी जगह से पेट्रोल खरीदा था. चार में से एक आरोपी ने शव पर पेट्रोल छिड़का था, वहीं दूसरे आरोपी ने शव पर डीजल छिड़का था. उन्‍होंने डॉक्‍टर का सिम कार्ड भी जला दिया था.
इस घटना से आम लोगों में घोर नाराजगी है. हरेक शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं. पुलिस और प्रशासन जांच में लगा है. पर न्याय कब मिलेगा – किसी को नहीं मालूम?
लोगों के हाथों में तख्तियां हैं जिस पर लिखा था- नो मीडिया, नो पुलिस, नो आउटसाइडर्स, नो सिमपैथी, ओनली एक्शन, जस्टिस. ये लोग परिवारवालों के लिए सिर्फ और सिर्फ न्याय की मांग कर रहे हैं. यहां मीडिया की एंट्री पर भी रोक लगा दी गई है.
लोग इस बात से भी नाराज़ हैं कि वहां के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अभी तक इतनी बड़ी घटना पर क्यों नहीं कुछ कहा है. कॉलोनी की एक महिला ने कहा, 'पुलिस ने चार अपराधियों को पकड़ा है और उन्होंने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया है. मंत्रियों को तुरंत न्याय दिलाना चाहिए.' हालाँकि बाद में मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने अपराधियों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट से सजा दिलवाने की बात कही है. यह फ़ास्ट ट्रैक कितने दिनों में काम करता है देखना है.
अब जबकि चारो आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं और उनसे लगातार पूछताछ जारी है.
अंत में एक कविता जो मैंने काफी पहले लिखी थी इसी तरह की घटनाओं से चिंतित होकर ... चिंतन मनन और समाधान जरूरी है.
नारी शक्ति, जाग जाओ! एक आह्वान! बहनों और बेटियों के नाम!
घोर चिंता का विषय, दुष्कर्म बनता जा रहा!
बात गैरों की नहीं, अपनों का डर सता रहा!
भारत-इण्डिया, लक्ष्मण-रेखा, नारियों के ही लिए !
समाधान, इन्साफ हो, चिंता भी इसकी कीजिये!
अमन व कानून के, रक्षक ही अब भक्षक बने!
ट्रेन से फेंका युवती को, आप यूं चलते बने!
इस धरा की नारियां, अब शस्त्र लेकर हाथ में,
जुल्म की वे दें सजा, 'रूपम' बने खुद आपमें!
मोमबत्ती, भीड़ से अब हो नहीं सकता भला.
काट दो उस हाथ को, नारी नहीं है अबला!
"
छीनता हो स्वत्व कोई, और तू त्याग तप से काम ले यह पाप है
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है"
दिनकर की ऐसी पक्तियां आज भी उपयुक्त है
शक्ति की देवी है तू, दे दंड गर तू भुक्त है
घर से बाहर तू निकल, शालीनता को साथ ले.
अनाचारी गर मिले, तो झट उसी का माथ ले.
काली, दुर्गा, लक्ष्मीबाई, सब तेरे ही रूप हैं
घर से बाहर आ निकल, ये जग नहीं कोई कूप है
लोक लज्जा क्या भला बस बेटियां सहती रहे.
और अपराधी दुराचारी सुवन घर में रहे!
हो नहीं सकता भला इस दानवी संसार में,
छोड़ ये मोमबत्तियां कटार लो अब हाथ में!
अम्ल की लो बोतलें, डालो रिपु के अंग पर!
पावडर मिर्ची की झोंको, नयन में उसे अंध कर!
आत्मरक्षा आप कर लो, रोकता अब कौन है?
कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, क़ानून खुद मौन है!
कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, क़ानून खुद मौन है!
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जवाहर लाल सिंह- जमशेदपुर